आखिर कब थमेगा शहादत का यह अतिक्रूर कालक्रम??
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आज का युग अत्याधुनिक सैन्य प्रौद्योगिकी, टोही घातक विमानों व कृत्रिम बुद्धिमत्ता का है तो क्यों हम बिना पूर्व परिस्थिति अवलोकन के अपने सैनिकों को सीधे विध्वंसक सामरिक कार्यवाहियों में झोंक कर अवाँछित जोखिम मोल नहीं ले रहे हैं जिसके परिणामस्वरूप हमें एक-दो आतंकियों के बदले पाँच-छह शूरवीर गँवाने पड़ रहे हैं। हम ऐसा उपक्रम क्यों नहीं करते कि क्षेत्र विशेष में सैनिकों के अवतरण से पूर्व ही स्टील्थ ड्रोन या रोबो वॉरियर्स के अनुप्रयोग से ऑपरेशन के अधिकांश भाग को निर्णायक अंजाम तक पहुँचा दिया जाये, तत्पश्चात् आवश्यकता पड़ने पर ही सैनिकों को प्रभावित क्षेत्र में प्रत्यक्ष रूप से भेजा जाये। एक महाशक्ति देश जब हजारों कोस दूर बैठे-बैठे अन्य देश के शीर्ष सैन्य कमाण्डर को अपने अति उन्नत शक्तिशाली ड्रोन के वार से यमलोक भेज सकता है तो क्या हम अपने सपूतों व उनके परिजनों को उनके अनमोल अस्तित्व के प्रति अभयदान प्रदान करने की दिशा में सार्थक उद्यम भी नहीं कर सकते?? क्या हमारे धरती के लालों के प्राण हमारे लिये इतने अल्पमूल्य हैं?? यदि नहीं तो उच्च अंतर्राष्ट्रीय मानदण्डों के अनुगमन के साथ ही अत्याधुनिक विश्वस्तरीय रणनीति से भी कई कदम आगे बढ़कर तत्काल असाधारण विचारधारा व कर्मठता अपनाने की नितान्त आवश्यकता है।
शहादतों के इस क्रूर सिलसिले को थामने के लिये सम्भवतः निम्न उपाय कारगर सिद्ध हो सकते हैं-
1. तकनीक एवम् प्रौद्योगिकी के मामले में सेना को पर्याप्त स्वायत्तता प्रदान करते हुये कृत्रिम बुद्धिमत्ता से संचालित शक्तिशाली टोही विमानों, रोबो योद्धाओं, वाहनों आदि आवश्यक संसाधनों से यथाशीघ्र सुसज्जित किया जाये।
2. प्रथम सुझाव पर अमल करना सत्ताधीशों को दुष्कर जान पड़ता हो तो नापाक पड़ोसियों को बाद में पाठ पढ़ाने की सोचें, उससे पहले गृहशोधन अभियान के तहत घर के भेदियों का चुन-चुनकर समूल विनाश सुनिश्चित करें।
3. निर्रथक हो चुकी मौजूदा शिक्षा प्रणाली का जीर्णोद्धार करते हुये प्राथमिक स्तर से ही समृद्ध नैतिक व मानवीय मूल्यों की छत्रछाया में मात्र सैद्धांतिक शिक्षा के स्थान पर शोध एवम् अनुसन्धान आधारित शिक्षा को सर्वोच्च ध्येय निर्धारित कर क्रियान्वित किया जाये ताकि हर ड्योढ़ी से कम से कम एक नवोन्मेषी व नवाचारी पुरोधा राष्ट्रसेवा में समर्पित हो सके।।
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