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Saturday, April 4, 2020

डकवर्थ लुइस नियम के जनक

डकवर्थ लुइस नियम के आविष्कारक


🏏डकवर्थ लुइस नियम बनाने वाले टोनी का निधन।


🏏इंग्लैंड के टोनी ने गणितज्ञ फ्रैंक के साथ मिलकर 1997 में डकवर्थ-लुइस नियम दिया था।


🏏आईसीसी ने इंग्लैंड में खेले गये 1999 विश्वकप से अपनाया उक्त नियम।


🏏अफ्रीकी टीम पहला शिकार।


🏏2014 में बदला नाम।




सीमित ओवरों की क्रिकेट में वर्षा बाधित मैचों के लिये डकवर्थ-लुइस विधि तैयार करने में प्रमुख भूमिका का निर्वहन करने वाले टोनी लुइस का 02 अप्रैल 2020 को देहावसान हो गया। वह 78 वर्ष के थे। इंग्लैंड एवम् वेल्स क्रिकेट बोर्ड(ईसीबी) ने कहा, 'ईसीबी टोनी के निधन की सूचना से अत्यन्त आहत है। उन्होंने अपने साथी गणितज्ञ फ्रैंक डकवर्थ के साथ मिलकर डकवर्थ लुइस विधि तैयार की थी। टोनी और फ्रैंक का योगदान कोई नहीं भुला सकता। क्रिकेट उन दोनों का सदैव ऋणी रहेगा।' इसे 1997 में प्रस्तुत किया गया। अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद् (आईसीसी) ने 1999 में इंग्लैंड में खेले गये विश्व कप में आधिकारिक तौर पर इसे अपनाया।


🏏अफ्रीकी टीम पहला शिकार➡️

इंग्लैंड में खेले गये 1992 विश्व कप में मेजबान टीम और दक्षिण अफ्रीका के मध्य सेमीफाइनल प्रतियोगिता में पहली बार इस नियम का प्रयोग किया गया था। लक्ष्य का पीछा कर रही अफ्रीकी टीम को जीत के लिये 13 गेंदों पर 22 रन की दरकार थी। इसी दौरान हुई वर्षा के कारण मैच रोक दिया गया था। अफ्रीकी खिलाड़ी उस समय हतप्रभ रह गये, जब जीत के लिये स्कोरबोर्ड पर एक गेंद पर 21 रन का लक्ष्य प्रदर्शित हुआ। यह मैच अफ्रीकी टीम 19 रन से हार गई। इसके बाद ही डकवर्थ-लुइस पर विचार किया गया।


🏏2014 में बदला नाम➡️

इस नियम की कई बार आलोचना हुई जिसके बाद ऑस्ट्रेलियाई गणितज्ञ स्टीवन स्टर्न ने मौजूदा स्कोरिंग रेट के हिसाब से इसका नवीनीकरण। फिर इसे 2014 से डकवर्थ-लुइस-स्टर्न नियम कहा जाने लगा। यह गणितीय नियम अब दुनिया भर में वर्षा प्रभावित सीमित ओवरों के क्रिकेट मैच में उपयोग किया जाता है। लुइस क्रिकेटर नहीं थे लेकिन उन्हें क्रिकेट एवम् गणित में उनके योगदान के लिये 2010 में ब्रिटिश साम्राज्य के विशिष्ट सम्मान एमबीई से सम्मानित किया गया।।


प्रामाणिक स्रोत- प्रतिष्ठित हिन्दी एवम् अंग्रेजी दैनिक।  


Disclaimer: All the Images belong to their respective owners which are used here to just illustrate the core concept in a better & informative way.
 



विराट के पसन्दीदा बल्लेबाजी जोड़ीदार

कोहली के फेवरेट बैटिंग पार्टनर्स


🏏धोनी-एबी संग आता है विराट को बल्लेबाजी का आनन्द।


🏏भारतीय कप्तान विराट बोले, इनके साथ रन लेते समय मौखिक संकेतों की आवश्यकता नहीं पड़ती।




भारतीय कप्तान विराट कोहली का कहना है कि वह बल्लेबाजी के समय ऐसे जोड़ीदार के साथ अधिक लुत्फ उठाते हैं जिनकी रनिंग अच्छी हो तथा जिनके साथ तालमेल बढ़िया रहे। उन्होंने अपने पसन्दीदा दो जोड़ीदारों में वरिष्ठ साथी महेन्द्र सिंह धोनी व दक्षिण अफ्रीका के एबी डीविलियर्स का नाम लिया।
कोहली इन दिनों कोविड-19 संक्रमण की रोकथाम हेतु लागू लॉकडाउन के कारण घर पर हैं। उन्होंने इंग्लैंड के पूर्व क्रिकेटर केविन पीटरसन के साथ इंस्टाग्राम पर अनौपचारिक बातचीत की। पीटरसन ने जब क्रीज पर पसन्दीदा साथी के बारे में पूछा तो कोहली ने धोनी और डीविलियर्स का नाम लेते हुये कहा कि इनके साथ बल्लेबाजी करते वक़्त बोलने की जरूरत नहीं पड़ती। साथ ही कहा कि वह जीवन में कभी एबी डीविलियर्स के विरुद्ध छींटाकशी नहीं करेंगे क्योंकि वह उनका काफी सम्मान करते हैं। अपने आक्रामक रवैये को लेकर भारतीय कप्तान का मानना है कि उनके लिये आक्रामकता लुत्फ उठाने का तरीका है। विराट ने बताया कि 2018 में दक्षिण अफ्रीकी दौरे पर सर्वाइकल की समस्या हो गयी थी। पेट में अम्लता की समस्या हो गयी थी। अस्थियों में कैल्शियम कम हो रहा था। तभी से माँसाहार त्याग दिया और अब बेहतरीन महसूस करते हैं।


🏏जिंदगी की तरह है टेस्ट क्रिकेट➡️

कोहली से जब पूछा गया कि उन्हें कौन सा प्रारूप सर्वाधिक प्रिय है तो उन्होंने बाकायदा पाँच बार टेस्ट क्रिकेट का नाम लिया। उनका कहना है कि पाँच दिवसीय प्रारूप को खेलने से वह बेहतर इंसान बन पाये क्योंकि इसमें आप जिन्दगी की ही तरह चुनौतियों से नहीं भाग सकते। आप रन बनाओ या न बनाओ लेकिन दूसरे रन बना रहे हों तो आप उनकी सराहना में ताली बजाओ। आप ड्रेसिंग रूम में लौट जाओ लेकिन उठो और अगले दिन फिर आओ। आपको दिनचर्या का पालन करना होता है, फिर आप चाहें इसे पसन्द करो या नहीं।


🏏मिलकर ही निपट सकते हैं कोरोना से➡️

कोरोना की स्थिति पर कोहली ने कहा कि कुछ लोगों को छोड़कर अधिकांश नागरिक दिशानिर्देशों का पालन कर रहे हैं। लोगों की लापरवाही पर उन्होंने कहा कि मुझे नहीं पता ऐसा क्यों हुआ लेकिन उम्मीद है कि लोग इसे समझेंगे और निर्देशों का पालन करेंगे। हम एक साथ मिलकर ही इस भयंकर महामारी से निपट सकते हैं।


🏏पहली बार अनुष्का संग इतना समय➡️

कोहली ने कहा कि लॉकडाउन के चलते पत्नी अनुष्का को क्वालिटी समय दे पा रहा हूँ। पहली बार उनके साथ इतने समय तक रहने का अवसर मिला है। कोहली दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध वन डे सीरीज रदद् होने के बाद से ही अनुष्का के साथ घर पर ही हैं।


🏏माही ने मशहूर कर दिया चीकू नाम➡️

पीटरसन ने सीधा सवाल किया कि उनका नाम चीकू कैसे पड़ा। इस पर कोहली खिलखिला उठे। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि धोनी ने मेरे इस नाम को मशहूर कर दिया। धोनी विकेट के पीछे अक्सर विराट को चीकू नाम से पुकारते थे। कोहली ने बताया कि उनका यह चीकू नाम रणजी टीम के कोच अजीत चौधरी द्वारा प्रदत्त है।



प्रामाणिक स्रोत- प्रतिष्ठित हिन्दी एवम् अंग्रेजी दैनिक।


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Friday, April 3, 2020

संक्रमण व्यूह ध्वंस की चीनी युक्ति

संक्रमण चक्र को चीन ने कैसे किया ध्वस्त??!!


🇨🇳ऐसे जीता चीन: चप्पे-चप्पे पर जाँच, लॉकडाउन तोड़ने पर दण्ड।

🇨🇳प्रतिबद्धता एवम् तीव्र तैयारियों के दम पर डटा रहा चीन।

🇨🇳चीनी सेना तथा चेतावनी तन्त्र ने निभाई मुख्य भूमिका।




चीन से उपजी कोरोना महामारी विश्वभर में पाँव पसार चुकी है। पृथ्वीवासी आश्चर्यचकित हैं कि जिस राष्ट्र से इतनी भीषण महामारी का उदय हुआ, उसने न सिर्फ इसे समय रहते नियन्त्रित कर लिया बल्कि तुलनात्मक रूप से जान-माल की अधिक हानि भी नहीं होने दी। इसका मुख्य कारण था चीन द्वारा चप्पे-चप्पे पर जाँच की सुदृढ़ व्यवस्था तथा लॉकडाउन तोड़ने वालों के विरुध्द कठोर दण्ड का प्रावधान। इसमें चीनी सेना ने भी पर्याप्त योगदान दिया।
जानकारों का मानना है कि इस दक्षता और तीव्र तैयारी के नेपथ्य में वहाँ की दलीय व्यवस्था की भी व्यापक भूमिका है। चीनी मामलों के जानकार व कुछ महामारी विशेषज्ञ चीन के प्रयासों से सीखने को प्रेरित भी कर रहे हैं। किसी महामारी के अवरोधन में प्रारम्भिक उपाय सर्वाधिक महत्वपूर्ण होते हैं। इसके अन्तर्गत देश में एक चेतावनी तन्त्र स्थापित करना अत्यावश्यक होता है, जो चीन ने तैयार किया था।


🗺️विश्व के समक्ष दो विकल्प➡️

कुन फाउंडेशन के चेयरमैन डॉ. रॉबर्ट लॉरेंस कुन का मत है कि कोरोना के लिये चीन को उत्तरदायी ठहराना समाधान नहीं है। दो ही विकल्प हैं- या तो देश एकजुटता का प्रदर्शन कर इस वायरस से लड़कर जीतें या आपस में लड़कर कोरोना से हारें। इस समय कोरोना जलवायु परिवर्तन से भी बड़ी समस्या के रूप में सामने है और दुनिया को प्रथम विकल्प के साथ आगे बढ़ना चाहिये।


🇨🇳संगठित ढाँचा भी सहायक➡️

चीन रिफार्म फ्रेंडशिप मेडल (2018) के विजेता और कुन फाउंडेशन के चेयरमैन डॉ. रॉबर्ट लॉरेंस कुन बताते हैं कि कम्युनिस्ट सरकार ने किसी भी कार्यक्रम के क्रियान्वयन हेतु संगठित ढाँचा बना रखा है। इस ढाँचे में केंद्र सरकार समेत पाँच स्तर (प्रान्तीय, नगरीय, जिला, कस्बाई व ग्रामीण सरकार) सम्मिलित हैं। सीपीसी के आदेश पर निम्न स्तर तक पूरा नेतृत्व एकजुट रहता है।


🗺️दुनिया की सहायता ऐसे सम्भव➡️

संक्रमण को अवरुद्ध करने हेतु चीन अपना अनुभव व समझ प्रत्येक देश से साझा कर सकता है। वहाँ के स्वास्थ्यकर्मियों तथा लॉजिस्टिक विशेषज्ञों की कार्यशैली अन्य देश भी सीख सकते हैं। चीन आवश्यक स्वास्थ्य सामग्री एवम् उपकरण दुनिया को उपलब्ध करा सकता है।


📱स्मार्टफोन के 'हरे संकेत' से चल रहा चीन में नव जीवन📲

चीन में कोरोना वायरस के प्रकोप उपरान्त जीवन स्मार्टफोन के एक ग्रीन सिग्नल से चलने लगा है। हरा संकेत एक ऐसा 'स्वास्थ्य कोड' है जो बताता है कि सम्बन्धित व्यक्ति संक्रमण के लक्षण से मुक्त है। यह संकेत किसी सब-वे में जाने, किसी होटल में प्रवेश या वुहान में दाखिल होने के लिये आवश्यक है।
इस स्वास्थ्य कोड का बनना इसलिये सम्भव हो सका क्योंकि चीन में लगभग सभी के पास स्मार्टफोन है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के पास अपने नागरिकों की निगरानी और उन्हें नियंत्रण में रखने के लिये लोगों की जानकारियों का 'विशाल डाटा' है। वस्त्र उत्पादन करने वाली कम्पनी की एक प्रबन्धक वु शेंगहोंग ने वुहान सब-वे स्टेशन पर अपना स्मार्टफोन निकाला और वहाँ लगे एक पोस्टर के बार कोड को अपने फ़ोन से स्कैन किया। इससे उनका पहचान पत्र संख्या और हरा संकेत आ गया। इसके बाद उन्हें सब-वे पर जाने की अनुमति मिल गयी।


📱अन्य सरकारें भी यह तरीका अपनायें📲

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने विज्ञान पत्रिका 'साइंस' में प्रकाशित 'डिजिटल कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग' यानी 'डिजिटलीकरण के माध्यम से सम्पर्कों को पता लगाना' नामक एक रिपोर्ट कहा है कि इस चीनी तरीके को अन्य सरकारों को भी स्वीकार करना चाहिये।


🇨🇳🤝🇮🇳भारत से नये सम्बन्धों का प्रस्ताव➡️

कोरोना संकट के मध्य चीन भारत के साथ रिश्तों के सूत्रपात का एक नया प्रस्ताव रखा है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को प्रेषित अपने सन्देश में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने दोनों देशों के द्विपक्षीय सहयोग एवम् कूटनीतिक रिश्तों की 70वीं वर्षगाँठ पर बधाई दी है।
अपने सन्देश में जिनपिंग ने कहा कि विगत 70 वर्षों में भारत और चीन ने मिलकर विकास और शान्ति के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है। अब इस सहयोग व रिश्ते को नये सिरे से आगे ले जाने की आवश्यकता है। यदि दोनों देश मिलकर कार्य करें तो एशिया ही नहीं, दुनिया के अधिकांश देशों के बीच एक सकारात्मक संदेश जायेगा।।



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विषाणु जगत के समक्ष असहाय विज्ञान

वायरस जगत के समक्ष लाचार विज्ञान


🔳विषाणु-मण्डल: 250 विषाणु प्रजातियाँ ही मानव पर आक्रामक।

🔳7 हजार प्रजातियों की ही हो सकी है पहचान, 10 खरब की खोज लम्बित।





विगत दो दशकों में सार्स, मर्स, इबोला, निपाह के बाद अब कोरोना वायरस ने संसार को झकझोर कर रख दिया है। एक के बाद एक सामने आ रहे भयानक विषाणुओं ने वैज्ञानिकों के हाथ भी बाँध दिये है। सम्भवतः पृथ्वी पर लगभग 10 खरब ऐसे वायरस हैं जिनके नाम तक हमें ज्ञात नहीं है। सिडनी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का कथन है कि अभी तक इस विविध विष्णुमण्डल की लगभग सात हजार प्रजातियों के प्रतिदर्श ही जुटाये जा सके हैं। 
दुनिया सबसे भयानक वायरसों में सम्मिलित इबोला और कोविड-19 पर शोधरत प्रसिद्ध वैज्ञानिक फोर्ट डायट्रिक का कथन है कि विषाणुओं के विषय में बहुत कुछ खोजा जाना शेष है।


🔳100 वर्ष पूर्व भी मास्क व सामाजिक दूरी➡️

1918 में स्पेन से प्रसारित फ्लू के समय भी परिस्थितियाँँ वर्तमानकाल जैसे ही थे। जनमानस का मास्क धारण करना अनिवार्य कर दिया गया था तथा सामाजिक दूरी का अनुपालन सुनिश्चित किया जा रहा था। विश्वभर में लगभग 5 करोड़ मनुष्यों ने अपने प्राण गवाँ दिये। 15 माह की अवधि में मात्र भारत में ही 1.8 करोड़ नागरिक काल-कवलित हो गये।


🔳6828 प्रजातियों का ही नामकरण➡️

17वीं सदी के अन्त में विषाणुओं की खोज के पश्चात् यह तथ्य ज्ञात हुआ कि रेबीज व इन्फ्लूएंजा जैसे रोगों के कारक ये विषाणु ही थे। दशकों के परिश्रम उपरान्त भी 6828 प्रजातियों का ही नामकरण हो सका है। तथापि इसके सापेक्ष कितविज्ञानशास्त्रियों ने कीटों की 380000 प्रजातियों का नामकरण करने में सफलता प्राप्त की है।

🔳सागर में 15 हजार विषाणु➡️

हाल के वर्षों में वैज्ञानिक वायरस के सैंपल में जेनेटिक पदार्थ एवम् उन्नत कम्प्यूटर प्रोग्राम के माध्यम से जीन ज्ञात करते है। अमेरिका के ओहियो विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ मैथ्यू सुलिवैन व उनके साथियों ने 2016 में सागर के भीतर 15 हजार से अधिक विषाणुओं की पहचान की। उन्होंने दो लाख नये वायरस ढूँढे़।


🔳कोरोना की हैं 39 प्रजातियाँ➡️

कोरोना वायरस की 39 प्रजातियों की पहचान की जा चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चीन की खोज के बाद मौजूदा महामारी को 'कोरोनावायरस डिजीज 2019' या 'कोविड-19' नाम दिया। इस वायरस में व सार्स में आनुवंशिक समानतायें हैं। मार्च में 'इंटरनेशनल कमिटी ऑन टैक्सोनॉमी ऑफ वायरसेज' ने कहा कि ये दोनों वायरस एक ही प्रजाति से हैं। सार्स के प्रसार को उत्तरदायी वायरस को सार्स-कोव के रूप में जाना जाता है इसलिये कोविड-19 को सार्स-कोव-2 भी कहा जा रहा है।


🔳पशुओं-पौधों को करोड़ों वायरस करते हैं प्रभावित➡️

वैज्ञानिकों के मतानुसार, अब तक विषाणुओं की 250 प्रजातियों ने ही मानव देह को अपना होस्ट चुना है। अर्थात् वायरोस्फीयर में अत्यन्त लघु अंश ही मनुष्य को संक्रमित करता है। विशेषयज्ञों का कथन है कि पशुओं, पौधों, कवक एवम् प्रोटोजोआ को प्रभावित करने वाले विषाणुओं की संख्या करोड़ों में है।


🔳जीन की अदला-बदली से पहचान कठिन➡️

वायरोस्फीयर में मौजूद प्रजातियों के वर्ग का पता लगाना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है। वायरस अन्य प्रजातियों के साथ जीन आदान-प्रदान कर लेते हैं, जिससे इनके समूहों में स्पष्ट अन्तर करना दुष्कर हो जाता है। इस वर्ष फरवरी में पाया गया कि एक झील में मिले वायरस की 74 जीन्स में से 68 इससे पहले किसी भी वायरस में नहीं मिलीं।।


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Friday, March 27, 2020

सामाजिक दूरी उल्लंघन के सम्भावित दुष्प्रभाव

शारीरिक दूरी उल्लंघन के सम्भावित दुष्प्रभाव


🔴सामाजिक दूरी नहीं रखी तो मई तक 13 लाख तक हो सकते हैं कोरोना के मामले।

🔴30,000 से 2,30,000 के मध्य रोगियों की संख्या हो सकती है अप्रैल के अंत तक।




देश में कोरोना वायरस के प्रकरण जिस द्रुतगति से बढ़ रहे हैं, उसके आधार पर मई तक यह आँकड़ा 10 से 13 लाख के मध्य पहुँच सकता है। यह अनुमान अमेरिकी वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा लगाया गया है। अध्ययन के अनुसार यदि सामाजिक दूरी जैसे उपायों को गम्भीरतापूर्वक नहीं लिया गया तो अप्रैल के अंत तक रोगियों की संख्या 30,000 से 2,30,000 के मध्य हो सकती है।
वैज्ञानिकों ने कहा कि अमेरिका और इटली की तुलना में महामारी से निपटने के लिये भारत अच्छा काम कर रहा है। इसका प्रसार रोकने के लिये सख्त प्रबन्ध एवम् उपाय किये जा रहे हैं। मिशिगन विश्विद्यालय में बायोस्टैटिस्टिक्स और महामारी विज्ञान के प्रो. भ्रामर मुखर्जी व जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के देबाश्री रे भी अध्ययन में सहभागी थे। उन्होंने कहा, यदि वायरस के मामले ऐसे ही बढ़ते रहे तो स्थिति पीड़ाजनक हो सकती है। मौजूदा अनुमान देश में आरम्भिक चरण के आँकड़ों के क्रम में है, जो कि कम परीक्षणों के कारण है।


🔳जटिल स्थिति➡️


◼️अधूरी तैयारी.....प्रति एक हजार पर 0.7 बिस्तर➡️

भारत में स्वास्थ्य तंत्र इस महामारी से लड़ने में अभी पूर्णतः सक्षम नहीं है। भारत में प्रति 1000 व्यक्तियों पर अस्पताल के बेड की संख्या मात्र 0.7 है। वहीं फ्रांस में यह 6.5, दक्षिण कोरिया में 11.5, चीन में 4.2, इटली में 3.4, ब्रिटेन में 2.9, अमेरिका में 2.8 और ईरान में 1.5 है।


◼️जाँच दर कम, कम मामले आ रहे सामने➡️

अध्ययन कोविड इण्डिया-19 स्टडी समूह के वैज्ञानिकों ने किया है। समूह यह पता लगा रहा था भारत में इस महामारी का खतरा कितना बड़ा है। समूह में सम्मिलित डाटा वैज्ञानिकों के अनुसार भारत में जाँच दर बहुत कम है। 18 मार्च को देश में कोरोना टेस्ट के लिये 11,500 सैंपल मिले। इससे समझा जा सकता है कि जाँच के लिये लोग सामने नहीं आ रहे हैं। भारत की तुलना में बहुत कम आबादी के दक्षिण कोरिया में 2 लाख 70 हजार व्यक्तियों का परीक्षण हो चुका है।


◼️अमेरिका-इटली में अकस्मात् बढ़े मामले➡️

अब तक कोविड-19 की वैक्सीन विकसित नहीं हुई है, न ही दवा बन सकी है। ऐसे में यदि कोरोना भारत में तृतीय चरण में पहुँचा तो परिणाम विध्वंसक होंगे। वैज्ञानिकों के अनुसार अमेरिका या इटली में भी कोविड-19 का प्रसार धीरे-धीरे ही हुआ, फिर अकस्मात् तीव्रता से मामले बढ़े।।



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Thursday, March 26, 2020

कब-कब और क्यों अवरुद्ध हुये ओलम्पिक?

कब-कब और क्यों स्थगित हुये ओलिम्पिक??


🏟️इतिहास में पहली बार टले ओलम्पिक।


🏟️अब टोक्यो-2020 ओलम्पिक का आयोजन अगले वर्ष ग्रीष्मकाल से पहले किया जायेगा।




🏟️124 वर्ष में पहली बार ऐसा हुआ जब आधुनिक ओलम्पिक खेलों को विलम्ब से कराने का निर्णय लिया गया।


🏟️पहले तीन बार निरस्त हो चुके हैं लेकिन कभी स्थगित नहीं हुये➡️


1916- बर्लिन में प्रथम विश्वयुद्ध के कारण रदद् किये गये थे।

1940- टोक्यो में द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण रदद् किये गये।

1944- लन्दन ओलम्पिक भी द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण नहीं             हो सके।

*1972- म्यूनिख ओलम्पिक में आतंकियों ने 11 इस्राइल                   एथलीटों और एक पुलिस अधिकारी की हत्या कर                 दी थी। तब 24 घण्टे के लिये खेल स्थगित हुये थे।


🏟️दो बार शीतकालीन ओलम्पिक हुये रदद्➡️

1940 में सैपोरा तथा 1944 में कोर्टिना डी एम्पेजो में होने वाले शीतकालीन ओलम्पिक खेलों को द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण रदद् किया गया था।


🏟️ अब टोक्यो ओलम्पिक 2020➡️

कोविड-19 महामारी के प्रकोप के चलते 24 जुलाई 2020 से 09 अगस्त 2020 के मध्य होने वाले टोक्यो ओलम्पिक को अगले वर्ष गर्मियों तक के लिये स्थगित कर दिया गया है। अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति (IOC) और मेजबान जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने एकमत से खेल महाकुम्भ को एक वर्ष के लिये टालने का निर्णय लिया।
अभी नई तिथियाँ तय नहीं की गई हैं। इन खेलों को टोक्यों 2020 के नाम से ही जाना जायेगा। पैरालम्पिक खेल भी अगले वर्ष ही हो सकेंगे। शान्तिकाल में पहली बार इन खेलों को स्थगित किया गया है।


🏟️विरोध करने वाले देश एवम् संगठन➡️

🔘कनाडा पहला देश था जिसने कहा था कि खेल जुलाई में हुये तो वह प्रतिभाग नहीं करेगा।
🔘ऑस्ट्रेलिया ने तो अपने खिलाड़ियों को अगले वर्ष को ही लक्षित कर तैयारियाँ करने के लिये कह दिया था।
🔘अमेरिका, ब्रिटेन, न्यूजीलैंड, ब्राजील, स्लोवानिया, सर्बिया, क्रोशिया की ओलम्पिक समितियों ने भी खेल स्थगित करने की माँग की थी।
🔘यूएस ट्रैक एण्ड फील्ड, तैराकी महासंघ, जिम्नास्टिक व फ्रान्स तैराकी महासंघ भी आयोजन के विरुद्ध थे।।


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Wednesday, March 25, 2020

मृदा पात्रों का प्रयोग, रखे काया निरोग

मृदा पात्रों का प्रयोग, रखे काया निरोग


विगत काल पुनः दस्तक दे रहा है जिसके साथ मृदा निर्मित पात्रों के प्रति रुचि एवम् जिज्ञासा भी उभर रही है। पहले जहाँ प्रदर्शनियों में इन पात्रों के दर्शन एवम् क्रय अवसर सुलभ थे, वहीं अब इन्हें निर्दिष्ट विक्रय केन्द्रों अथवा ऑनलाइन विक्रय मंचों से क्रय किया जा सकता है।





वर्तमान जीवनशैली से ऊबकर मनुष्य पुनः प्राचीन विवेकशील प्रथा का अनुगमन कर रहा है, जहाँ खानपान की प्रवृत्तियाँ उत्तम थीं तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्यायें कम। हम प्रतिदिन प्रयासरत रहते हैं कि इस यांत्रिक जीवन में अपनी कुछ नियमित प्रवृत्तियों को परिष्कृत किया जा सके जिससे हमारा स्वास्थ्य स्थिर रहे। इन्हीं प्रयासों में से एक है मृदा पात्रों में भोजन निर्माण एवम् ग्रहण करना। हमारे देश में सहस्त्रों वर्षों से मृदा पात्रों का वर्चस्व रहा है, किन्तु दुर्भाग्यवश कालान्तर में यह नगण्य रह गया, तदोपरान्त विलुप्त ही हो गया। इनका स्थान काँसे, लौह, स्टील, एल्युमीनियम तथा नॉन-स्टिक पात्रों ने ग्रहण कर लिया किन्तु विगत कुछ समय से मृदा पात्र पुनः ख्याति अर्जित कर रहे हैं एवम् विपणि (बाजार) में इनकी माँग पुनर्जीवित हो चुकी है।


🏺लोकप्रियता का कारण🏺

माटी के उत्पादों की साफ-सफाई अत्यन्त सरल है जिसके लिये आपको किसी रासायनिक साबुन, पाउडर या लिक्विड की आवश्यकता नहीं। इन उत्पादों को मात्र गर्म पानी से धो सकते हैं। ग्रीष्म कालीन झुलसाती धूप में घड़े का प्राकृतिक शीतल जल न केवल प्यास बुझाता है अपितु आत्मा को भी तृप्त कर देता है। माटी के पात्रों से प्राप्त होने वाले अप्रत्याशित लाभों को विज्ञान भी मान्यता प्रदान कर चुका है कि कैसे इनके नियमित प्रयोग से अनेक विकारों से सुरक्षा सम्भव है। मृदा में कई गुणकारी खनिज तत्व जैसे जिंक, मैग्नीशियम, लौह आदि समाविष्ट होते हैं जो विभिन्न पात्रों के प्रयोग के दौरान हमारी काया में प्रवेशित हो पोषण में मुख्य भूमिका निभाते हैं।
🏺मृदा पात्रों में भोजन निर्माण से पौष्टिकता बरकरार रहती है, माटी में समाहित जिंक, मैग्नीशियम व लौह तत्व आदि भोजन की पौष्टिकता बढ़ा देते हैं जबकि धातु पात्रों में भोजन निर्माण से उसके रसायन शनैःशनैः भोजन की पौष्टिकता को समाप्त कर देते हैं।
🏺मृदा पात्रों में भोजन अधिक स्वादिष्ट बनता है। एक तो उसका मूल स्वाद विकृत नहीं होता, दूसरा माटी की सोंधी खुशबू भोजन का स्वाद और भी बढ़ा देती है।
🏺मृदा पात्रों में गर्म भोजन देर तक गर्म बना रहता है जबकि ठण्डा भोजन देर तक ठण्डा ही रहता है। माटी का तापक्रम भोजन के टॉपमान को भी कायम रखता है।
🏺स्टील, नॉन स्टिक, एल्युमीनियम के पात्रों में मौजूद रसायन भोजन में मिलकर उसे शीघ्र दूषित कर सकते हैं जबकि माटी के पात्रों में भोजन दीर्घ अवधि तक शुद्ध बना रहता है।
🏺माटी के पात्र पर्यावरण अनुकूल एवम् सुरक्षित हैं।
🏺माटी के पात्रों में भोजन निर्माण हेतु कम घी-तेल की आवश्यकता होती है। पात्र की अपनी आर्द्रता भोजन निर्माण में सहायक सिद्ध होती है।
🏺माटी के पात्रों में मन्द आँच पर भोजन निर्माण होता है, जिससे न केवल भोजन का स्वाद बढ़ता, अपितु वह समुचित ढंग से निर्मित होने के कारण स्वास्थ्य के दृष्टि से भी लाभकारी होता है।

विगत लगभग पाँच वर्षों में मृदा पात्रों की लोकप्रियता में आश्चर्यजनक उछाल आया है। इस लोकप्रियता ने मृदा पात्रों की माँग एवम् व्यवसायीकरण में भी वृद्धि की है। पहले कुम्हारों के करकमलों द्वारा निर्मित होने वाले मृदा के यह पात्र अब वृहद स्तर पर कारखानों में यंत्रों से भी बन रहे हैं। हस्तनिर्मित मृदा पात्रों को कुम्हार चाक पर रचते थे तत्पश्चात् उन्हें दीर्घ अवधि तक भट्टी में तपाया जाता था। भट्टी में तपाने की प्रक्रिया पात्रों को सुदृढ़ता प्रदान करती थी। अब कारखानों में पूर्वनिर्मित साँचों में मृदा मात्र बनाये जाते हैं और उनकी तापक्रिया भी यंत्रों द्वारा ही सम्पादित होती है। हस्तनिर्मित पात्रों की अपेक्षा यन्त्र निर्मित पात्र दिखने में कुछ अधिक आकर्षक हो सकते हैं, किन्तु दोनों ही प्रकार के पात्रों की फिनिशिंग उत्कृष्ट होती है। समय के साथ वर्धित माँग के कारण वृहद स्तर पर मृदा पात्रों के निर्माण का कार्य प्रारम्भ हुआ। पहले जहाँ समय-समय पर आयोजित मेलों व प्रदर्शनियों में इन पात्रों के अवलोकन एवम् क्रय का सुअवसर प्राप्त होता था, वहीं अब निर्दिष्ट विक्रय केन्द्रों से भी इन्हें क्रय किया जा सकता है। इनकी विस्तृत होती माँग ने ही पात्रों की विविधता को भी समृद्ध किया है। पहले जहाँ मात्र मृदा निर्मित हाँडी व मटके ही प्रचलित थे, वहीं अब ऐसा कोई पात्र नहीं जिसकी मृदा आधारित संरचना असम्भव हो। कटोरी, प्लेट, कड़ाही, तवा, चम्मच, गिलास, फ्राई पैन, जग, बोतल, कुकर और यहाँ तक कि मृदा के फ्रिजों का भी उत्पादन होने लगा है। दीपावली जैसे विशिष्ट अवसरों पर तो मृदा पात्रों के विविध स्वरूप देखे गये हैं। अब तो यह पात्र ऑनलाइन भी सरलतापूर्वक उपलब्ध हैं। ऑनलाइन मंचों पर तो यह बहुविध रंग-रूपों व आकर्षक कलेवर में मिल रहे हैं। टैराकोटा मृदा का ही एक रूप है और इसी नाम से इसका बहुधा ऑनलाइन विक्रय होता है। यदि मूल्यों की बात की जाये तो मृदा पात्र अपने उपयोग के सापेक्ष किफायती ही सिद्ध होते हैं, किन्तु हमारा यह समझना भी नादानी है कि माटी निर्मित होने के कारण इनका मोल भी माटी सदृश होगा क्योंकि ऐसा कदापि नहीं है। तीन हाँडी के सेट का मूल्य एक से डेढ़ हजार रुपये तक हो सकता है। हैंडल वाला तवा 200 से 300 रुपये तक का हो सकता है। ऑनलाइन आपको विभिन्न पात्रों के समेकित सेट भी मिल जायेंगे जिनमें दो बड़ी कटोरी, प्लेट, चम्मच, एक छोटी कटोरी व गिलास आदि होते हैं। ऐसे सेट का मूल्य 1100 से 1300 रुपये तक हो सकता है। बाजार में आपको मटका सम्भवतः 100-150 रुपये में मिल जाये, किन्तु टोंटी युक्त वॉटर पॉट क्रय करने में 1500 से 1800 रुपये तक व्यय करने पड़ सकते हैं। कुकर का मूल्य भी 1700 से 2000 रुपये तक होता है। इन दिनों विशेष लोकप्रियता बटोर रहा माटी का फ्रिज तीन से चार हजार रुपये तक के मूल्य में उपलब्ध है। वैसे इन पात्रों को अल्पमूल्य तो नहीं कहा जा सकता, किन्तु यहाँ यह तथ्य भी विचारणीय है कि हस्तनिर्मित वस्तुयें अथक परिश्रम का परिणाम होती हैं, अतैव मूल्यवान प्रतीत होती हैं। यद्यपि कारखानों में निर्मित पात्रों का मूल्य कुछ कम हो सकता है, तथापि वे हस्तनिर्मित उत्पादों से प्रतिस्पर्धा में उन्नीस ही सिद्ध होते हैं।
गैर-सरकारी संस्था 'माटी-सृजन' इस पारम्परिक कला को संजोने का सराहनीय कार्य कर रही है। यह संस्था अभिलाषी जनों को मृदा पात्र बनाना भी सिखाती है तथा समय-समय पर कार्यशाला का आयोजन कर इसके विषय में जागरूक भी करती है। संस्था की संस्थापक मीनाक्षी राजेन्द्र का कहना है गत कुछ वर्षों में माटी के पात्रों के प्रति जनमानस का झुकाव एक उत्कृष्ट परिवर्तन का द्योतक है। वह कहती हैं, "इस रुचि का कारण कुछ भी हो, किन्तु अपने स्वास्थ्य को लेकर यह सजगता सुखद है। धातु निर्मित पात्र हमें क्या-क्या हानि पहुँचाते हैं, यह कल्पनातीत है। मृदा पात्रों में भोजन निर्माण एवम् ग्रहण क्रिया हमें कई समस्याओं से दूर रखती है।" हस्तनिर्मित पात्रों व कारखाने में निर्मित पात्रों के मध्य अन्तर के विषय में वे कहती हैं, "सामान्यतः देखकर तो अन्तर करना कठिन है, किन्तु फैक्ट्री निर्मित उत्पाद प्रायः काफी भारी होते हैं, जबकि हस्तनिर्मित उत्पाद हल्के।"
जहाँ तक पात्रों के रख-रखाव का विषय है, तो मृदा पात्रों की गुणवत्ता, दृढ़ता या भंगुरता, इस तथ्य पर निर्भर करती है कि उन्हें कितने तापमान पर तैयार किया गया है। ऐसे पात्रों के निर्माण के समय तापमान अति महत्वपूर्ण कारक है। जब कुम्हार हस्तनिर्मित उत्पादों का निर्माण करते हैं तो वे तापमान का विशेष ध्यान रखते हैं, किन्तु कारखानों में अक्सर इस बात की अनदेखी कर दी जाती है जिसके फलस्वरूप पात्रों में दरार या टूटने जैसी शिकायतें उत्पन्न होती हैं।


🏺रखरखाव सम्बन्धी सावधानियाँँ🏺

🏺माटी के पात्रों का प्रयोग अधिक ताप के बजाय नियन्त्रित ताप पर ही अनुशंसित है।
🏺भंगुर होने के कारण इनके रखरखाव में अतिरिक्त सतर्कता अनिवार्य है।
🏺उचित स्वच्छता के अभाव में फफूँद ग्रस्त होने की आशंका रहती है जिसे धोने के लिये राख तथा नारियल की बाह्य छाल का प्रयोग सर्वथा उचित होता है।
🏺माटी के पात्रों को गर्म पानी से धोना आवश्यक होता है। चूँकि यह पात्र भोजन की तरलता को अवशोषित कर लेते हैं, अतः गर्म पानी द्वारा इनमें लगा तेल आदि निकल जाता है।
🏺यदि भलीभाँति न तपे हों तो माटी के पात्रों की भंगुरता का जोखिम बढ़ जाता है तथा गैस पर भोजन बनाते समय या जरा सा बलपूर्वक रखने-उठाने में टूट या चटक जाते हैं। अतः आवश्यक हो जाता है कि भट्टी में भलीभाँति तपे पात्रों का चयन ही बुद्धिमतापूर्वक किया जाये।
🏺मृदा पात्रों की बढ़ती माँग कहिये या जनमानस के मध्य इनकी लोकप्रियता, यह पात्र प्रायः सस्ते नहीं होते। एक-दो वर्षों पश्चात् इनमें दरारें पड़ जाना या रंग फीका पड़ना स्वाभाविक है जिस कारण एक-दो वर्ष के अन्तराल पर इन्हें बदलना ही तर्कसंगत है।।



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