उत्तर प्रदेश में धारा-188 पहली बार कब लागू हुई??
🛃पहली बार प्लेग से निपटने के लिये 1897 में बना था अधिनियम।
🛃लॉकडाउन का उल्लंघन करने वालों पर आईपीसी की धारा 188 के अतिरिक्त आपदा प्रबन्धन कानून के अन्तर्गत भी कार्रवाई।
🛃कानून का अनुपालन न करने पर 2 व मिथ्या प्रचार पर 3 वर्ष का कारावास।
घातक वायरस के संक्रमण के प्रसार को अवरुद्ध करने के लिये राज्य सरकार ने प्रथम बार महामारी अधिनियम 1897 लागू किया है। राज्य सरकार ने 14 अप्रैल तक सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, धार्मिक, शैक्षणिक, खेल, पारिवारिक प्रकृति के किसी भी आयोजन को प्रतिबंधित करने के लिये यह अधिनियम लागू किया है। पहली बार यह कानून 1897 में अंग्रेज शासकों ने मुम्बई में प्लेग प्रकोप के चलते लागू किया था।
जानकारों के अनुसार इस अधिनियम को तब लागू किया जाता है, जब राज्य या केन्द्र सरकार को भयावह रोग के प्रवेश से दुष्प्रभाव की आशंका हो जिससे जनसाधारण को संकट हो। इसी प्रकार वर्तमान विषाणु के संक्रमण को देखते हुये केन्द्र सरकार ने राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों में इस कानून के खण्ड दो को लागू करने के निर्देश दिये हैं। अधिनियम के लागू होते ही सरकारी आदेशों की अवहेलना अपराध के श्रेणी में है।इसमें आईपीसी के अन्तर्गत दण्ड का प्रावधान है।
कोरोना से निपटने के लिये लागू लॉकडाउन न मानने वालों पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 188 के अन्तर्गत कार्रवाई हो रही है, फिर भी इसका उल्लंघन जारी था। इसके बाद गृह मंत्रालय ने राज्यों से आपदा प्रबन्धन कानून 2005 के अन्तर्गत भी कार्रवाई को कहा है। आपदा प्रबन्धन लागू होने के बाद शासकीय अधिकारी और अधिक सशक्त हो गये हैं। ऐसे में कानून न मानने पर 2 व मिथ्या प्रचार पर 3 वर्ष का कारावास हो सकता है। इन दोनों कानूनों के मुख्य प्रावधान निम्नवत् हैं-
◾कर्त्तव्य निर्वहन से इनकार पर.....➡️
कानून में आपदा के समय नियुक्त अधिकारी द्वारा उसे प्रदत्त कर्त्तव्य न निभाने पर एक वर्ष तक के कारावास का प्रावधान है। यद्यपि जिसके पास अपने वरिष्ठ अधिकारी की लिखित स्वीकृति होगी या ड्यूटी न निभा पाने का कोई विधिक आधार होगा, उसे दण्ड से छूट मिलेगी।
◾गलत दावा करने पर दो वर्ष की कैद....➡️
राहत, सहायता, पुनर्निर्माण तथा अन्य लाभ लेने के लिये गलत दावा प्रस्तुत करने वाले पर आपदा प्रबन्धन कानून की धारा-52 के तहत जुर्माना और दो वर्षीय कारावास का प्रावधान है।
◾दो प्रकार के अपराधों में आपदा एक्ट में दण्ड➡️
आईपीसी की धारा 188 के उल्लंघन पर छह माह तक के लिये जेल भेजा जा सकता है। वहीं महामारी अधिनियम के उल्लंघन पर भी धारा 188 के तहत ही कार्रवाई की जाती है। आपदा प्रबन्धन कानून की धारा 51 के तहत ड्यूटी में बाधा डालने और अधिकारियों के निर्देशों को मानने से इनकार करने पर एक वर्ष की सजा हो सकती है। निर्देश न मानने पर किसी के प्राणों पर संकट की स्थिति में दो वर्ष तक की सजा भी हो सकती है। भय फैलाने वाली सामग्री के प्रकाश-वितरण पर तीन वर्ष की कैद अथवा जुर्माना हो सकता है।
◾अधिकारियों-कर्मचारियों के लिये कानूनी कवच➡️
किसी अधिकारी और कर्मचारी के लिये निर्णय के सन्दर्भ में आपदा कानून उन्हें कानूनी प्रक्रिया से सुरक्षित करता है।
◾सहायता के लिये मना करने पर.....➡️
कानून के अन्तर्गत किसी भी अधिकारी को आपदा से निपटने के लिये आवश्यक संसाधन, व्यक्ति, सामग्री, स्थान, भवन, बचाव के लिये वाहन अधिग्रहण का अधिकार है।
🛃पहले भी लागू हो चुका है एक्ट➡️
सन् 1959 में हैजा के प्रकोप को देखते हुये पुरी में, वर्ष 2009 में स्वाइन फ्लू फैलने पर पुणे में इस एक्ट के सेक्शन दो लागू हुआ था। 2018 में गुजरात के वडोदरा में कॉलरा के लक्षण मिलने पर यह एक्ट लागू हुआ था। वर्ष 2015 में चंडीगढ़ में मलेरिया और डेंगू की रोकथाम के लिये एक्ट प्रभावी हुआ था। 2020 में कर्नाटक ने सबसे पहले कोरोना वायरस से निपटने के लिये महामारी अधिनियम 1897 को लागू किया है।
🛃अधिनियमित अनुच्छेदों के प्रमुख प्रावधान➡️
◾केन्द्र और राज्य सरकारों को विशेषाधिकार देता है ताकि महामारी की रोकथाम हेतु आवश्यक प्रचार हो सके।
◾किसी यात्री के संक्रमित होने की आशंका है तो उसे घर पर या अस्पताल में क्वारंटाइन किया जा सकता है।
◾कोई व्यक्ति या समूह महामारी से ग्रसित है तो उन्हें किसी अस्पताल या अस्थाई आवास में रख सकते हैं।
◾सेक्शन तीन में सरकारी आदेश नहीं मानना दण्डनीय अपराध होगा। छह माह की सजा और जुर्माना हो सकता है।
◾महामारी एक्ट में अधिकारियों को अधिनियम लागू करने के लिये कानूनी सुरक्षा का भी प्रावधान है।।
🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂
ENGLISH VERSION:
'Section 188: Implemented first time in Uttar Pradesh'
🛃The epidemic act was formulated in 1897 to counter the Plague for the first time.
🛃 Besides Section 188 of the IPC, action is also taken under the Disaster Management Act against those who violate the lockdown.
🛃2 years imprisonment for non-compliance with law and 3 years on false propaganda.
In order to block the spread of deadly virus infection, the state government has implemented the Pandemic Act 1897 for the first time. The state government has implemented this act to ban any event of social, cultural, political, religious, educational, sports, family nature till 14 April. This law was first implemented in 1897 by the British rulers due to the plague outbreak in Mumbai.
According to experts, this act is implemented when the state or central government fears about the side effects after the entry of the dreaded disease, which may cause public distress. Similarly, in view of the current virus infection, the Central Government has given instructions to implement clause two of this law in states and union territories. As soon as the Act comes into force, disregard of government orders falls under the category of crime. There is a provision of punishment under IPC.
Action is being taken under Section 188 of the Indian Penal Code for those who do not accept the applicable lockdown to deal with Corona, yet the violation was continuing. After this, the Home Ministry has asked the states to take action under the Disaster Management Act 2005 also. Government officials have become more empowered after disaster management is implemented. In such a situation, if you do not follow the law, you can be imprisoned for 2 years and 3 years for false propaganda. The main provisions of both these laws are as follows:
◾On refusal to discharge duty..... ➡️
The law provides for imprisonment of up to one year if the officer appointed at the time of disaster does not fulfill the duties conferred on him. However, whoever has the written approval of his superior officer or has any legal basis for not performing duty, will be exempted from punishment.
◾Two years imprisonment for wrong claim .... ➡️
There is a provision for fine and two-year imprisonment under Section 52 of the Disaster Management Act for making false claims for relief, assistance, reconstruction and other benefits.
◾Punishment under Disaster act for two types of offences➡️
Violation of Section 188 of IPC can land in jail for up to six months. On the other hand, violations of epidemic act are also taken under section 188. Under Section 51 of the Disaster Management Act, imprisonment for one year and refusal to obey the instructions of the officers can be punishable for one year. If you do not follow the instructions, you can be punished for up to two years in the event of crisis on one's life. Publication-distribution of fear-provoking material can lead to imprisonment or fine of up to three years.
◾Legal shield for officers and employees➡️
Disaster law protects them from legal process in relation to decisions for an officer and an employee.
◾On refusing to help… .. ➡️
Under the law, any officer has the right to acquire the necessary resources, person, material, place, building, vehicle for rescue, to deal with the disaster.
🛃 Act has also been implemented before➡️
In Puri, in view of the outbreak of cholera in 1959, section two of this act came into force in Pune in the year 2009 after the outbreak of swine flu. In 2018, the Act came into force when signs of cholera appeared in Vadodara, Gujarat. In the year 2015, the Act for the prevention of malaria and dengue came into effect in Chandigarh. In 2020, first of all Karnatka implemented the Pandemic Act 1897 to deal with the corona virus.
🛃 Major provisions of enacted articles➡️
◾ Privileges the Center and the State Governments to have the necessary publicity to prevent the epidemic.
◾If a passenger is feared to be infected, he can be quarantined at home or in hospital.
◾ If a person or group is suffering from an epidemic, they can be kept in a hospital or temporary accommodation.
◾Not obeying government orders in section 3 would be a punishable offense. There can be a sentence of six months and a fine.
◾The Epidemic Act also provides legal protection to officers to enforce the act.
Disclaimer: All the Images belong to their respective owners which are used here to just illustrate the core concept in a better & informative way.