Pages

Saturday, January 26, 2019

व्यक्ति, मूल्य और गणतंत्र

🇮🇳व्यक्ति, मूल्य और गणतन्त्र🇮🇳

(25 नवम्बर, 1949 को भारतीय संविधान पर नई दिल्ली में डॉ. बी.आर. आम्बेडकर का वक्तव्य)

26जनवरी, 1950 को हम विरोधाभास भरे जीवन में प्रवेश कर रहे हैं। यह सच है कि राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में हमारे पास समानता होगी, लेकिन सामाजिक और सांस्कृतिक ढाँचे में एक व्यक्ति एक मूल्य के सिद्धांत को लगातार अस्वीकार करते रहेंगे।
हम कब तक विरोधाभासों से भरे इस जीवन को जीना जारी रखेंगे? हम कब तक अपने सामाजिक और आर्थिक जीवन में समानता के अधिकार को नकारते रहेंगे? यदि हम इन अधिकारों को लंबे समय तक नकारते रहेंगे, तो जाहिर है कि हम अपने राजनीतिक लोकतंत्र को संकट में डाल रहे होंगे। जितना जल्दी हो सके, हमें इस विरोधाभास को दूर करना चाहिए। यह मत भूलिए कि जो लोग असमानता से पीड़ित हैं, वे लोकतांत्रिक ढाँचे को नुकसान भी पहुँचा सकते हैं, जिसे इस संविधान सभा ने बहुत ही मेहनत से खड़ा किया है।
'मुझे लगता है कि हमारा संविधान व्यावहारिक है, यह लचीला भी है और देश को शान्ति और युद्ध दोनों स्थितियों में एक साथ रखने के लिए पर्याप्त मजबूत भी है। वास्तव में, यदि मैं यह कहूँ कि नए संविधान में निहित कुछ चीजें गलत होती हैं, तो इसका कारण यह नहीं होगा कि हमारे पास एक खराब संविधान था, बल्कि हम यह कहेंगे कि इसे बनाने वाले व्यक्ति बहुत निकम्मे थे।'
'दुनिया के वास्तविक अर्थ में यह कहना गलत नहीं होगा कि भारतीयों का कोई राष्ट्र है ही नहीं, इसे अभी बनाया जाना है। हमारा यह विश्वास कि हम एक राष्ट्र हैं, एक बड़ा  भ्रम पाल रहे हैं। एक राष्ट्र के रूप में लोग हज़ारों जातियों में कैसे बंटे हो सकते हैं? जितनी जल्दी हम महसूस कर लेंगे कि हम एक राष्ट्र नहीं हैं, दुनिया के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक अर्थों में हमारे लिए बेहतर होगा।'
'इसमें कोई संदेह नहीं है कि खुश रहने के प्रमुख कारणों में स्वतंत्रता भी है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि इस स्वतन्त्रता के साथ हम पर कुछ महान जिम्मेदारियों का भार भी है।
आज़ादी मिलने के साथ ही हमने कुछ भी गलत होने पर अंग्रेजों को दोषी ठहराने के बहाना खो दिया है। यदि इसके बाद चीजें गलत होती हैं, तो हमारे पास स्वयं को दोषी ठहराने के अलावा और कोई व्यक्ति नहीं होगा। इससे चीजें बिगड़ने का ज़्यादा खतरा रहता है। समय तेज़ी से बदल रहा है।'
'संविधान के प्रारूप को तैयार करने के दौरान हमारा उद्देश्य दो प्रमुख अर्थों में रहा है- पहला देश में एक राजनीतिक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के ढांचे को खड़ा करना और दूसरा यह कि हमारा देश एक आदर्श आर्थिक लोकतंत्र हो और साथ ही यह भी कि सत्ता में जिसकी भी सरकार रहे, वह देश को आर्थिक लोकतंत्र बनाने के लिए प्रयास करेगी। संविधान में निहित राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्तों का देश को एक आदर्श आर्थिक लोकतंत्र बनाने में बहुत महत्व है।।'



साभार:अमर उजाला

70th Republic Day Ceremony

🇮🇳फैक्ट फ़ाइल🇮🇳

संविधान सभा
-*-*-*-*-*-*-*-

"दो वर्ष, ग्यारह माह एवम अठारह दिवसों में देश का संविधान बनकर तैयार हुआ।"



द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद ब्रिटिश सरकार ने जब अपनी भारत नीति में बदलाव किया, तो सबसे पहले उन्हें भारत के नए संविधान की ज़रूरत महसूस हुई। इस काम के लिए वहाँ की सरकार ने तीन मंत्रियों को भारत भेजा, जिसे कैबिनेट मिशन के नाम से जाना गया। कैबिनेट मिशन की संस्तुतियों के आधार पर जुलाई, 1946 में भारतीय संविधान का निर्माण करने वाली सभा का गठन किया गया। उस वक़्त संविधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या 389 निश्चित की गई थी, जिनमें 292 ब्रिटिश प्रान्तों के प्रतिनिधि, 04 चीफ कमिश्नर क्षेत्रों के प्रतिनिधि एवम 93 विभिन्न भारतीय रियासतों के प्रतिनिधि शामिल थे। देश के विभाजन के वक़्त यह संख्या घटकर 299 हो गयी। 
आज़ादी के बाद यह सदस्य ही प्रथम संसद के सदस्य बने थे। संविधान सभा की प्रथम बैठक में सबसे बुजुर्ग सदस्य डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को सभा का अस्थायी अध्यक्ष चुना गया। हालाँकि दो दिनों बाद ही डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को इस सभा का स्थायी अध्यक्ष चुन लिया गया। संविधान सभा के चुनाव के वक़्त कोशिश की गई थी कि इसमें सभी वर्ग, समुदाय व धर्म के लोगों का प्रतिनिधित्व रहे। 29 अगस्त, 1947 को एक प्रारूप समिति का गठन किया गया तथा इसका अध्यक्ष भीमराव आम्बेडकर को बनाया गया। दो वर्ष, ग्यारह माह और अठारह दिवस के अथक प्रयासों के पश्चात 26 नवम्बर, 1949 को देश का संविधान बनकर तैयार हो गया, जो कि 26 जनवरी, 1950 से प्रभावी हो गया।।

साभार:अमर उजाला

Disclaimer: All the Images belong to their respective owners which are used here to just illustrate the core concept in a better & informative way.