माता पार्वती की परीक्षा
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🍂विवाह से पूर्व सभी वर अपनी भावी पत्नी को लेकर आश्वस्त होना चाहते हैं। इसलिये शिव जी ने भी पार्वती की परीक्षा ली।🍂
माता पार्वती शिव जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिये घोर तप कर रही थीं। उनके तप को देखकर देवताओं ने शिव जी से देवी की मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना की।
शिव जी ने पार्वती जी की परीक्षा लेने के लिये सप्तर्षियों को भेजा। सप्तर्षियों ने शिव जी के सैकड़ों अवगुण गिनाये, पर पार्वती को महादेव के अतिरिक्त किसी और से विवाह स्वीकार्य न था।
विवाह से पूर्व सभी वर अपनी भावी पत्नी को लेकर आश्वस्त होना चाहते हैं। इसलिये शिव जी ने स्वयं भी पार्वती की परीक्षा लेने की ठानी। भगवान शंकर प्रकट हुये और पार्वती को वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गये। इतने में जहाँ वे तप कर रही थीं, वहीं निकट के तालाब में मगरमच्छ ने एक बालक को पकड़ लिया। लड़का जान बचाने के लिये चिल्लाने लगा। पार्वती से उस बच्चे की चीख सुनी न गयी। द्रवित हृदय के वशीभूत होकर वे तालाब पर पहुँचीं। उन्होंने देखा कि मगरमच्छ लड़के को तालाब के भीतर खींचकर ले जा रहा है।
लड़के ने देवी को देखकर कहा- "मेरी न तो माँ हैं, न पिता , न ही कोई मित्र..... माता अब आप ही मेरी रक्षा करें!"
पार्वती ने कहा- "हे ग्राह! इस लड़के को छोड़ दो।"
मगरमच्छ बोला-"दिन के छठे प्रहर में जो मुझे मिलता है, उसे अपना आहार समझकर स्वीकार करना, मेरा नियम है। ब्रह्मदेव ने दिन के छठे प्रहर इस लड़के को भेजा है। मैं इसे क्यों छोड़ दूँ?"
पार्वती ने विनती की- "तुम इसे छोड़ दो। बदले में जो तुम्हें चाहिये वह तुम मुझसे कहो।"
मगरमच्छ बोला- "एक ही शर्त पर मैं इसे छोड़ सकता हूँ। आपने तप करके महादेव से जो वरदान लिया, यदि उस तप का फल मुझे दे दें, तो मैं इसे छोड़ दूँगा।"
पार्वती तैयार हो गईं। उन्होंने कहा- "मैं अपने तप का फल तुम्हें देने को तैयार हूँ, लेकिन तुम इस बालक को छोड़ दो।"
मगरमच्छ ने समझाया- "सोच लो देवी, भावावेश में आकर संकल्प मत करो। हजारों वर्षों तक जैसा तप किया है, वह देवताओं के लिये भी सम्भव नहीं। उसका समस्त फल इस बालक के प्राणों के बदले चला जायेगा।"
पार्वती ने कहा- "मेरा निश्चय पक्का है। मैं तुम्हें अपने तप का फल देती हूँ। तुम इसको जीवनदान दे दो।"
मगरमच्छ ने पार्वती से तपदान करने का संकल्प करवाया। तप का दान होते ही मगरमच्छ की देह तेज से चमकने लगी।
मगर बोला- "हे पार्वती, देखो तप के प्रभाव से मैं तेजस्वी बन गया हूँ। तुमने जीवन भर की पूँजी एक बच्चे के लिये व्यर्थ कर दी। चाहो तो तुम्हें भूल सुधारने का एक और मौका दे सकता हूँ।"
पार्वती ने कहा- "हे ग्राह! तप तो मैं पुनः कर सकती हूँ, किन्तु यदि तुम इस लड़के को निगल जाते, तो क्या इसका जीवन वापस मिल जाता?"
देखते ही देखते वह लड़का अदृश्य हो गया। मगरमच्छ लुप्त हो गया।
पार्वती ने विचार किया- मैंने तप तो दान कर दिया है। अब पुनः तप आरम्भ करती हूँ। पार्वती ने फिर से तप करने का संकल्प लिया।
भगवान सदाशिव फिर से प्रकट होकर बोले- "पार्वती, भला अब क्यों तप कर रही हो?"
पार्वती ने कहा- "प्रभु! मैंने अपने तप का फल दान कर दिया है। आपको पति रूप में पाने के संकल्प के लिये मैं फिर से वैसा ही घोर तप कर आपको प्रसन्न करूँगी।"
महादेव बोले- "मगरमच्छ और लड़के, दोनों रूपों में मैं ही था। तुम्हारा चित्त प्राणिमात्र में अपने सुख-दुख का अनुभव करता है या नहीं, इसी की परीक्षा लेने को मैंने यह लीला रची। अनेक रूपों में दिखने वाला मैं एक ही हूँ। मैं अनेक शरीरों में, शरीरों से अलग निर्विकार हूँ। तुमने अपना तप मुझे ही दिया है, इसलिये अब और तप करने की आवश्यकता नहीं है।"
देवी ने महादेव को प्रणाम कर प्रसन्न मन से विदा किया।।
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