लॉकडाउन का उपहार- पक्षियों के मनभावन कलरव की बहार
🕊️लॉकडाउन- प्रकृति के भय ने पर्यावरण की काया पलटी तो गौरैया संग फुदकी और पर्पल सनबर्ड भी लौटी।
Image Credit: Pixabay |
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इसे प्रकृति का हस्तक्षेप ही मानना चाहिये। मानव सभ्यता ने अपनी जिन लालसाओं और महत्वाकांक्षाओं को विकास का छद्म वेष प्रदान कर पर्यावरण का सर्वनाश किया और सकल पशु-पक्षियों को अपने आश्रय त्यागकर कहीं अन्यत्र शरण खोजने हेतु बाध्य कर दिया, एक अदृश्य घातक वायरस के भय से वह स्वेच्छाचारिता थम गई है। पर्यावरण में सुखद परिवर्तन हुआ तो मनुष्यों के निकट अपने लिये बसेरा खोजने वाली गौरैया कई वर्षों पश्चात् पुनः ग्रामीण व नगरीय बस्तियों में लौट आई है। इस नन्हीं चिड़िया के शुभागमन के साथ ही कोयल और बुलबुल के बढ़ते मधुर कलरव ने भी सभी को हतप्रभ किया है।
संक्रमण अवरोधन हेतु क्रियान्वित मात्र त्रैसाप्ताहिक लॉकडाउन से ही पर्यावरण में व्यापक परिवर्तन आ गया है। वायु प्रदूषण दस गुना तक कम हो चुका है तो ध्वनि प्रदूषण भी अपने न्यूनतम स्तर तक पहुँच गया है। मनुष्यों को कदाचित यह लॉकडाउन न भाया हो, किन्तु वातावरण के सीमा से अधिक प्रदूषित हो जाने से निराशावश जिन पक्षियों ने नगरीय क्षेत्रों से सम्बन्ध विच्छेद कर लिया थे, वे अब पुनः दस्तक देने लगे हैं जिनके शुभ चरणों की आहट ने दुर्लभ पक्षियों के पुनर्वास की शुभांकक्षा को भी बल प्रदान किया है। नगर के पृथक-पृथक क्षेत्रों में कई वर्षों उपरान्त पुनः पक्षियों का कलरव गुँँजायमान है। विशेषज्ञों के मतानुसार अब नगरों में पक्षियों को खुली और स्वच्छ वायु में श्वास लेने का अवसर मिल रहा है। यही वजह की कई वर्षों पश्चात् पुनः स्थानीय परिवेश में पक्षी चहचहाने लगे हैं। गौरैया के संग कई वर्षों बाद फुदकी व पर्पल सनबर्ड नामक चिड़ियाँ भी नगरों की ओर लौटी हैं। पक्षियों की उपस्थिति एवम् उनका व्यवहार पर्यावरण में हो रहे बदलावों का भी सूचक है। भूकम्प या तूफान की आहट से पूर्व ही गौरैया, बुलबुल, कोयल, कबूतर, कौआ, गिद्ध आदि पक्षी अपना ठिकाना बदल लेते हैं। तभी तो पक्षी विज्ञानी पक्षियों की उपस्थिति और व्यवहार के आधार पर मौसम का भी अनुमान लगा लेते हैं। घने कंक्रीट वनों में रूपांतरित हो चुके नगरों में पक्षियों को घोंसले बनाने के साथ ही अपने भरणपोषण की भी समस्या होती थी जो आज भी कायम है। अनेकों पक्षी वर्षों तक वृक्षों या घरों की छतों जैसे उपयुक्त स्थानों पर मनुष्यों के इर्दगिर्द रहने का प्रयास करते रहे हैं परन्तु बढ़ते प्रदूषण ने उनके धैर्य को भंग कर दिया। एक स्थिति तो ऐसी आई कि गौरैया ग्रामीण क्षेत्रों में तक कम हो गईं तथा उसे लुप्तप्रायः पक्षी के श्रेणी में दर्ज कर 'वर्ल्ड स्पैरो डे' तक मनाया जाने लगा। लॉकडाउन उन्हें पुनः स्वछंद विचरण का अवसर प्रदान किया है। पक्षियों के आगमन से पारिस्थतिकी तन्त्र में भी निकट भविष्य में अनुकूल परिवर्तन प्रदर्शित होंगे बशर्ते हम इस लॉकडाउन से स्थाई सबक लेते हुये प्रकृति और उसके पारितन्त्र से खिलवाड़ को तिलांजलि दे दें।।
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ENGLISH VERSION:
'Gift of lockdown - Springtide of avian's dulcet tweets'
Lockdown- As the fear of nature metamorphosed the environment, the sparrows along with Jenny Wren and Purple Sunbird also returned.
It should be considered as interference of nature. Human civilization has destroyed the environment by providing a false pretense of development to its lusts and ambitions, and has forced all the birds and animals to abandon their shelter and seek shelter elsewhere, fearing an invisible deadly virus, it has ceased to be arbitrary. If there is a pleasant change in the environment, then the sparrow, who has found a shelter for himself near humans, has returned to rural and urban settlements after many years. Along with the presence of this little bird, the sweet tweet of cuckoo and nightingale has also shocked everyone.
The mere three week lockdown implemented for infection prevention has brought about a drastic change in the environment. Air pollution has reduced by ten times, whereas noise pollution has also reached its minimum level. Humans may not have liked this lockdown, but frustrated with the environment being polluted beyond the limits, birds that had severed their connection to urban areas are now knocking back, whose auspicious steps signify rehabilitation of rare birds also. Auspiciousness has also been emphasized. After several years, the tweet of birds is buzzing in different areas of the city. According to experts, birds in cities are now getting the opportunity to breathe in open and clean air. This is the reason why birds have started chirping in the local environment after many years. After several years along with sparrows, birds named Jenny Wren and Purple Sunbird have also returned to the cities. The presence and behavior of birds is also indicative of changes in the environment. Sparrows, bulbul, cuckoo, pigeon, crow, vulture, etc. birds change their habitat before the earthquake or storm inkling. That's why ornithologists also predict the weather based on the presence and behavior of birds. Apart from making nests in the cities that have been transformed into dense concrete forests, there was the problem of their sustenance also, which is still present today. Many birds have been trying to be around humans at suitable places like trees or roofs of houses for years, but the increasing pollution has disturbed their patience. A situation came to the fore when the sparrows presence was reduced even in the rural areas and entered the category of endangered birds which prompted us to celebrate 'World Sparrow Day'. The lockdown has given them an opportunity to regress freely. The arrival of birds will also show favorable changes in the ecological system in the near future as well, provided we take a lasting lesson from this lockdown and stop playing with nature and its ecosystem.
Disclaimer: All the Images belong to their respective owners which are used here to just illustrate the core concept in a better & informative way.