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Sunday, January 12, 2020

शांति का सही अर्थ

एक राजा था। उसे चित्रकला से बहुत प्रेम था। एक बार उसने घोषणा करवाई कि जो चित्रकार उसे एक ऐसा चित्र बनाकर देगा जो शांति को दर्शाता हो, तो वह उसे मुँह माँगा पुरस्कार देगा। निर्णय वाले दिन एक से बढ़कर एक चित्रकार पुरस्कार जीतने की लालसा से अपने-अपने चित्र लेकर राजमहल पहुँचे।
राजा ने एक-एक करके सभी चित्रों को देखा और उनमें से दो चित्रों को अलग रखवा दिया। पहला चित्र एक अतिसुन्दर शांत झील का था। उस झील का पानी इतना स्वच्छ था कि उसके अंदर की सतह तक दिखाई दे रही थी। उसके आस-पास हिमखंडों की छवि उस पर ऐसे उभर रही थी, मानो कोई दर्पण रखा हो। जो भी उस चित्र को देखता, उसको यही लगता कि शांति को दर्शाने के लिए इससे अच्छा कोई चित्र हो ही नहीं सकता। दूसरे चित्र में पहाड़ थे, परन्तु वे बिल्कुल सूखे, बेजान और वीरान थे। इन पहाड़ों के ऊपर घने गरजते बादल थे। घनघोर वर्षा होने से नदी उफान पर थी। पहाड़ी के एक ओर स्थित झरने ने रौद्र रूप धारण कर रखा था। जिन लोगों ने इस चित्र को देख, उन्होंने यही सोचा कि भला इसका 'शांति' से क्या लेना-देना। सभी आश्वस्त थे कि पहला चित्र बनाने वाले को ही पुरस्कृत किया जायेगा। तभी राजा ने घोषणा कर दी कि दूसरा चित्र बनाने वाले चित्रकार वह मुँह माँगा पुरस्कार देंगे। हर कोई आश्चर्य में था।


पहले चित्रकार से रहा नहीं गया, वह बोला, "लेकिन महाराज इस चित्र में ऐसा क्या है, जो आपने इसे पुरस्कार देने का निर्णय लिया।"
"आओ मेरे साथ", राजा ने पहले चित्रकार को अपने साथ चलने के लिये कहा। दूसरे चित्र के समक्ष पहुँचकर राजा बोले, "झरने के बायीं ओर हवा से एक ओर झुके इस वृक्ष को देखो।उसकी डाली पर बने उस घोंसले को देखो। देखो, कैसे एक चिड़िया इतनी कोमलता से, इतने शांत भाव और प्रेमपूर्वक अपने बच्चों को भोजन करा रही है।" फिर राजा ने समझाया, "शांत होने का सही अर्थ यह नहीं कि आप ऐसी स्थिति में हों, जहाँ कोई शोर, समस्या न हो। शांत होने का सही अर्थ यह है कि आप किसी भी तरह की अव्यवस्था, अशान्ति, अराजकता के मध्य हों और तब भी शांतचित्त रहें, अपने कार्य के प्रति समर्पित रहें, अपने लक्ष्य की ओर केंद्रित व अग्रसर रहें।"

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Monday, January 6, 2020

🔥⚡जलवायु परिवर्तन की विभीषिका⚡🔥

ऑस्ट्रेलिया में उग्र रूप धारण कर चुकी भीषण अग्नि जलवायु परिवर्तन का निर्मम दृष्टान्त तो है ही, यह समस्त विश्व के लिये कठोर सबक भी है कि पर्यावरण की अनदेखी का निष्कर्ष भयावह भी हो सकता है!!




ऑस्ट्रेलिया के स्थानीय मार्गों पर चहुँ ओर ऐसे पोस्टर लगे हुये हैं, जिसमें प्रधानमंत्री सकॉट मॉरिसन को वन्य वेशभूषा में प्रदर्शित किया गया है:उनके शीश पर पुष्पों का मुकुट था, तो सागर के नील वर्ण जैसी उनकी कमीज़ कॉलर के समीप खुली हुई थी। पोस्टर के निकट से गुजरने वाले लोग चीख रहे थे, 'आप यहाँ नहीं थे??!! आपके देश में आग लगी हुई है।' संकेत काफी स्पष्ट था। वस्तुतः ऑस्ट्रेलिया के वनों में भीषण अग्नि पनपने के मध्य प्रधानमंत्री विगत माह जिस प्रकार अवकाश व्यतीत करने हवाई द्वीप गये हुये थे जिसे उन्होंने गुप्त रखा, जिस पर उनकी तीव्र आलोचना भी हुई है।
तथा ऐसा भी नहीं है कि प्रधानमंत्री के विरुद्ध आवाज़ किसी एक स्थान पर उठी है। उन पर लोगों का क्रोध मात्र इसलिये नहीं है कि अग्नि नियंत्रित करने के प्रकरण में वह अति प्रभावी एवम् सफल नहीं दिखे, अपितु उनके प्रति लोगों में निराशा इसलिये भी अधिक है, क्योंकि उन्होंने इस तर्क को ही अस्वीकृत कर दिया कि यह विभीषिका जलवायु परिवर्तन का ही परिणाम है। जबकि अधिकांश का मत है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ही ऑस्ट्रेलियाई वनों में पनपी यह ज्वाला इतनी भीषण है।
दावानल के पर्वतों से सागर तट की ओर विस्तृत होने के कारण सप्ताहांत में जब हजारों नागरिक पूर्वी ऑस्ट्रेलिया के नगरों से पलायन को बाध्य थे, तब दो कारण उनकी त्रासदी को अधिक घनीभूत कर रहे थे- प्रथम पृथ्वी के निरन्तर गर्म होने की वास्तविकता से अब मुख नहीं फेरा जा सकता, तथा द्वितीय शासकों की अकर्मण्यता मौजूदा स्थिति को और भी भयावह बना सकती है। आश्चर्य तो इस बात पर है कि विगत वर्ष ऑस्ट्रेलिया का सर्वाधिक गर्म व शुष्क वर्ष रहा है, इसके बावजूद प्रधानमंत्री मॉरिसन वर्तमान स्थिति का जलवायु परिवर्तन से किसी भी सम्बन्ध का खण्डन करते हैं। जब पर्यावरणविदों उनके समक्ष कोयला खदानों को बन्द करने का प्रस्ताव रखा, तो उन्होंने इसका उपहास उड़ाया। पर्यावरण पर ध्यान केंद्रित करने के स्थान पर मॉरिसन ने आर्थिक हितों एवम् उद्योग-व्यापार से सम्बन्धित उस शक्तिशाली लॉबी को प्राथमिकता दी, जो उनके प्रति निष्ठावान है। उन्होंने हरितगृह वायुमिश्रण उत्सर्जित करने वाली कम्पनियों पर अधिक करारोपण या उत्सर्जन न्यून करने के प्रस्तावों का बी विरोध किया। जबकि बहुसंख्यक ऑस्ट्रेलियाई कहते आये हैं कि उत्सर्जन के विरुद्ध शासन को सख्त प्रवृत्ति प्रयुक्त करनी चाहिये।
चौबीस लोगों के असमय काल के गाल में समा जाने, सैंकड़ों घरों के जलकर राख हो जाने व 1.2 करोड़ एकड़ से भी अधिक क्षेत्रफल के, जो डेनमार्क के कुल क्षेत्रफल से अधिक है, दावानल की चपेट में आने के बावजूद मॉरिसन ने अपनी नीति में किसी प्रकार के परिवर्तन का संकेत नहीं दिया है।
क्लाइमेट एनालिटिक्स के निदेशक बिल हेयर कहते हैं, 'वर्तमान स्थिति में जो चीज सबसे अधिक अखरती है, वह है संघीय सत्ता की निष्क्रियता और चुनौती के समय सक्रिय न होना। लोग समझ ही नहीं पा रहे हैं कि वे क्या करें।'
सप्ताहांत में जब स्थिति और भी विकृत हो गयी, तब मॉरिसन ने अपनी सरकार के निर्णयों को सही ठहराते हुये सेना को इसमें झोंक देने का निर्णय लिया। सेना की सक्रियता से सम्बन्धित वीडियो भी उन्होंने सोशल मीडिया पर साझा किया, जिस कारण उनकी आलोचना ही हुई। उन्होंने इस बात से भी इंकार किया कि उनकी सरकार ने ऑस्ट्रेलिया के बदलते मौसम को जलवायु परिवर्तन का परिणाम नहीं माना है। उनका यह भी कहना था कि भीषण दावानल के मध्य लोगों जिस प्रकार उन्हें निशाने पर लिया है, इससे उन्हें कोई अन्तर नहीं पड़ता। यह समय मिल-जुलकर चुनौती से निपटने का है, आरोप प्रत्यारोप का नहीं।
वस्तुतः विगत नवम्बर दावानल जब अपने प्रारम्भिक चरण में थी, तभी लोग सरकार से कदम उठाने का अनुरोध कर रहे थे, क्योंकि अग्नि जिस तीव्रता से प्रसारित हुई, वह अभूतपूर्व थी।
और चूँकि शासन स्तर पर कोई तत्परता नहीं थी, इसलिये लोगों में सन्त्रास उपजा। दावानल के विशेषज्ञ जिम मैक्लेनन के अनुसार, इस बार देश की जिन क्षेत्रों में अग्नि पनपी, उनमें से अनेक क्षेत्र ऐसे हैं, जहाँ दावानल का इतिहास नहीं है। वैज्ञानिकों का कथन है कि इस बार की त्रासदी उपरान्त ग्रामीण क्षेत्रों से भारी संख्या में लोग नगरों को पलायन करेंगे।
वनाग्नि जब उपनगरीय इलाकों और समुद्रतटीय क्षेत्रों में प्रसारित होने लगी, तो मॉरिसन के लिये चुनौतियाँ बढ़ गईं। उन्होंने छायाचित्र साझा कर या लोगों से आग्रह कर, जो कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की शैली है, लोगों का क्रोध शान्त करने का प्रयास किया। यही नहीं, जलवायु परिवर्तन को गम्भीरतापूर्वक लेने की बात करने वालों को उन्होंने ऐसा दम्भी समूह करार दिया, जो देश के बहुसंख्यक लोगों के मध्य अपनी इच्छा थोपना चाहता है। नववर्ष में उन्होंने समस्त समाचार पत्रों को सन्देश दिया, जिसमें कहा गया कि ऑस्ट्रेलिया कभी भी बाह्य देशों के दबाव से विचलित नहीं होता।
जबकि सत्यता यह है कि अग्नि से निपटने के लिये सेना का अवतरण अथवा राष्ट्रीय आपातकाल घोषित करने के प्रस्तावों पर मॉरिसन ने कई माह तक न केवल चुप्पी साधे रखी। अपितु तब उनका यह कथन था कि दावानल से निपटना समन्धित राज्यों का उत्तरदायित्व है। किन्तु गत शनिवार को उन्होंने रुख बदला और सेना के अवतरण के साथ-साथ राहत कार्य के लिये विमानों की तैनाती का भी निर्णय लिया।
नववर्ष के एक समाचार पत्र में प्रभावित लोगों द्वारा अपने खाक़ हो चुके घरों को निहारने की तस्वीर मुद्रित हुई तो उसी पत्र में मॉरिसन की सिडनी में ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम की मेजबानी करती हुई एक तस्वीर भी छपी। अपने रवैये के लिये मॉरिसन को सोशल मीडिया पर परिहास व विरोध का पात्र भी बनना पड़ा। ऑस्ट्रेलिया स्थित लोवी इंस्टीट्यूट के डेनियल फि्लटन कहते हैं, 'मॉरिसन का रवैया उन्हें 2005 में अमेरिका में आये कटरीना तूफान के दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के रुख का स्मरण कराता है। मॉरिसन लोगों के कष्टों और क्षोभ को भाँपने में असमर्थ रहे। वह जब तक प्रधानमंत्री कार्यालय में रहेंगे, यह विफलता उनका पीछा करती रहेगी।'

✨ग्रेटा थनबर्ग का वक्तव्य✨

✨✨✨✨✨✨✨✨




ग्रेटा का कहना है, "ऑस्ट्रेलिया दावानल से जूझ रहा है। 
इस सबके परिणामस्वरूप अब तक कोई राजनैतिक कार्यवाही नहीं हुई है। क्योंकि हम अभी तक ऑस्ट्रेलियाई दावानल जैसी प्राकृतिक आपदाओं तथा वर्धित चरम मौसम सम्बन्धी घटनाओं एवम् जलवायु संकट के मध्य सम्बन्ध स्थापित करने में विफल रहे हैं। जिसे बदलने की आवश्यकता है और इसे अभी से ही बदलना होगा। मेरे विचार ऑस्ट्रेलियाई जनता तथा उन सभी के साथ हैं जो इन विध्वंसक ज्वालाओं से त्रस्त हैं।"


📰🗞️स्रोत-विविध दैनिक आंग्ल व हिंदी पत्र🗞️📰



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Sunday, January 5, 2020

कोकम/गारनिया इंडिका

कोकम





कोकम एक औषधीय उपज है, जो मसाले और औषध के रूप में प्रयोग की जाती है। इसका वैज्ञानिक नाम 'गारनिया इण्डिका' है। यह मंगोस्टीन परिवार का सदस्य है। कोकम गोवा एवम् गुजरात में प्रमुखता से पाया जाता है। इसके फल गहरे बैंगनी और रसीले बेर की भाँति होते हैं। यह विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने में सहायक है। इसमें अनेकों पोषक तत्व होते हैं तथा नाम मात्र की कैलोरी पायी जाती है। इसमें कॉलेस्ट्रॉल और सैचुरेटेड फैट कदापि नहीं होते हैं।

⏩कोकम के सेवन से कई प्रकार के लाभ होते हैं। यह वजन कम करने, दस्त का उपचार करने, यकृत को स्वस्थ रखने के साथ-साथ तनाव कम करने में अत्यंत लाभकारी है। इसके द्वारा उदर के अल्सर का भी उपचार किया जाता है।

⏩इसमें विटामिन-सी की मात्रा अत्यधिक होती है, अतएव एन्टी ऑक्सीडेंट का भी कार्य करता है। कोकम में समाहित मैग्नेशियम, पोटैशियम और मैगनीज़ जैसे तत्व हृदय स्वास्थ्य हेतु अत्यंत लाभकारी हैं। इसके प्रयोग से ब्लड प्रेशर भी सामान्य रहता है।

⏩कोकम का सेवन मष्तिष्क में सकारात्मक प्रभाव उतपन्न करता है। यह फ्री रैडिकल्स को निष्क्रिय कर ऊर्जावान एवम् युवा बनाये रखने में सहायक है। मधुमेह उपचार हेतु भी इसका उपयोग लाभकारी माना जाता है।।

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जहाँ थकान मिटाने आती है कुदरत

कोवलम की गणना सबसे आकर्षक सागरीय तटों में की जाती है। माना जाता है कि केरल में होने वाली शैक्षिक क्रांति भी यहीं से आरम्भ हुई थी।




केरल के त्रिवनन्तपुरम जनपद में स्थित कोवलम अपने खूबसूरत समुद्री तट के लिये प्रसिद्ध है। कोवलम का इतिहास ब्रिटिश काल तक जाता है। जॉर्ज अल्फ्रेड बेकर नामक अंग्रेज़ ने कोवलम के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। इसकी गणना विश्व के सर्वाधिक आकर्षक तटों में की जाती है। अंग्रेज़ो में समय से ही कोवलम पर्यटक स्थल के रूप में विकसित होने प्रारम्भ हुआ। कहते हैं कि केरल में होने वाली शैक्षिक क्रान्ति यहीं से आरम्भ हुई थी। यह राजधानी त्रिवनन्तपुरम से मात्र 16 किमी. डोर है। यूँ तो वर्ष भर यहाँ पर्यटकों का आवागमन रहता है, किन्तु उत्तर भारत में शरद ऋतु के दौरान यहाँ अधिक लोग आते हैं। प्रतीत होता है जैसे प्रकृति ने अपनी समस्त सुंदरता कोवलम में ही अवतरित कर दी हो। यहाँ हरियाली से आच्छादित पर्वत, नारियल एवम् केले के लहराते वृक्ष तथा हवाओं के साथ खेलती समुद्री लहरें लाजवाब हैं। आप इस तिलस्म में डूबे हुये, कुदरत की इस अद्भुत चित्रकारी को देख ही रहे होते हैं कि चन्दन के वृक्षों की भीनी-भीनी सुगन्ध आपको एक और अनोखे संसार में लेकर चला जाता है। लगता है जैसे प्रकृति अपनी थकान मिटाने यहाँ आती है। यहाँ बिखरी स्वर्णिम रेत को चूमती हुयी  सागर की लहरें निहारने दूर-दूर से पर्यटक पधारते हैं। प्रकाशस्तम्भ कोवलम तट का मुख्य आकर्षण है, जिसकी विशेषता यहाँ खड़ा 35 मीटर ऊँचा लाइटहाउस है। आगन्तुक पर्यटकों के लिये यह तट स्वर्ग से कम नहीं। यहाँ तीन प्रमुख समुद्री तट हैं, जिनमें से सर्वाधिक विशाल यही है।
कोवलम अपने अनोखे स्वाद के लिये भी जाना जाता है। यहाँ की 'जर्मन बेकरी' के स्वादिष्ट व्यंजन अत्यंत प्रसिद्ध हैं। लाइटहाउस समुद्री तट पर स्थित इस बेकरी का नाश्ता कमाल का है। पैन केक, कॉफी, पेस्ट्री और मसालेदार पिज़्ज़ा यहाँ की शान हैं। मसालों और ज़ायकों के स्वाद का तो कहना ही क्या! अर्धचन्द्राकार समुद्र तटों पर मौजूद योग व आयुर्वेद केंद्र अब यहाँ के नव आकर्षण हैं।।




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Saturday, January 4, 2020

With No Expectations, Love Blossoms

Two travellers who survived a shipwreck, were washed ashore on a lonely island. With nothing to eat, nothing to protect them from the vagaries of the weather and with no one to listen to their woes, they started crying in desperation. Soon, they realised that crying was of no use. They decided to carry on with life.


The two castaways toiled hard to scratch out an existence. Thirty years went by during the course of which they built a beautiful village with the help of the local tribal people they befriended. They married local women and had children and grandchildren. Whatever they had learnt during their student days, passed on to their newfound community and the new generation and soon the village became quite developed. The two men commanded respect from one and all and were made heads of that village. Both lived like brothers and had great love for each other.
As they grew older, they began to wish that they could spend the last few years of their lives with their blood relations from whom they had got separated long back. They embarked upon their voyage on an unknown route. At a distance of five hundred miles, they discovered a city that looked prosperous and modern with all amenities. Both were shell-shocked.
"Were we really so close to such a good place? Why didn't we travel these five hundred miles earlier? Quite possible, we could have somehow reached our country and kin and that would have saved us from the toil, struggle and the difficult time we underwent all these years," they said to themselves, bemoaning their fate. Angry with themselves, angry with destiny and angry with God, sitting near the river bank, they started weeping. It drew attention of a sage and he rushed to them. After he got to know their story, he asked them to follow him and soon they were in a palatial house. Pointing to the house owner, the sage said, "His father was the wealthiest person of the state. He is younger than you but various ailments have left him immobile whereas you have undertaken an arduous voyage on an uncharted route at this ripe age. The big mansion facing this house belongs to his real brother but the brothers hardly speak with each other. Their families remain estranged because each of them nurses a grouse that their parents didn't do justice in property division. Worse, the parents spent their last few years in an old age home. You are strangers, but destiny brought you together. But, I can see that you live like brothers and are committed to live and die together."
By now the two men had come to understand ground realities. Full of gratitude, they asked the sage the reason for this unusual conduct of humans, "You met as strangers so you had no expectations of each other. You had nothing, so you started creating with your hard work and it was a source of immense satisfaction to you. On the other hand, most of us who are blessed with family and friends have only expectations from them. It becomes the cause of unhappiness and estrangement.
Instead of having the will to do something new and constructive, we want to have what is created by others."
The two men gave up their plan to go back to their country. They returned to the village they had helped establish.

Excellent narration #Bhartendusir
#SpeakingtreeTOI


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Wednesday, January 1, 2020

Best Briefing #New Year

🎆🎇A New Year Brings New Beginnings 🎇🎆


New Year's Eve is widely celebrated across the globe with much enthusiasm and merrymaking. The month of January is said to be named after the ancient Roman god, Janus, the deity of beginnings, journeys, transitions and endings.
Divine Janus is thought to be 'divom deus'- god of God's, the Romans invoked him at the beginning of every year, month and morning. From this perspective, New Year celebrations signify overcoming impediments and welcoming progressive possibilities.
At a deeper, psychological level, human beings have always associated the arrival of a new year with a fresh lease of life and aspired for new beginnings. Around this time, most of us follow the old tradition of making New Year resolutions to bring significant changes in our life.
Although different people make different resolutions, the following seem to top the New Year resolutions survey lists: Eating healthy, exercising regularly, quitting addictions, nurturing relationships, working for self-growth, doing charity, conserving the environment and natural resources, helping others and connecting to the Divine.
At the outset, in a new year, people have a lot of excitement and tremendous motivation for working toward realising their new dreams, but as time passes by, they go off-track and they lose momentum completely. A research conducted at the University of Washington reveals that around 75 percent people fail to sustain their New Year resolutions. Subsequently, they seem to wallow in defeat, stop trying, embrace old behavioural patterns and unconsciously decide to wait for another special occasion.
However, making a new beginning and persevering in chasing your dreams is not very complicated. All you have to do is believe in yourself- yes, it's terribly simple. Swami Vivekananda states, "All power is within you. You can do anything and everything. Believe in that. Do not believe that you are weak...Stand up and express the divinity within you." Psychologists have also found that self-efficacy and self-esteem, our belief in our ability to shape our life, determines how we perceive ourselves and whether or not we successfully achieve our goals, including fulfilling New Year resolutions.
Individuals with low self-esteem believe that they are doomed because of factors beyond their control. These are the people who find their goals very overwhelming and get discouraged as soon as they encounter the first obstacle on their path. They choose to remain in their comfort zones and refrain from getting passionately involved with their aspirations. In contrast, those with high self-esteem have complete faith in their ability to reclaim their life. They embrace setbacks and challenges as opportunities for new learning and self-growth, keep fighting till the end and emerge as winners. These people are zealous about turning their dreams into reality and put their body, mind and soul in realising their aspirations.
The Bible affirms that we are created in the image of God and are blessed with an intrinsic perfection and capacity to reach the epitome of holiness. However, we have forgotten the divinity within and instead, we have allowed ourselves to fall into abyss of pessimism. In this New Year, let us resolve to make a new beginning by changing ourselves and consciously aligning with Divine plan.



Special Thanks to-
Pulkit Sir & TOI Editorial

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भारत के प्रथम सीडीएस

👉जनरल रावत बने प्रथम सीडीएस

👉केंद्र सरकार ने की घोषणा, सेवानिवृत्ति उपरांत सम्भाला नव उत्तरदायित्व


सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत देश के प्रथम चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ(सीडीएस) नियुक्त हुये हैं। केंद्र सरकार ने सोमवार, 30 दिसम्बर को उनके नाम का औपचारिक ऐलान कर दिया। इससे पहले जनरल रावत ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात की। सीडीएस तीनों सेना प्रमुखों से वरिष्ठ चार स्टार जनरल होगा। बतौर सेना प्रमुख मंगलवार को रिटायर हो चुके जनरल रावत नववर्ष में नई जिम्मेदारी संभालेंगे। वह तीन वर्ष तक पद पर बने रहेंगे। रविवार को ही सीडीएस के लिये आयु सीमा 62 से बढ़ाकर 65 वर्ष की गई है।

👉सेना के लिये गौरव का क्षण-
भारतीय सेना ने ट्वीट कर जनरल रावत को शुभकामनाएं दीं। सेना ने इसे गर्वपूर्ण ऐतिहासिक क्षण करार देते हुये कहा, यह नियुक्ति सशस्त्र बलों के मध्य तालमेल, एकजुटता और समन्वय को बढ़ावा देगी।

👉दीर्घ प्रतीक्षा उपरांत देश को जनरल बिपिन रावत के रूप में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ(सीडीएस) मिल गया है। आखिर, सीडीएस का क्या होगा कामकाज और कितना अहम होगा यह पद, जानते हैं इससे जुड़े तमाम पहलू...
👉तीनों सेनाओं में तालमेल की कड़ी होंगे साझा सैन्य प्रमुख
👉देश में नई शुरुआत, बलों में साझी सोच विकसित करने की होगी चुनौती
👉मुख्य रक्षा और रणनीतिक सलाहकार का जिम्मा, सरकार और सैन्य बलों के मध्य
👉सीडीएस एक 'चार सितारा' जनरल की हैसियत से आर्मी, नेवी और वायुसेना के साझा मुखिया होगा। हालाँकि तीनों अंगों के पृथक प्रमुख होंगे और उनका दर्जा भी चार सितारा ही होगा। सीडीएस के रूप में जनरल रावत सरकार के सैन्य सलाहकार होंगे और उसे महत्वपूर्ण रक्षा और रणनीतिक सलाह देंगे। तीनों सेनाओं के लिये दीर्घकालीन रक्षा योजनाओं, रक्षा खरीद, प्रशिक्षण और परिवहन के लिये प्रभावी समन्वयक का कार्य करेंगे। खतरों और भविष्य में युद्ध की आशंकाओं के मद्देनजर तीनों सेनाओं में आपसी सामंजस्य और मजबूत नेटवर्क बनाने का जिम्मा सीडीएस के कंधों पर होगा। सेनाओं के संसाधनों के बेहतर उपयोग के लिये योजना बनाएंगे। साथ ही सेवा से जुड़ी अहम प्रक्रियाओं को सरल एवम् व्यवस्थित बनाने में भूमिका निभाएंगे। सीडीएस के रूप में जनरल रावत के समक्ष तीनों सेनाओं की साझी सोच विकसित करने की चुनौती होगी।

👉परमाणु मसलों पर पीएम के सलाहकार

लगभग सभी परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों में सीडीएस का पद रखा गया है। भारत भी परमाणु शक्ति सम्पन्न देश है। लिहाजा, इससे जुड़े मामलों पर भी सीडीएस प्रधानमंत्री के सलाहकार होंगे।
👉कारगिल युद्ध के बाद हुआ था प्रथम विमर्श
सीडीएस बनाने की चर्चा दो दशक पूर्व शुरू हुई। 1999 में कारगिल युद्ध के बाद के. सुब्रमण्यम समिति ने उच्च सैन्य सुधारों की अनुशंसा करते हुये सीडीएस की बात रखी थी। हालाँकि तब राजनीतिक असहमतियों के कारण इस पर बात आगे नहीं बढ़ सकी। फिर 2012 में नरेश चन्द्रा समिति ने चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी(सीओएससी) का चेयरमैन बनाने की अनुशंसा की थी। इसके बाद दिसम्बर 2016 में रिटायर्ड ले. जनरल डीबी शेकटकर ने भी सीडीएस की नियुक्ति की सिफारिश की थी।
👉अभी तक सीओएससी चेयरमैन का था प्रावधान
वर्तमान में तीनों सेना प्रमुखों में सबसे सीनियर मुखिया ही, चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं। उनकी भूमिका सीमित और कार्यकाल बहुत छोटा रहता है। मसलन एयर चीफ मार्शल(एसीएम) बीएस धनोआ ने 31 मई को एडमिरल सुनील लाम्बा के बाद सीओएससी का पदभार सम्भाला और 30 सितम्बर तक इस पद पर रहे। इसके बाद यह पद वरिष्ठ सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत को सौंप दिया गया, जो 31 दिसम्बर 2019 को सेवानिवृत्त हो चुके हैं यानी इस पद पर उनका कार्यकाल तीन माह ही रहा।

👉इन प्रमुख देशों में भी तैनाती

👮ब्रिटेन:भारत ने ब्रिटेन की तर्ज पर सशस्त्र बलों और रक्षा मंत्रालय का मॉडल रखा है। ब्रिटिश सशस्त्र बलों पर एक स्थायी सचिव होता है, जिसकी हैसियत रक्षा सचिव और सीडीएस जैसी होती है। वह पीएम और रक्षा मन्त्रालय का सलाहकार होता है और सैन्य ऑपरेशनों का जिम्मा उस पर होता है।
👮अमेरिका:दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य ताकत अमेरिका में चेयरमैन ऑफ जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ सभी सैन्य बलों का सर्वोच्च अधिकारी है। राष्ट्रपति और रक्षामंत्री का मुख्य सैन्य सलाहकार। ऑपरेशनल कमाण्ड पर कोई अधिकार नहीं हैं।
👮इटली: यहाँ 'द चीफ ऑफ द डिफेंस स्टाफ' की नियुक्ति होती है। 04 मई 1925 को इस पद पर तैनाती शुरू हुई थी।
👮चीन: पड़ोसी चीन में 'द चीफ ऑफ द जनरल स्टाफ' का पद रखा गया है। 23 मई 1946 से इस पर नियुक्ति होती रही है।
👮फ्रांस: 'द चीफ ऑफ द स्टाफ ऑफ द आर्मीज' के नाम से जाना जाता है। सैन्य बल इसके अधीन। 28 अप्रैल 1948 में पहली तैनाती।
👮कनाडा: 'द चीफ ऑफ द डिफेंस स्टाफ' सीडीएस के नाम से यह पद प्रचलित है। कनाडाई सैन्य बलों में वरिष्ठतम अधिकारी बनता है।
👮जापान: 'चीफ ऑफ स्टाफ, जॉइंट स्टाफ' के नाम से जाना जाता है। जापानी सुरक्षा बलों का मुखिया होता है।

👉जनरल रावत को कमान इसलिये...

देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ(सीडीएस) के रूप में निवर्तमान सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत को साझा सेनाओं की कमान यूँ ही नहीं मिली। 2016 में सेना प्रमुख बने जनरल रावत 31 दिसम्बर को इस पद से रिटायर होने के साथ ही चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का बैटन सम्भाल रहे हैं। अभी तक वे तीनों सैन्य प्रमुखों की कमेटी के चेयरमैन रहे। सेना में अलग-अलग पदों पर रहते हुये उनके पास युद्ध और सामान्य परिस्थितियों का पर्याप्त अनुभव है। सीडीएस देश के रक्षा तंत्र में नई शुरुआत है और जनरल रावत की योग्यता और अनुभव ने उन्हें यहाँ तक पहुँचाया है।

🎖️शुरू से ही अचीवर-

16 मार्च, 1958 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में जन्मे जनरल रावत के पिता लक्ष्मण सिंह रावत भी सेना में रहे हैं। वे लेफ्टिनेंट जनरल पद से रिटायर हुये। स्कूली शिक्षा के बाद बिपिन रावत ने इण्डियन मिलिट्री एकेडमी, देहरादून और फिर डिफेंस स्टाफ कॉलेज में प्रवेश लिया। उन्हें 16 दिसम्बर, 1978 को 11 गोरखा रायफल्स की 5वीं बटालियन में कमीशन मिला। उनके पिता भी इसी बटालियन का हिस्सा रहे थे। उनकी पहली पोस्टिंग मिज़ोरम में हुई थी और उन्होंने इस बटालियन का नेतृत्व भी किया। इस दौरान उनकी बटालियन को उत्तर पूर्व की सर्वश्रेष्ठ बटालियन चुना गया।

🎖️चुनौतियों से वाकिफ...

अपने करियर में जनरल रावत पूर्वी क्षेत्र में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल, कश्मीर घाटी के इन्फेंट्री डिवीजन में राष्ट्रीय रायफल्स सेक्टर के साथ डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में बहुराष्ट्रीय ब्रिगेड के मुखिया रह चुके हैं। जनरल रावत को अशान्त इलाकों में काम करने का लंबा अनुभव है। मिलिट्री फ़ोर्स के पुनर्गठन, पश्चिमी क्षेत्र में आतंकवाद और पूर्वोत्तर में जारी संघर्ष को उन्होंने करीब से देखा है।

🎖️सरकार के पसंदीदा...

इसमें भी कोई संदेह नहीं कि जनरल रावत केंद्र सरकार के पसंदीदा रहे हैं। दिसम्बर, 2016 में जब उन्हें सेना प्रमुख बनाया गया था, तब उनसे वरिष्ठ दो अन्य अफसर इस पद के दावेदार थे, लेकिन सरकार ने उन दोनों के दावों को दरकिनार कर दिया। बता दें कि गोरखा ब्रिगेड में कमीशन पाकर सेना प्रमुख के पद तक पहुँचने वाले से पांचवें अफसर हैं।

🎖️सोचने का अलग अंदाज...

जनरल रावत देश की सुरक्षा व्यवस्था और खासकर सेना के सामने मौजूद चुनौतियों से परिचित हैं। संसाधनों की कमी के बीच सैनिकों को अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने में कितनी मुश्किलें आती हैं, वे भी जानते हैं, लेकिन करीब 42 वर्षीय लम्बे करियर में उनकी कामयाबी का सबसे बड़ा राज यह है कि वे चीजों को एकपक्षीय नजरिये से नहीं देखते।सेना प्रमुख रहते हुये वे सैन्य अधिकारियों को मिलने वाली सुविधाओं पर आपत्ति जता चुके हैं। वे सेना और आम लोगों के बीच मेलजोल के भी पक्षधर हैं वे सेना को मिलने वाले विशेषाधिकारों के खिलाफ हैं। सीडीएस नियुक्त होने पर सैन्य विभाग का प्रमुख होने के साथ रक्षामंत्री के सलाहकार की जिम्मेदारी भी उनके कन्धों पर होगी।

🎖️15 अगस्त को घोषणा, अब सम्भाली कमान...

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विगत स्वतन्त्रता दिवस (15 अगस्त) पर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) की नियुक्ति की घोषणा की थी। इसके करीब चार माह बाद ही जनरल बिपिन रावत ने वर्ष के अंतिम दिन बतौर सीडीएस कमान संभाल ली। सीसीएस ने 24 दिसम्बर को पद सृजन की मंजूरी दी थी। 1999 में कारगिल युद्ध के बाद इस सम्बन्ध में गठित की गई कारगिल सुरक्षा समिति ने तीनों सेनाओं में तालमेल के लिये सीडीएस की नियुक्ति का सुझाव दिया था। पीएम की घोषणा के बाद एनएसए अजित डोभाल की अध्यक्षता में एक कार्यान्वयन समिति का गठन किया गया था। इस समिति ने सीडीएस की नियुक्ति के तौर-तरीकों, जिम्मेदारियां और कार्यप्रणाली तय की थी।


👮नरवाने बने नये सेना प्रमुख...


लेफ्टिनेंट जनरल मनोज मुकुंद नरवाने ने 28वें सेना प्रमुख के रूप में पदभार ग्रहण कर लिया। सिख लाइट इन्फैन्ट्री के अफसर नरवाने इससे पहले वाइस चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ थे।

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