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Wednesday, April 8, 2020

'सुपर पिंक मून'

आखिर क्या है सुपर पिंक मून??


🌌वायु प्रदूषण कम होने से आकाश में दिखने लगे मनोरम दृश्य।

🌌मनभावन रहा सुपरमून का दर्शन।


🌌इस वर्ष का सबसे बड़ा और चमकदार 'सुपर पिंक मून' मंगलवार पूरी रात आकाश में दिखाई दिया। उस समय चन्द्रमा तथा पृथ्वी के मध्य 3,56,907 किमी. की दूरी रह गई, जो सामान्य की अपेक्षा इस वर्ष सबसे कम थी। लॉकडाउन के चलते घरों में मौजूद नागरिक इस विलक्षण खगोलीय घटना के साक्षी बने।




🌌लॉकडाउन के दौरान वायु प्रदूषण में आश्चर्यजनक रूप से गिरावट होने से आकाश में सितारों के मनोरम दृश्य सुलभ होने लगे हैं। मंगलवार की रात लालिमा लिये सुपरमून को देखकर लोग मन्त्रमुग्ध हो गये।


विशेषज्ञों के कथनानुसार सुपरमून और पिंकमून का अनूठा संयोग कई वर्षों बाद दिखाई दिया। वस्तुतः पूर्णिमा होने के कारण चन्द्रमा का रंग लालिमायुक्त था। यह 2020 का सबसे चमकदार और बड़ा फुलमून था। विशेषज्ञों के अनुसार चन्द्रमा जब पृथ्वी की कक्षा के निकट आता है तो उसका आकार बढ़ने के साथ-साथ चमक भी काफी बढ़ जाती है। विशेषज्ञों ने अवगत कराया कि सुपरमून देर शाम से ही दिखने लगा लेकिन भारतीय समयानुसार इसने प्रातः 08:05 बजे पूर्णाकार लिया। यह एक अनोखी खगोलीय घटना है। सुपरमून इस माह पृथ्वी से लगभग 356000 किमी. दूर बताया जा रहा है। साधारणतया चाँद और पृथ्वी के मध्य 384400 किमी. दूरी रहती है।।
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ENGLISH VERSION-


🌌Panoramic views started appearing in the sky due to reduced air pollution.


🌌The view of a supermoon was pleasing.


🌌 The biggest and brightest 'Super Pink Moon' of this year appeared in the sky all night.  At that time the distance between the moon and the earth remained 3,56,907 km, which was the lowest this year as compared to normal.  Due to the lockdown, the citizens present in the houses witnessed this unique astronomical event.


🌌During the lockdown, there is an amazing fall in air pollution, making panoramic views of the stars in the sky accessible.  On Tuesday night, people were enchanted by seeing the red moon lit supermoon.


 According to experts, the unique combination of Supermoon and Pinkmoon appeared after many years.  In fact, because of the full moon, the color of the moon was red.  It was the brightest and biggest fullmoon of 2020.  According to experts, when the moon comes near the orbit of the earth, its size increases as the brightness increases.  Experts apprised that the supermoon started appearing late in the evening but according to the Indian time it took full size at 08:05 am.  This is a unique astronomical event.  Supermoon is about 356000 km away from Earth this month.    Generally the distance between the moon and the earth stays 384400 km as being told away.


Disclaimer: All the Images belong to their respective owners which are used here to just illustrate the core concept in a better & informative way.


Saturday, April 4, 2020

राम, रामनवमी तथा रामराज्य के मायने

क्या हैं श्रीराम, रामनवमी और रामराज्य के मायने??


🌞जो सबको दें विश्राम, वह राम!

🌞नवमी तिथि का एक पक्ष यह है कि यह पूर्ण है। एक, दो, तीन, चार, पाँच की गिनती में नौ अन्तिम तिथि है, अतैव इसको पूर्ण भी कहा गया है।





🌞राम सर्वकालिक हैं, इसलिये उनको केवल एक देश, काल या व्यक्ति की सीमा में बाँधना सम्भव नहीं। रामचरितमानस में कहा गया है कि 'सबको विश्राम दे, वह राम।'


मानस में वशिष्ठ जी कहते हैं- 'जो आनंद का सागर है, सुख की खान है और जिसका नाम लेने से मनुष्य को विश्राम मिलेगा और मन शान्त होगा, उस बालक का नाम राम रखता हूँ।' तो राम महामन्त्र है। राम का नाम तो किसी भी समय लिया जा सकता है। इस महामन्त्र का जप करने वाले को तीन नियम मानने चाहिये। पहला- राम नाम भजने वाला किसी का शोषण न करे, बल्कि सबका पोषण करे। दूसरा सूत्र- किसी के साथ शत्रुता न रखें और दूसरों की सहायता भी करें। ऐसा करेंगे तो राम नाम अधिक सार्थक होगा। सुंदर काण्ड में हनुमान को लंका में जलाने का प्रयास किया गया। जहाँ भक्ति का दर्शन होता है, उसे समाज रूपी लंका जलाने का प्रयास करती ही है, लेकिन सच्चे सन्त को लंका जला नहीं सकती, स्वयं उसकी मान्यतायेंं जल सकती हैं। तीसरा सूत्र है- सबका कल्याण और समाज को जोड़ना। लंका काण्ड के आरम्भ में सेतु बन्ध तैयार हुआ। दिव्य सेतु बन्ध के दर्शन कर प्रभु ने धरती पर भगवान रामेश्वर की स्थापना की। यह शिव स्थान हुआ। यह राम नीति है। कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना। शिव यानी कल्याण। सेतु निर्माण करना यानी समाज को जोड़ना।


🌞श्रीराम आगमन🌞

हमारी गुणातीत श्रद्धा में प्रत्येक युग में देशकाल के अनुरूप परम तत्व अवतार धारण करता है। इसी पावनी परम्परा में प्रत्येक कल्प में, त्रेता युग में भगवान राम का अवतरण होता है, जो हम चैत्र शुक्ल नवमी को मनाते हैं, राम नवमी के रूप में। हमारे भारतीय सम्वत्सर के अनुसार नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होता है, नवमी को नवरात्रि होती है। दुर्गा पूजन, शक्ति आराधना के भी यही दिन होते हैं। आशय यह हुआ कि प्रतिपदा से नवमी तक शक्ति आराधना पूरी होती है और परम शक्ति का प्रागट्य होता है नवमी को। ऐसा परम पावन दिन है राम नवमी, राम जन्म महोत्सव। राम दोपहर में जन्में, जिस समय व्यक्ति भोजन कर आराम करता है। तो मनुष्य को तृप्त कर विश्राम प्रदान के काल में राम का आगमन होता है- 'नौमी तिथि मधु मास पुनिता, सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता, मध्यदिवस अति सीत न घामा, पावन काल लोक बिश्रामा।' नवमी तिथि रिक्त है। नवमी तिथि का दूसरा पक्ष यह भी है कि यह पूर्ण है। नौ का अंक पूर्ण है, दस में तो फिर एक के साथ शून्य जोड़ना पड़ता है। ग्यारह में एक-एक का दुहराव है। एक, दो, तीन, चार, पाँच की गिनती में नौ अंतिम तिथि है, इसलिये उसको पूर्ण भी कहा गया है। परमात्मा का प्रागट्य या तो शून्य में होता है या पूर्ण में। तो नवमी शून्यता और पूर्णता का प्रतीक है।


🌞रामराज्य पर गाँधी के त्रिसूत्र🌞

🔺स्वप्न- रामराज्य शब्द का भावार्थ यह है कि उसमें गरीबों की सम्पूर्ण रक्षा होगी, सब कार्य न्याय नीति और मानवीय मूल्यों के अनुसार किये जायेंगे और लोकमत का हमेशा आदर किया जायेगा। रामराज्य के लिये हमें पाण्डित्य की जरूरत नहीं है। जिस गुण की आवश्यकता है, वह सभी लोगों- स्त्री, पुरुष, बालक और बूढ़ों में है। दुख यही है कि सब अभी उस हस्ती को पहचानते नहीं हैं। सत्य, अहिंसा, मर्यादा-पालन, वीरता, क्षमा, धैर्य आदि गुणों का हममें से कोई भी व्यक्ति परिचय दे सकता है।

🔺संकल्प- कुछ मित्र रामराज्य का अक्षरार्थ करते हुये पूछते हैं कि जब तक राम और दशरथ फिर से जन्म नहीं लेते, तब तक क्या रामराज्य मिल सकता है? हम तो रामराज्य का अर्थ स्वराज्य, धर्मराज्य, लोकराज्य से लेते हैं। ऐसा राज्य तो तभी सम्भव है, जब जनता धर्मनिष्ठ बने। हम तो राज्यतन्त्र और राज्यनीति को बदलने के लिये प्रयत्न कर रहे हैं। हम अंग्रेज जनता को भी बदलने का प्रयास नहीं करते। हम तो स्वयं अपने-आप को बदलने का प्रयास कर रहे हैं।

🔺समानता- जब तक स्त्रियाँ पुरुषों की तरह बराबरी से सामाजिक जीवन में भाग नहीं लेतीं, तब तक देश का उद्धार नहीं हो सकता। लेकिन सामाजिक जीवन में वही भाग ले सकेंगी, जो तन और मन से पवित्र हैं। यही बात पुरुषों पर भी लागू होती है। जब तक सार्वजनिक जीवन में भारतीय स्त्रियाँ भाग नहीं लेतीं, तब तक हिंदुस्तान का उद्धार नहीं हो सकता। स्वराज्य के कितने ही अर्थ क्यों न किये जायें, मेरे लिये तो उसका एक ही अर्थ है, और वह है रामराज्य।।



प्रामाणिक स्रोत:- प्रतिष्ठित हिन्दी दैनिक।



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स्वीडन: हर चेतावनी दरकिनार

स्वीडन ने क्यों कर दी महामारी सम्बन्धी हर चेतावनी दरकिनार??!!


🇸🇪 स्वीडन: हर चेतावनी दरकिनार, पीएम ने नहीं किया लॉकडाउन।

🇸🇪 कहा- अर्थव्यवस्था बेपटरी हो जायेगी।

🇸🇪वैज्ञानिक बोले, तबाही की ओर जा रहा देश।

🇸🇪बड़ी संख्या में लोगों की न तो जाँच हो रही है, न ही संदिग्धों की पहचान ही की जा रही है।

🇸🇪हजारों संक्रमित, सैंकड़ों की मृत्यु के बावजूद भी स्कूल, कॉलेज, बाजार, सिनेमा, रेस्टोरेंट, पब खुले।




कोरोना वायरस के कहर को देख यूरोपीय देशों के साथ अन्य देशों में लॉकडाउन प्रभावी हैं। वहीं स्वीडन दुनिया का अकेला ऐसा देश है जहाँ वायरस के कहर के बीच सरकार ने अर्थव्यवस्था का हवाला देकर लॉकडाउन घोषित नहीं किया है। यहाँ स्कूल, कॉलेज, बाजार, सिनेमा, रेस्टोरेंट, पब आदि जैसे सार्वजनिक स्थल खुले हैं। डॉक्टर और वैज्ञानिक चेता रहे हैं कि देश तबाही की ओर बढ़ रहा है। वहीं प्रधानमंत्री का कहना है कि वायरस से लड़ने के लिये देश के हर व्यक्ति के पास भारी भरकम उत्तरदायित्व है।
स्वीडन की सरकार का कहना है कि लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था बेपटरी हो जायेगी और सब कुछ तहस-नहस हो जायेगा। वहीं डॉक्टरों व वैज्ञानिकों का कहना है कि सरकार प्रतीक्षारत है कि हालात सामान्य हो जायेंगे जिसके परिणामस्वरूप सरकार ने अब तक कोरोना रोकथाम के लिये कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। स्वास्थ्य व्यवस्था से जुड़े डॉक्टर, वैज्ञानिक और पैरामेडिकल स्टाफ भयभीत हैं। उनका कहना है कि हालात ऐसे ही रहे तो हम तबाह हो जायेंगे जिसकी भरपाई कभी सम्भव नहीं हो पायेगी। लेख लिखे जाने तक स्वीडन में 6100 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं और 350 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी हैं।


🇸🇪हर चीज पर प्रतिबंध नहीं लगा सकते: पीएम➡️

स्वीडन के प्रधानमंत्री स्टीफन लॉफवेन ने लोगों से कहा है कि हर व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी लेनी होगी। हम हर चीज पर अंकुश या प्रतिबन्ध नहीं लगा सकते हैं क्योंकि ये सवाल सामान्य बुद्धिमत्ता का है। जो युवा हैं, वो अपनी जिम्मेदारी निभायें, अफवाह न फैलायें, कोई इस क्षण अकेला नहीं है। हर व्यक्ति के पास देश के प्रति भारी भरकम जिम्मेदारी है।


🇸🇪वायरस को घातक बनने का अवसर दे रहे➡️

स्वीडन की कारोलिन्सका इंस्टीट्यूट की प्रो. सेसीलिया सॉडरबर्ग नॉक्लर का कहना है कि हम बहुत अधिक लोगों की जाँच नहीं कर रहे हैं, न ही वायरस से संक्रमित लोगों की पहचान कर रहे हैं। इसका आशय है कि हम वायरस को घातक बना रहे हैं जो हमें विनाश की ओर ले जायेगा।


🇸🇪डॉक्टरों तथा वैज्ञानिकों का सरकार से आग्रह➡️

कोरोना की भयावहता को समझने वाले डॉक्टर, वैज्ञानिकों और प्रोफेसरों ने सरकार से ठोस कदम उठाने की माँग की है। दो हजार डॉक्टरों, वैज्ञानिकों और प्रोफेसरों ने सरकार के समक्ष अपील दायर करते हुये इस दिशा में कठोर कदम उठाने की माँग की है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें जितना विलम्ब होगा, उतनी ही भयावहता देश की सरकार और जनता को देखनी होगी।


🇸🇪50 से अधिक लोग एकत्रित नहीं हो सकते➡️

स्वीडन के प्रधानमंत्री स्टीफन लॉफवेन ने वायरस से बचाव के लिये एक आदेश ऐतिहातन जारी कर दिया है जिसके तहत एक स्थान पर 50 से अधिक लोग एकत्र नहीं हो सकते।


🇸🇪इस कारण नहीं है वायरस का भय➡️

स्वीडन की उपसाला यूनिवर्सिटी के संक्रामक रोग विभाग के प्रो. बजॉर्न ऑलसन का कथन है कि स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में अधिकांश जनसंख्या अकेले ही रहती है। स्वीडन के अन्य नगरों में भीड़ है लेकिन वो सतर्क हैं जिस कारण डरने की जरूरत नहीं है। यदि घर में एक साथ कई पीढ़ियाँँ रह रही हैं और बुजुर्ग अधिक हैं तो खतरा है लेकिन ऐसे परिवार स्वयं ही सावधानी बरतने लगे हैं।।



प्रामाणिक स्रोत: प्रतिष्ठित हिन्दी एवम् अंग्रेजी दैनिक।



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डकवर्थ लुइस नियम के जनक

डकवर्थ लुइस नियम के आविष्कारक


🏏डकवर्थ लुइस नियम बनाने वाले टोनी का निधन।


🏏इंग्लैंड के टोनी ने गणितज्ञ फ्रैंक के साथ मिलकर 1997 में डकवर्थ-लुइस नियम दिया था।


🏏आईसीसी ने इंग्लैंड में खेले गये 1999 विश्वकप से अपनाया उक्त नियम।


🏏अफ्रीकी टीम पहला शिकार।


🏏2014 में बदला नाम।




सीमित ओवरों की क्रिकेट में वर्षा बाधित मैचों के लिये डकवर्थ-लुइस विधि तैयार करने में प्रमुख भूमिका का निर्वहन करने वाले टोनी लुइस का 02 अप्रैल 2020 को देहावसान हो गया। वह 78 वर्ष के थे। इंग्लैंड एवम् वेल्स क्रिकेट बोर्ड(ईसीबी) ने कहा, 'ईसीबी टोनी के निधन की सूचना से अत्यन्त आहत है। उन्होंने अपने साथी गणितज्ञ फ्रैंक डकवर्थ के साथ मिलकर डकवर्थ लुइस विधि तैयार की थी। टोनी और फ्रैंक का योगदान कोई नहीं भुला सकता। क्रिकेट उन दोनों का सदैव ऋणी रहेगा।' इसे 1997 में प्रस्तुत किया गया। अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद् (आईसीसी) ने 1999 में इंग्लैंड में खेले गये विश्व कप में आधिकारिक तौर पर इसे अपनाया।


🏏अफ्रीकी टीम पहला शिकार➡️

इंग्लैंड में खेले गये 1992 विश्व कप में मेजबान टीम और दक्षिण अफ्रीका के मध्य सेमीफाइनल प्रतियोगिता में पहली बार इस नियम का प्रयोग किया गया था। लक्ष्य का पीछा कर रही अफ्रीकी टीम को जीत के लिये 13 गेंदों पर 22 रन की दरकार थी। इसी दौरान हुई वर्षा के कारण मैच रोक दिया गया था। अफ्रीकी खिलाड़ी उस समय हतप्रभ रह गये, जब जीत के लिये स्कोरबोर्ड पर एक गेंद पर 21 रन का लक्ष्य प्रदर्शित हुआ। यह मैच अफ्रीकी टीम 19 रन से हार गई। इसके बाद ही डकवर्थ-लुइस पर विचार किया गया।


🏏2014 में बदला नाम➡️

इस नियम की कई बार आलोचना हुई जिसके बाद ऑस्ट्रेलियाई गणितज्ञ स्टीवन स्टर्न ने मौजूदा स्कोरिंग रेट के हिसाब से इसका नवीनीकरण। फिर इसे 2014 से डकवर्थ-लुइस-स्टर्न नियम कहा जाने लगा। यह गणितीय नियम अब दुनिया भर में वर्षा प्रभावित सीमित ओवरों के क्रिकेट मैच में उपयोग किया जाता है। लुइस क्रिकेटर नहीं थे लेकिन उन्हें क्रिकेट एवम् गणित में उनके योगदान के लिये 2010 में ब्रिटिश साम्राज्य के विशिष्ट सम्मान एमबीई से सम्मानित किया गया।।


प्रामाणिक स्रोत- प्रतिष्ठित हिन्दी एवम् अंग्रेजी दैनिक।  


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विराट के पसन्दीदा बल्लेबाजी जोड़ीदार

कोहली के फेवरेट बैटिंग पार्टनर्स


🏏धोनी-एबी संग आता है विराट को बल्लेबाजी का आनन्द।


🏏भारतीय कप्तान विराट बोले, इनके साथ रन लेते समय मौखिक संकेतों की आवश्यकता नहीं पड़ती।




भारतीय कप्तान विराट कोहली का कहना है कि वह बल्लेबाजी के समय ऐसे जोड़ीदार के साथ अधिक लुत्फ उठाते हैं जिनकी रनिंग अच्छी हो तथा जिनके साथ तालमेल बढ़िया रहे। उन्होंने अपने पसन्दीदा दो जोड़ीदारों में वरिष्ठ साथी महेन्द्र सिंह धोनी व दक्षिण अफ्रीका के एबी डीविलियर्स का नाम लिया।
कोहली इन दिनों कोविड-19 संक्रमण की रोकथाम हेतु लागू लॉकडाउन के कारण घर पर हैं। उन्होंने इंग्लैंड के पूर्व क्रिकेटर केविन पीटरसन के साथ इंस्टाग्राम पर अनौपचारिक बातचीत की। पीटरसन ने जब क्रीज पर पसन्दीदा साथी के बारे में पूछा तो कोहली ने धोनी और डीविलियर्स का नाम लेते हुये कहा कि इनके साथ बल्लेबाजी करते वक़्त बोलने की जरूरत नहीं पड़ती। साथ ही कहा कि वह जीवन में कभी एबी डीविलियर्स के विरुद्ध छींटाकशी नहीं करेंगे क्योंकि वह उनका काफी सम्मान करते हैं। अपने आक्रामक रवैये को लेकर भारतीय कप्तान का मानना है कि उनके लिये आक्रामकता लुत्फ उठाने का तरीका है। विराट ने बताया कि 2018 में दक्षिण अफ्रीकी दौरे पर सर्वाइकल की समस्या हो गयी थी। पेट में अम्लता की समस्या हो गयी थी। अस्थियों में कैल्शियम कम हो रहा था। तभी से माँसाहार त्याग दिया और अब बेहतरीन महसूस करते हैं।


🏏जिंदगी की तरह है टेस्ट क्रिकेट➡️

कोहली से जब पूछा गया कि उन्हें कौन सा प्रारूप सर्वाधिक प्रिय है तो उन्होंने बाकायदा पाँच बार टेस्ट क्रिकेट का नाम लिया। उनका कहना है कि पाँच दिवसीय प्रारूप को खेलने से वह बेहतर इंसान बन पाये क्योंकि इसमें आप जिन्दगी की ही तरह चुनौतियों से नहीं भाग सकते। आप रन बनाओ या न बनाओ लेकिन दूसरे रन बना रहे हों तो आप उनकी सराहना में ताली बजाओ। आप ड्रेसिंग रूम में लौट जाओ लेकिन उठो और अगले दिन फिर आओ। आपको दिनचर्या का पालन करना होता है, फिर आप चाहें इसे पसन्द करो या नहीं।


🏏मिलकर ही निपट सकते हैं कोरोना से➡️

कोरोना की स्थिति पर कोहली ने कहा कि कुछ लोगों को छोड़कर अधिकांश नागरिक दिशानिर्देशों का पालन कर रहे हैं। लोगों की लापरवाही पर उन्होंने कहा कि मुझे नहीं पता ऐसा क्यों हुआ लेकिन उम्मीद है कि लोग इसे समझेंगे और निर्देशों का पालन करेंगे। हम एक साथ मिलकर ही इस भयंकर महामारी से निपट सकते हैं।


🏏पहली बार अनुष्का संग इतना समय➡️

कोहली ने कहा कि लॉकडाउन के चलते पत्नी अनुष्का को क्वालिटी समय दे पा रहा हूँ। पहली बार उनके साथ इतने समय तक रहने का अवसर मिला है। कोहली दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध वन डे सीरीज रदद् होने के बाद से ही अनुष्का के साथ घर पर ही हैं।


🏏माही ने मशहूर कर दिया चीकू नाम➡️

पीटरसन ने सीधा सवाल किया कि उनका नाम चीकू कैसे पड़ा। इस पर कोहली खिलखिला उठे। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि धोनी ने मेरे इस नाम को मशहूर कर दिया। धोनी विकेट के पीछे अक्सर विराट को चीकू नाम से पुकारते थे। कोहली ने बताया कि उनका यह चीकू नाम रणजी टीम के कोच अजीत चौधरी द्वारा प्रदत्त है।



प्रामाणिक स्रोत- प्रतिष्ठित हिन्दी एवम् अंग्रेजी दैनिक।


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Friday, April 3, 2020

संक्रमण व्यूह ध्वंस की चीनी युक्ति

संक्रमण चक्र को चीन ने कैसे किया ध्वस्त??!!


🇨🇳ऐसे जीता चीन: चप्पे-चप्पे पर जाँच, लॉकडाउन तोड़ने पर दण्ड।

🇨🇳प्रतिबद्धता एवम् तीव्र तैयारियों के दम पर डटा रहा चीन।

🇨🇳चीनी सेना तथा चेतावनी तन्त्र ने निभाई मुख्य भूमिका।




चीन से उपजी कोरोना महामारी विश्वभर में पाँव पसार चुकी है। पृथ्वीवासी आश्चर्यचकित हैं कि जिस राष्ट्र से इतनी भीषण महामारी का उदय हुआ, उसने न सिर्फ इसे समय रहते नियन्त्रित कर लिया बल्कि तुलनात्मक रूप से जान-माल की अधिक हानि भी नहीं होने दी। इसका मुख्य कारण था चीन द्वारा चप्पे-चप्पे पर जाँच की सुदृढ़ व्यवस्था तथा लॉकडाउन तोड़ने वालों के विरुध्द कठोर दण्ड का प्रावधान। इसमें चीनी सेना ने भी पर्याप्त योगदान दिया।
जानकारों का मानना है कि इस दक्षता और तीव्र तैयारी के नेपथ्य में वहाँ की दलीय व्यवस्था की भी व्यापक भूमिका है। चीनी मामलों के जानकार व कुछ महामारी विशेषज्ञ चीन के प्रयासों से सीखने को प्रेरित भी कर रहे हैं। किसी महामारी के अवरोधन में प्रारम्भिक उपाय सर्वाधिक महत्वपूर्ण होते हैं। इसके अन्तर्गत देश में एक चेतावनी तन्त्र स्थापित करना अत्यावश्यक होता है, जो चीन ने तैयार किया था।


🗺️विश्व के समक्ष दो विकल्प➡️

कुन फाउंडेशन के चेयरमैन डॉ. रॉबर्ट लॉरेंस कुन का मत है कि कोरोना के लिये चीन को उत्तरदायी ठहराना समाधान नहीं है। दो ही विकल्प हैं- या तो देश एकजुटता का प्रदर्शन कर इस वायरस से लड़कर जीतें या आपस में लड़कर कोरोना से हारें। इस समय कोरोना जलवायु परिवर्तन से भी बड़ी समस्या के रूप में सामने है और दुनिया को प्रथम विकल्प के साथ आगे बढ़ना चाहिये।


🇨🇳संगठित ढाँचा भी सहायक➡️

चीन रिफार्म फ्रेंडशिप मेडल (2018) के विजेता और कुन फाउंडेशन के चेयरमैन डॉ. रॉबर्ट लॉरेंस कुन बताते हैं कि कम्युनिस्ट सरकार ने किसी भी कार्यक्रम के क्रियान्वयन हेतु संगठित ढाँचा बना रखा है। इस ढाँचे में केंद्र सरकार समेत पाँच स्तर (प्रान्तीय, नगरीय, जिला, कस्बाई व ग्रामीण सरकार) सम्मिलित हैं। सीपीसी के आदेश पर निम्न स्तर तक पूरा नेतृत्व एकजुट रहता है।


🗺️दुनिया की सहायता ऐसे सम्भव➡️

संक्रमण को अवरुद्ध करने हेतु चीन अपना अनुभव व समझ प्रत्येक देश से साझा कर सकता है। वहाँ के स्वास्थ्यकर्मियों तथा लॉजिस्टिक विशेषज्ञों की कार्यशैली अन्य देश भी सीख सकते हैं। चीन आवश्यक स्वास्थ्य सामग्री एवम् उपकरण दुनिया को उपलब्ध करा सकता है।


📱स्मार्टफोन के 'हरे संकेत' से चल रहा चीन में नव जीवन📲

चीन में कोरोना वायरस के प्रकोप उपरान्त जीवन स्मार्टफोन के एक ग्रीन सिग्नल से चलने लगा है। हरा संकेत एक ऐसा 'स्वास्थ्य कोड' है जो बताता है कि सम्बन्धित व्यक्ति संक्रमण के लक्षण से मुक्त है। यह संकेत किसी सब-वे में जाने, किसी होटल में प्रवेश या वुहान में दाखिल होने के लिये आवश्यक है।
इस स्वास्थ्य कोड का बनना इसलिये सम्भव हो सका क्योंकि चीन में लगभग सभी के पास स्मार्टफोन है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के पास अपने नागरिकों की निगरानी और उन्हें नियंत्रण में रखने के लिये लोगों की जानकारियों का 'विशाल डाटा' है। वस्त्र उत्पादन करने वाली कम्पनी की एक प्रबन्धक वु शेंगहोंग ने वुहान सब-वे स्टेशन पर अपना स्मार्टफोन निकाला और वहाँ लगे एक पोस्टर के बार कोड को अपने फ़ोन से स्कैन किया। इससे उनका पहचान पत्र संख्या और हरा संकेत आ गया। इसके बाद उन्हें सब-वे पर जाने की अनुमति मिल गयी।


📱अन्य सरकारें भी यह तरीका अपनायें📲

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने विज्ञान पत्रिका 'साइंस' में प्रकाशित 'डिजिटल कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग' यानी 'डिजिटलीकरण के माध्यम से सम्पर्कों को पता लगाना' नामक एक रिपोर्ट कहा है कि इस चीनी तरीके को अन्य सरकारों को भी स्वीकार करना चाहिये।


🇨🇳🤝🇮🇳भारत से नये सम्बन्धों का प्रस्ताव➡️

कोरोना संकट के मध्य चीन भारत के साथ रिश्तों के सूत्रपात का एक नया प्रस्ताव रखा है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को प्रेषित अपने सन्देश में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने दोनों देशों के द्विपक्षीय सहयोग एवम् कूटनीतिक रिश्तों की 70वीं वर्षगाँठ पर बधाई दी है।
अपने सन्देश में जिनपिंग ने कहा कि विगत 70 वर्षों में भारत और चीन ने मिलकर विकास और शान्ति के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है। अब इस सहयोग व रिश्ते को नये सिरे से आगे ले जाने की आवश्यकता है। यदि दोनों देश मिलकर कार्य करें तो एशिया ही नहीं, दुनिया के अधिकांश देशों के बीच एक सकारात्मक संदेश जायेगा।।



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विषाणु जगत के समक्ष असहाय विज्ञान

वायरस जगत के समक्ष लाचार विज्ञान


🔳विषाणु-मण्डल: 250 विषाणु प्रजातियाँ ही मानव पर आक्रामक।

🔳7 हजार प्रजातियों की ही हो सकी है पहचान, 10 खरब की खोज लम्बित।





विगत दो दशकों में सार्स, मर्स, इबोला, निपाह के बाद अब कोरोना वायरस ने संसार को झकझोर कर रख दिया है। एक के बाद एक सामने आ रहे भयानक विषाणुओं ने वैज्ञानिकों के हाथ भी बाँध दिये है। सम्भवतः पृथ्वी पर लगभग 10 खरब ऐसे वायरस हैं जिनके नाम तक हमें ज्ञात नहीं है। सिडनी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का कथन है कि अभी तक इस विविध विष्णुमण्डल की लगभग सात हजार प्रजातियों के प्रतिदर्श ही जुटाये जा सके हैं। 
दुनिया सबसे भयानक वायरसों में सम्मिलित इबोला और कोविड-19 पर शोधरत प्रसिद्ध वैज्ञानिक फोर्ट डायट्रिक का कथन है कि विषाणुओं के विषय में बहुत कुछ खोजा जाना शेष है।


🔳100 वर्ष पूर्व भी मास्क व सामाजिक दूरी➡️

1918 में स्पेन से प्रसारित फ्लू के समय भी परिस्थितियाँँ वर्तमानकाल जैसे ही थे। जनमानस का मास्क धारण करना अनिवार्य कर दिया गया था तथा सामाजिक दूरी का अनुपालन सुनिश्चित किया जा रहा था। विश्वभर में लगभग 5 करोड़ मनुष्यों ने अपने प्राण गवाँ दिये। 15 माह की अवधि में मात्र भारत में ही 1.8 करोड़ नागरिक काल-कवलित हो गये।


🔳6828 प्रजातियों का ही नामकरण➡️

17वीं सदी के अन्त में विषाणुओं की खोज के पश्चात् यह तथ्य ज्ञात हुआ कि रेबीज व इन्फ्लूएंजा जैसे रोगों के कारक ये विषाणु ही थे। दशकों के परिश्रम उपरान्त भी 6828 प्रजातियों का ही नामकरण हो सका है। तथापि इसके सापेक्ष कितविज्ञानशास्त्रियों ने कीटों की 380000 प्रजातियों का नामकरण करने में सफलता प्राप्त की है।

🔳सागर में 15 हजार विषाणु➡️

हाल के वर्षों में वैज्ञानिक वायरस के सैंपल में जेनेटिक पदार्थ एवम् उन्नत कम्प्यूटर प्रोग्राम के माध्यम से जीन ज्ञात करते है। अमेरिका के ओहियो विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ मैथ्यू सुलिवैन व उनके साथियों ने 2016 में सागर के भीतर 15 हजार से अधिक विषाणुओं की पहचान की। उन्होंने दो लाख नये वायरस ढूँढे़।


🔳कोरोना की हैं 39 प्रजातियाँ➡️

कोरोना वायरस की 39 प्रजातियों की पहचान की जा चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चीन की खोज के बाद मौजूदा महामारी को 'कोरोनावायरस डिजीज 2019' या 'कोविड-19' नाम दिया। इस वायरस में व सार्स में आनुवंशिक समानतायें हैं। मार्च में 'इंटरनेशनल कमिटी ऑन टैक्सोनॉमी ऑफ वायरसेज' ने कहा कि ये दोनों वायरस एक ही प्रजाति से हैं। सार्स के प्रसार को उत्तरदायी वायरस को सार्स-कोव के रूप में जाना जाता है इसलिये कोविड-19 को सार्स-कोव-2 भी कहा जा रहा है।


🔳पशुओं-पौधों को करोड़ों वायरस करते हैं प्रभावित➡️

वैज्ञानिकों के मतानुसार, अब तक विषाणुओं की 250 प्रजातियों ने ही मानव देह को अपना होस्ट चुना है। अर्थात् वायरोस्फीयर में अत्यन्त लघु अंश ही मनुष्य को संक्रमित करता है। विशेषयज्ञों का कथन है कि पशुओं, पौधों, कवक एवम् प्रोटोजोआ को प्रभावित करने वाले विषाणुओं की संख्या करोड़ों में है।


🔳जीन की अदला-बदली से पहचान कठिन➡️

वायरोस्फीयर में मौजूद प्रजातियों के वर्ग का पता लगाना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है। वायरस अन्य प्रजातियों के साथ जीन आदान-प्रदान कर लेते हैं, जिससे इनके समूहों में स्पष्ट अन्तर करना दुष्कर हो जाता है। इस वर्ष फरवरी में पाया गया कि एक झील में मिले वायरस की 74 जीन्स में से 68 इससे पहले किसी भी वायरस में नहीं मिलीं।।


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