ऑस्ट्रेलिया में उग्र रूप धारण कर चुकी भीषण अग्नि जलवायु परिवर्तन का निर्मम दृष्टान्त तो है ही, यह समस्त विश्व के लिये कठोर सबक भी है कि पर्यावरण की अनदेखी का निष्कर्ष भयावह भी हो सकता है!!
ऑस्ट्रेलिया के स्थानीय मार्गों पर चहुँ ओर ऐसे पोस्टर लगे हुये हैं, जिसमें प्रधानमंत्री सकॉट मॉरिसन को वन्य वेशभूषा में प्रदर्शित किया गया है:उनके शीश पर पुष्पों का मुकुट था, तो सागर के नील वर्ण जैसी उनकी कमीज़ कॉलर के समीप खुली हुई थी। पोस्टर के निकट से गुजरने वाले लोग चीख रहे थे, 'आप यहाँ नहीं थे??!! आपके देश में आग लगी हुई है।' संकेत काफी स्पष्ट था। वस्तुतः ऑस्ट्रेलिया के वनों में भीषण अग्नि पनपने के मध्य प्रधानमंत्री विगत माह जिस प्रकार अवकाश व्यतीत करने हवाई द्वीप गये हुये थे जिसे उन्होंने गुप्त रखा, जिस पर उनकी तीव्र आलोचना भी हुई है।
तथा ऐसा भी नहीं है कि प्रधानमंत्री के विरुद्ध आवाज़ किसी एक स्थान पर उठी है। उन पर लोगों का क्रोध मात्र इसलिये नहीं है कि अग्नि नियंत्रित करने के प्रकरण में वह अति प्रभावी एवम् सफल नहीं दिखे, अपितु उनके प्रति लोगों में निराशा इसलिये भी अधिक है, क्योंकि उन्होंने इस तर्क को ही अस्वीकृत कर दिया कि यह विभीषिका जलवायु परिवर्तन का ही परिणाम है। जबकि अधिकांश का मत है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ही ऑस्ट्रेलियाई वनों में पनपी यह ज्वाला इतनी भीषण है।
दावानल के पर्वतों से सागर तट की ओर विस्तृत होने के कारण सप्ताहांत में जब हजारों नागरिक पूर्वी ऑस्ट्रेलिया के नगरों से पलायन को बाध्य थे, तब दो कारण उनकी त्रासदी को अधिक घनीभूत कर रहे थे- प्रथम पृथ्वी के निरन्तर गर्म होने की वास्तविकता से अब मुख नहीं फेरा जा सकता, तथा द्वितीय शासकों की अकर्मण्यता मौजूदा स्थिति को और भी भयावह बना सकती है। आश्चर्य तो इस बात पर है कि विगत वर्ष ऑस्ट्रेलिया का सर्वाधिक गर्म व शुष्क वर्ष रहा है, इसके बावजूद प्रधानमंत्री मॉरिसन वर्तमान स्थिति का जलवायु परिवर्तन से किसी भी सम्बन्ध का खण्डन करते हैं। जब पर्यावरणविदों उनके समक्ष कोयला खदानों को बन्द करने का प्रस्ताव रखा, तो उन्होंने इसका उपहास उड़ाया। पर्यावरण पर ध्यान केंद्रित करने के स्थान पर मॉरिसन ने आर्थिक हितों एवम् उद्योग-व्यापार से सम्बन्धित उस शक्तिशाली लॉबी को प्राथमिकता दी, जो उनके प्रति निष्ठावान है। उन्होंने हरितगृह वायुमिश्रण उत्सर्जित करने वाली कम्पनियों पर अधिक करारोपण या उत्सर्जन न्यून करने के प्रस्तावों का बी विरोध किया। जबकि बहुसंख्यक ऑस्ट्रेलियाई कहते आये हैं कि उत्सर्जन के विरुद्ध शासन को सख्त प्रवृत्ति प्रयुक्त करनी चाहिये।
चौबीस लोगों के असमय काल के गाल में समा जाने, सैंकड़ों घरों के जलकर राख हो जाने व 1.2 करोड़ एकड़ से भी अधिक क्षेत्रफल के, जो डेनमार्क के कुल क्षेत्रफल से अधिक है, दावानल की चपेट में आने के बावजूद मॉरिसन ने अपनी नीति में किसी प्रकार के परिवर्तन का संकेत नहीं दिया है।
क्लाइमेट एनालिटिक्स के निदेशक बिल हेयर कहते हैं, 'वर्तमान स्थिति में जो चीज सबसे अधिक अखरती है, वह है संघीय सत्ता की निष्क्रियता और चुनौती के समय सक्रिय न होना। लोग समझ ही नहीं पा रहे हैं कि वे क्या करें।'
सप्ताहांत में जब स्थिति और भी विकृत हो गयी, तब मॉरिसन ने अपनी सरकार के निर्णयों को सही ठहराते हुये सेना को इसमें झोंक देने का निर्णय लिया। सेना की सक्रियता से सम्बन्धित वीडियो भी उन्होंने सोशल मीडिया पर साझा किया, जिस कारण उनकी आलोचना ही हुई। उन्होंने इस बात से भी इंकार किया कि उनकी सरकार ने ऑस्ट्रेलिया के बदलते मौसम को जलवायु परिवर्तन का परिणाम नहीं माना है। उनका यह भी कहना था कि भीषण दावानल के मध्य लोगों जिस प्रकार उन्हें निशाने पर लिया है, इससे उन्हें कोई अन्तर नहीं पड़ता। यह समय मिल-जुलकर चुनौती से निपटने का है, आरोप प्रत्यारोप का नहीं।
वस्तुतः विगत नवम्बर दावानल जब अपने प्रारम्भिक चरण में थी, तभी लोग सरकार से कदम उठाने का अनुरोध कर रहे थे, क्योंकि अग्नि जिस तीव्रता से प्रसारित हुई, वह अभूतपूर्व थी।
और चूँकि शासन स्तर पर कोई तत्परता नहीं थी, इसलिये लोगों में सन्त्रास उपजा। दावानल के विशेषज्ञ जिम मैक्लेनन के अनुसार, इस बार देश की जिन क्षेत्रों में अग्नि पनपी, उनमें से अनेक क्षेत्र ऐसे हैं, जहाँ दावानल का इतिहास नहीं है। वैज्ञानिकों का कथन है कि इस बार की त्रासदी उपरान्त ग्रामीण क्षेत्रों से भारी संख्या में लोग नगरों को पलायन करेंगे।
वनाग्नि जब उपनगरीय इलाकों और समुद्रतटीय क्षेत्रों में प्रसारित होने लगी, तो मॉरिसन के लिये चुनौतियाँ बढ़ गईं। उन्होंने छायाचित्र साझा कर या लोगों से आग्रह कर, जो कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की शैली है, लोगों का क्रोध शान्त करने का प्रयास किया। यही नहीं, जलवायु परिवर्तन को गम्भीरतापूर्वक लेने की बात करने वालों को उन्होंने ऐसा दम्भी समूह करार दिया, जो देश के बहुसंख्यक लोगों के मध्य अपनी इच्छा थोपना चाहता है। नववर्ष में उन्होंने समस्त समाचार पत्रों को सन्देश दिया, जिसमें कहा गया कि ऑस्ट्रेलिया कभी भी बाह्य देशों के दबाव से विचलित नहीं होता।
जबकि सत्यता यह है कि अग्नि से निपटने के लिये सेना का अवतरण अथवा राष्ट्रीय आपातकाल घोषित करने के प्रस्तावों पर मॉरिसन ने कई माह तक न केवल चुप्पी साधे रखी। अपितु तब उनका यह कथन था कि दावानल से निपटना समन्धित राज्यों का उत्तरदायित्व है। किन्तु गत शनिवार को उन्होंने रुख बदला और सेना के अवतरण के साथ-साथ राहत कार्य के लिये विमानों की तैनाती का भी निर्णय लिया।
नववर्ष के एक समाचार पत्र में प्रभावित लोगों द्वारा अपने खाक़ हो चुके घरों को निहारने की तस्वीर मुद्रित हुई तो उसी पत्र में मॉरिसन की सिडनी में ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम की मेजबानी करती हुई एक तस्वीर भी छपी। अपने रवैये के लिये मॉरिसन को सोशल मीडिया पर परिहास व विरोध का पात्र भी बनना पड़ा। ऑस्ट्रेलिया स्थित लोवी इंस्टीट्यूट के डेनियल फि्लटन कहते हैं, 'मॉरिसन का रवैया उन्हें 2005 में अमेरिका में आये कटरीना तूफान के दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के रुख का स्मरण कराता है। मॉरिसन लोगों के कष्टों और क्षोभ को भाँपने में असमर्थ रहे। वह जब तक प्रधानमंत्री कार्यालय में रहेंगे, यह विफलता उनका पीछा करती रहेगी।'
✨ग्रेटा थनबर्ग का वक्तव्य✨
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ग्रेटा का कहना है, "ऑस्ट्रेलिया दावानल से जूझ रहा है।
इस सबके परिणामस्वरूप अब तक कोई राजनैतिक कार्यवाही नहीं हुई है। क्योंकि हम अभी तक ऑस्ट्रेलियाई दावानल जैसी प्राकृतिक आपदाओं तथा वर्धित चरम मौसम सम्बन्धी घटनाओं एवम् जलवायु संकट के मध्य सम्बन्ध स्थापित करने में विफल रहे हैं। जिसे बदलने की आवश्यकता है और इसे अभी से ही बदलना होगा। मेरे विचार ऑस्ट्रेलियाई जनता तथा उन सभी के साथ हैं जो इन विध्वंसक ज्वालाओं से त्रस्त हैं।"
📰🗞️स्रोत-विविध दैनिक आंग्ल व हिंदी पत्र🗞️📰
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