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Friday, April 10, 2020

'विपदाकाल में भारतीय विधायिका का प्रेरक प्रतिमान'

कोरोनाकाल में भारतीय विधायिका की सराहनीय पहल


🇮🇳भारत सरकार द्वारा मन्त्रियों-सांसदों के वेतन में तीस फीसदी कटौती तथा दो वर्ष तक सांसद निधि पर रोक का जो निर्णय लिया है वह सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं है, जिसे महामारी की बढ़ती चुनौती के चलते भलीभाँति समझा जा सकता है। वर्तमान में देश में उपलब्ध संसाधनों के अधिकतम उपयोग की दरकार है।




केन्द्र सरकार ने इस वर्ष समस्त मन्त्रियों व सांसदों के वेतन में तीस फीसदी कटौती करने एवम् अग्रिम दो वर्ष की सांसद निधि को कोविड-19 की महामारी से संघर्ष में व्यय करने का जो साहसिक, सराहनीय, अनुकरणीय व प्रेरणास्पद जो निर्णय लिया है, उसका महज सांकेतिक महत्व ही नहीं है अपितु यह महामारी जिस प्रकार विस्तारित हो रही है और निरन्तर संसाधनों की जैसी माँग बढ़ रही है, उसमें इस राशि की बहुपयोगिता समझी जा सकती है। यही नहीं, स्वयं राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यपालों ने भी अपने वेतन से तीस फीसदी की कटौती किया जाना प्रस्तावित किया है, जो न केवल स्वागतयोग्य है, बल्कि इसमें देश की एकता के सूत्र भी निहित हैं। सांसदों को अपने निर्वाचन क्षेत्र के विकास हेतु पाँच करोड़ रुपये मिलते हैं, इस तरह लोकसभा व राज्यसभा के समस्त सांसदों को दो वर्ष में मिलने वाली कुल सांसद निधि में 7900 करोड़ रुपये होते हैं, जिसे भारत के संचित कोष में स्थानांतरित किया जायेगा। वस्तुतः अनेक सांसदों ने अपने हिस्से की कुछ राशि कोविड-19 से निपटने के लिये निर्मित कोष में दान करने की पहल की थी, किन्तु सरकार के इस कदम से इसमें किसी प्रकार का असंतुलन नहीं रहेगा। निस्संदेह, हमारे यहाँ चीन, अमेरिका और पश्चिमी देशों की तुलना में काफी हद तक स्थिति नियन्त्रण में है, लेकिन अब मृत्यु का आँकड़ा 150 पार हो चुका है तथा संक्रमितों की संख्या पाँच हजार की दहलीज लाँघ चुकी है। कोविड-19 की बढ़ती चुनौती के मध्य, यह अपरिहार्य है कि देश में उपलब्ध संसाधनों का उचित दिशा में अधिकतम उपयोग सुनिश्चित हो। देश में अभी यह जंग दो स्तरों पर है, पहला, अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्य कर्मियों को पीपीई, ग्लव्स और मास्क जैसी सारी आवश्यक वस्तुयें उपलब्ध कराई जायें; और दूसरा, लॉकडाउन के कारण प्रभावित होने वाले एक भी व्यक्ति को भूखे या बिना छत के न रहना पड़े। कुछ दिन पूर्व ही केन्द्र सरकार के प्रशासनिक सुधार एवम् लोक शिकायत विभाग के आंतरिक सर्वे में मात्र चालीस फीसदी जनपदों के कलेक्टरों व अन्य अधिकारियों ने अवगत कराया कि उनके अस्पतालों में पर्याप्त सुविधायें उपलब्ध हैं, वहीं 28 फीसदी ने बताया कि अस्पतालों में आइसोलेशन बेड का अभाव है। सरकार निरन्तर इन दोनों ही मोर्चों पर प्रयासरत् है और जैसा कि स्वयं प्रधानमंत्री महोदय ने कहा कि इस आपदा से हम सब मिलकर लड़ेंगे तो उनकी अद्भुत नेतृत्व दक्षता एक आशाज्योति तो प्रज्वलित करती ही है।


🇮🇳उत्तर प्रदेश सरकार भी अनुकरणीय पदचिन्हों पर अग्रसर.....

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में बुधवार को सम्पन्न कैबिनेट की बैठक में विधायक निधि को एक वर्ष के लिये निलम्बित कर दिया गया। साथ ही मुख्यमंत्री, मन्त्रियों और विधानसभा व विधान परिषद् सदस्यों के वेतन में 30 फीसदी कटौती के प्रस्ताव को स्वीकृती दी गई। यह राशि यूपी कोविड केयर फण्ड में जमा होगी और इससे चिकित्सीय सुविधाओं, खाद्य पदार्थ, क्वारंटाइन कैम्प व अन्य सुविधाओं पर व्यय किया जायेगा। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सम्पन्न कैबिनेट बैठक के बाद वित्त मन्त्री सुरेश खन्ना व ग्राम्य विकास मन्त्री मोती सिंह ने बताया कि सभी मन्त्रियों व विधायकों के निर्वाचन क्षेत्र भत्ते एवम् कार्यालय भत्ते की तीस फीसदी राशि भी कोविड केयर फण्ड में जमा करने का निर्णय लिया गया है। केवल विधायक निधि से ही 1509 करोड़ रुपये कोविड केयर फण्ड में जमा होंगे। सुरेश खन्ना के अनुसार प्रदेश में 56 मन्त्री हैं। विधायक व विधान परिषद् सदस्यों की संख्या 503 है। इनके वेतन से 30 फीसदी कटौती से कुल मिलाकर 17 करोड़ 50 लाख 50 हजार रुपये एक वर्ष तक जमा होंगे।
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ENGLISH VERSION:


🇮🇳The decision taken by the Government of India to cut the salary of ministers and MPs by thirty percent and to stop the MP fund for two years is not just symbolic, which can be understood well due to the increasing challenge of the epidemic.  Currently, there is a need for maximum utilization of available resources in the country.


The bold, commendable, exemplary and inspiring decision that the Central Government has made this year to cut the salary of all ministers and MPs by thirty percent and to spend the MPLAD fund for the next two years in the fight against the epidemic of Kovid-19. This initiative hasn't just a symbolic significance, but in the way this epidemic is expanding and the demand for resources is increasing, the versatility  of this amount could be understood. Not only this, the President, the Vice-President and the Governors themselves have also proposed a 30 per cent deduction from their salary, which is not only welcome, but it also contains the sources of unity of the country.  MPs get five crore rupees for the development of their constituency, thus the total MP fund received in two years to all MPs of Lok Sabha and Rajya Sabha stands at Rs 7900 crore, which will be transferred to the Consolidated Fund of India.  In fact, many MPs had taken the initiative to donate some amount of their share to the fund created to deal with Kovid-19, but now there will be no imbalance in this move administered by the government.  Undoubtedly, we have a much larger control situation than China, America and Western countries, but now the death toll has crossed 169 and the number of infected has crossed the threshold of 5865.  Amidst the growing challenge of Kovid-19, it is inevitable that the available resources in the country can be optimally utilized in the right direction.  This war has to be dealt on two levels in the country, firstly, all the essential items like PPE, Gloves and Masks should be made available to the frontline health workers;  And secondly, not a single person affected by the lockdown has to stay hungry or without a roof.  Only a few days ago, in the Internal Reforms of the Central Government's Administrative Reforms and Public Grievance Department, only forty percent of the district collectors and other officials informed that adequate facilities are available in their hospitals, while 28 percent said that there is lack of isolation beds in their hospitals.  The government is constantly working on both these fronts and as the Prime Minister himself said that we will fight this disaster together, his amazing leadership skills ignite a spark of hope.


🇮🇳 The Uttar Pradesh government is also moving forward on exemplary footprints .....

The MLA fund was suspended for one year in a cabinet meeting held under the chairmanship of Chief Minister Yogi Adityanath on Wednesday.  At the same time, a proposal to cut the salary of the Chief Minister, ministers and members of the Legislative Assembly and Legislative Council by 30 percent was approved.  This amount will be deposited in UP Kovid Care Fund and will be spent on medical facilities, food items, quarantine camps and other facilities.  After the cabinet meeting held through video conferencing, Finance Minister Suresh Khanna and Rural Development Minister Moti Singh informed that it has been also decided to deposit 30 percent of the constituency allowances and office allowances of all ministers and MLAs in the Kovid Care Fund. Rupees 1509 crore will be deposited in the Kovid Care Fund  from the MLA Fund only.  According to Suresh Khanna, there are 56 ministers in the state.  The number of MLA and MLC members is 503.  A total of 17 crore 50 lakh 50 thousand rupees will be deposited for one year with 30 percent deduction from their salary.


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'उत्तर प्रदेश में पहली बार धारा-188'

उत्तर प्रदेश में धारा-188 पहली बार कब लागू हुई??


🛃पहली बार प्लेग से निपटने के लिये 1897 में बना था अधिनियम।

🛃लॉकडाउन का उल्लंघन करने वालों पर आईपीसी की धारा 188 के अतिरिक्त आपदा प्रबन्धन कानून के अन्तर्गत भी कार्रवाई।

🛃कानून का अनुपालन न करने पर 2 व मिथ्या प्रचार पर 3 वर्ष का कारावास।




घातक वायरस के संक्रमण के प्रसार को अवरुद्ध करने के लिये राज्य सरकार ने प्रथम बार महामारी अधिनियम 1897 लागू किया है। राज्य सरकार ने 14 अप्रैल तक सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, धार्मिक, शैक्षणिक, खेल, पारिवारिक प्रकृति के किसी भी आयोजन को प्रतिबंधित करने के लिये यह अधिनियम लागू किया है। पहली बार यह कानून 1897 में अंग्रेज शासकों ने मुम्बई में प्लेग प्रकोप के चलते लागू किया था।
जानकारों के अनुसार इस अधिनियम को तब लागू किया जाता है, जब राज्य या केन्द्र सरकार को भयावह रोग के प्रवेश से दुष्प्रभाव की आशंका हो जिससे जनसाधारण को संकट हो। इसी प्रकार वर्तमान विषाणु के संक्रमण को देखते हुये केन्द्र सरकार ने राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों में इस कानून के खण्ड दो को लागू करने के निर्देश दिये हैं। अधिनियम के लागू होते ही सरकारी आदेशों की अवहेलना अपराध के श्रेणी में है।इसमें आईपीसी के अन्तर्गत दण्ड का प्रावधान है।
कोरोना से निपटने के लिये लागू लॉकडाउन न मानने वालों पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 188 के अन्तर्गत कार्रवाई हो रही है, फिर भी इसका उल्लंघन जारी था। इसके बाद गृह मंत्रालय ने राज्यों से आपदा प्रबन्धन कानून 2005 के अन्तर्गत भी कार्रवाई को कहा है। आपदा प्रबन्धन लागू होने के बाद शासकीय अधिकारी और अधिक सशक्त हो गये हैं। ऐसे में कानून न मानने पर 2 व मिथ्या प्रचार पर 3 वर्ष का कारावास हो सकता है। इन दोनों कानूनों के मुख्य प्रावधान निम्नवत् हैं-


◾कर्त्तव्य निर्वहन से इनकार पर.....➡️

कानून में आपदा के समय नियुक्त अधिकारी द्वारा उसे प्रदत्त कर्त्तव्य न निभाने पर एक वर्ष तक के कारावास का प्रावधान है। यद्यपि जिसके पास अपने वरिष्ठ अधिकारी की लिखित स्वीकृति होगी या ड्यूटी न निभा पाने का कोई विधिक आधार होगा, उसे दण्ड से छूट मिलेगी।


◾गलत दावा करने पर दो वर्ष की कैद....➡️

राहत, सहायता, पुनर्निर्माण तथा अन्य लाभ लेने के लिये गलत दावा प्रस्तुत करने वाले पर आपदा प्रबन्धन कानून की धारा-52 के तहत जुर्माना और दो वर्षीय कारावास का प्रावधान है।


◾दो प्रकार के अपराधों में आपदा एक्ट में दण्ड➡️

आईपीसी की धारा 188 के उल्लंघन पर छह माह तक के लिये जेल भेजा जा सकता है। वहीं महामारी अधिनियम के उल्लंघन पर भी धारा 188 के तहत ही कार्रवाई की जाती है। आपदा प्रबन्धन कानून की धारा 51 के तहत ड्यूटी में बाधा डालने और अधिकारियों के निर्देशों को मानने से इनकार करने पर एक वर्ष की सजा हो सकती है। निर्देश न मानने पर किसी के प्राणों पर संकट की स्थिति में दो वर्ष तक की सजा भी हो सकती है। भय फैलाने वाली सामग्री के प्रकाश-वितरण पर तीन वर्ष की कैद अथवा जुर्माना हो सकता है।


◾अधिकारियों-कर्मचारियों के लिये कानूनी कवच➡️

किसी अधिकारी और कर्मचारी के लिये निर्णय के सन्दर्भ में आपदा कानून उन्हें कानूनी प्रक्रिया से सुरक्षित करता है।


◾सहायता के लिये मना करने पर.....➡️

कानून के अन्तर्गत किसी भी अधिकारी को आपदा से निपटने के लिये आवश्यक संसाधन, व्यक्ति, सामग्री, स्थान, भवन, बचाव के लिये वाहन अधिग्रहण का अधिकार है।


🛃पहले भी लागू हो चुका है एक्ट➡️

सन् 1959 में हैजा के प्रकोप को देखते हुये पुरी में, वर्ष 2009 में स्वाइन फ्लू फैलने पर पुणे में इस एक्ट के सेक्शन दो लागू हुआ था। 2018 में गुजरात के वडोदरा में कॉलरा के लक्षण मिलने पर यह एक्ट लागू हुआ था। वर्ष 2015 में चंडीगढ़ में मलेरिया और डेंगू की रोकथाम के लिये एक्ट प्रभावी हुआ था। 2020 में कर्नाटक ने सबसे पहले कोरोना वायरस से निपटने के लिये महामारी अधिनियम 1897 को लागू किया है।


🛃अधिनियमित अनुच्छेदों के प्रमुख प्रावधान➡️

◾केन्द्र और राज्य सरकारों को विशेषाधिकार देता है ताकि महामारी की रोकथाम हेतु आवश्यक प्रचार हो सके।

◾किसी यात्री के संक्रमित होने की आशंका है तो उसे घर पर या अस्पताल में क्वारंटाइन किया जा सकता है।

◾कोई व्यक्ति या समूह महामारी से ग्रसित है तो उन्हें किसी अस्पताल या अस्थाई आवास में रख सकते हैं।

◾सेक्शन तीन में सरकारी आदेश नहीं मानना दण्डनीय अपराध होगा। छह माह की सजा और जुर्माना हो सकता है।

◾महामारी एक्ट में अधिकारियों को अधिनियम लागू करने के लिये कानूनी सुरक्षा का भी प्रावधान है।।
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ENGLISH VERSION:


'Section 188: Implemented first time in Uttar Pradesh'


🛃The epidemic act was formulated in 1897 to counter the Plague for the first time.


 🛃 Besides Section 188 of the IPC,  action is also taken under the Disaster Management Act against those who violate the lockdown.


🛃2 years imprisonment for non-compliance with law and 3 years on false propaganda.



 In order to block the spread of deadly virus infection, the state government has implemented the Pandemic Act 1897 for the first time.  The state government has implemented this act to ban any event of social, cultural, political, religious, educational, sports, family nature till 14 April.  This law was first implemented in 1897 by the British rulers due to the plague outbreak in Mumbai.

 According to experts, this act is implemented when the state or central government fears about the side effects after the entry of the dreaded disease, which may cause public distress.  Similarly, in view of the current virus infection, the Central Government has given instructions to implement clause two of this law in states and union territories.  As soon as the Act comes into force, disregard of government orders falls under the category of crime. There is a provision of punishment under IPC.

 Action is being taken under Section 188 of the Indian Penal Code for those who do not accept the applicable lockdown to deal with Corona, yet the violation was continuing.  After this, the Home Ministry has asked the states to take action under the Disaster Management Act 2005 also.  Government officials have become more empowered after disaster management is implemented.  In such a situation, if you do not follow the law, you can be imprisoned for 2 years and 3 years for false propaganda.  The main provisions of both these laws are as follows:


◾On refusal to discharge duty..... ➡️

 The law provides for imprisonment of up to one year if the officer appointed at the time of disaster does not fulfill the duties conferred on him.  However, whoever has the written approval of his superior officer or has any legal basis for not performing duty, will be exempted from punishment.


 ◾Two years imprisonment for wrong claim .... ➡️

 There is a provision for fine and two-year imprisonment under Section 52 of the Disaster Management Act for making false claims for relief, assistance, reconstruction and other benefits.


Punishment under Disaster act for two types of offences➡️

 Violation of Section 188 of IPC can land in jail for up to six months.  On the other hand, violations of epidemic act are also taken under section 188.  Under Section 51 of the Disaster Management Act, imprisonment for one year and refusal to obey the instructions of the officers can be punishable for one year.  If you do not follow the instructions, you can be punished for up to two years in the event of crisis on one's life.  Publication-distribution of fear-provoking material can lead to imprisonment or fine of up to three years.


 ◾Legal shield for officers and employees➡️

 Disaster law protects them from legal process in relation to decisions for an officer and an employee.


On refusing to help… .. ➡️

 Under the law, any officer has the right to acquire the necessary resources, person, material, place, building, vehicle for rescue, to deal with the disaster.


🛃 Act has also been implemented before➡️

 In Puri, in view of the outbreak of cholera in 1959, section two of this act came into force in Pune in the year 2009 after the outbreak of swine flu.  In 2018, the Act came into force when signs of cholera appeared in Vadodara, Gujarat.  In the year 2015, the Act for the prevention of malaria and dengue came into effect in Chandigarh.  In 2020, first of all Karnatka implemented the Pandemic Act 1897 to deal with the corona virus.


🛃 Major provisions of enacted articles➡️

◾ Privileges the Center and the State Governments to have the necessary publicity to prevent the epidemic.


 ◾If a passenger is feared to be infected, he can be quarantined at home or in hospital.


 ◾ If a person or group is suffering from an epidemic, they can be kept in a hospital or temporary accommodation.


 ◾Not obeying government orders in section 3 would be a punishable offense.  There can be a sentence of six months and a fine.


 ◾The Epidemic Act also provides legal protection to officers to enforce the act.



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Thursday, April 9, 2020

'Kerala- India's first state to try plasma therapy'

केरल प्लाज़मा थेरेपी आजमाने वाला भारत का पहला राज्य


💉On Wednesday, ICMR approved a protocol for the therapy submitted by task force set up by the Kerala government🏥




With a vaccine for Covid-19 still a long way off, experts in Kerala will now test if blood from coronavirus patients who have recovered could hold the key to treat the sick. Doctors in South Korea have already had some success using this kind of therapy- two elderly patients treated with plasma from survivors recovered from severe pneumonia.

 On Wednesday, the Indian Council for Medical Research (ICMR) approved a protocol for the therapy- called convalescent plasma therapy- submitted by a task force of doctors and scientists set up by the Kerala government.

 Kerala principal secretary (Health) Dr. Ranjan N Khobragade confirmed to media that the state has received ICMR nod for convalescent plasma therapy.

 Dr. Anoop Kumar, a member of the task force and critical care physician at Baby Memorial Hospital, Kozhikode, said Kerala would be the first state in India to start the experimental therapy. R R Gangakhedkar, chief epidemiologist at ICMR, said they have given permission for research protocol which allows for clinical trials.

 The convalescent plasma therapy includes giving patients plasma from those who have developed antibodies to SARS-CoV-2 (the virus that causes Covid-19) through transfusions. The US FDA has also approved use of such therapy in clinical trials and for critical patients. In China as well, therapeutic products derived from convalescent patients were administered to other patients to treat them.

 May the Almighty bless the research enthusiasts with divine capabilities and grand breakthrough to serve the great humanitarian goal.
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हिन्दी संस्करण:


💉बुधवार को, ICMR ने केरल सरकार के निर्देश पर स्थापित टास्क फोर्स द्वारा प्रस्तुत थेरेपी के लिए एक प्रोटोकॉल को स्वीकृति प्रदान की।



 कोविड-19 के उपचार हेतु वैक्सीन के विकास का मार्ग तय करने में अभी भी काफी समय लग सकता है, अतैव केरल के विशेषज्ञ अब यह परीक्षण करेंगे कि कोरोनोवायरस के प्रकोप से उबर चुके व्यक्तियों के प्लाज्मा के अनुप्रयोग से रोगियों का उपचार कितना कारगर रहेगा। दक्षिण कोरिया में डॉक्टरों को पहले से ही इस तरह की चिकित्सा का उपयोग करने से आंशिक सफलता मिली है- दो बुजुर्ग रोगियों को गंभीर निमोनिया से उबारने में बचे हुए प्लाज्मा से इलाज किया गया।

 बुधवार को, इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने केरल सरकार द्वारा स्थापित डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की एक टास्क फोर्स द्वारा प्रस्तुत की गई चिकित्सा के लिए एक प्रोटोकोल जिसे प्लाज्मा-थेरेपी कहा जाता है, को अनुमति दी।

 केरल के प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) डॉ. रंजन एन खोब्रागड़े ने मीडिया से इस बात की पुष्टि की कि राज्य ने स्वास्थ्य लाभकारी प्लाज्मा थेरेपी के लिए ICMR की स्वीकृति प्राप्त कर ली है।

 बेबी मेमोरियल हॉस्पिटल, कोझीकोड में टास्क फोर्स के सदस्य और क्रिटिकल केयर फिजिशियन डॉ. अनूप कुमार ने कहा कि प्रायोगिक चिकित्सा शुरू करने वाला केरल भारत का पहला राज्य होगा।  आईसीएमआर के मुख्य महामारी विशेषज्ञ आर आर गंगाखेड़कर ने कहा कि उन्होंने अनुसंधान प्रोटोकॉल की अनुमति दी है जो नैदानिक ​​परीक्षणों की अनुमति देता है।

  स्वास्थ्य लाभकारी प्लाज्मा थेरेपी में उन रोगियों को प्लाज्मा देना सम्मिलित है, जिन्होंने सार्स-कोव-2 (वायरस जो कोविड-19 का कारण बनता है) के लिए एंटीबॉडी विकसित कर ली है।  यूएसएफडीए ने नैदानिक ​​परीक्षणों में और गंभीर रोगियों के लिए ऐसी चिकित्सा के उपयोग को भी मंजूरी दी है।  चीन में भी, उपचार करने के लिए अन्य रोगियों पर स्वस्थ हो चुके रोगियों से प्राप्त चिकित्सीय उत्पाद प्रयुक्त किये गये थे।

 हम सर्वशक्तिमान परमपिता परमेश्वर से हार्दिक कामना करते हैं कि मानव सभ्यता के कल्याणार्थ समर्पित उद्यमी अनुसन्धाकर्ताओं को इस महान लक्ष्य की सिद्धि में दिव्य क्षमताओं एवम् भव्य सफलता से कृतार्थ करे।।


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'जर्मनी की दूरदर्शिता'

कोरोना संक्रमण को लेकर जर्मनी की दूरदर्शिता


🇩🇪जर्मनी ने भांप लिया था आसन्न संकट।

🇩🇪समय पर व्यापक जाँच-ट्रैकिंग से थामी मृत्यु दर।

🇩🇪मृत्यु दर मात्र डेढ़ फीसदी तक रोकने में सफल रहने वाला प्रथम देश।




पश्चिमी देशों में घातक विषाणु कहर बरपा रहा है लेकिन जर्मनी एकमात्र ऐसा देश है, जहाँ बड़ी संख्या में संक्रमितों के बावजूद मृत्यु के आँकड़े बेहद कम हैं। मंगलवार तक इस देश में लगभग 105519 लोग संक्रमित हुये। संक्रमितों के सन्दर्भ में अमेरिका, इटली और स्पेन की उससे आगे थे लेकिन यहाँ मृत्यु दर पड़ोसी देशों की तुलना में बेहद कम रही है। जर्मनी में लगभग 1902 लोगों का देहांत हो चुका है। इस पहलू से मृत्यु दर मात्र 1.4% है। वहीं इटली में यह दर 12%, स्पेन, फ्रांस और ब्रिटेन में 10%, चीन में 4% व अमेरिका में 2.5% रही है। यहाँ तक कि दक्षिण कोरिया, जो कर्व फ्लैटनिंग के मॉडल के लिये जाना गया, वहाँ भी मृत्यु दर 1.7% रही है। 


🇩🇪पता लगते ही शुरू हुई लोगों की ट्रैकिंग▶️

जर्मनी में मृत्यु दर कम रख पाने के पीछे ट्रैकिंग का बड़ा योगदान रहा। किसी के पॉजिटिव पाये जाने पर लक्षण न मिलने के बाद भी वह जिस-जिस के सम्पर्क में रहा उन सभी की जाँच की गई और उसे दो हफ्ते तक आइसोलेट रहने को कहा गया। इस तरह संक्रमितों की कड़ी चिन्हित की गई जो काफी कारगर रही। वहीं, शेष देश ऐसा नहीं कर सके।


🇩🇪कई देशों द्वारा आँकड़े छिपाने के आरोप नहीं टिक सके▶️

यद्यपि, जर्मनी में मृत्यु के आँकड़े कम रहने पर अमेरिका समेत कई देश उस पर आँकड़ों से खिलवाड़ का आरोप लगा रहे हैं, किन्तु कई विशेषज्ञ तथ्यों के आधार पर जर्मनी के पक्ष में खड़े हैं। स्वास्थ्य तैयारियों के साथ-साथ चांसलर एंगेला मर्केल द्वारा लोगों के साथ मित्रवत सम्वाद से भी देश में भरोसा बढ़ा। उनके द्वारा लागू किये गये लॉकडाउन नियमों को विपक्षी दलों समेत सभी लोगों ने एक स्वर में स्वीकारा। उन्होंने जाँच से लेकर उपचार तक बड़े तार्किक निर्णय लिये। 


🇩🇪व्यापक जाँच रही कारगर▶️

जनवरी मध्य तक जब काफी लोग वायरस की भयावहता का अनुमान नहीं लगा पाये थे तब बर्लिन स्थित एक अस्पताल ने जाँच का फॉर्मूला बनाकर ऑनलाइन पोस्ट भी कर दिया था। जर्मनी में पहला मामला फरवरी में आया था, तब तक देशभर में प्रयोगशालाओं ने जाँच किटों के स्टॉक निर्माण सहित अन्य तैयारियाँ कर ली थीं। विषाणुविद डॉ. क्रिस्टियन द्रोस्तें के अनुसार, संक्रमण पर नियंत्रण करने में उनकी प्रयोगशालाओं ने महती भूमिका निभाई, जहाँ व्यापक स्तर पर जाँचें की गईं।


🇩🇪भविष्य की रणनीति के साथ कार्य▶️

जर्मनी ने भावी योजना भी बना ली है। वहाँ अप्रैल अन्त तक वृहद स्तर पर एंटीबॉडी अध्ययन किया जायेगा जिसके तहत जर्मनी में हर हफ्ते एक लाख लोगों की रैंडम सैंपलिंग होगी ताकि लोगों में प्रतिरक्षा विकास प्रक्रिया का पता लगाया जा सके।


🌟यद्यपि भारत सरकार के भगीरथी प्रयास भी अत्यन्त साहसिक, सराहनीय व अनुकरणीय हैं तथापि उनकी सिद्धि तभी सार्थक हो सकेगी जब प्रत्येक भारतीय तन-मन-धन से शासन-प्रशासन से समन्वय स्थापित कर तथा हर स्तर पर उनका समर्थन कर अपने मौलिक कर्त्तव्यों का ईमानदारीपूर्वक निर्वाह सुनिश्चित करे।।  
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ENGLISH VERSION-



🇩🇪Germany realized the impending crisis.


🇩🇪Comprehensive diagnosis on time prevented mortality.


 🇩🇪First country to succeed in withholding death rate up to just one and a half percent.


The deadly virus is wreaking havoc in Western countries, but Germany is the only country where the death toll is very low despite the large number of infected persons.  As of Tuesday, about 105519 people have been infected in this country.  The United States, Italy and Spain were ahead of it in terms of infected, but the death rate here is much lower than in neighbouring countries.  Around 1902 people have died in Germany.  The death rate from this aspect is only 1.4%.  In Italy, the rate is 12%, Spain, France and Britain 10%, China 4% and America 2.5%.  Even South Korea, known for its model of curve flattening, has a mortality rate of 1.7%.



🇩🇪 Tracking of people started as soon as they found out ▶️

 Tracking was a major contributor to keep low mortality in Germany.  All those who were found positive despite of being asymptomatic and with whomsoever they met were examined and were asked to remain isolated for two weeks.  In this way, the chain of the infected persons was identified which was very effective. On the other hand, the rest of the countries could not do so.


 🇩🇪Accusations of hiding statistics by many countries could not last ▶️

Although many countries, including the US, are accusing it of manipulating the data, as the death toll in Germany is very low, But many experts are in favor of Germany based on the facts.  Along with health preparedness, Chancellor Angela Merkel's friendly interaction with the people also increased trust in the country.  The lockdown rules enforced by her were accepted by all including the opposition parties in one voice.  She took big logical decisions from investigation to treatment boldly.


🇩🇪Comprehensive diagnosis proved effective▶️ ️

By the middle of January, when many people could not predict the magnitude of the virus, a hospital in Berlin had made a test formula and posted it online.  By the time the first case in Germany came in February, laboratories across the country had made other preparations, including building the stock of test kits.  According to virologist Dr. Christian Drosten, their laboratories played a vital role in controlling infection, where extensive tests were conducted.


 🇩🇪Working with future strategy▶️

Germany has also made future plans.  There will be a large-scale antibody study by the end of April, under which random sampling of one lakh people will be done in Germany every week so that the immune development process could be detected in the people.


🌟 Although the Herculean efforts of the Indian government are also very bold, commendable and exemplary, however, their attainment will be significant only when every Indian ought to ensure to coordinate with the government and administration physically, mentally and monetarily and support them at every level by fulfilling their fundamental duties sincerely.



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Wednesday, April 8, 2020

'सुपर पिंक मून'

आखिर क्या है सुपर पिंक मून??


🌌वायु प्रदूषण कम होने से आकाश में दिखने लगे मनोरम दृश्य।

🌌मनभावन रहा सुपरमून का दर्शन।


🌌इस वर्ष का सबसे बड़ा और चमकदार 'सुपर पिंक मून' मंगलवार पूरी रात आकाश में दिखाई दिया। उस समय चन्द्रमा तथा पृथ्वी के मध्य 3,56,907 किमी. की दूरी रह गई, जो सामान्य की अपेक्षा इस वर्ष सबसे कम थी। लॉकडाउन के चलते घरों में मौजूद नागरिक इस विलक्षण खगोलीय घटना के साक्षी बने।




🌌लॉकडाउन के दौरान वायु प्रदूषण में आश्चर्यजनक रूप से गिरावट होने से आकाश में सितारों के मनोरम दृश्य सुलभ होने लगे हैं। मंगलवार की रात लालिमा लिये सुपरमून को देखकर लोग मन्त्रमुग्ध हो गये।


विशेषज्ञों के कथनानुसार सुपरमून और पिंकमून का अनूठा संयोग कई वर्षों बाद दिखाई दिया। वस्तुतः पूर्णिमा होने के कारण चन्द्रमा का रंग लालिमायुक्त था। यह 2020 का सबसे चमकदार और बड़ा फुलमून था। विशेषज्ञों के अनुसार चन्द्रमा जब पृथ्वी की कक्षा के निकट आता है तो उसका आकार बढ़ने के साथ-साथ चमक भी काफी बढ़ जाती है। विशेषज्ञों ने अवगत कराया कि सुपरमून देर शाम से ही दिखने लगा लेकिन भारतीय समयानुसार इसने प्रातः 08:05 बजे पूर्णाकार लिया। यह एक अनोखी खगोलीय घटना है। सुपरमून इस माह पृथ्वी से लगभग 356000 किमी. दूर बताया जा रहा है। साधारणतया चाँद और पृथ्वी के मध्य 384400 किमी. दूरी रहती है।।
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ENGLISH VERSION-


🌌Panoramic views started appearing in the sky due to reduced air pollution.


🌌The view of a supermoon was pleasing.


🌌 The biggest and brightest 'Super Pink Moon' of this year appeared in the sky all night.  At that time the distance between the moon and the earth remained 3,56,907 km, which was the lowest this year as compared to normal.  Due to the lockdown, the citizens present in the houses witnessed this unique astronomical event.


🌌During the lockdown, there is an amazing fall in air pollution, making panoramic views of the stars in the sky accessible.  On Tuesday night, people were enchanted by seeing the red moon lit supermoon.


 According to experts, the unique combination of Supermoon and Pinkmoon appeared after many years.  In fact, because of the full moon, the color of the moon was red.  It was the brightest and biggest fullmoon of 2020.  According to experts, when the moon comes near the orbit of the earth, its size increases as the brightness increases.  Experts apprised that the supermoon started appearing late in the evening but according to the Indian time it took full size at 08:05 am.  This is a unique astronomical event.  Supermoon is about 356000 km away from Earth this month.    Generally the distance between the moon and the earth stays 384400 km as being told away.


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Saturday, April 4, 2020

राम, रामनवमी तथा रामराज्य के मायने

क्या हैं श्रीराम, रामनवमी और रामराज्य के मायने??


🌞जो सबको दें विश्राम, वह राम!

🌞नवमी तिथि का एक पक्ष यह है कि यह पूर्ण है। एक, दो, तीन, चार, पाँच की गिनती में नौ अन्तिम तिथि है, अतैव इसको पूर्ण भी कहा गया है।





🌞राम सर्वकालिक हैं, इसलिये उनको केवल एक देश, काल या व्यक्ति की सीमा में बाँधना सम्भव नहीं। रामचरितमानस में कहा गया है कि 'सबको विश्राम दे, वह राम।'


मानस में वशिष्ठ जी कहते हैं- 'जो आनंद का सागर है, सुख की खान है और जिसका नाम लेने से मनुष्य को विश्राम मिलेगा और मन शान्त होगा, उस बालक का नाम राम रखता हूँ।' तो राम महामन्त्र है। राम का नाम तो किसी भी समय लिया जा सकता है। इस महामन्त्र का जप करने वाले को तीन नियम मानने चाहिये। पहला- राम नाम भजने वाला किसी का शोषण न करे, बल्कि सबका पोषण करे। दूसरा सूत्र- किसी के साथ शत्रुता न रखें और दूसरों की सहायता भी करें। ऐसा करेंगे तो राम नाम अधिक सार्थक होगा। सुंदर काण्ड में हनुमान को लंका में जलाने का प्रयास किया गया। जहाँ भक्ति का दर्शन होता है, उसे समाज रूपी लंका जलाने का प्रयास करती ही है, लेकिन सच्चे सन्त को लंका जला नहीं सकती, स्वयं उसकी मान्यतायेंं जल सकती हैं। तीसरा सूत्र है- सबका कल्याण और समाज को जोड़ना। लंका काण्ड के आरम्भ में सेतु बन्ध तैयार हुआ। दिव्य सेतु बन्ध के दर्शन कर प्रभु ने धरती पर भगवान रामेश्वर की स्थापना की। यह शिव स्थान हुआ। यह राम नीति है। कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना। शिव यानी कल्याण। सेतु निर्माण करना यानी समाज को जोड़ना।


🌞श्रीराम आगमन🌞

हमारी गुणातीत श्रद्धा में प्रत्येक युग में देशकाल के अनुरूप परम तत्व अवतार धारण करता है। इसी पावनी परम्परा में प्रत्येक कल्प में, त्रेता युग में भगवान राम का अवतरण होता है, जो हम चैत्र शुक्ल नवमी को मनाते हैं, राम नवमी के रूप में। हमारे भारतीय सम्वत्सर के अनुसार नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होता है, नवमी को नवरात्रि होती है। दुर्गा पूजन, शक्ति आराधना के भी यही दिन होते हैं। आशय यह हुआ कि प्रतिपदा से नवमी तक शक्ति आराधना पूरी होती है और परम शक्ति का प्रागट्य होता है नवमी को। ऐसा परम पावन दिन है राम नवमी, राम जन्म महोत्सव। राम दोपहर में जन्में, जिस समय व्यक्ति भोजन कर आराम करता है। तो मनुष्य को तृप्त कर विश्राम प्रदान के काल में राम का आगमन होता है- 'नौमी तिथि मधु मास पुनिता, सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता, मध्यदिवस अति सीत न घामा, पावन काल लोक बिश्रामा।' नवमी तिथि रिक्त है। नवमी तिथि का दूसरा पक्ष यह भी है कि यह पूर्ण है। नौ का अंक पूर्ण है, दस में तो फिर एक के साथ शून्य जोड़ना पड़ता है। ग्यारह में एक-एक का दुहराव है। एक, दो, तीन, चार, पाँच की गिनती में नौ अंतिम तिथि है, इसलिये उसको पूर्ण भी कहा गया है। परमात्मा का प्रागट्य या तो शून्य में होता है या पूर्ण में। तो नवमी शून्यता और पूर्णता का प्रतीक है।


🌞रामराज्य पर गाँधी के त्रिसूत्र🌞

🔺स्वप्न- रामराज्य शब्द का भावार्थ यह है कि उसमें गरीबों की सम्पूर्ण रक्षा होगी, सब कार्य न्याय नीति और मानवीय मूल्यों के अनुसार किये जायेंगे और लोकमत का हमेशा आदर किया जायेगा। रामराज्य के लिये हमें पाण्डित्य की जरूरत नहीं है। जिस गुण की आवश्यकता है, वह सभी लोगों- स्त्री, पुरुष, बालक और बूढ़ों में है। दुख यही है कि सब अभी उस हस्ती को पहचानते नहीं हैं। सत्य, अहिंसा, मर्यादा-पालन, वीरता, क्षमा, धैर्य आदि गुणों का हममें से कोई भी व्यक्ति परिचय दे सकता है।

🔺संकल्प- कुछ मित्र रामराज्य का अक्षरार्थ करते हुये पूछते हैं कि जब तक राम और दशरथ फिर से जन्म नहीं लेते, तब तक क्या रामराज्य मिल सकता है? हम तो रामराज्य का अर्थ स्वराज्य, धर्मराज्य, लोकराज्य से लेते हैं। ऐसा राज्य तो तभी सम्भव है, जब जनता धर्मनिष्ठ बने। हम तो राज्यतन्त्र और राज्यनीति को बदलने के लिये प्रयत्न कर रहे हैं। हम अंग्रेज जनता को भी बदलने का प्रयास नहीं करते। हम तो स्वयं अपने-आप को बदलने का प्रयास कर रहे हैं।

🔺समानता- जब तक स्त्रियाँ पुरुषों की तरह बराबरी से सामाजिक जीवन में भाग नहीं लेतीं, तब तक देश का उद्धार नहीं हो सकता। लेकिन सामाजिक जीवन में वही भाग ले सकेंगी, जो तन और मन से पवित्र हैं। यही बात पुरुषों पर भी लागू होती है। जब तक सार्वजनिक जीवन में भारतीय स्त्रियाँ भाग नहीं लेतीं, तब तक हिंदुस्तान का उद्धार नहीं हो सकता। स्वराज्य के कितने ही अर्थ क्यों न किये जायें, मेरे लिये तो उसका एक ही अर्थ है, और वह है रामराज्य।।



प्रामाणिक स्रोत:- प्रतिष्ठित हिन्दी दैनिक।



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स्वीडन: हर चेतावनी दरकिनार

स्वीडन ने क्यों कर दी महामारी सम्बन्धी हर चेतावनी दरकिनार??!!


🇸🇪 स्वीडन: हर चेतावनी दरकिनार, पीएम ने नहीं किया लॉकडाउन।

🇸🇪 कहा- अर्थव्यवस्था बेपटरी हो जायेगी।

🇸🇪वैज्ञानिक बोले, तबाही की ओर जा रहा देश।

🇸🇪बड़ी संख्या में लोगों की न तो जाँच हो रही है, न ही संदिग्धों की पहचान ही की जा रही है।

🇸🇪हजारों संक्रमित, सैंकड़ों की मृत्यु के बावजूद भी स्कूल, कॉलेज, बाजार, सिनेमा, रेस्टोरेंट, पब खुले।




कोरोना वायरस के कहर को देख यूरोपीय देशों के साथ अन्य देशों में लॉकडाउन प्रभावी हैं। वहीं स्वीडन दुनिया का अकेला ऐसा देश है जहाँ वायरस के कहर के बीच सरकार ने अर्थव्यवस्था का हवाला देकर लॉकडाउन घोषित नहीं किया है। यहाँ स्कूल, कॉलेज, बाजार, सिनेमा, रेस्टोरेंट, पब आदि जैसे सार्वजनिक स्थल खुले हैं। डॉक्टर और वैज्ञानिक चेता रहे हैं कि देश तबाही की ओर बढ़ रहा है। वहीं प्रधानमंत्री का कहना है कि वायरस से लड़ने के लिये देश के हर व्यक्ति के पास भारी भरकम उत्तरदायित्व है।
स्वीडन की सरकार का कहना है कि लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था बेपटरी हो जायेगी और सब कुछ तहस-नहस हो जायेगा। वहीं डॉक्टरों व वैज्ञानिकों का कहना है कि सरकार प्रतीक्षारत है कि हालात सामान्य हो जायेंगे जिसके परिणामस्वरूप सरकार ने अब तक कोरोना रोकथाम के लिये कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। स्वास्थ्य व्यवस्था से जुड़े डॉक्टर, वैज्ञानिक और पैरामेडिकल स्टाफ भयभीत हैं। उनका कहना है कि हालात ऐसे ही रहे तो हम तबाह हो जायेंगे जिसकी भरपाई कभी सम्भव नहीं हो पायेगी। लेख लिखे जाने तक स्वीडन में 6100 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं और 350 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी हैं।


🇸🇪हर चीज पर प्रतिबंध नहीं लगा सकते: पीएम➡️

स्वीडन के प्रधानमंत्री स्टीफन लॉफवेन ने लोगों से कहा है कि हर व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी लेनी होगी। हम हर चीज पर अंकुश या प्रतिबन्ध नहीं लगा सकते हैं क्योंकि ये सवाल सामान्य बुद्धिमत्ता का है। जो युवा हैं, वो अपनी जिम्मेदारी निभायें, अफवाह न फैलायें, कोई इस क्षण अकेला नहीं है। हर व्यक्ति के पास देश के प्रति भारी भरकम जिम्मेदारी है।


🇸🇪वायरस को घातक बनने का अवसर दे रहे➡️

स्वीडन की कारोलिन्सका इंस्टीट्यूट की प्रो. सेसीलिया सॉडरबर्ग नॉक्लर का कहना है कि हम बहुत अधिक लोगों की जाँच नहीं कर रहे हैं, न ही वायरस से संक्रमित लोगों की पहचान कर रहे हैं। इसका आशय है कि हम वायरस को घातक बना रहे हैं जो हमें विनाश की ओर ले जायेगा।


🇸🇪डॉक्टरों तथा वैज्ञानिकों का सरकार से आग्रह➡️

कोरोना की भयावहता को समझने वाले डॉक्टर, वैज्ञानिकों और प्रोफेसरों ने सरकार से ठोस कदम उठाने की माँग की है। दो हजार डॉक्टरों, वैज्ञानिकों और प्रोफेसरों ने सरकार के समक्ष अपील दायर करते हुये इस दिशा में कठोर कदम उठाने की माँग की है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें जितना विलम्ब होगा, उतनी ही भयावहता देश की सरकार और जनता को देखनी होगी।


🇸🇪50 से अधिक लोग एकत्रित नहीं हो सकते➡️

स्वीडन के प्रधानमंत्री स्टीफन लॉफवेन ने वायरस से बचाव के लिये एक आदेश ऐतिहातन जारी कर दिया है जिसके तहत एक स्थान पर 50 से अधिक लोग एकत्र नहीं हो सकते।


🇸🇪इस कारण नहीं है वायरस का भय➡️

स्वीडन की उपसाला यूनिवर्सिटी के संक्रामक रोग विभाग के प्रो. बजॉर्न ऑलसन का कथन है कि स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में अधिकांश जनसंख्या अकेले ही रहती है। स्वीडन के अन्य नगरों में भीड़ है लेकिन वो सतर्क हैं जिस कारण डरने की जरूरत नहीं है। यदि घर में एक साथ कई पीढ़ियाँँ रह रही हैं और बुजुर्ग अधिक हैं तो खतरा है लेकिन ऐसे परिवार स्वयं ही सावधानी बरतने लगे हैं।।



प्रामाणिक स्रोत: प्रतिष्ठित हिन्दी एवम् अंग्रेजी दैनिक।



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