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Sunday, May 3, 2020

'बिग बी की इरफान को श्रद्धांजलि'

बॉलीवुड के दो बेजोड़ अभिनेताओं के एक बाद एक परलोक गमन से फिल्म समुदाय शोकसंतप्त है। इसी क्रम में महानायक अमिताभ बच्चन जी,  इरफान खान जी और ऋषि कपूर जी से जुड़ी स्मृतियों को लेकर सोशल मीडिया पर निरन्तर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं।

Image Credit: Pinterest

पीकू में अपने साथी कलाकार के तीन छायाचित्र ट्विटर पर पोस्ट कर अमिताभ जी ने शनिवार को विचार व्यक्त करते हुये कहा कि आखिर एक बुजुर्ग हस्ती के निधन और एक युवा कलाकार के यूँ चले जाने में क्या अंतर है? हमें युवा साथियों के दुनिया छोड़ने पर अधिक पीड़ा क्यों होती है? उन्होंने लिखा, अपने दो बेहतर नजदीकी मित्रों को दो दिन के भीतर खो देना अत्यंत दुखदायी है। लेकिन इसमें इरफान जी के जाने का दुख अधिक है। क्योंकि, उनकी आयु कम थी, उनमें अनेकों सम्भावनायें शेष थीं इसलिये उनकी मृत्यु अधिक पीड़ाजनक है। उनके अभिनय कौशल के कई आयाम अभी प्रकट होने शेष थे। उन्हें अभी दर्शकों का और मनोरंजन करना था, लेकिन वे कैंसर से जंग हार गये।
अमिताभ जी ने अमर-अकबर-एन्थोनी फिल्म की ऋषि कपूर जी के साथ एक छवि पोस्ट की। इससे पूर्व अमिताभ जी ने शुक्रवार को 102 नॉट आउट के कुछ दृश्यों के साथ लगभग पाँच मिनट का श्याम-श्वेत वीडियो साझा किया था। 

Monday, April 20, 2020

'The Ganges Aqua turned worth drinking after several decades'

दशकों पश्चात् गंगाजल हुआ पीने योग्य


For first time in decades, Ganga water in Haridwar fit to drink.


Ganga just needs to be left alone.


Image Credit: Pixabay


With industries that discharge effluents in Ganga shut and piers closed to public, the waters of the holy river at Rishikesh and Haridwar- twin cities that record pilgrim rush throughout the year- have seen a significant improvement in quality. In fact, for the first time in decades, the water quality at Har-ki-Pauri has been classified as "fit for drinking after chlorination."
Data accessed by a prominent Media House from the Uttrakhand Environment Protection and Pollution Control Board (UEPPCB) indicates that all parameters of water assessment at Har-ki-Pauri have significantly improved since the lockdown was put in place. There is a 34% reduction in fecal coliform (Human excreta) and 20% reduction in biochemical oxygen demand (a parameter to quality of effluent or wastewater) at Har-ki-Pauri in April.
 Due to the lockdown, water in Har-ki-Pauri has ranked in Class A for the first time in recent history. The water has always been placed in Class B since Uttrakhand was formed in 2000.
Class A water has pH balance between 6.5 to 8.5. The pH is a measure of how acidic the water is and optimum pH for river water is considered around 7.4.
It also has adequate dissolved oxygen- 6mg/litre or more. Dissolved oxygen levels below 5mg/litre can cause stress to aquatic life. The water now has a low biochemical oxygen demand and a low count of total coliform. While Class A water is fit to drink after disinfection, Class B water is fit for bathing, that too after treatment.
Water quality at Devprayag has improved as well. Experts have suggested that the discharge of industrial effluents into the river and human activities must be checked to rejuvenate the river. Pollution levels seem to have drastically reduced due to the ongoing lockdown and its effect can be clearly seen in the river water.
The rejuvenation of Ganga has led seers in Haridwar- many of whom have fronted campaigns and fasts unto deaths- to claim that this is the course of action they have been calling for all along.
Why is the government wasting huge sum on revival of Ganga when all it needs to do is to leave the river alone? This can be done by banning human activities like reckless building of hydropower plants, mining and industrial waste being dumped into Ganga.
Ganga is an example of how 'the mad rush of development' must stop.
The main lesson here is that we must move in tandem with nature. How long will the water remain pure? The worry is that once the lockdown is lifted, things will return to what they were.
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हिन्दी संस्करण:


'कई दशकों के बाद पीने योग्य गंगाजल'


 दशकों में पहली बार, हरिद्वार में गंगा का पानी पीने लायक हुआ।


 गंगा को सिर्फ एकाकी छोड़ देने की आवश्यकता है।


 
गंगा में अपशिष्टों को विसर्जित करने वाले उद्योगों और घाटों को जनता हेतु बन्द कर देने से, ऋषिकेश और हरिद्वार में पवित्र नदी के जल - जहाँ वर्ष भर तीर्थयात्रियों का जमघट रहता है, की गुणवत्ता में महत्वपूर्ण सुधार देखा गया है।  वास्तव में, दशकों में पहली बार, हर-की-पौड़ी में जल की गुणवत्ता को 'क्लोरीनीकरण के बाद पीने योग्य' के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

 उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (UEPPCB) से एक प्रमुख मीडिया हाउस द्वारा जुटाये गये डेटा से संकेत मिलता है कि तालाबन्दी होने के बाद से हर-की-पौड़ी में जल के मूल्यांकन के सभी मापदंडों में काफी सुधार हुआ है।  अप्रैल में हर-की-पौड़ी में फेकल कोलीफॉर्म (मानव उत्सर्जन) में 34% की कमी और बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (अपशिष्ट या अपशिष्ट जल की गुणवत्ता के लिए एक पैरामीटर) में 20% की कमी आई है।

 लॉकडाउन के कारण, हाल के इतिहास में पहली बार में हर-की-पौड़ी में जल का स्थान क्लास ए में आया है।  उत्तराखंड के 2000 में गठन के बाद से जल को सदा क्लास बी में रखा गया है।

 क्लास ए के जल में 6.5 से 8.5 के बीच पीएच संतुलन होता है।  पीएच एक उपागम है- कि जल कितना अम्लीय है तथा नदी के जल के लिए इष्टतम पीएच 7.4 के आसपास माना जाता है।

 इसमें पर्याप्त घुली हुई ऑक्सीजन भी है- 6mg / लीटर या अधिक।  5mg / लीटर से निम्न घुलित ऑक्सीजन स्तर के होने से जलीय जीवन को संकट हो सकता है। जल में अब कम जैव रासायनिक ऑक्सीजन माँग और कुल कोलीफॉर्म की कम मात्रा है।  जबकि क्लास ए जल कीटाणुशोधन उपरान्त पीने के योग्य फिट है, क्लास बी का जल स्नान के लिए फिट है, वह भी उपचार के बाद।

 देवप्रयाग में भी जल की गुणवत्ता में सुधार हुआ है।  विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि नदी में औद्योगिक अपशिष्टों के विसर्जन और नदी को फिर से जीवंत करने के लिए मानवीय गतिविधियों पर रोक लगा देनी चाहिये। गतिमान लॉकडाउन के कारण प्रदूषण का स्तर काफी कम हो गया है और इसका असर नदी के जल में साफ देखा जा सकता है।

 गंगा के कायाकल्प ने हरिद्वार में सन्तों को प्रेरित किया है - जिनमें से कई ने अभियान चलाये  हैं और आमरण अनशन किये है - यह दावा करने के लिए कि वे सब आरम्भ से ही ऐसी क्रियाविधि की माँग कर रहे थे।

 गंगा को पुनर्जीवित करने के लिए सरकार क्यों भारी धनराशि बर्बाद कर रही है? जबकि हमें बस नदी को एकाकी छोड़ देना चाहिये। यह सब गंगा में अदूरदर्शितावश जलविद्युत संयंत्रों की स्थापना, खनन और औद्योगिक कचरे को नदियों में दफन कर देने जैसी मानवीय गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाकर ही किया जा सकता है।

 गंगा आज इस बात का उदाहरण है कि कैसे 'विकास की  अन्धी दौड़' को रोकना चाहिए।

 यहाँ मुख्य सीख यह है कि हमें प्रकृति के साथ मिलकर चलना चाहिए। जल कब तक शुद्ध रह सकेगा?  चिंता का विषय यह है कि एक बार लॉकडाउन हटा लेने के बाद, परिस्थितियाँ पुनः वैसी ही हो जायेंगी जैसी पहले थीं।


Disclaimer: All the Images belong to their respective owners which are used here to just illustrate the core concept in a better & informative way.


Sunday, April 19, 2020

'लॉकडाउन का उज्जवल पक्ष- प्रकृति का प्रतिरक्षा तन्त्र हुआ दक्ष'

'लॉकडाउन का उज्जवल पक्ष- प्रकृति का प्रतिरक्षा तंत्र हुआ दक्ष'


प्रचलित कहावत है कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, ठीक उसी प्रकार जीवन में हर घटना के भी दो पक्ष होते हैं- सकारात्मक तथा नकारात्मक। किसी भी घटनाक्रम के प्रति अपनी राय कायम करना पूर्णतः हमारे दृष्टिकोण पर निर्भर है। चाहें तो हम निराशावाद से ग्रस्त होकर जीवन के विविध पड़ावों से कुंठित हो अवगुणों का छिद्रान्वेषण करते रहें या फिर आशावाद से पुलकित हो उन उज्जवल गुणों पर मंथन कर तथा प्रतिकूल परिस्थितियों के आविर्भाव का मूल कारण खोजकर उससे उत्पन्न दुष्प्रभावों से स्थाई सबक लेते हुये कल्याणकारी ऊर्जा को आत्मसात करें तथा विनाशकारी ऊर्जा का विसर्जन कर प्रगति के पथ पर अग्रसर रहें।



Image Credit: Pixabay


वर्तमान विकराल परिदृश्य जहाँ मानव सभ्यता के परिप्रेक्ष्य में अघोषित अभिशाप सा प्रतीत होता है तो वहीं प्रकृति के लिये यह किसी अलौकिक वरदान से कम नहीं। आधुनिक काल के महाकाय पुरोधा, विद्वान तथा वित्तीय प्रावधान जिस पतित पावन पर्यावरणीय संकल्प को साकार करने में अक्षम रहे, उस दुष्कर स्वप्न को एक अदृश्य अतिसूक्ष्म विषाणु के भय की सर्वव्यापकता से प्रेरित लॉकडाउन ने फलीभूत कर दिया है।

गंगा-यमुना सरीखी पौराणिक पूज्य सरितायें जो चिरकाल से भारत के एक विशाल क्षेत्र की जीवनधारा बन मानव सभ्यता को पोषित करती रही हैं, उन्हीं जीवनदायनी-मोक्षदायिनी सरिताओं को स्वार्थान्ध मानव ने विवेकशून्यता की पराकाष्ठा का प्रदर्शन कर दयनीय स्थिति में पहुँचा दिया जिसकी प्राकृति स्फूर्त क्षतिपूर्ति आज लॉकडाउन के सौजन्य से हो रही है। चन्द सप्ताह पूर्व गंगाजल आचमन तो दूर, अधिकांश क्षेत्रों में स्नान योग्य भी उचित नहीं जान पड़ता था। वही गंगाजल आज हरिद्वार परिक्षेत्र में पूर्णतः आचमन योग्य हो चुका है, वहीं अन्य क्षेत्रों में विगातकाल के सापेक्ष उत्तम स्थिति में है। 
पथभ्रष्ट मानव सभ्यता द्वारा प्रदत्त असीम प्रताड़ना सहते-सहते जो यमुना घोर उदासीनता वश मृतप्रायः सी हो चुकी थी आज उसका जल दर्पण की भाँति झिलमिला रहा है। 
ऐसी ही सुखद स्थिति देश की अन्य प्रमुख जलराशियों की भी है जो कि एक नयनाभिराम अनुभूति है।

वायुमण्डल भी स्वशोधन उपरान्त स्वच्छ नीलवर्ण आकाश, शुद्धतम प्राणवायु, रात्रिकालीन दुर्लभ तारामण्डल व ग्रह-नक्षत्रों के निर्विघ्न दर्शन सरीखे अनमोल उपहार हम पर उदार भाव से न्योछावर कर रहा है।
प्रकृति प्रेमी तो यहाँ तक दावा कर रहे हैं कि 200-250 किमी दूर अवस्थित विशाल पर्वतमाला के दर्शन भी अब सुलभ हो चुके हैं।
दिल्ली, आगरा तथा अन्य भारतीय महानगर जो कभी विश्व के शीर्ष प्रदूषित नगरों में सम्मिलित थे, उनका वायु गुणवत्ता सूचकांक 50 के स्तर से भी निम्न पायदान पर पहुँच चुका है जिसे उत्कृष्ट श्रेणी में माना जाता है।
जो पशु-पक्षी अपने स्वाभाविक आश्रयों के अभाव में लुप्तप्राय से हो गये थे, उनके भी स्वच्छन्द विचरण व मनोरम कलरव के वृतान्त मानवीय गतिविधियों तथा चहलकदमी के स्थगन स्वरूप दृष्टिगोचर होने लगे हैं।

हम वर्ष भर में मात्र एक दिन पृथ्वी दिवस तो एक दिन पर्यावरण दिवस मनाकर आत्म मुग्ध हो अपने परम कर्त्तव्यों से इतिश्री कर लेते हैं जबकि समय का चक्र हमसे नित्य के आचार व्यवहार एवम् व्यावहारिक जीवन में अक्षुण नैसर्गिक मूल्यों व दायित्वों को आत्मसात करने की प्रबल अपेक्षा कर रहा है।

यद्यपि आर्थिक दृष्टिकोण से संसार की विशालतम अर्थव्यवस्थायें धराशायी होने की कगार पर हैं तथापि प्राकृतिक रूप में जो अनुलाभ हम पा रहे हैं उसे सँजोकर हम उक्त क्षति की प्रतिपूर्ति का प्रयास तो कर ही सकते हैं। हालाँकि कुछ विद्वान दोनों को एक-दूसरे का स्थानापन्न भले ही न मानें किन्तु दोनों ही निर्विवाद रूप से एक-दूसरे के प्रतिपूरक आदिकाल से ही रहे हैं क्योंकि अर्थव्यवस्था की जीवंतता हेतु मूल पदार्थ प्राकृतिक संसाधनों से ही प्राप्त होते हैं।
परस्पर सामंजस्य के विलोपन से 'सर्वसुखाय, सर्वहिताय' रूपी अवधारणा कदापि फलीभूत नहीं हो सकती।

काश! कि यह सम्पूर्ण सुखद प्राकृतिक परिवर्तन सदा-सदा के लिये स्थाई हो जाये जो कि तभी सम्भव है जब हम अभिमुख आपत्तिकाल को साक्षी मानते हुये अटल प्रण लें कि हम प्रकृति को पुनः कुपित होने का अवसर कदापि प्रदान नहीं करेंगे अपितु लॉकडाउन के प्रताप से उपहारस्वरूप प्राप्त सम्पदा को अक्षय रखते हुये सर्वसमावेशी विकास के मार्ग पर अग्रसर होंगे।।

#Lockdownpros #Advantagesoflockdown #Meritsoflockdown #Benefitsoflockdown #Brightersideoflockdown
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ENGLISH VERSION:


SUNDAY, APRIL 19, 2020


 'The brighter side of lockdown - Nature's immune system gained efficiency'


 The popular saying is that every coin has two aspects, in the same way every event in life also has two sides - positive and negative.  It is entirely up to our view to form our opinion about any event.  If we want to suffer from pessimism, be frustrated with various stages of life, keep on hairsplitting  the demerits or be swayed by optimism, by churning on those bright qualities and finding the root cause of the emergence of unfavorable conditions, taking a lasting lesson from the ill effects generated from it.  Imbibe the salutary energy and immerse destructive energy and continue on the path of progress.


 The present macabre scenario where in the context of human civilization seems like an undeclared curse, it is nothing less than a supernatural boon for nature.  The arduous dream of modern-day gigantic pioneers, scholars and financial provisions unable to embody the pious environmental resolve has been accomplished by the lockdown fueled by the ubiquitous fear of an invisible microbe.

Mythologically revered rivers like Ganga-Yamuna, that have been nurturing human civilization as a lifeline of a vast region of India since time immemorial, Those life-salvation sustaining rivers have reached a miserable condition by the self-styled human beings displaying the zenith of indiscretion, which is being compensated today by courtesy of lockdown.  A few weeks ago, not just Aachman/Gargling (Religious Hindu Rites) with Ganges water was a far away dream, even bathing in most areas was not considered appropriate.  The same Ganges water has become fully optimum to solemnise Aachman(Gargling) in Haridwar zone today, while in other areas it is in a good condition relatively to the earlier period.

 The Yamuna, which had become moribund under atrocious aloofness by continuously tolerating immense tortures inflicted on her by astray humans, is now sparkling like a mirror with adequate glaring water.

 A similar pleasant situation also exists in other major water bodies of the country, which is a panoramic experience.

 After it's spontaneous refinement, even the cleaner atmosphere is doling out priceless gifts like pure oxygen, sheer view of clean blue sky, nightly constellations, rare planets and galaxies to us.

Nature lovers are even claiming that view of the vast mountain ranges situated 200-250 km away has also become accessible.

 Delhi, Agra and other Indian metropolises that once were among the top polluted cities in the world, have an air quality index of less than 50, which is considered to be in the excellent category.

 The animals and birds, which had become endangered due to lack of their natural shelters, have also become visible in their free wanderings and picturesque tweet as a postponement of human activities and strolls.

We celebrate Earth Day and Environment Day respectively only once throughout the year and get enchanted whereas the need of the hour is to imbibe eternal natural values ​​and obligations in our day to day conduct and practical life.

 Although the largest economies of the world are on the verge of collapse from an economic point of view, we can try to compensate for that loss by conserving the perks we are getting in natural form.  Although some scholars do not consider the two to be replacements for each other, But both have been indisputably compensative  to each other since primeval times because the basic substances for the vibrancy of the economy are derived from natural resources.

 The concept of 'universal comfort & interest' cannot ever fructify due to the annihilation of mutual cohesion.

 I wish!  That this whole pleasant natural change will be permanent forever, which is possible only if we take the unfavorable circumstances as a witness and take a firm resolve that we will never offer the opportunity to enrage nature, but receive it as a gift from the majesty of lockdown  Keeping the wealth intact, will move forward on the path of inclusive growth.


 #Lockdownpros #Advantagesoflockdown #Meritsoflockdown #Benefitsoflockdown #Brightersideoflockdown


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Tuesday, April 14, 2020

'लॉकडाउन का उपहार- पक्षियों के कर्णप्रिय कलरव की बहार'

लॉकडाउन का उपहार- पक्षियों के मनभावन कलरव की बहार


🕊️लॉकडाउन- प्रकृति के भय ने पर्यावरण की काया पलटी तो गौरैया संग फुदकी और पर्पल सनबर्ड भी लौटी।


Image Credit: Pixabay

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इसे प्रकृति का हस्तक्षेप ही मानना चाहिये। मानव सभ्यता ने अपनी जिन लालसाओं और महत्वाकांक्षाओं को विकास का छद्म वेष प्रदान कर पर्यावरण का सर्वनाश किया और सकल पशु-पक्षियों को अपने आश्रय त्यागकर कहीं अन्यत्र शरण खोजने हेतु बाध्य कर दिया, एक अदृश्य घातक वायरस के भय से वह स्वेच्छाचारिता थम गई है। पर्यावरण में सुखद परिवर्तन हुआ तो मनुष्यों के निकट अपने लिये बसेरा खोजने वाली गौरैया कई वर्षों पश्चात् पुनः ग्रामीण व नगरीय बस्तियों में लौट आई है। इस नन्हीं चिड़िया के शुभागमन के साथ ही कोयल और बुलबुल के बढ़ते मधुर कलरव ने भी सभी को हतप्रभ किया है।
संक्रमण अवरोधन हेतु क्रियान्वित मात्र त्रैसाप्ताहिक लॉकडाउन से ही पर्यावरण में व्यापक परिवर्तन आ गया है। वायु प्रदूषण दस गुना तक कम हो चुका है तो ध्वनि प्रदूषण भी अपने न्यूनतम स्तर तक पहुँच गया है। मनुष्यों को कदाचित यह लॉकडाउन न भाया हो, किन्तु वातावरण के सीमा से अधिक प्रदूषित हो जाने से निराशावश जिन पक्षियों ने नगरीय क्षेत्रों से सम्बन्ध विच्छेद कर लिया थे, वे अब पुनः दस्तक देने लगे हैं जिनके शुभ चरणों की आहट ने दुर्लभ  पक्षियों के पुनर्वास की शुभांकक्षा को भी बल प्रदान किया है। नगर के पृथक-पृथक क्षेत्रों में कई वर्षों उपरान्त पुनः पक्षियों का कलरव गुँँजायमान है। विशेषज्ञों के मतानुसार अब नगरों में पक्षियों को खुली और स्वच्छ वायु में श्वास लेने का अवसर मिल रहा है। यही वजह की कई वर्षों पश्चात् पुनः स्थानीय परिवेश में पक्षी चहचहाने लगे हैं। गौरैया के संग कई वर्षों बाद फुदकी व पर्पल सनबर्ड नामक चिड़ियाँ भी नगरों की ओर लौटी हैं। पक्षियों की उपस्थिति एवम् उनका व्यवहार पर्यावरण में हो रहे बदलावों का भी सूचक है। भूकम्प या तूफान की आहट से पूर्व ही गौरैया, बुलबुल, कोयल, कबूतर, कौआ, गिद्ध आदि पक्षी अपना ठिकाना बदल लेते हैं। तभी तो पक्षी विज्ञानी पक्षियों की उपस्थिति और व्यवहार के आधार पर मौसम का भी अनुमान लगा लेते हैं। घने कंक्रीट वनों में रूपांतरित हो चुके नगरों में पक्षियों को घोंसले बनाने के साथ ही अपने भरणपोषण की भी समस्या होती थी जो आज भी कायम है। अनेकों पक्षी वर्षों तक वृक्षों या घरों की छतों जैसे उपयुक्त स्थानों पर मनुष्यों के इर्दगिर्द रहने का प्रयास करते रहे हैं परन्तु बढ़ते प्रदूषण ने उनके धैर्य को भंग कर दिया। एक स्थिति तो ऐसी आई कि गौरैया ग्रामीण क्षेत्रों में तक कम हो गईं तथा उसे लुप्तप्रायः पक्षी के श्रेणी में दर्ज कर 'वर्ल्ड स्पैरो डे' तक मनाया जाने लगा। लॉकडाउन उन्हें पुनः स्वछंद विचरण का अवसर प्रदान किया है। पक्षियों के आगमन से पारिस्थतिकी तन्त्र में भी निकट भविष्य में अनुकूल परिवर्तन प्रदर्शित होंगे बशर्ते हम इस लॉकडाउन से स्थाई सबक लेते हुये प्रकृति और उसके पारितन्त्र से खिलवाड़ को तिलांजलि दे दें।।
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ENGLISH VERSION:


'Gift of lockdown - Springtide of avian's dulcet tweets'


Lockdown- As the fear of nature metamorphosed the environment, the sparrows along with Jenny Wren and Purple Sunbird also returned.


It should be considered as interference of nature.  Human civilization has destroyed the environment by providing a false pretense of development to its lusts and ambitions, and has forced all the birds and animals to abandon their shelter and seek shelter elsewhere, fearing an invisible deadly virus, it has ceased to be arbitrary.  If there is a pleasant change in the environment, then the sparrow, who has found a shelter for himself near humans, has returned to rural and urban settlements after many years.  Along with the presence of this little bird, the sweet tweet of cuckoo and nightingale has also shocked everyone.

 The mere three week lockdown implemented for infection prevention has brought about a drastic change in the environment.  Air pollution has reduced by ten times, whereas noise pollution has also reached its minimum level.  Humans may not have liked this lockdown, but frustrated with the environment being polluted beyond the limits, birds that had severed their connection to urban areas are now knocking back, whose auspicious steps signify rehabilitation of rare birds also.  Auspiciousness has also been emphasized.  After several years, the tweet of birds is buzzing in different areas of the city.  According to experts, birds in cities are now getting the opportunity to breathe in open and clean air.  This is the reason why birds have started chirping in the local environment after many years. After several years along with sparrows, birds named Jenny Wren and Purple Sunbird have also returned to the cities.  The presence and behavior of birds is also indicative of changes in the environment.  Sparrows, bulbul, cuckoo, pigeon, crow, vulture, etc. birds change their habitat before the earthquake or storm inkling.  That's why ornithologists also predict the weather based on the presence and behavior of birds.  Apart from making nests in the cities that have been transformed into dense concrete forests, there was the problem of their sustenance also, which is still present today.  Many birds have been trying to be around humans at suitable places like trees or roofs of houses for years, but the increasing pollution has disturbed their patience.  A situation came to the fore when the sparrows presence was reduced even in the rural areas and entered the category of endangered birds which prompted us to celebrate 'World Sparrow Day'.  The lockdown has given them an opportunity to regress freely. The arrival of birds will also show favorable changes in the ecological system in the near future as well, provided we take a lasting lesson from this lockdown and stop playing with nature and its ecosystem.



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Friday, April 10, 2020

'कोरोना का सामरिक पक्ष'

कोरोना का सामरिक पक्ष


🚨कोविड-19 के विषाणु प्रसार के पृष्ठ में भिन्न-भिन्न विचार सामने आ रहे हैं। एक ओर कहा गया कि चीन ने महाशक्ति बनने की महत्वाकांक्षा में यह वायरस फैलाया, तो दूसरी ओर, इसके पीछे अमेरिकी फार्मा उद्योग का षड्यंत्र बताया गया। प्रश्न यह है कि जैविक आक्रमण जैसी स्थिति से निपटने में भारत की क्या तैयारी है??




चिकित्सा विशेषज्ञ दावा करते आये हैं कि कोरोना वायरस वुहान के पशु बाजारों में बिकने वाले जानवरों से फैला। लेकिन कम ही लोगों को ज्ञात है कि वुहान चीन के एकमात्र और चतुर्थ स्तर की उच्चतम माइक्रोबायोलॉजी प्रयोगशाला के लिये भी जाना जाता है।
संजीव शुक्ला ने एक अंग्रेजी दैनिक के अपने ब्लॉग में लिखा है कि गत वर्ष अगस्त में कनाडा पुलिस ने विन्नीपेग (जहाँ कनाडा की एकमात्र चौथे स्तर की माइक्रोबायोलॉजी लैब है) में बौद्धिक सम्पदा चुराने के आरोप में एक चीनी दम्पति को गिरफ्तार किया गया, वे दोनों वुहान स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी का भ्रमण भी कर चुके थे। संजीव शुक्ला ने भी बताया कि चीनी सेना के जनरल झैंग शिबो ने अपनी पुस्तक 'वार'स न्यू हाई लैंड' (2017) में नस्लीय जैविक हमलों का उल्लेख किया। उससे पहले 2015 में चाइनीज एकेडमी ऑफ मिलिट्री मेडिकल साइंसेज के उपाध्यक्ष हे फुचु ने युद्ध की नव रणनीतिक ऊँचाई के रूप में जैविक वस्तुओं को उद्धृत किया। इसे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के 2017 के उस कथन से जोड़ा जाये, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया था कि वह चीन को 2035 तक शीर्ष स्तर का नवोन्मेषी और दुनिया को प्रभावित करने वाला अग्रणी राष्ट्र बनाने चाहते हैं तो क्या निहितार्थ प्रकट होते हैं??
चीन वर्तमान में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, और वह अपनी सैन्य क्षमताओं को अनवरत दृढ़ कर रहा है, परन्तु जैव-रासायनिक युद्ध क्षमता के मोर्चे पर वह पश्चिमी देशों के स्तर पर नहीं पहुँच पाया है।
एक अंग्रेजी समाचारपत्र में मुद्रित लेख के अनुसार, चीन इस समय पाँच जैव-रासायनिक शस्त्र प्रयोगशालाओं की स्थापना में संलग्न है, जबकि अमेरिका, यूरोप, रूस और ऑस्ट्रेलिया में ऐसी करीब 50 प्रयोगशालायें संचालित हैं अथवा निर्माणाधीन हैं। लेकिन इबोला या मार्सबग जैसे भयानक विषाणुओं का अध्ययन देश में वायरस का आयात किये बिना सम्भव नहीं है। और अब ऐसी सूचनायें भी हैं कि कैसे चीनी वैज्ञानिकों को अमेरिका में प्रयोगशालाओं से सूचना व जैव रासायनिक सामग्री चुराने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। विगत सप्ताह अमेरिकी न्याय विभाग ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर चार्ल्स लेइबर की वुहान विश्वविद्यालय के साथ सम्बद्धता के कारण गिरफ्तारी की, उसे 50000 डॉलर व अन्य व्ययों के लिये 158000 डॉलर प्रतिमाह मिलते थे। चार्ल्स अन्य वैज्ञानिकों को आकर्षित करने के लिये लाखों डॉलर का एक अभियान भी चला रहा था, ताकि वे अपनी अनुसन्धान विशेषज्ञता चीन से साझा करें। एक और चीनी नागरिक जेंग झाओ जैंग को तब गिरफ्तार किया गया, जब वह चीन जाने के लिये विमान में सवार था। उसके सामान में से अमेरिकी विश्वविद्यालय के अनुसन्धान केन्द्र से चुराई गयी जैविक सामग्रियों की 21 शीशियाँ बरामद की गईं। हाल ही अमेरिकी अटॉर्नी जनरल ने चीन को अपना प्राथमिक शत्रु तक करार दिया था।
लेकिन अब पश्चिमी दुनिया में हजारों संक्रमितों की मृत्यु यूरोपीय देशों के लिये भी चिन्ताजनक है कि यह सब दुनिया में सर्वोच्च शक्ति के रूप में उभरने के निर्मम चीनी एजेंडे का हिस्सा हो सकता है। यद्यपि चीन पहले ही वायरस को चीन में लाने और उसकी अर्थव्यवस्था को पंगु कर देने के लिये अमेरिका को दोषारोपित कर चुका है। पहले यह आरोप भले ही ठीक प्रतीत होता हो, क्योंकि चीनी अर्थव्यवस्था को लगभग 348 अरब डॉलर और अमेरिकी अर्थव्यवस्था को करीब 15 अरब डॉलर की हानि होने का अनुमान था। पर अब जब दुनिया वायरस से जूझ रही है, तब चीनी अर्थव्यवस्था पुनर्जीवित होने लगी है।
जो महानुभव तर्क देते हैं कि चीन में भी भारी संख्या में लोग हताहत हुये, तो उसका जवाब यह है कि चीन ने अपने यहाँ इस वायरस को फैलने दिया। वुहान में वायरस की पहली रिपोर्ट आने के बाद बीजिंग ने यह सुनिश्चित हो जाने के लिये दो हफ्तों तक प्रतीक्षा की कि कोरोना वायरस एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में फैल रहा है। क्या वुहान में लोग आधुनिक दौर के गिनपिग थे? जिन डॉक्टरों ने वायरस के प्रति आगाह करना चाहा, उनकी आवाज़ दबा दी गई। स्मरण रखना चाहिये कि 1958 से 1962 के मध्य चीन में माओ के 'ग्रेट लीप फॉरवर्ड' के दौरान 4.5 करोड़ लोग काल कलवित हो गये। पर माओ उस नरसंहार को कोई परवाह नहीं थी।
दूसरी तरफ भारतीय मूल के अमेरिकी डॉ. शिवा जैसों का तर्क है कि अमेरिकी फार्मा उद्योग द्वारा विषाणुओं को छोड़ा गया है, जिन्हें दवा की बिक्री के साथ लाभ अर्जित करने की दरकार है। उन्होंने जो भय उत्पन्न किया है, वह हम सबको को वायरस ने निपटने के लिये टीकाकरण को प्रेरित करेगा। चूँकि मानव देह सहस्त्रों प्रकार के वायरस के प्रति संवेदनशील है, इसलिये इन अति सूक्ष्मजीवियों से बचाव हेतु कोई एक टीका कारगर नहीं हो सकता। पर अमेरिकी दिग्गज कम्पनियाँ नियमित रूप से टीकाकरण को हमारा प्रारब्ध बना देंगी।
ऐसे में, यह अत्यंत प्रासंगिक प्रश्न है कि क्या चीन या अमेरिका इस प्रकार की कुटिल योजना पर कार्यरत हैं। इससे निपटने के लिये हमारी क्या तैयारी है? वैसे तो प्रधानमंत्री महोदय के नेतृत्व में देश ने अभी तक कोविड-19 से डटकर मोर्चा लिया है। पर जैव रासायनिक हमले से निपटने की हमारी क्या तैयारी है? 
पूर्व डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया ने लिखा था यद्यपि भारतीय सेना को रासायनिक, जैविक, रेडियोलॉजिकल और परमाणु आक्रमणों के विरुद्ध तत्पर रहने हेतु प्रशिक्षित किया गया है, पर ये कार्यक्रम संसाधनों के अभाव के चलते ठण्डे बस्ते में हैं। हमारी विशाल जनसंख्या छितरी हुई है, स्वास्थ्य सेवायें डंवाडोल हैं, कनेक्टिविटी उन्नत नहीं है और हर राज्य सरकार अपने-अपने तरीके से जूझ रही है। ऐसे में यदि जैव-रासायनिक आक्रमण होता है, तो उसके परिणाम भीषण हो सकते हैं।।






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'भीलवाड़ा मॉडल- एक मिसाल'

क्यों चर्चा में है भीलवाड़ा मॉडल??


⛅भीलवाड़ा मॉडल.....जो देश भर में हो रहा चर्चित, वुहान बनने से ऐसे रोका।

⛅21 संक्रमण पीड़ित स्वस्थ हुये, अब महज तीन शेष, केन्द्र सरकार ने भी की प्रशंसा।




देश सर्वप्रथम कोरोना जोन बने भीलवाड़ा ने वायरस के विरुद्ध युद्ध जीत लिया है। यह देश का एकमात्र नगर है, जिसने 20 दिन में कोरोना को परास्त किया है। यह यूँ ही सम्भव नहीं हुआ। जिला प्रशासन की ठोस रणनीति, कठोर निर्णय, चुनावों की भाँति प्रबन्धन और जीतने की जिद।
कलेक्ट्रेट कर्मचारियों ने रात-रात भर जागकर कार्य किया और भीलवाड़ा को बेमिसाल बना दिया। यहाँ स्थिति इतनी तीव्रता से बिगड़ी कि राजस्थान में सर्वाधिक 27 रोगी सामने आये। ये सभी एक निजी अस्पताल के स्टाफ व रोगी थे। बढ़ती संख्या से व्याकुल प्रशासन ने स्वयं कहा था, 'भीलवाड़ा बारूद के ढेर पर है।' लेकिन मनोबल कायम रहा।
19 मार्च को पहला रोगी सामने आया। अगले दिन पाँच और रोगियों की पुष्टि होते ही कलेक्टर राजेन्द्र भट्ट ने कर्फ्यू लागू कर दिया। प्रतिदिन कई बैठकें, अधिकारियों से प्रतिपुष्टि व योजना निर्माण। सरकार को रिपोर्टिंग। देर रात सोना। प्रातः शीघ्र उठकर फिर वही दिनचर्या। 3 अप्रैल से 10 दिन का महाकर्फ्यू। यही कठोर फैसले महायुद्ध में मील के पत्थर साबित हुये। अन्ततः जिद की जीत हुई। जिस नगर को पहले वुहान और इटली तक की संज्ञा दी जाने लगी। वहाँ गम्भीर रोगियों का देहान्त छोड़कर चिकित्सकों के कड़े परिश्रम ने कोरोना को मात दे दी। तीन चिकिसकों सहित 21 संक्रमित पुनः स्वस्थ हो चुके हैं। यही वजह है कि भीलवाड़ा को केन्द्र सरकार ने भी सराहा। क्लस्टर कन्टेनमेंट का यह मॉडल देशभर में लागू हो रहा है, अब कोरोना से संघर्ष की विधि पूरा देश भीलवाड़ा से सीखेगा। 


✌️सफलता की कहानी...


🔹दो बार सेनेटाइजेशन: नगर के 55 वार्डों में नगर परिषद् के माध्यम से दो बार सेनेटाइजेशन कराया गया। हर गली-मोहल्ले, कॉलोनी में हाइपोक्लोराइड का एक प्रतिशत मात्रा में छिड़काव किया गया।

🔹संक्रमण प्रसारक अस्पताल सील-

सर्वप्रथम प्रशासन ने संक्रमित स्टाफ वाले अस्पताल को सील कराया। 22 फरवरी से 19 मार्च तक अस्पताल पहुँचे रोगियों की सूची निकलवाई। 4 राज्यों के 36 व राजस्थान के 15 जिलों के 498 रोगी पहुँचे थे। इन सभी को कलेक्टर ने सूचित कर आइसोलेट कराया। अस्पताल के 253 स्टाफ व जिले के 7 हजार रोगियों की स्क्रीनिंग की गई।


🔹पहली बार 25 लाख जनसंख्या की स्क्रीनिंग-

भीलवाड़ा जिले में देश की सबसे बड़ी 25 लाख नागरिकों की स्क्रीनिंग कराई गई। छह हजार कर्मचारी जुटे। रोगी के सम्पर्क में आये व्यक्तियों को चिन्हित किया गया। 7 हजार से अधिक संदिग्ध होम क्वारंटाइन में रखे गये। एक हजार लोगों को 24 होटलों, रिसॉर्ट व धर्मशालाओं में क्वारंटाइन किया गया।


🔹रात तीन बजे तक डाटा कलेक्शन-

सर्वे का उत्तरदायित्व चिकित्सा विभाग का था। गाँवों में फील्ड सर्वे की जिम्मेदारी एडीएम राकेश कुमार को दी गयी। यह बड़ी चुनौती थी। कोर टीम रात तीन बजे तक सम्बन्धित एसडीएम से डाटा कलेक्शन कर कम्पाइल करती। अगले दिन सूर्योदय के साथ ही रिपोर्ट कलेक्टर की टेबल पर होती थी जिसके आधार पर भावी रणनीति तय होती थी।


🔹जहाँ कोरोना रोगी, वहाँ कर्फ्यू-

जिले के जिस ग्रामीण क्षेत्र या गाँव का व्यक्ति कोरोना से संक्रमित मिला, उस गाँव या क्षेत्र को केन्द्र बिन्दु मानते हुये एक किमी की परिधि को नो मूवमेंट जोन घोषित कर दिया गया यानी वहाँ भी कर्फ्यू प्रभावी हो गया।


🔹पहले कर्फ्यू फिर महाकर्फ्यू-

छह पॉजिटिव केस आते ही 20 मार्च को भीलवाड़ा शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया। फिर 14 दिन बाद 3 से 13 अप्रैल तक 10 दिन के लिये महाकर्फ्यू। ऐसा करना अपरिहार्य था ताकि लोग घरों में रहें और वायरस का सामुदायिक प्रसार न हो सके।


🔹आइसोलेशन वाॅर्ड बदलते रहे स्टाफ-

जिले के राजकीय अस्पताल में कोरोना रोगियों के लिये बनाये गये आइसोलेशन वाॅॅर्ड में कार्यरत डॉक्टर्स व मेडिकल स्टाफ की हर सप्ताह ड्यूटी बदलती रही। वे कोरोना से संक्रमित न हों, इसलिये सात दिन की ड्यूटी के बाद उन्हें भी 14 दिन क्वारंटाइन में रखा। परिणामस्वरूप, अब तक 69 के स्टाफ में से एक भी संक्रमित नहीं हुआ।


🔹जिले की सीमायें सील...

प्रशासन ने जिले की सीमायें सील कर दीं। 20 चेक पोस्ट बनाकर कर्मचारी तैनात कर दिये, ताकि न कोई अन्दर आ सके और न ही बाहर जा पाये।


🔹सभी बसें व ट्रेनें बन्द कराईं...

शहर व जिले में रोडवेज व निजी बसों सहित सभी तरह के वाहन, यहाँ तक कि ट्रेने भी बन्द कराईं जिससे संक्रमण का प्रसार शून्य रहे।


🔹राशन वितरण...

कर्फ्यू में जनता को खान पान का सामान उपलब्ध कराने के लिये सहकारी भंडारों के माध्यम से वाहनों द्वारा घर-घर राशन सामग्री, फल-सब्जियाँ डेयरी के जरिये दूध पहुँचाया गया। श्रमिकों, असहाय व जरूरतमंदों को निःशुल्क भोजन व किराना सामान भेजा गया।


🔹जन सहयोग से हुआ सम्भव-

भीलवाड़ा के जिलाधिकारी राजेन्द्र भट्ट के कथनानुसार, भीलवाड़ा में उन्होंने प्रथम चरण में कोरोना से महायुद्ध जीत लिया है। अब तक 21 संक्रमित पॉजिटिव से निगेटिव हो चुके हैं जिनमें से 15 को घर भेजा जा चुका है। केन्द्र सरकार ने उनके द्वारा पारित निर्णयों व रणनीति को आदर्श माना है। यह सब पूरी टीम के सहयोग से ही सम्भव हो सका। भीलवाड़ा की जनता का भी भरपूर सहयोग मिला। अब महायुद्ध का द्वितीय चरण जिसे भी वे सभी लोगों के सहयोग से जीतेंगे, ऐसा उन्हें विश्वास है और पूरे देश को भी कि हमारा प्रिय भारत महायोद्धा व पथप्रदर्शक बनकर उभरेगा।।
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ENGLISH VERSION:


'Bhilwara model - an illustration'


 ⛅Bhilwara model ..... which is being discussed across the country, prevented itself from becoming Wuhan.


 ⛅21 infection victims became healthy, now only three remaining, the Central Government also praised their efforts.


 Becoming the first ever corona zone in the country, Bhilwara has won the war against the virus.  It is the only city in the country that has defeated Corona in just 20 days.  This was not possible just like that.  Solid strategy of district administration, strict decision, management like elections and insistence on winning.

 The collectorate staff worked awake overnight and made Bhilwara unmatched.  The situation deteriorated so rapidly that the maximum number of 27 patients appeared in Rajasthan at that time.  All of them were staff and patients of a private hospital.  Disturbed by the increasing numbers, the administration itself said, "Bhilwara is on a pile of gunpowder."  But morale persisted.

 On March 19, the first patient appeared.  The next day, as soon as five more patients were confirmed, Collector Rajendra Bhatt imposed the curfew.  Many meetings per day, feedback from officials and planning.  Reporting to the government.  Sleeping late at night, Waking up early in the morning and then the same routine. Imposing 10 days Grand curfew from 3rd April.  These stiff decisions proved to be milestones in the Great War.  Ultimately, tenacity won.  The city which was earlier referred to as Wuhan and Italy. Apart from the sad demise of serious patients, the hard work of the doctors defeated Corona.  21 infected, including three doctors, have recovered.  This is the reason why the central government also appreciated Bhilwara.  This model of Cluster Containment is being implemented across the country, now the whole country will learn the method of struggle from Bhilwara against corona.


 ✌️Story of success ...


 🔹Two times sanitization: In 55 wards of the city, sanitation was done twice through the city council.  One percent concentrate of hypochloride mixed in water was sprayed in every street and colony.


🔹Infection Disseminator Hospital Sealed-

First of all the administration sealed the hospital with infected staff.  A list of patients was extracted out who reached the hospital from 22 February to 19 March.  There were 498 patients from 36 districts in 4 states and 15 districts of Rajasthan.  All these visitors were apprised by the collector and their isolation was ensured.  253 staff of the hospital and 7 thousand patients of the district were screened.


 🔹First time screening of 25 lakh population-

Screening of the country's largest 2.5 million citizens was conducted in Bhilwara district.  Six thousand employees grappled.  People who came in contact with the patients were identified.  More than 7 thousand suspects were placed in quarantined homes.  One thousand people were quarantined in 24 hotels, resorts and hospitals.


 🔹Data collection till 3 am-

 The medical department was responsible for the survey.  The responsibility of field survey in villages was given to ADM Rakesh Kumar.  This was a huge challenge.  The core team would collect and compile data from the concerned SDM till 3 pm.  The next day, with the sunrise, the report would be on the collector's table, based on which the future strategy was decided.


🔹Corona patients where, Curfew there-

 The rural area or village of the district where the person got infected with corona, the area of ​​one km was declared as no movement zone, considering that village or area as the radius, curfew was also effective there.


🔹 First curfew then Grand curfew-

 The curfew was imposed in Bhilwara city on March 20 with the arrival of six positive cases.  Then 14 days later, from 3 to 13 April, Grand curfew for 10 days came into effect.  It was unavoidable to do so that people live in homes and the community could not spread the virus.


 🔹Staff kept changing the Isolation Ward-

 The duty of doctors and medical staff working in the isolation ward made for corona patients at the state hospital of the district changed every week. As a precautionary measure to prevent them  from getting infected with corona, After seven days of duty, they were kept in quarantine for 14 days.  As a result, not a single of the 69 staff has been infected so far.


 🔹Sealing the territories of the district ...

The administration sealed the boundaries of the district.  Employed 20 check posts and deployed personnels there, so that no one could come in nor go out.


 🔹 Stopped all buses and even trains ...

In the city and district, all types of vehicles including roadways and private buses, even trains were closed so that the spread of infection remained zero further.


 🔹Ration Distribution ...

Ration materials, fruits and vegetables to provide food and food to the public in the curfew. Milk was distributed door to door through dairies. Free food and groceries were sent to laborers, helpless and needy.


🔹Became possible with public cooperation-

According to the statement of Bhilwara District Magistrate Rajendra Bhatt, In Bhilwara, they won the Great War from Corona in the first phase.  So far, 21 have become negative from positive, out of which 15 have been sent home.  The Central Government has considered the decisions and strategies passed by them as a model.  All this happened possible only with the support of the entire team.  The people of Bhilwara also shown full support.  Now they believe in the second phase of the great war, they will win with the support of all the people and the whole country believes too that our beloved India will emerge as a Great Warrior and leader against this pandemic.



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'विपदाकाल में भारतीय विधायिका का प्रेरक प्रतिमान'

कोरोनाकाल में भारतीय विधायिका की सराहनीय पहल


🇮🇳भारत सरकार द्वारा मन्त्रियों-सांसदों के वेतन में तीस फीसदी कटौती तथा दो वर्ष तक सांसद निधि पर रोक का जो निर्णय लिया है वह सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं है, जिसे महामारी की बढ़ती चुनौती के चलते भलीभाँति समझा जा सकता है। वर्तमान में देश में उपलब्ध संसाधनों के अधिकतम उपयोग की दरकार है।




केन्द्र सरकार ने इस वर्ष समस्त मन्त्रियों व सांसदों के वेतन में तीस फीसदी कटौती करने एवम् अग्रिम दो वर्ष की सांसद निधि को कोविड-19 की महामारी से संघर्ष में व्यय करने का जो साहसिक, सराहनीय, अनुकरणीय व प्रेरणास्पद जो निर्णय लिया है, उसका महज सांकेतिक महत्व ही नहीं है अपितु यह महामारी जिस प्रकार विस्तारित हो रही है और निरन्तर संसाधनों की जैसी माँग बढ़ रही है, उसमें इस राशि की बहुपयोगिता समझी जा सकती है। यही नहीं, स्वयं राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यपालों ने भी अपने वेतन से तीस फीसदी की कटौती किया जाना प्रस्तावित किया है, जो न केवल स्वागतयोग्य है, बल्कि इसमें देश की एकता के सूत्र भी निहित हैं। सांसदों को अपने निर्वाचन क्षेत्र के विकास हेतु पाँच करोड़ रुपये मिलते हैं, इस तरह लोकसभा व राज्यसभा के समस्त सांसदों को दो वर्ष में मिलने वाली कुल सांसद निधि में 7900 करोड़ रुपये होते हैं, जिसे भारत के संचित कोष में स्थानांतरित किया जायेगा। वस्तुतः अनेक सांसदों ने अपने हिस्से की कुछ राशि कोविड-19 से निपटने के लिये निर्मित कोष में दान करने की पहल की थी, किन्तु सरकार के इस कदम से इसमें किसी प्रकार का असंतुलन नहीं रहेगा। निस्संदेह, हमारे यहाँ चीन, अमेरिका और पश्चिमी देशों की तुलना में काफी हद तक स्थिति नियन्त्रण में है, लेकिन अब मृत्यु का आँकड़ा 150 पार हो चुका है तथा संक्रमितों की संख्या पाँच हजार की दहलीज लाँघ चुकी है। कोविड-19 की बढ़ती चुनौती के मध्य, यह अपरिहार्य है कि देश में उपलब्ध संसाधनों का उचित दिशा में अधिकतम उपयोग सुनिश्चित हो। देश में अभी यह जंग दो स्तरों पर है, पहला, अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्य कर्मियों को पीपीई, ग्लव्स और मास्क जैसी सारी आवश्यक वस्तुयें उपलब्ध कराई जायें; और दूसरा, लॉकडाउन के कारण प्रभावित होने वाले एक भी व्यक्ति को भूखे या बिना छत के न रहना पड़े। कुछ दिन पूर्व ही केन्द्र सरकार के प्रशासनिक सुधार एवम् लोक शिकायत विभाग के आंतरिक सर्वे में मात्र चालीस फीसदी जनपदों के कलेक्टरों व अन्य अधिकारियों ने अवगत कराया कि उनके अस्पतालों में पर्याप्त सुविधायें उपलब्ध हैं, वहीं 28 फीसदी ने बताया कि अस्पतालों में आइसोलेशन बेड का अभाव है। सरकार निरन्तर इन दोनों ही मोर्चों पर प्रयासरत् है और जैसा कि स्वयं प्रधानमंत्री महोदय ने कहा कि इस आपदा से हम सब मिलकर लड़ेंगे तो उनकी अद्भुत नेतृत्व दक्षता एक आशाज्योति तो प्रज्वलित करती ही है।


🇮🇳उत्तर प्रदेश सरकार भी अनुकरणीय पदचिन्हों पर अग्रसर.....

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में बुधवार को सम्पन्न कैबिनेट की बैठक में विधायक निधि को एक वर्ष के लिये निलम्बित कर दिया गया। साथ ही मुख्यमंत्री, मन्त्रियों और विधानसभा व विधान परिषद् सदस्यों के वेतन में 30 फीसदी कटौती के प्रस्ताव को स्वीकृती दी गई। यह राशि यूपी कोविड केयर फण्ड में जमा होगी और इससे चिकित्सीय सुविधाओं, खाद्य पदार्थ, क्वारंटाइन कैम्प व अन्य सुविधाओं पर व्यय किया जायेगा। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सम्पन्न कैबिनेट बैठक के बाद वित्त मन्त्री सुरेश खन्ना व ग्राम्य विकास मन्त्री मोती सिंह ने बताया कि सभी मन्त्रियों व विधायकों के निर्वाचन क्षेत्र भत्ते एवम् कार्यालय भत्ते की तीस फीसदी राशि भी कोविड केयर फण्ड में जमा करने का निर्णय लिया गया है। केवल विधायक निधि से ही 1509 करोड़ रुपये कोविड केयर फण्ड में जमा होंगे। सुरेश खन्ना के अनुसार प्रदेश में 56 मन्त्री हैं। विधायक व विधान परिषद् सदस्यों की संख्या 503 है। इनके वेतन से 30 फीसदी कटौती से कुल मिलाकर 17 करोड़ 50 लाख 50 हजार रुपये एक वर्ष तक जमा होंगे।
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ENGLISH VERSION:


🇮🇳The decision taken by the Government of India to cut the salary of ministers and MPs by thirty percent and to stop the MP fund for two years is not just symbolic, which can be understood well due to the increasing challenge of the epidemic.  Currently, there is a need for maximum utilization of available resources in the country.


The bold, commendable, exemplary and inspiring decision that the Central Government has made this year to cut the salary of all ministers and MPs by thirty percent and to spend the MPLAD fund for the next two years in the fight against the epidemic of Kovid-19. This initiative hasn't just a symbolic significance, but in the way this epidemic is expanding and the demand for resources is increasing, the versatility  of this amount could be understood. Not only this, the President, the Vice-President and the Governors themselves have also proposed a 30 per cent deduction from their salary, which is not only welcome, but it also contains the sources of unity of the country.  MPs get five crore rupees for the development of their constituency, thus the total MP fund received in two years to all MPs of Lok Sabha and Rajya Sabha stands at Rs 7900 crore, which will be transferred to the Consolidated Fund of India.  In fact, many MPs had taken the initiative to donate some amount of their share to the fund created to deal with Kovid-19, but now there will be no imbalance in this move administered by the government.  Undoubtedly, we have a much larger control situation than China, America and Western countries, but now the death toll has crossed 169 and the number of infected has crossed the threshold of 5865.  Amidst the growing challenge of Kovid-19, it is inevitable that the available resources in the country can be optimally utilized in the right direction.  This war has to be dealt on two levels in the country, firstly, all the essential items like PPE, Gloves and Masks should be made available to the frontline health workers;  And secondly, not a single person affected by the lockdown has to stay hungry or without a roof.  Only a few days ago, in the Internal Reforms of the Central Government's Administrative Reforms and Public Grievance Department, only forty percent of the district collectors and other officials informed that adequate facilities are available in their hospitals, while 28 percent said that there is lack of isolation beds in their hospitals.  The government is constantly working on both these fronts and as the Prime Minister himself said that we will fight this disaster together, his amazing leadership skills ignite a spark of hope.


🇮🇳 The Uttar Pradesh government is also moving forward on exemplary footprints .....

The MLA fund was suspended for one year in a cabinet meeting held under the chairmanship of Chief Minister Yogi Adityanath on Wednesday.  At the same time, a proposal to cut the salary of the Chief Minister, ministers and members of the Legislative Assembly and Legislative Council by 30 percent was approved.  This amount will be deposited in UP Kovid Care Fund and will be spent on medical facilities, food items, quarantine camps and other facilities.  After the cabinet meeting held through video conferencing, Finance Minister Suresh Khanna and Rural Development Minister Moti Singh informed that it has been also decided to deposit 30 percent of the constituency allowances and office allowances of all ministers and MLAs in the Kovid Care Fund. Rupees 1509 crore will be deposited in the Kovid Care Fund  from the MLA Fund only.  According to Suresh Khanna, there are 56 ministers in the state.  The number of MLA and MLC members is 503.  A total of 17 crore 50 lakh 50 thousand rupees will be deposited for one year with 30 percent deduction from their salary.


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