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Friday, April 3, 2020

विषाणु जगत के समक्ष असहाय विज्ञान

वायरस जगत के समक्ष लाचार विज्ञान


🔳विषाणु-मण्डल: 250 विषाणु प्रजातियाँ ही मानव पर आक्रामक।

🔳7 हजार प्रजातियों की ही हो सकी है पहचान, 10 खरब की खोज लम्बित।





विगत दो दशकों में सार्स, मर्स, इबोला, निपाह के बाद अब कोरोना वायरस ने संसार को झकझोर कर रख दिया है। एक के बाद एक सामने आ रहे भयानक विषाणुओं ने वैज्ञानिकों के हाथ भी बाँध दिये है। सम्भवतः पृथ्वी पर लगभग 10 खरब ऐसे वायरस हैं जिनके नाम तक हमें ज्ञात नहीं है। सिडनी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का कथन है कि अभी तक इस विविध विष्णुमण्डल की लगभग सात हजार प्रजातियों के प्रतिदर्श ही जुटाये जा सके हैं। 
दुनिया सबसे भयानक वायरसों में सम्मिलित इबोला और कोविड-19 पर शोधरत प्रसिद्ध वैज्ञानिक फोर्ट डायट्रिक का कथन है कि विषाणुओं के विषय में बहुत कुछ खोजा जाना शेष है।


🔳100 वर्ष पूर्व भी मास्क व सामाजिक दूरी➡️

1918 में स्पेन से प्रसारित फ्लू के समय भी परिस्थितियाँँ वर्तमानकाल जैसे ही थे। जनमानस का मास्क धारण करना अनिवार्य कर दिया गया था तथा सामाजिक दूरी का अनुपालन सुनिश्चित किया जा रहा था। विश्वभर में लगभग 5 करोड़ मनुष्यों ने अपने प्राण गवाँ दिये। 15 माह की अवधि में मात्र भारत में ही 1.8 करोड़ नागरिक काल-कवलित हो गये।


🔳6828 प्रजातियों का ही नामकरण➡️

17वीं सदी के अन्त में विषाणुओं की खोज के पश्चात् यह तथ्य ज्ञात हुआ कि रेबीज व इन्फ्लूएंजा जैसे रोगों के कारक ये विषाणु ही थे। दशकों के परिश्रम उपरान्त भी 6828 प्रजातियों का ही नामकरण हो सका है। तथापि इसके सापेक्ष कितविज्ञानशास्त्रियों ने कीटों की 380000 प्रजातियों का नामकरण करने में सफलता प्राप्त की है।

🔳सागर में 15 हजार विषाणु➡️

हाल के वर्षों में वैज्ञानिक वायरस के सैंपल में जेनेटिक पदार्थ एवम् उन्नत कम्प्यूटर प्रोग्राम के माध्यम से जीन ज्ञात करते है। अमेरिका के ओहियो विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ मैथ्यू सुलिवैन व उनके साथियों ने 2016 में सागर के भीतर 15 हजार से अधिक विषाणुओं की पहचान की। उन्होंने दो लाख नये वायरस ढूँढे़।


🔳कोरोना की हैं 39 प्रजातियाँ➡️

कोरोना वायरस की 39 प्रजातियों की पहचान की जा चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चीन की खोज के बाद मौजूदा महामारी को 'कोरोनावायरस डिजीज 2019' या 'कोविड-19' नाम दिया। इस वायरस में व सार्स में आनुवंशिक समानतायें हैं। मार्च में 'इंटरनेशनल कमिटी ऑन टैक्सोनॉमी ऑफ वायरसेज' ने कहा कि ये दोनों वायरस एक ही प्रजाति से हैं। सार्स के प्रसार को उत्तरदायी वायरस को सार्स-कोव के रूप में जाना जाता है इसलिये कोविड-19 को सार्स-कोव-2 भी कहा जा रहा है।


🔳पशुओं-पौधों को करोड़ों वायरस करते हैं प्रभावित➡️

वैज्ञानिकों के मतानुसार, अब तक विषाणुओं की 250 प्रजातियों ने ही मानव देह को अपना होस्ट चुना है। अर्थात् वायरोस्फीयर में अत्यन्त लघु अंश ही मनुष्य को संक्रमित करता है। विशेषयज्ञों का कथन है कि पशुओं, पौधों, कवक एवम् प्रोटोजोआ को प्रभावित करने वाले विषाणुओं की संख्या करोड़ों में है।


🔳जीन की अदला-बदली से पहचान कठिन➡️

वायरोस्फीयर में मौजूद प्रजातियों के वर्ग का पता लगाना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है। वायरस अन्य प्रजातियों के साथ जीन आदान-प्रदान कर लेते हैं, जिससे इनके समूहों में स्पष्ट अन्तर करना दुष्कर हो जाता है। इस वर्ष फरवरी में पाया गया कि एक झील में मिले वायरस की 74 जीन्स में से 68 इससे पहले किसी भी वायरस में नहीं मिलीं।।


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Friday, March 27, 2020

सामाजिक दूरी उल्लंघन के सम्भावित दुष्प्रभाव

शारीरिक दूरी उल्लंघन के सम्भावित दुष्प्रभाव


🔴सामाजिक दूरी नहीं रखी तो मई तक 13 लाख तक हो सकते हैं कोरोना के मामले।

🔴30,000 से 2,30,000 के मध्य रोगियों की संख्या हो सकती है अप्रैल के अंत तक।




देश में कोरोना वायरस के प्रकरण जिस द्रुतगति से बढ़ रहे हैं, उसके आधार पर मई तक यह आँकड़ा 10 से 13 लाख के मध्य पहुँच सकता है। यह अनुमान अमेरिकी वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा लगाया गया है। अध्ययन के अनुसार यदि सामाजिक दूरी जैसे उपायों को गम्भीरतापूर्वक नहीं लिया गया तो अप्रैल के अंत तक रोगियों की संख्या 30,000 से 2,30,000 के मध्य हो सकती है।
वैज्ञानिकों ने कहा कि अमेरिका और इटली की तुलना में महामारी से निपटने के लिये भारत अच्छा काम कर रहा है। इसका प्रसार रोकने के लिये सख्त प्रबन्ध एवम् उपाय किये जा रहे हैं। मिशिगन विश्विद्यालय में बायोस्टैटिस्टिक्स और महामारी विज्ञान के प्रो. भ्रामर मुखर्जी व जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के देबाश्री रे भी अध्ययन में सहभागी थे। उन्होंने कहा, यदि वायरस के मामले ऐसे ही बढ़ते रहे तो स्थिति पीड़ाजनक हो सकती है। मौजूदा अनुमान देश में आरम्भिक चरण के आँकड़ों के क्रम में है, जो कि कम परीक्षणों के कारण है।


🔳जटिल स्थिति➡️


◼️अधूरी तैयारी.....प्रति एक हजार पर 0.7 बिस्तर➡️

भारत में स्वास्थ्य तंत्र इस महामारी से लड़ने में अभी पूर्णतः सक्षम नहीं है। भारत में प्रति 1000 व्यक्तियों पर अस्पताल के बेड की संख्या मात्र 0.7 है। वहीं फ्रांस में यह 6.5, दक्षिण कोरिया में 11.5, चीन में 4.2, इटली में 3.4, ब्रिटेन में 2.9, अमेरिका में 2.8 और ईरान में 1.5 है।


◼️जाँच दर कम, कम मामले आ रहे सामने➡️

अध्ययन कोविड इण्डिया-19 स्टडी समूह के वैज्ञानिकों ने किया है। समूह यह पता लगा रहा था भारत में इस महामारी का खतरा कितना बड़ा है। समूह में सम्मिलित डाटा वैज्ञानिकों के अनुसार भारत में जाँच दर बहुत कम है। 18 मार्च को देश में कोरोना टेस्ट के लिये 11,500 सैंपल मिले। इससे समझा जा सकता है कि जाँच के लिये लोग सामने नहीं आ रहे हैं। भारत की तुलना में बहुत कम आबादी के दक्षिण कोरिया में 2 लाख 70 हजार व्यक्तियों का परीक्षण हो चुका है।


◼️अमेरिका-इटली में अकस्मात् बढ़े मामले➡️

अब तक कोविड-19 की वैक्सीन विकसित नहीं हुई है, न ही दवा बन सकी है। ऐसे में यदि कोरोना भारत में तृतीय चरण में पहुँचा तो परिणाम विध्वंसक होंगे। वैज्ञानिकों के अनुसार अमेरिका या इटली में भी कोविड-19 का प्रसार धीरे-धीरे ही हुआ, फिर अकस्मात् तीव्रता से मामले बढ़े।।



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Thursday, March 26, 2020

कब-कब और क्यों अवरुद्ध हुये ओलम्पिक?

कब-कब और क्यों स्थगित हुये ओलिम्पिक??


🏟️इतिहास में पहली बार टले ओलम्पिक।


🏟️अब टोक्यो-2020 ओलम्पिक का आयोजन अगले वर्ष ग्रीष्मकाल से पहले किया जायेगा।




🏟️124 वर्ष में पहली बार ऐसा हुआ जब आधुनिक ओलम्पिक खेलों को विलम्ब से कराने का निर्णय लिया गया।


🏟️पहले तीन बार निरस्त हो चुके हैं लेकिन कभी स्थगित नहीं हुये➡️


1916- बर्लिन में प्रथम विश्वयुद्ध के कारण रदद् किये गये थे।

1940- टोक्यो में द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण रदद् किये गये।

1944- लन्दन ओलम्पिक भी द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण नहीं             हो सके।

*1972- म्यूनिख ओलम्पिक में आतंकियों ने 11 इस्राइल                   एथलीटों और एक पुलिस अधिकारी की हत्या कर                 दी थी। तब 24 घण्टे के लिये खेल स्थगित हुये थे।


🏟️दो बार शीतकालीन ओलम्पिक हुये रदद्➡️

1940 में सैपोरा तथा 1944 में कोर्टिना डी एम्पेजो में होने वाले शीतकालीन ओलम्पिक खेलों को द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण रदद् किया गया था।


🏟️ अब टोक्यो ओलम्पिक 2020➡️

कोविड-19 महामारी के प्रकोप के चलते 24 जुलाई 2020 से 09 अगस्त 2020 के मध्य होने वाले टोक्यो ओलम्पिक को अगले वर्ष गर्मियों तक के लिये स्थगित कर दिया गया है। अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति (IOC) और मेजबान जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने एकमत से खेल महाकुम्भ को एक वर्ष के लिये टालने का निर्णय लिया।
अभी नई तिथियाँ तय नहीं की गई हैं। इन खेलों को टोक्यों 2020 के नाम से ही जाना जायेगा। पैरालम्पिक खेल भी अगले वर्ष ही हो सकेंगे। शान्तिकाल में पहली बार इन खेलों को स्थगित किया गया है।


🏟️विरोध करने वाले देश एवम् संगठन➡️

🔘कनाडा पहला देश था जिसने कहा था कि खेल जुलाई में हुये तो वह प्रतिभाग नहीं करेगा।
🔘ऑस्ट्रेलिया ने तो अपने खिलाड़ियों को अगले वर्ष को ही लक्षित कर तैयारियाँ करने के लिये कह दिया था।
🔘अमेरिका, ब्रिटेन, न्यूजीलैंड, ब्राजील, स्लोवानिया, सर्बिया, क्रोशिया की ओलम्पिक समितियों ने भी खेल स्थगित करने की माँग की थी।
🔘यूएस ट्रैक एण्ड फील्ड, तैराकी महासंघ, जिम्नास्टिक व फ्रान्स तैराकी महासंघ भी आयोजन के विरुद्ध थे।।


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Wednesday, March 25, 2020

मृदा पात्रों का प्रयोग, रखे काया निरोग

मृदा पात्रों का प्रयोग, रखे काया निरोग


विगत काल पुनः दस्तक दे रहा है जिसके साथ मृदा निर्मित पात्रों के प्रति रुचि एवम् जिज्ञासा भी उभर रही है। पहले जहाँ प्रदर्शनियों में इन पात्रों के दर्शन एवम् क्रय अवसर सुलभ थे, वहीं अब इन्हें निर्दिष्ट विक्रय केन्द्रों अथवा ऑनलाइन विक्रय मंचों से क्रय किया जा सकता है।





वर्तमान जीवनशैली से ऊबकर मनुष्य पुनः प्राचीन विवेकशील प्रथा का अनुगमन कर रहा है, जहाँ खानपान की प्रवृत्तियाँ उत्तम थीं तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्यायें कम। हम प्रतिदिन प्रयासरत रहते हैं कि इस यांत्रिक जीवन में अपनी कुछ नियमित प्रवृत्तियों को परिष्कृत किया जा सके जिससे हमारा स्वास्थ्य स्थिर रहे। इन्हीं प्रयासों में से एक है मृदा पात्रों में भोजन निर्माण एवम् ग्रहण करना। हमारे देश में सहस्त्रों वर्षों से मृदा पात्रों का वर्चस्व रहा है, किन्तु दुर्भाग्यवश कालान्तर में यह नगण्य रह गया, तदोपरान्त विलुप्त ही हो गया। इनका स्थान काँसे, लौह, स्टील, एल्युमीनियम तथा नॉन-स्टिक पात्रों ने ग्रहण कर लिया किन्तु विगत कुछ समय से मृदा पात्र पुनः ख्याति अर्जित कर रहे हैं एवम् विपणि (बाजार) में इनकी माँग पुनर्जीवित हो चुकी है।


🏺लोकप्रियता का कारण🏺

माटी के उत्पादों की साफ-सफाई अत्यन्त सरल है जिसके लिये आपको किसी रासायनिक साबुन, पाउडर या लिक्विड की आवश्यकता नहीं। इन उत्पादों को मात्र गर्म पानी से धो सकते हैं। ग्रीष्म कालीन झुलसाती धूप में घड़े का प्राकृतिक शीतल जल न केवल प्यास बुझाता है अपितु आत्मा को भी तृप्त कर देता है। माटी के पात्रों से प्राप्त होने वाले अप्रत्याशित लाभों को विज्ञान भी मान्यता प्रदान कर चुका है कि कैसे इनके नियमित प्रयोग से अनेक विकारों से सुरक्षा सम्भव है। मृदा में कई गुणकारी खनिज तत्व जैसे जिंक, मैग्नीशियम, लौह आदि समाविष्ट होते हैं जो विभिन्न पात्रों के प्रयोग के दौरान हमारी काया में प्रवेशित हो पोषण में मुख्य भूमिका निभाते हैं।
🏺मृदा पात्रों में भोजन निर्माण से पौष्टिकता बरकरार रहती है, माटी में समाहित जिंक, मैग्नीशियम व लौह तत्व आदि भोजन की पौष्टिकता बढ़ा देते हैं जबकि धातु पात्रों में भोजन निर्माण से उसके रसायन शनैःशनैः भोजन की पौष्टिकता को समाप्त कर देते हैं।
🏺मृदा पात्रों में भोजन अधिक स्वादिष्ट बनता है। एक तो उसका मूल स्वाद विकृत नहीं होता, दूसरा माटी की सोंधी खुशबू भोजन का स्वाद और भी बढ़ा देती है।
🏺मृदा पात्रों में गर्म भोजन देर तक गर्म बना रहता है जबकि ठण्डा भोजन देर तक ठण्डा ही रहता है। माटी का तापक्रम भोजन के टॉपमान को भी कायम रखता है।
🏺स्टील, नॉन स्टिक, एल्युमीनियम के पात्रों में मौजूद रसायन भोजन में मिलकर उसे शीघ्र दूषित कर सकते हैं जबकि माटी के पात्रों में भोजन दीर्घ अवधि तक शुद्ध बना रहता है।
🏺माटी के पात्र पर्यावरण अनुकूल एवम् सुरक्षित हैं।
🏺माटी के पात्रों में भोजन निर्माण हेतु कम घी-तेल की आवश्यकता होती है। पात्र की अपनी आर्द्रता भोजन निर्माण में सहायक सिद्ध होती है।
🏺माटी के पात्रों में मन्द आँच पर भोजन निर्माण होता है, जिससे न केवल भोजन का स्वाद बढ़ता, अपितु वह समुचित ढंग से निर्मित होने के कारण स्वास्थ्य के दृष्टि से भी लाभकारी होता है।

विगत लगभग पाँच वर्षों में मृदा पात्रों की लोकप्रियता में आश्चर्यजनक उछाल आया है। इस लोकप्रियता ने मृदा पात्रों की माँग एवम् व्यवसायीकरण में भी वृद्धि की है। पहले कुम्हारों के करकमलों द्वारा निर्मित होने वाले मृदा के यह पात्र अब वृहद स्तर पर कारखानों में यंत्रों से भी बन रहे हैं। हस्तनिर्मित मृदा पात्रों को कुम्हार चाक पर रचते थे तत्पश्चात् उन्हें दीर्घ अवधि तक भट्टी में तपाया जाता था। भट्टी में तपाने की प्रक्रिया पात्रों को सुदृढ़ता प्रदान करती थी। अब कारखानों में पूर्वनिर्मित साँचों में मृदा मात्र बनाये जाते हैं और उनकी तापक्रिया भी यंत्रों द्वारा ही सम्पादित होती है। हस्तनिर्मित पात्रों की अपेक्षा यन्त्र निर्मित पात्र दिखने में कुछ अधिक आकर्षक हो सकते हैं, किन्तु दोनों ही प्रकार के पात्रों की फिनिशिंग उत्कृष्ट होती है। समय के साथ वर्धित माँग के कारण वृहद स्तर पर मृदा पात्रों के निर्माण का कार्य प्रारम्भ हुआ। पहले जहाँ समय-समय पर आयोजित मेलों व प्रदर्शनियों में इन पात्रों के अवलोकन एवम् क्रय का सुअवसर प्राप्त होता था, वहीं अब निर्दिष्ट विक्रय केन्द्रों से भी इन्हें क्रय किया जा सकता है। इनकी विस्तृत होती माँग ने ही पात्रों की विविधता को भी समृद्ध किया है। पहले जहाँ मात्र मृदा निर्मित हाँडी व मटके ही प्रचलित थे, वहीं अब ऐसा कोई पात्र नहीं जिसकी मृदा आधारित संरचना असम्भव हो। कटोरी, प्लेट, कड़ाही, तवा, चम्मच, गिलास, फ्राई पैन, जग, बोतल, कुकर और यहाँ तक कि मृदा के फ्रिजों का भी उत्पादन होने लगा है। दीपावली जैसे विशिष्ट अवसरों पर तो मृदा पात्रों के विविध स्वरूप देखे गये हैं। अब तो यह पात्र ऑनलाइन भी सरलतापूर्वक उपलब्ध हैं। ऑनलाइन मंचों पर तो यह बहुविध रंग-रूपों व आकर्षक कलेवर में मिल रहे हैं। टैराकोटा मृदा का ही एक रूप है और इसी नाम से इसका बहुधा ऑनलाइन विक्रय होता है। यदि मूल्यों की बात की जाये तो मृदा पात्र अपने उपयोग के सापेक्ष किफायती ही सिद्ध होते हैं, किन्तु हमारा यह समझना भी नादानी है कि माटी निर्मित होने के कारण इनका मोल भी माटी सदृश होगा क्योंकि ऐसा कदापि नहीं है। तीन हाँडी के सेट का मूल्य एक से डेढ़ हजार रुपये तक हो सकता है। हैंडल वाला तवा 200 से 300 रुपये तक का हो सकता है। ऑनलाइन आपको विभिन्न पात्रों के समेकित सेट भी मिल जायेंगे जिनमें दो बड़ी कटोरी, प्लेट, चम्मच, एक छोटी कटोरी व गिलास आदि होते हैं। ऐसे सेट का मूल्य 1100 से 1300 रुपये तक हो सकता है। बाजार में आपको मटका सम्भवतः 100-150 रुपये में मिल जाये, किन्तु टोंटी युक्त वॉटर पॉट क्रय करने में 1500 से 1800 रुपये तक व्यय करने पड़ सकते हैं। कुकर का मूल्य भी 1700 से 2000 रुपये तक होता है। इन दिनों विशेष लोकप्रियता बटोर रहा माटी का फ्रिज तीन से चार हजार रुपये तक के मूल्य में उपलब्ध है। वैसे इन पात्रों को अल्पमूल्य तो नहीं कहा जा सकता, किन्तु यहाँ यह तथ्य भी विचारणीय है कि हस्तनिर्मित वस्तुयें अथक परिश्रम का परिणाम होती हैं, अतैव मूल्यवान प्रतीत होती हैं। यद्यपि कारखानों में निर्मित पात्रों का मूल्य कुछ कम हो सकता है, तथापि वे हस्तनिर्मित उत्पादों से प्रतिस्पर्धा में उन्नीस ही सिद्ध होते हैं।
गैर-सरकारी संस्था 'माटी-सृजन' इस पारम्परिक कला को संजोने का सराहनीय कार्य कर रही है। यह संस्था अभिलाषी जनों को मृदा पात्र बनाना भी सिखाती है तथा समय-समय पर कार्यशाला का आयोजन कर इसके विषय में जागरूक भी करती है। संस्था की संस्थापक मीनाक्षी राजेन्द्र का कहना है गत कुछ वर्षों में माटी के पात्रों के प्रति जनमानस का झुकाव एक उत्कृष्ट परिवर्तन का द्योतक है। वह कहती हैं, "इस रुचि का कारण कुछ भी हो, किन्तु अपने स्वास्थ्य को लेकर यह सजगता सुखद है। धातु निर्मित पात्र हमें क्या-क्या हानि पहुँचाते हैं, यह कल्पनातीत है। मृदा पात्रों में भोजन निर्माण एवम् ग्रहण क्रिया हमें कई समस्याओं से दूर रखती है।" हस्तनिर्मित पात्रों व कारखाने में निर्मित पात्रों के मध्य अन्तर के विषय में वे कहती हैं, "सामान्यतः देखकर तो अन्तर करना कठिन है, किन्तु फैक्ट्री निर्मित उत्पाद प्रायः काफी भारी होते हैं, जबकि हस्तनिर्मित उत्पाद हल्के।"
जहाँ तक पात्रों के रख-रखाव का विषय है, तो मृदा पात्रों की गुणवत्ता, दृढ़ता या भंगुरता, इस तथ्य पर निर्भर करती है कि उन्हें कितने तापमान पर तैयार किया गया है। ऐसे पात्रों के निर्माण के समय तापमान अति महत्वपूर्ण कारक है। जब कुम्हार हस्तनिर्मित उत्पादों का निर्माण करते हैं तो वे तापमान का विशेष ध्यान रखते हैं, किन्तु कारखानों में अक्सर इस बात की अनदेखी कर दी जाती है जिसके फलस्वरूप पात्रों में दरार या टूटने जैसी शिकायतें उत्पन्न होती हैं।


🏺रखरखाव सम्बन्धी सावधानियाँँ🏺

🏺माटी के पात्रों का प्रयोग अधिक ताप के बजाय नियन्त्रित ताप पर ही अनुशंसित है।
🏺भंगुर होने के कारण इनके रखरखाव में अतिरिक्त सतर्कता अनिवार्य है।
🏺उचित स्वच्छता के अभाव में फफूँद ग्रस्त होने की आशंका रहती है जिसे धोने के लिये राख तथा नारियल की बाह्य छाल का प्रयोग सर्वथा उचित होता है।
🏺माटी के पात्रों को गर्म पानी से धोना आवश्यक होता है। चूँकि यह पात्र भोजन की तरलता को अवशोषित कर लेते हैं, अतः गर्म पानी द्वारा इनमें लगा तेल आदि निकल जाता है।
🏺यदि भलीभाँति न तपे हों तो माटी के पात्रों की भंगुरता का जोखिम बढ़ जाता है तथा गैस पर भोजन बनाते समय या जरा सा बलपूर्वक रखने-उठाने में टूट या चटक जाते हैं। अतः आवश्यक हो जाता है कि भट्टी में भलीभाँति तपे पात्रों का चयन ही बुद्धिमतापूर्वक किया जाये।
🏺मृदा पात्रों की बढ़ती माँग कहिये या जनमानस के मध्य इनकी लोकप्रियता, यह पात्र प्रायः सस्ते नहीं होते। एक-दो वर्षों पश्चात् इनमें दरारें पड़ जाना या रंग फीका पड़ना स्वाभाविक है जिस कारण एक-दो वर्ष के अन्तराल पर इन्हें बदलना ही तर्कसंगत है।।



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Tuesday, March 24, 2020

क्लोरोक्विन 'बनाम' कोरोना

क्लोरोक्वीन 'बनाम' कोरोना


हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन को नेशनल टास्क फोर्स का अनुमोदन प्राप्त हो चुका है किन्तु ध्यान देने योग्य बिन्दु यह है कि अधिकृत चिकित्सीय सुझाव के अभाव में इसका प्रयोग अवांछनीय है।




कोरोना से बचाव हेतु हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन दवा का प्रयोग कुछ प्रतिबन्धों सहित अनुशंसित किया गया है। इण्डियन कॉउन्सिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) द्वारा गठित 'नेशनल टास्क फोर्स फ़ॉर कोविड-19' ने सोमवार को इसकी घोषणा की।
टास्क फोर्स के अनुसार, यह दवा विशेषकर संक्रमित व संदिग्धों के उपचार में लिप्त चिकित्सकों एवम् अन्य स्वास्थ्यकर्मियों को दी जा सकती है। इसके अतिरिक्त पीड़ित के सम्पर्क में आ चुके व्यक्तियों को भी यह दवा दी जा सकती है। टास्क फोर्स को यह अनुमति ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इण्डिया से मिली है। आईसीएमआर ने यह भी स्पष्ट किया है बिना चिकित्सीय परामर्श के दवा का प्रयोग नहीं किया जा सकेगा।

⚠️चेतावनी- 15 वर्ष से कम आयु वालों के उपचार में नहीं होगी प्रयोग⚠️

15 वर्ष से कम आयु के बालक-बालिकाओं/अन्य को यह दवा नहीं दी जा सकती है। इसके अतिरिक्त जिन्हें रेटिनोपैथी तथा अन्य स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्यायें हैं उनके लिये भी यह दवा वर्जित है। दवा पंजीकृत चिकित्सक द्वारा जारी लिखित परामर्श के आधार पर ही प्रदान की जायेगी। संक्रमण के संदेह पर गाइडलाइन के आधार पर परीक्षण व उपचार कराने की अनुशंसा की गई है।

💊खुराक की मात्रा💊

🔘स्वास्थ्यकर्मियों हेतु:

आईसीएमआर के अनुसार संक्रमित व्यक्ति के उपचार में लिप्त स्टाफ को प्रथम दिवस 400 एमजी की खुराक दो बार लेनी है। तदोपरान्त आगामी सात सप्ताह तक प्रत्येक सप्ताह 400 एमजी की मात्र एक खुराक भोजन के साथ लेनी है।

🔘संक्रमित के सम्पर्क में आये व्यक्तियों हेतु:

संक्रमित व्यक्ति के परिजनों या उनके सम्पर्क में आये व्यक्तियों को प्रथम दिवस दो खुराक, तदोपरान्त तीन सप्ताह तक प्रत्येक सप्ताह 400 एमजी की मात्र एक खुराक भोजन के साथ लेनी है।।


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वनीला

वनीला


वनीला मूल रूप से अमेरिकी महाद्वीप की उपज है। यह दक्षिण पूर्वी मैक्सिको, ग्वाटेमाला तथा मध्य अमेरिका में पाया जाता है। वेस्टइंडीज में भी इसकी खेती की जाती है। वनीला ऑर्किड परिवार का सदस्य है। इसके पुष्प सुगन्धित होते हैं, जिनसे कैप्सूल के आकार के फल निकलते हैं। वनीला का सर्वाधिक उपयोग आइसक्रीम निर्माण में किया जाता है। इसके अतिरिक्त केक, शीतल पेय (कोल्ड ड्रिंक), इत्र (पर्फ्यूम) व अन्य सौन्दर्य प्रसाधनों में इसका उपयोग होता है। अखिल विश्व में जितनी आइसक्रीम का उत्पादन होता है, उसमें 40 प्रतिशत वनीला स्वादयुक्त (फ्लेवर्ड) होती हैं। भारत में यह दक्षिणी राज्यों में उगाया जाता है।




💮अपने स्वाद एवम् मनमोहक सुगन्ध के लिये वनीला जगतप्रसिद्ध है। इसका स्वाद हर आयुवर्ग के व्यक्ति को भाता है। आइसक्रीम और चॉकलेट के अतिरिक्त कई अन्य मिष्ठानों में इसका उपयोग किया जाता है।

💮वनीला में वनैलीन नामक रसायन पाया जाता है, जो देह में कोलेस्ट्रॉल को सन्तुलित करता है। इसका सेवन हृदय सम्बन्धी समस्याओं को कम करने में सहायक है। इसमें जीवाणु रोधी (एन्टी-बैक्टीरियल) गुण भी होते हैं, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

💮यह एन्टी-ऑक्सीडेंट गुणों से भी भरपूर है। इसका नियमित उपभोग कैंसर जैसे रोगों को क्षीण करने में सहायक है। इसमें समाविष्ट रसायन यकृत (लीवर) की समस्याओं एवम् जोड़ों की पीड़ा में भी कारगर है।।


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बाँस की बोतल में समाहित स्वास्थ्य के रहस्य

बाँस की बोतल में समाहित सेहत के रहस्य


जैविक पाक कला (ऑर्गेनिक कुकिंग) की बढ़ती लोकप्रियता ने बाँस से बने बर्तनों के बाज़ार को भी जीवंत कर दिया है। मृदा निर्मित पात्रों के अतिरिक्त बाँस से बने बर्तन आजकल काफी प्रचलित हो रहे हैं। बाँस की टोकरी तो हम सदैव से प्रचलन में देखते आये हैं, किन्तु अब बाँस से निर्मित बोतल, प्लेट, कटोरी, ट्रे, चम्मच, सर्विंग स्पून, गिलास आदि भी अनेक रूपों में देखने को मिल रहे हैं।





बाँस की बोतल इन दिनों काफी लोकप्रियता अर्जित कर रही है। बाँस में पोटेशियम, कॉपर, विटामिन बी-2 व 6, प्रोटीन, आयरन आदि तत्व पाये जाते हैं। इन्हीं गुणकारी तत्वों के कारण बाँस की बोतल में जल ग्रहण करने का सुझाव दिया जाता है। इससे अस्थियाँ सुदृढ़ होती हैं, माइग्रेन में आराम मिलता है, केशों व त्वचा को लाभ होता है तथा सिरदर्द व तनाव में आराम मिलता है। इसके अतिरिक्त उदर सम्बन्धी कई समस्याओं में आराम मिलता है। बाँस के बोतल में नियमित जल सेवन से परिवर्तनशील जलवायु में ज्वर आदि की समस्या से निदान मिलता है। वाष्प निर्मित खाद्य पदार्थों हेतु बाँस निर्मित पात्रों का सर्वाधिक उपयोग किया जाता है। यद्यपि मूल्यवान बाँस एवम् हस्तनिर्मित होने के कारण इनसे निर्मित वस्तुयें भी काफी महँगी होती हैं तथापि इसके स्वास्थ्य सम्बन्धी लाभों पर विचार किया जाये तो यह मूल्य अधिक प्रतीत नहीं होते।।



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