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Sunday, April 19, 2020

'लॉकडाउन का उज्जवल पक्ष- प्रकृति का प्रतिरक्षा तन्त्र हुआ दक्ष'

'लॉकडाउन का उज्जवल पक्ष- प्रकृति का प्रतिरक्षा तंत्र हुआ दक्ष'


प्रचलित कहावत है कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, ठीक उसी प्रकार जीवन में हर घटना के भी दो पक्ष होते हैं- सकारात्मक तथा नकारात्मक। किसी भी घटनाक्रम के प्रति अपनी राय कायम करना पूर्णतः हमारे दृष्टिकोण पर निर्भर है। चाहें तो हम निराशावाद से ग्रस्त होकर जीवन के विविध पड़ावों से कुंठित हो अवगुणों का छिद्रान्वेषण करते रहें या फिर आशावाद से पुलकित हो उन उज्जवल गुणों पर मंथन कर तथा प्रतिकूल परिस्थितियों के आविर्भाव का मूल कारण खोजकर उससे उत्पन्न दुष्प्रभावों से स्थाई सबक लेते हुये कल्याणकारी ऊर्जा को आत्मसात करें तथा विनाशकारी ऊर्जा का विसर्जन कर प्रगति के पथ पर अग्रसर रहें।



Image Credit: Pixabay


वर्तमान विकराल परिदृश्य जहाँ मानव सभ्यता के परिप्रेक्ष्य में अघोषित अभिशाप सा प्रतीत होता है तो वहीं प्रकृति के लिये यह किसी अलौकिक वरदान से कम नहीं। आधुनिक काल के महाकाय पुरोधा, विद्वान तथा वित्तीय प्रावधान जिस पतित पावन पर्यावरणीय संकल्प को साकार करने में अक्षम रहे, उस दुष्कर स्वप्न को एक अदृश्य अतिसूक्ष्म विषाणु के भय की सर्वव्यापकता से प्रेरित लॉकडाउन ने फलीभूत कर दिया है।

गंगा-यमुना सरीखी पौराणिक पूज्य सरितायें जो चिरकाल से भारत के एक विशाल क्षेत्र की जीवनधारा बन मानव सभ्यता को पोषित करती रही हैं, उन्हीं जीवनदायनी-मोक्षदायिनी सरिताओं को स्वार्थान्ध मानव ने विवेकशून्यता की पराकाष्ठा का प्रदर्शन कर दयनीय स्थिति में पहुँचा दिया जिसकी प्राकृति स्फूर्त क्षतिपूर्ति आज लॉकडाउन के सौजन्य से हो रही है। चन्द सप्ताह पूर्व गंगाजल आचमन तो दूर, अधिकांश क्षेत्रों में स्नान योग्य भी उचित नहीं जान पड़ता था। वही गंगाजल आज हरिद्वार परिक्षेत्र में पूर्णतः आचमन योग्य हो चुका है, वहीं अन्य क्षेत्रों में विगातकाल के सापेक्ष उत्तम स्थिति में है। 
पथभ्रष्ट मानव सभ्यता द्वारा प्रदत्त असीम प्रताड़ना सहते-सहते जो यमुना घोर उदासीनता वश मृतप्रायः सी हो चुकी थी आज उसका जल दर्पण की भाँति झिलमिला रहा है। 
ऐसी ही सुखद स्थिति देश की अन्य प्रमुख जलराशियों की भी है जो कि एक नयनाभिराम अनुभूति है।

वायुमण्डल भी स्वशोधन उपरान्त स्वच्छ नीलवर्ण आकाश, शुद्धतम प्राणवायु, रात्रिकालीन दुर्लभ तारामण्डल व ग्रह-नक्षत्रों के निर्विघ्न दर्शन सरीखे अनमोल उपहार हम पर उदार भाव से न्योछावर कर रहा है।
प्रकृति प्रेमी तो यहाँ तक दावा कर रहे हैं कि 200-250 किमी दूर अवस्थित विशाल पर्वतमाला के दर्शन भी अब सुलभ हो चुके हैं।
दिल्ली, आगरा तथा अन्य भारतीय महानगर जो कभी विश्व के शीर्ष प्रदूषित नगरों में सम्मिलित थे, उनका वायु गुणवत्ता सूचकांक 50 के स्तर से भी निम्न पायदान पर पहुँच चुका है जिसे उत्कृष्ट श्रेणी में माना जाता है।
जो पशु-पक्षी अपने स्वाभाविक आश्रयों के अभाव में लुप्तप्राय से हो गये थे, उनके भी स्वच्छन्द विचरण व मनोरम कलरव के वृतान्त मानवीय गतिविधियों तथा चहलकदमी के स्थगन स्वरूप दृष्टिगोचर होने लगे हैं।

हम वर्ष भर में मात्र एक दिन पृथ्वी दिवस तो एक दिन पर्यावरण दिवस मनाकर आत्म मुग्ध हो अपने परम कर्त्तव्यों से इतिश्री कर लेते हैं जबकि समय का चक्र हमसे नित्य के आचार व्यवहार एवम् व्यावहारिक जीवन में अक्षुण नैसर्गिक मूल्यों व दायित्वों को आत्मसात करने की प्रबल अपेक्षा कर रहा है।

यद्यपि आर्थिक दृष्टिकोण से संसार की विशालतम अर्थव्यवस्थायें धराशायी होने की कगार पर हैं तथापि प्राकृतिक रूप में जो अनुलाभ हम पा रहे हैं उसे सँजोकर हम उक्त क्षति की प्रतिपूर्ति का प्रयास तो कर ही सकते हैं। हालाँकि कुछ विद्वान दोनों को एक-दूसरे का स्थानापन्न भले ही न मानें किन्तु दोनों ही निर्विवाद रूप से एक-दूसरे के प्रतिपूरक आदिकाल से ही रहे हैं क्योंकि अर्थव्यवस्था की जीवंतता हेतु मूल पदार्थ प्राकृतिक संसाधनों से ही प्राप्त होते हैं।
परस्पर सामंजस्य के विलोपन से 'सर्वसुखाय, सर्वहिताय' रूपी अवधारणा कदापि फलीभूत नहीं हो सकती।

काश! कि यह सम्पूर्ण सुखद प्राकृतिक परिवर्तन सदा-सदा के लिये स्थाई हो जाये जो कि तभी सम्भव है जब हम अभिमुख आपत्तिकाल को साक्षी मानते हुये अटल प्रण लें कि हम प्रकृति को पुनः कुपित होने का अवसर कदापि प्रदान नहीं करेंगे अपितु लॉकडाउन के प्रताप से उपहारस्वरूप प्राप्त सम्पदा को अक्षय रखते हुये सर्वसमावेशी विकास के मार्ग पर अग्रसर होंगे।।

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ENGLISH VERSION:


SUNDAY, APRIL 19, 2020


 'The brighter side of lockdown - Nature's immune system gained efficiency'


 The popular saying is that every coin has two aspects, in the same way every event in life also has two sides - positive and negative.  It is entirely up to our view to form our opinion about any event.  If we want to suffer from pessimism, be frustrated with various stages of life, keep on hairsplitting  the demerits or be swayed by optimism, by churning on those bright qualities and finding the root cause of the emergence of unfavorable conditions, taking a lasting lesson from the ill effects generated from it.  Imbibe the salutary energy and immerse destructive energy and continue on the path of progress.


 The present macabre scenario where in the context of human civilization seems like an undeclared curse, it is nothing less than a supernatural boon for nature.  The arduous dream of modern-day gigantic pioneers, scholars and financial provisions unable to embody the pious environmental resolve has been accomplished by the lockdown fueled by the ubiquitous fear of an invisible microbe.

Mythologically revered rivers like Ganga-Yamuna, that have been nurturing human civilization as a lifeline of a vast region of India since time immemorial, Those life-salvation sustaining rivers have reached a miserable condition by the self-styled human beings displaying the zenith of indiscretion, which is being compensated today by courtesy of lockdown.  A few weeks ago, not just Aachman/Gargling (Religious Hindu Rites) with Ganges water was a far away dream, even bathing in most areas was not considered appropriate.  The same Ganges water has become fully optimum to solemnise Aachman(Gargling) in Haridwar zone today, while in other areas it is in a good condition relatively to the earlier period.

 The Yamuna, which had become moribund under atrocious aloofness by continuously tolerating immense tortures inflicted on her by astray humans, is now sparkling like a mirror with adequate glaring water.

 A similar pleasant situation also exists in other major water bodies of the country, which is a panoramic experience.

 After it's spontaneous refinement, even the cleaner atmosphere is doling out priceless gifts like pure oxygen, sheer view of clean blue sky, nightly constellations, rare planets and galaxies to us.

Nature lovers are even claiming that view of the vast mountain ranges situated 200-250 km away has also become accessible.

 Delhi, Agra and other Indian metropolises that once were among the top polluted cities in the world, have an air quality index of less than 50, which is considered to be in the excellent category.

 The animals and birds, which had become endangered due to lack of their natural shelters, have also become visible in their free wanderings and picturesque tweet as a postponement of human activities and strolls.

We celebrate Earth Day and Environment Day respectively only once throughout the year and get enchanted whereas the need of the hour is to imbibe eternal natural values ​​and obligations in our day to day conduct and practical life.

 Although the largest economies of the world are on the verge of collapse from an economic point of view, we can try to compensate for that loss by conserving the perks we are getting in natural form.  Although some scholars do not consider the two to be replacements for each other, But both have been indisputably compensative  to each other since primeval times because the basic substances for the vibrancy of the economy are derived from natural resources.

 The concept of 'universal comfort & interest' cannot ever fructify due to the annihilation of mutual cohesion.

 I wish!  That this whole pleasant natural change will be permanent forever, which is possible only if we take the unfavorable circumstances as a witness and take a firm resolve that we will never offer the opportunity to enrage nature, but receive it as a gift from the majesty of lockdown  Keeping the wealth intact, will move forward on the path of inclusive growth.


 #Lockdownpros #Advantagesoflockdown #Meritsoflockdown #Benefitsoflockdown #Brightersideoflockdown


Disclaimer: All the Images belong to their respective owners which are used here to just illustrate the core concept in a better & informative way.




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