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Friday, February 21, 2020

शिव की शक्ति, समाज और हम

शिव की शक्ति, समाज और हम


शक्ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। शिव अकर्ता हैं। वे संकल्प मात्र करते हैं, शक्ति संकल्प सिद्ध करती हैं। शिव सागर के जल के समान हैं तथा शक्ति लहर के समान हैं। लहर है जल का वेग। जल के बिना लहर का क्या अस्तित्व है?




जीवनदायिनी गंगा को अपने सिर पर धारण कर शिव ने आदिकाल में ही इसकी महत्ता के सन्देश दे दिये थे, जिसमें आज के अविरल गंगा अभियान के सूत्र देखे जा सकते हैं। शिव ने जल की महत्ता इस तरह स्थापित की है कि इसके बिना उनके पूजन की कल्पना तक नहीं कि जा सकती। इस तरह उन्होंने मानव समुदाय को बहुत पहले ही यह संदेश दे दिया कि जल ही जीवन है।
भारतीय सनातन चिंतन-धारा में शिव को सुंदरम शब्द से भी आभूषित किया गया है। सौंदर्य ईश्वर की अभिव्यक्ति है। सौंदर्य हमें प्रेम के लिये अभिप्रेरित करता है और सौंदर्य से प्रेम करना ईश्वर से प्रेम करने के समान होता है, जो कि सम्पूर्ण विश्व के सृजनहार हैं। इंद्रियों के माध्यम से हमारे भीतर समाविष्ट होने वाला प्रेम हमारी आध्यात्मिक चेतना को विकसित करता है। सौंदर्य शुद्धता और पवित्रता से युक्त होकर ज्ञान-प्राप्ति में सहायक होता है, जिससे हमें दैवीय प्रकाश की प्राप्ति होती है। जिस तरह प्रकाश हमें सभी कुछ सम्पूर्णता में देखने की क्षमता देता है, उसी तरह दैवीय प्रकाश के माध्यम से हम सांसारिक एवम् भौतिक अवयवों को उनकी सम्पूर्णता में पहचान पाते हैं। सत्य के ज्ञान से हमारे हृदय में ज्योति व चेतना जागृत होती है, जो हमें सांसारिक और आध्यात्मिक अर्थों को पूर्णता में समझने की दृष्टि देती है।
सौंदर्य प्रेम को आकर्षित करता है, जो हमें आनन्दित व मोहित करता है। सौंदर्य ईश्वर द्वारा रचित ब्रह्माण्ड के विस्मय तथा आकर्षण की प्रशंसा में विद्यमान होता है। जीवन को प्रेम के भाव से समझने के प्रयास के साथ ही हम सभी वस्तुओं में सन्निहित सौंदर्य के प्रति सचेत हो उठते हैं। सर्वहिताय का तत्व ही शिवम है। इसलिये शिव का वरदान पाने की लालसा भी हर किसी के मन में होती है। कहते हैं, शिव शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले देवता हैं, तो अब दायित्व हमारा है कि हमें कैसे शिव का कृपापात्र बनना है!!


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Sunday, February 16, 2020

गोंद

खाद्य गोंद


गोंद एक प्राकृतिक तत्व है, जो पेड़ों की छालों से प्राप्त होता है। नीम, कीकर और बबूल इसके सबसे अच्छे स्रोत माने जाते हैं। भारत में प्राकृतिक गोंद या गम की सबसे अधिक उपज गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान और पंजाब के कुछ हिस्सों में होती है। खाने वाली गोंद पानी में घुलनशील होती है। इसे किसी सामग्री के साथ मिलाना आसान है। गोंद में बहुत से पौष्टिक तत्व और औषधीय गुण होते हैं। इसका इस्तेमाल लड्डू बनाने और आयुर्वेदिक दवाइयों में अधिक होता है। इससे बने खाद्य पदार्थ बहुत स्वादिष्ट होते हैं।




❇️ गोंद का सबसे लोकप्रिय उपयोग पौष्टिक लड्डू तैयार करना है। इसके लड्डू खाने से शरीर को बहुत फायदा होता है। गर्भवती या सद्य प्रसूता महिलाओं के लिये यह रामबाण औषध है। वजन कम करने में भी यह सहायक है।

❇️दस्त, सर्दी और खाँसी जैसी बीमारियों से निपटने के लिये इसका सेवन पारम्परिक रूप से किया जाता है। इसके अलावा यह बेकरी, सौंदर्य उत्पादों, ऊर्जा पेयों और आइसक्रीम वगैरह में भी प्रयुक्त होता है।

❇️जाड़ों में दर्द या चलने-फिरने में दिक्कत होने पर गोंद का सेवन बहुत लाभ पहुँचाता है। कमजोरी या लम्बी बीमारी से ठीक होने के लिये भी इसका प्रयोग फायदेमंद होता है। इससे बनीं चीजों को पचने में अधिक समय लगता है, इसलिये सावधानी बरतनी चाहिये।।

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Monday, February 3, 2020

मेलबर्न के महारथी

मेलबर्न में टेनिस के महारथी



🏆आठवें खिताब के साथ जोकोविच फिर नम्बर वन।

🏆ऑस्ट्रेलियन ओपन: चार घण्टे तक चले पाँच सेट के मुकाबले में थियम को दी शिकस्त।

🏆साल के पहले ग्रैंड स्लैम में फाइनल न हारने का 100% रिकॉर्ड रखा बरकरार।

🏆13वीं लगातार जीत है यह जोकोविच की इस सत्र में।

🏆31वीं जीत है यह जोकोविच की पाँच सेट तक चलने वाले 41 मैचों में। उन्होंने सिर्फ दस मैच हारे हैं। थियम ने 15 में से आठ जीते और सात हारे हैं।

🏆17वां ग्रैंड स्लैम खिताब करियर का जीता नोवाक ने।

🏆07वीं जीत है यह जोकोविच की थियम पर 11 मुकाबलों में।

आठवां फाइनल और आठवां खिताब। मेलबर्न में नोवाक जोकोविच ने फाइनल में न हारने का रिकॉर्ड कायम रखा। जोकोविच ने 26 वर्षीय डोमिनिक थियम की चुनौती से 6-4, 4-6, 2-6, 6-3, 6-4 से पार पाते हुये साल का पहला ग्रैंड स्लैम ओपन जीत लिया।
पहला सेट जीतने के बाद 32 वर्षीय जोकोविच ने अगले दोनों सेट गंवाने के बाद फिर से जबरदस्त वापसी करते हुये चार घण्टे में मुकाबला जीतकर करियर का 17वां ग्रैंड स्लैम जीता। यह जोकोविच के करियर का 26वां ग्रैंड स्लैम फाइनल था, जिसमें से उन्होंने नौ हारे हैं। सर्वाधिक ग्रैंड स्लैम खिताब जीतने के मामले में जोकोविच से आगे सिर्फ राफेल नडाल (19) और रोजर फेडरर (20) ही हैं। इस जीत के साथ वह नडाल को पछाड़कर फिर से दुनिया के नम्बर एक खिलाड़ी भी बन गये।

👉16 साल में बिग थ्री के अलावा दो ही बने हैं विजेता-


पिछले 16 वर्षों में (2004 से 2020) 14 बार बिग थ्री जोकोविच (8), फेडरर (6) और नडाल (01) ने मेलबर्न में ट्रॉफी जीती है। इन तीनों के अलावा सिर्फ दो बार अन्य खिलाड़ियों ने यह खिताब जीता है। इनमें रूस के मारन साफिन (2005) और स्विट्जरलैंड के स्टेन वावरिंका (2014) हैं।

👉जोकोविच के 17 ग्रैंड स्लैम-


🏆ऑस्ट्रेलियन ओपन: 2008, 2011, 2012, 2013, 2015, 2016, 2019, 2020

🏆फ्रेन्च ओपन: 2016

🏆विम्बलडन: 2011, 2014, 2015, 2018, 2019

🏆यूएस ओपन: 2011, 2015, 2018


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Sunday, February 2, 2020

खुबानी/एप्रीकॉट

खुबानी (एप्रिकॉट)




खुबानी एक गुठलीदार फल है, जो मध्यपूर्व के देशों में मुख्य रूप से पैदा होता है। अंग्रेजी में इसे एप्रीकॉट कहते हैं। यह ठण्डे इलाकों की उपज है। इसको सुखाकर मेवे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। हिमाचल प्रदेश और कश्मीर में सूखी खुबानी को किश्त भी कहते हैं। यह फल कई रंगों का होता है, जैसे- सफेद, काला, गुलाबी और भूरा। इसमें विटामिन ए, बी, सी और ई पाये जाते हैं। इसके अलावा इसमें पोटैशियम, मैग्नीशियम, कॉपर और फॉस्फोरस जैसे तत्व भी पाये जाते हैं।




👉स्वादिष्ट फल होने के साथ-साथ खुबानी पेट की कई बीमारियों को दूर करने में मदद करती है। इसमें मौजूद फाइबर पाचन क्रिया को सुचारू रूप से चलने में सहायक है। कब्ज जैसी समस्याओं के लिये भी खुबानी लाभदायक मानी गयी है।

👉इसमें मौजूद बीटा-कैरोटीन और विटामिन-ई आँखों के स्वास्थ्य के लिये बहुत फायदेमंद है। इसके सेवन से आँखों की रोशनी बढ़ती है। यह बुरे कोलेस्ट्रॉल को कम करती है और अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाती है।

👉सूखी खुबानी के कई फायदे हैं। इसमें प्राकृतिक मिठास होती है। फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट गुणों के कारण यह शरीर में अतिरिक्त शर्करा को जमा होने से रोकती है। एनीमिया नामक बीमारी में भी इसका सेवन लाभप्रद है।।

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मेलबर्न की नई मलिका-सोफ़िया

सोफ़िया बनीं मेलबर्न की नई मलिका


मुगुरुजा को हराकर जीत करियर का पहला ग्रैंड स्लैम





अमेरिका की 21 वर्षीय सोफ़िया केनिन मेलबर्न की नई मलिका बन गयीं। पहली बार किसी ग्रैंड स्लैम का फाइनल खेलने वाली दुनिया की 15वें नम्बर की खिलाड़ी सोफ़िया ने दो बार की ग्रैंड स्लैम चैंपियन 26 वर्षीय गर्बाइने मुगुरुजा को 4-6, 6-2, 6-2 से पराजित कर ऑस्ट्रेलियन ओपन का खिताब जीता। सोफ़िया ने पहला सेट गंवाने के बाद वापसी करते हुये 2 घण्टे तीन मिनट में मुकाबला अपने नाम किया। वह सेरेना विलियम्स (2002) के बाद ग्रैंड स्लैम जीतने वाली अमेरिका की सबसे युवा खिलाड़ी हैं। तीसरी बार यहाँ खेल रहीं सोफ़िया 2018 में पहले और 2019 में दूसरे दौर में बाहर हो गई थीं।

🏆12 वर्षों पश्चात सबसे युवा विजेता: सोफ़िया विगत 12 वर्षों में ऑस्ट्रेलियन ओपन जीतने वाली सबसे युवा खिलाड़ी हैं। 2008 में रूस की शारापोवा ने 20 वर्ष की आयु में यह उपलब्धि हासिल की थी। सोफ़िया यह ट्रॉफी जीतने वाली 18वीं अमेरिकी हैं।

🏆पहुँचेंगी सातवीं रैंकिंग पर: सोफ़िया डब्ल्यूटीए रैंकिंग में पहली बार शीर्ष दस में शुमार हो जायेंगी। वे आठ स्थान की छलाँग लगाकर 15वें से करियर की सर्वश्रेष्ठ रैंकिंग सातवें स्थान पर पहुँच जायेंगी।।

👉टैक्सी ड्राइवर से ग्रैंडस्लैम विजेता कोच⤵️

पिता एलेक्स के संघर्ष को बिटिया सोफ़िया ने पहुँचाया मुकाम तक


ऑस्ट्रेलियन ओपन में महिला वर्ग की चैंपियन बनीं 21 साल की सोफ़िया केनिन की सफलता में टैक्सी ड्राइवर पिता एलेक्स के संघर्ष का बड़ा योगदान है।
पाँच साल की उम्र में जब सोफ़िया को वह टेनिस अकादमी में ले गये थे तब उनकी टेनिस की जानकारी लगभग शून्य थी लेकिन धीरे-धीरे अकादमी के लोगों को देखकर खेल की बारीकियां समझीं और सोफ़िया की कोचिंग शुरू कर दी। अब तो वह ग्रैंडस्लैम चैंपियन के कोच हो गये हैं।

👍चैंपियन फादर्स क्लब में शामिल: एलेक्स खास फादर्स क्लब में शामिल हो गये हैं जिन्होंने चैंपियन दिये हैं। इनमें वीनस और सेरेना के पिता रिचर्ड विलियम्स, आंद्रे अगासी के पिता माइक और मारिया शारापोवा के पिता यूरी शामिल हैं।

👍रात को टैक्सी, सुबह अंग्रेजी की कक्षा: एलेक्स 1987 में जेब में चंद डॉलर लेकर तत्कालीन सोवियत संघ से पत्नी लीना के साथ अमेरिका आ गये थे। शुरू में अंग्रेजी कम आती थी लेकिन कड़ी मेहनत की। रात को टैक्सी चलाई और सुबह अंग्रेजी व कंप्यूटर सीखा।

👍ताने भी सहे: सोफ़िया के कथनानुसार, वह अन्य बच्चों के मुकाबले ज्यादा लम्बी नहीं थीं। लोग कहते थे आप मज़ाक कर रहे हो यह लड़की टेनिस खेलेगी!!?? लेकिन उनके पिता ने किसी की परवाह किये बिना लक्ष्य साधना जारी रखी।।


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Saturday, February 1, 2020

संसद का संयुक्त सत्र


संसद भवन

हमारे संविधान के तहत हमारी संसद में दो सदनों लोकसभा और राज्यसभा की व्यवस्था है। संविधान के अनुच्छेद 108 के तहत राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक आहूत कर सकता है। ऐसे सत्र की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करते हैं। उनकी अनुपस्थिति में यह जिम्मेदारी लोकसभा उपाध्यक्ष को दी जाती है और उनकी भी अनुपस्थिति में राज्यसभा के उपसभापति अध्यक्षता करते हैं। आमतौर पर संयुक्त सत्र की नौबत तब आती है, जब किसी विधयेक को एक सदन ने पारित कर दिया हो और दूसरे सदन ने उसे अस्वीकार कर दिया हो, या विधेयक में किये जाने वाले संशोधनों के बारे में दोनों सदनों में अंतिम रूप से असहमति हो या दूसरे सदन को विधयेक प्राप्त होने की तारीख से उसके द्वारा विधयेक पारित किये बिना छह मास से अधिक बीत गये हों। हालाँकि मनी बिल या धन विधेयक के मामले में यह प्रावधान लागू नहीं होता। मनी बिल को सिर्फ लोकसभा की मंजूरी की जरूरत होती है, राज्यसभा लोकसभा को अपनी सिफारिशें भेज सकती है, लेकिन वह उन्हें मानने को बाध्य नहीं है। संविधान संशोधन विधयेक के लिये भी संयुक्त सत्र का प्रावधान नहीं है। भारतीय संसद ने अब तक सिर्फ तीन विधयेक ही संयुक्त सत्र में पारित किये हैं। यह हैं, दहेज रोक अधिनियम, 1961, बैंकिंग सेवा आयोग अधिनियम, 1977 और पोटा (आतंकवाद निरोधक अधिनियम) 2002। इसके अलावा 30 जुलाई, 2017 को बुलाये गये संसद के दोनों सत्रों के संयुक्त अधिवेशन में मध्य रात्रि को राष्ट्रपति ने जीएसटी (वस्तु एवम् सेवाकर) को लागू करने की घोषणा की थी।।


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Sunday, January 26, 2020

🇮🇳एकता, समानता और गरिमा का गणतन्त्र🇮🇳

🇮🇳एकता, समानता और गरिमा का गणतंत्र🇮🇳


भारत में 19वीं शताब्दी के राजनीतिक विमर्श में राजनीतिक मुद्दों के बजाय सामाजिक मुद्दों पर जोर था। वर्ष 1927 से ही देश में भारत की स्वतंत्रता के बारे में गहन विचार-विमर्श होने लगा था। भविष्य में भारत को एक स्वतंत्र देश के रूप में देखने वाले बाल गंगाधर तिलक थे, जिन्होंने कहा था, ‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।’ वह भारतीय समाज की अनेक गड़बड़ियों और विरोधाभासों से अवगत थे, इसके बावजूद उन्होंने देश की आजादी को पहला लक्ष्य माना और कहा कि सामाजिक बुराइयों को दूर करने का काम आजादी के बाद भी हो सकता है।

वर्ष 1927 तक कांग्रेस नेतृत्व में अंग्रेजों से औपनिवेशिक स्वराज्य (डोमिनियन स्टेटस) की मांग पर आम सहमति थी। यानी वे चाहते थे कि आंतरिक मामलों में भारतीयों को स्वशासन का अधिकार दिया जाए, जैसा कि ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका को प्राप्त था।

वर्ष 1928 में कोलकाता में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में सुभाष चंद्र बोस ने स्वशासन के मुद्दे पर कांग्रेस नेतृत्व में व्याप्त सर्वसम्मति पर सवाल उठाते हुए देश की स्वतंत्रता पर जोर दिया। सुभाष चंद्र बोस और जवाहरलाल नेहरू जैसे युवा नेताओं ने औपनिवेशिक स्वराज्य को साम्राज्यवाद की निशानी मानते हुए खारिज कर दिया। नेहरू ने 1927 में यूरोप और तत्कालीन सोवियत संघ के व्यापक दौरे के बाद औपनिवेशिक शोषण के बारे में स्पष्टता से अपने विचार रखे थे। ब्रुसेल्स में उन्होंने उपनिवेश-विरोधी एक बैठक में भाग लिया, जिसमें लैटिन अमेरिका, एशिया और अफ्रीका से प्रतिनिधि आए थे। सोवियत संघ ने उन्हें बेहद प्रभावित किया, जहां असमानता का नामोनिशान नहीं था। गांधी जी इस बदलाव को गौर से देख रहे थे।

उन्होंने नई पीढ़ी में वाम रुझानों और खासकर महाराष्ट्र में (गुजरात तब बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा था) वस्त्रोद्योग के कामगारों के बीच कम्युनिस्ट पार्टी के बढ़ते असर को देखा। नई विचारधाराओं को कांग्रेस में समाहित करने के लिए गांधी जी ने नेहरू को नया अध्यक्ष मनोनीत किया। उसी दौरान साइमन कमीशन (1927) का कांग्रेस, मुस्लिम लीग तथा उदारवादियों-सब ने विरोध किया, क्योंकि उसमें एक भी भारतीय प्रतिनिधि नहीं था और न ही इसमें भारत को औपनिवेशिक स्वराज्य देने का वादा था। दिलचस्प यह है कि नेहरू रिपोर्ट (1928) में भी पूर्ण स्वतंत्रता के बजाय औपनिवेशिक स्वराज्य की मांग की गई थी। महात्मा की रणनीति काम आई।

लेकिन भगत सिंह और उनके साथियों की नायकोचित वीरता से देश में एक अप्रत्याशित मोड़ आया। 31 दिसंबर, 1929-1 जनवरी, 1930 को लाहौर में नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य का फैसला किया।  यह प्रस्ताव गांधी जी द्वारा तैयार और पारित किया गया। इसमें बताया गया था कि ब्रिटिश राज ने भारत को आर्थिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से कितना नुकसान पहुंचाया है। पूर्ण स्वतंत्रता के लक्ष्य के साथ पहली बार 26 जनवरी को मनाया गया गणतंत्र दिवस बेहद सफल रहा था।


सरकार की खुफिया रिपोर्ट में बताया गया था कि इसमें बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया। पंजाब में इसके प्रति सबसे अधिक उत्साह था। अमृतसर से गांधी जी के एक मित्र ने उन्हें पत्र लिखा था कि ग्रामीण इलाकों में स्वतंत्रता दिवस के प्रति जो उत्साह दिखा, वह अभूतपूर्व था। लाहौर से एक दूसरे कांग्रेसी ने भी यही लिखा। इस सफलता से गांधी जी को महसूस हुआ कि अंग्रेजों के खिलाफ नए नागरिक अवज्ञा आंदोलन की जरूरत है। और इस तरह 1930 में उन्होंने नमक सत्याग्रह की शुरुआत की। लेकिन पांच मार्च, 1931 को वायसराय इरविन और गांधी जी के बीच समझौता हुआ, जिसके बाद महात्मा ने नागरिक अवज्ञा आंदोलन को मुल्तवी कर दिया।

चूंकि अगले गोलमेज सम्मेलन में भारत की आगामी सांविधानिक स्थिति के बारे में फैसला लिया जाना था, इसलिए कांग्रेस की उसमें मौजूदगी सुनिश्चित की गई। लेकिन वहां भारत के औपनिवेशिक स्वराज्य पर भी बात नहीं हुई, जो कांग्रेस के लिए असहज करने वाली स्थिति थी। कांग्रेस में इस पर गहरी निराशा छा गई। 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट में भी भारत को औपनिवेशिक स्वराज्य देने का कोई वादा नहीं किया गया। ग्रेट ब्रिटेन में तब कंजर्वेटिव पार्टी की सरकार थी और उसने लेबर पार्टी और उसके उदार सांसदों द्वारा भारत को औपनिवेशिक स्वराज्य देने के वादे को खारिज कर दिया।

मार्च, 1939 में कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी को चिट्ठी में लिखा, ‘पूर्ण स्वराज्य के मुद्दे पर दबाव डालने का समय आ गया है।’ बोस का मानना था कि वैश्विक संकट ने भारत के लिए अनुकूल परिस्थिति पैदा कर दी है, जिसमें पूर्ण स्वतंत्रता हासिल करने के लिए ब्रिटेन को सीधे-सीधे निशाना बनाया जा सकता है। लेकिन महात्मा गांधी ने बोस का वह प्रस्ताव खारिज कर दिया, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि यह ‘अहिंसक जन आंदोलन’ शुरू करने का सही समय नहीं है।

1940 की गर्मियों में वायसराय ने घोषणा की कि द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद भारत को स्वशासन पर आधारित औपनिवेशिक स्वराज्य दे दिया जाएगा, पर गांधी जी ने वायसराय का यह प्रस्ताव खारिज कर दिया। वह चाहते थे कि युद्ध के बाद ब्रिटेन भारत की पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा करे। भारत छोड़ो आंदोलन गांधीजी के उसी आंदोलन का मिला-जुला रूप था, जिसकी शुरुआत उन्होंने 1929 में की थी।

लेकिन तब से अब तक 26 जनवरी को पूर्ण स्वराज के रूप में मनाकर स्वतंत्रता की उम्मीद को जिलाए रखा गया था। ऐसे में, यह स्वाभाविक ही था कि भारतीय संविधान को 26 जनवरी, 1950 को लागू किया जाता, क्योंकि गणतंत्र के बिना, जिसमें एकता, गरिमा और समानता की भावना हो, स्वतंत्रता अधूरी होती।




साभार:अमर उजाला, 26 जनवरी 2020(रवि.)


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