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Tuesday, May 26, 2020

MEASURES TO ENHANCE I.Q.

Measures to enhance I.Q.
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 Until six years ago, it was believed that a person's IQ is determined by genetic factors, so improvement in that is not possible.  But a recent study of Michigan University shows that our brain is more flexible than we understand.  The findings of the research can prove to be very important for those who have been poor in education since childhood, and this is why they are labelled as having a low IQ forever.  Clearly, an improvement in IQ is possible.  There are many ways to do this▶️

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 ✨ Make a habit of writing your thoughts. There can be no better brainstorming exercise to increase creativity, rationality and focus.  

✨ Develop the habit of reading books.  This will not only increase creativity in you, but will also keep your mind fresh. 

✨ By watching good movies and plays, you can learn how a particular character behaved in a particular situation.  

✨Do not keep yourself attached to a particular action for a long time.  This hinders your learning process.  New habits should be developed. 

 ✨By solving mind puzzles like Sudoku and Crossword, the mind is sharpened, and the person increases the ability to learn.

✨ Participating in healthy discussions not only provides an opportunity to analyse your thoughts, but also to get acquainted with new ideas.  

 Actually, now everyone is unanimous that IQ is related to both the genetics of the person and the environment in which he lives.  According to experts, genetic factors contribute 40–80% to our IQ, while the rest is influenced by the external environment.  Suppose a person is kept completely isolated from the external environment and kept for years in solitude.  In these circumstances, the input from outside his intelligence will be zero.  Obviously, the more a person learns from the outside world, the more his IQ will increase.  So stay updated and keep learning.

Monday, May 4, 2020

आखिर कब थमेगा शहादत का यह निर्मम सिलसिला??

आखिर कब थमेगा शहादत का यह अतिक्रूर कालक्रम??

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विश्वव्यापी आपदाकाल में जब भारत अपनी परोपकारी प्रकृति के अनुरूप अपने सहयोगी राष्ट्रों के अतिरिक्त कटु आलोचक राष्ट्रों तक को जीवनरक्षक औषधियाँ उपलब्ध कराने हेतु प्रतिबद्ध है तब इस घोर संक्रमणकाल में भी धूर्त पाकिस्तान अपने कुत्सित प्रयोजनों को पोषित कर दुष्कृत्यों को परिणति तक पहुँचाने से चूक नहीं रहा और धृष्टतापूर्वक आतंक की पौध के अनवरत निर्यात में लिप्त है जो कि कदापि आश्चर्यजनक या अप्रत्याशित नहीं है क्योंकि सर्प का तो स्वभाव ही है अवसर मिलते ही फण से आघात करना, भले ही उसे कितना ही दुग्धपान क्यों न कराया दिया जाये इसीलिये हम अनन्तकाल तक उसे दोषारोपित कर अपने उत्तरदायित्वों से बच नहीं सकते। आखिर कब तक यह पुलवामा या हंदवाड़ा सरीखे निर्मम हत्याओं के क्रम जारी रहेंगे?? कब तक हमें एक-एक आतंकी के उन्मूलन हेतु अनेकों वीर सपूतों की आहुति देनी पड़ेगी?? हमारे लिये इससे अधिक दुर्भाग्य, लज्जा और अपमान का विषय नहीं हो सकता कि अपनी ही जन्मभूमि पर, अपने ही वीर सपूतों को, अपने ही नेत्रों के समक्ष भाड़े के मोहरों के हाथों हताहत होते देखने को विवश होना पड़े। जब शान्तिकाल में हम अपने सैनिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में इतने अक्षम और असहाय हैं तब युद्धकाल में अपनी सहज विजय की कल्पना ही दुःस्वप्न सी जान पड़ती है।
आज का युग अत्याधुनिक सैन्य प्रौद्योगिकी, टोही घातक विमानों व कृत्रिम बुद्धिमत्ता का है तो क्यों हम बिना पूर्व परिस्थिति अवलोकन के अपने सैनिकों को सीधे विध्वंसक सामरिक कार्यवाहियों में झोंक कर अवाँछित जोखिम मोल नहीं ले रहे हैं जिसके परिणामस्वरूप हमें एक-दो आतंकियों के बदले पाँच-छह शूरवीर गँवाने पड़ रहे हैं। हम ऐसा उपक्रम क्यों नहीं करते कि क्षेत्र विशेष में सैनिकों के अवतरण से पूर्व ही स्टील्थ ड्रोन या रोबो वॉरियर्स के अनुप्रयोग से ऑपरेशन के अधिकांश भाग को निर्णायक अंजाम तक पहुँचा दिया जाये, तत्पश्चात् आवश्यकता पड़ने पर ही सैनिकों को प्रभावित क्षेत्र में प्रत्यक्ष रूप से भेजा जाये। एक महाशक्ति देश जब हजारों कोस दूर बैठे-बैठे अन्य देश के शीर्ष सैन्य कमाण्डर को अपने अति उन्नत शक्तिशाली ड्रोन के वार से यमलोक भेज सकता है तो क्या हम अपने सपूतों व उनके परिजनों को उनके अनमोल अस्तित्व के प्रति अभयदान प्रदान करने की दिशा में सार्थक उद्यम भी नहीं कर सकते?? क्या हमारे धरती के लालों के प्राण हमारे लिये इतने अल्पमूल्य हैं?? यदि नहीं तो उच्च अंतर्राष्ट्रीय मानदण्डों के अनुगमन के साथ ही अत्याधुनिक विश्वस्तरीय रणनीति से भी कई कदम आगे बढ़कर तत्काल असाधारण विचारधारा व कर्मठता अपनाने की नितान्त आवश्यकता है।
शहादतों के इस क्रूर सिलसिले को थामने के लिये सम्भवतः निम्न उपाय कारगर सिद्ध हो सकते हैं-

1. तकनीक एवम् प्रौद्योगिकी के मामले में सेना को पर्याप्त स्वायत्तता प्रदान करते हुये कृत्रिम बुद्धिमत्ता से संचालित शक्तिशाली  टोही विमानों, रोबो योद्धाओं, वाहनों आदि आवश्यक संसाधनों से यथाशीघ्र सुसज्जित किया जाये।
2. प्रथम सुझाव पर अमल करना सत्ताधीशों को दुष्कर जान पड़ता हो तो नापाक पड़ोसियों को बाद में पाठ पढ़ाने की सोचें, उससे पहले गृहशोधन अभियान के तहत घर के भेदियों का चुन-चुनकर समूल विनाश सुनिश्चित करें।
3. निर्रथक हो चुकी मौजूदा शिक्षा प्रणाली का जीर्णोद्धार करते हुये प्राथमिक स्तर से ही समृद्ध नैतिक व मानवीय मूल्यों की छत्रछाया में मात्र सैद्धांतिक शिक्षा के स्थान पर शोध एवम् अनुसन्धान आधारित शिक्षा को सर्वोच्च ध्येय निर्धारित कर क्रियान्वित किया जाये ताकि हर ड्योढ़ी से कम से कम एक नवोन्मेषी व नवाचारी पुरोधा राष्ट्रसेवा में समर्पित हो सके।।

'रामायण' ने दर्शक संख्या के समस्त रिकॉर्ड किये ध्वस्त

अतुल्य 'रामायण' लोकप्रिय शो 'गेम ऑफ थ्रोन्स' को पछाड़ सर्वाधिक दर्शकों के लिहाज से वैश्विक स्तर पर शीर्ष टीवी कार्यक्रम बना।

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दूरदर्शन पर रामानंद सागर कृत रामायण कार्यक्रम का पुनः प्रसारण दर्शकों के मध्य अत्यंत लोकप्रिय सिद्ध हुआ। दूरदर्शन पर रामायण, महाभारत सहित अन्य पौराणिक कार्यक्रमों ने दर्शकों का विशेष ध्यान आकृष्ट किया है जिससे टीवी कार्यक्रमों के इतिहास में नित्य नये कीर्तिमान स्थापित हो रहे हैं। दूरदर्शन के ट्वीट के अनुसार 16 अप्रैल को विश्व भर में रामायण एपिसोड को रिकॉर्ड 7.7 करोड़ दर्शकों द्वारा देखा गया।
25 मार्च से लागू राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के चलते अधिकांश देशवासियों के घर की चहारदीवारी तक सीमित हो जाने पर तीन दशक पश्चात् प्रशंसकों की प्रबल माँग पर विगत नब्बे के दशक में रामानंद सागर द्वारा रचित महान टीवी कार्यक्रम 'रामायण' ने 28 मार्च 2020 से पुनः प्रसारण के उपरांत वैश्विक स्तर पर बतौर मनोरंजक कार्यक्रम सर्वाधिक दर्शकों के मामले में विश्व रिकॉर्ड कायम किया है।
16 अप्रैल 2020 को एकल दिवस में ही 7.7 करोड़ दर्शक संख्या के साथ रामानन्द कृत अमर महाकाव्य ने प्रचलित शो 'गेम ऑफ थ्रोन्स' को दर्शकों की मामले में पछाड़ दिया है। गत वर्ष मई में 'गेम ऑफ थ्रोन्स' के अन्तिम अध्याय के निर्णायक प्रसारण को एकल रात्रि में देखने वालों की संख्या 1.93 करोड़ दर्ज की गई थी।
दूरदर्शन पर सर्वप्रथम 1987 (25 जनवरी 1987 से 31 जुलाई 1988 के मध्य) में प्रसारित होने वाली 78 अध्याय युक्त रामानन्द सागर द्वारा लिखित, निर्मित व निर्देशित 'रामायण' ने तभी से दर्शकों के हृदय में पंथ विशेष की भाँति श्रद्धेय स्थान अर्जित कर लिया था। इस ऐतिहासिक धारावाहिक में श्रीराम की भूमिका में अरुण गोविल, सीता जी की भूमिका में दीपिका चिखलिया टोपीवाला तथा लक्ष्मण की भूमिका में सुनील लाहरी जी किरदार दीर्घकाल तक अविस्मरणीय हो गये। इन प्रमुख चरित्रों के अतिरिक्त ललिता पवार जी मन्थरा के रूप में, अरविंद त्रिवेदी जी रावण के रूप में, दारा सिंह जी हनुमान के रूप में एवम् अन्य पात्र भी मुख्य भूमिका में रहते हुये अपने-अपने अभिनय कौशल से अमिट छाप छोड़ गये। 18 अप्रैल 2020 को 'रामायण' के मुख्य भाग के समापन पर 'उत्तर रामायण' का पुनः प्रसारण आरम्भ हुआ जिसका समापन 02 मई 2020 को होने के बाद 03 मई 2020 (रविवार), रात्रि 09:00 बजे से रामानन्द सागर रचित एक अन्य अद्भुत कार्यक्रम 'श्री कृष्णा' का पुनः प्रसारण हो रहा है।
रामायण के पुनः प्रसारण की असाधारण सफलता पर हर्षित अरुण गोविल ने कहा कि रामायण जीवन मूल्यों की शिक्षा के साथ-साथ रिश्तों का महत्व भी सिखाती है। यदि हम जीवन में श्रीराम के तीन गुणों- दृढ़ निश्चय, धैर्य तथा विनम्रता को अपना लें तो हम राष्ट्र की प्रगति में बहुपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। दर्शकों का आभार व्यक्त करते हुये दीपिका ने कार्यक्रम की सफलता का श्रेय निर्माण से सम्बद्ध प्रत्येक इकाई के कठिन परिश्रम को दिया।।

Sunday, May 3, 2020

'ऋषि की स्मृति में नीतू का भावुक ट्वीट'

बॉलीवुड अभिनेत्री नीतू कपूर जी ने दिवंगत पति ऋषि कपूर जी के साथ अपने कुछ अतीत के स्मरणशील चित्रों को ट्विटर पर साझा कर शनिवार को लिखा, हमारी कहानी खत्म हुई। उनकी इस पोस्ट को पहले एक घण्टे के भीतर एक लाख से भी अधिक व्यक्तियों ने लाइक किया।

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नीतू जी की इस पोस्ट पर अनुपम खेर जी ने लिखा, कुछ कहानियाँ कभी खत्म नहीं होतीं। ऋचा चड्ढा ने लिखा, यह सिर्फ कौमा है, फुलस्टॉप नहीं। वह (ऋषि कपूर जी) आपके करीब हैं, पुरानी यादों को ताजा करते, आपके चेहरे पर मुस्कान बिखेरते। आप अनंत तक एक दूसरे के साथ हैं।
हिन्दी फिल्मों की बेहद चहेती जोड़ी नीतू जी और ऋषि जी ने लगभग चार दशक पूर्व असल जीवन में एक दूजे का हाथ थामा था। दोनों की प्रेम कहानी ऐसी परवान चढ़ी कि ऑन स्क्रीन बेस्ट युगल ऑफ स्क्रीन भी रिश्ते को बखूबी निभाते चले गये। दोनों की प्रथम भेंट 1974 में फिल्म 'जहरीला इन्सान' के सेट पर हुई थी।

'बिग बी की इरफान को श्रद्धांजलि'

बॉलीवुड के दो बेजोड़ अभिनेताओं के एक बाद एक परलोक गमन से फिल्म समुदाय शोकसंतप्त है। इसी क्रम में महानायक अमिताभ बच्चन जी,  इरफान खान जी और ऋषि कपूर जी से जुड़ी स्मृतियों को लेकर सोशल मीडिया पर निरन्तर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं।

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पीकू में अपने साथी कलाकार के तीन छायाचित्र ट्विटर पर पोस्ट कर अमिताभ जी ने शनिवार को विचार व्यक्त करते हुये कहा कि आखिर एक बुजुर्ग हस्ती के निधन और एक युवा कलाकार के यूँ चले जाने में क्या अंतर है? हमें युवा साथियों के दुनिया छोड़ने पर अधिक पीड़ा क्यों होती है? उन्होंने लिखा, अपने दो बेहतर नजदीकी मित्रों को दो दिन के भीतर खो देना अत्यंत दुखदायी है। लेकिन इसमें इरफान जी के जाने का दुख अधिक है। क्योंकि, उनकी आयु कम थी, उनमें अनेकों सम्भावनायें शेष थीं इसलिये उनकी मृत्यु अधिक पीड़ाजनक है। उनके अभिनय कौशल के कई आयाम अभी प्रकट होने शेष थे। उन्हें अभी दर्शकों का और मनोरंजन करना था, लेकिन वे कैंसर से जंग हार गये।
अमिताभ जी ने अमर-अकबर-एन्थोनी फिल्म की ऋषि कपूर जी के साथ एक छवि पोस्ट की। इससे पूर्व अमिताभ जी ने शुक्रवार को 102 नॉट आउट के कुछ दृश्यों के साथ लगभग पाँच मिनट का श्याम-श्वेत वीडियो साझा किया था। 

Monday, April 20, 2020

'The Ganges Aqua turned worth drinking after several decades'

दशकों पश्चात् गंगाजल हुआ पीने योग्य


For first time in decades, Ganga water in Haridwar fit to drink.


Ganga just needs to be left alone.


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With industries that discharge effluents in Ganga shut and piers closed to public, the waters of the holy river at Rishikesh and Haridwar- twin cities that record pilgrim rush throughout the year- have seen a significant improvement in quality. In fact, for the first time in decades, the water quality at Har-ki-Pauri has been classified as "fit for drinking after chlorination."
Data accessed by a prominent Media House from the Uttrakhand Environment Protection and Pollution Control Board (UEPPCB) indicates that all parameters of water assessment at Har-ki-Pauri have significantly improved since the lockdown was put in place. There is a 34% reduction in fecal coliform (Human excreta) and 20% reduction in biochemical oxygen demand (a parameter to quality of effluent or wastewater) at Har-ki-Pauri in April.
 Due to the lockdown, water in Har-ki-Pauri has ranked in Class A for the first time in recent history. The water has always been placed in Class B since Uttrakhand was formed in 2000.
Class A water has pH balance between 6.5 to 8.5. The pH is a measure of how acidic the water is and optimum pH for river water is considered around 7.4.
It also has adequate dissolved oxygen- 6mg/litre or more. Dissolved oxygen levels below 5mg/litre can cause stress to aquatic life. The water now has a low biochemical oxygen demand and a low count of total coliform. While Class A water is fit to drink after disinfection, Class B water is fit for bathing, that too after treatment.
Water quality at Devprayag has improved as well. Experts have suggested that the discharge of industrial effluents into the river and human activities must be checked to rejuvenate the river. Pollution levels seem to have drastically reduced due to the ongoing lockdown and its effect can be clearly seen in the river water.
The rejuvenation of Ganga has led seers in Haridwar- many of whom have fronted campaigns and fasts unto deaths- to claim that this is the course of action they have been calling for all along.
Why is the government wasting huge sum on revival of Ganga when all it needs to do is to leave the river alone? This can be done by banning human activities like reckless building of hydropower plants, mining and industrial waste being dumped into Ganga.
Ganga is an example of how 'the mad rush of development' must stop.
The main lesson here is that we must move in tandem with nature. How long will the water remain pure? The worry is that once the lockdown is lifted, things will return to what they were.
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हिन्दी संस्करण:


'कई दशकों के बाद पीने योग्य गंगाजल'


 दशकों में पहली बार, हरिद्वार में गंगा का पानी पीने लायक हुआ।


 गंगा को सिर्फ एकाकी छोड़ देने की आवश्यकता है।


 
गंगा में अपशिष्टों को विसर्जित करने वाले उद्योगों और घाटों को जनता हेतु बन्द कर देने से, ऋषिकेश और हरिद्वार में पवित्र नदी के जल - जहाँ वर्ष भर तीर्थयात्रियों का जमघट रहता है, की गुणवत्ता में महत्वपूर्ण सुधार देखा गया है।  वास्तव में, दशकों में पहली बार, हर-की-पौड़ी में जल की गुणवत्ता को 'क्लोरीनीकरण के बाद पीने योग्य' के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

 उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (UEPPCB) से एक प्रमुख मीडिया हाउस द्वारा जुटाये गये डेटा से संकेत मिलता है कि तालाबन्दी होने के बाद से हर-की-पौड़ी में जल के मूल्यांकन के सभी मापदंडों में काफी सुधार हुआ है।  अप्रैल में हर-की-पौड़ी में फेकल कोलीफॉर्म (मानव उत्सर्जन) में 34% की कमी और बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (अपशिष्ट या अपशिष्ट जल की गुणवत्ता के लिए एक पैरामीटर) में 20% की कमी आई है।

 लॉकडाउन के कारण, हाल के इतिहास में पहली बार में हर-की-पौड़ी में जल का स्थान क्लास ए में आया है।  उत्तराखंड के 2000 में गठन के बाद से जल को सदा क्लास बी में रखा गया है।

 क्लास ए के जल में 6.5 से 8.5 के बीच पीएच संतुलन होता है।  पीएच एक उपागम है- कि जल कितना अम्लीय है तथा नदी के जल के लिए इष्टतम पीएच 7.4 के आसपास माना जाता है।

 इसमें पर्याप्त घुली हुई ऑक्सीजन भी है- 6mg / लीटर या अधिक।  5mg / लीटर से निम्न घुलित ऑक्सीजन स्तर के होने से जलीय जीवन को संकट हो सकता है। जल में अब कम जैव रासायनिक ऑक्सीजन माँग और कुल कोलीफॉर्म की कम मात्रा है।  जबकि क्लास ए जल कीटाणुशोधन उपरान्त पीने के योग्य फिट है, क्लास बी का जल स्नान के लिए फिट है, वह भी उपचार के बाद।

 देवप्रयाग में भी जल की गुणवत्ता में सुधार हुआ है।  विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि नदी में औद्योगिक अपशिष्टों के विसर्जन और नदी को फिर से जीवंत करने के लिए मानवीय गतिविधियों पर रोक लगा देनी चाहिये। गतिमान लॉकडाउन के कारण प्रदूषण का स्तर काफी कम हो गया है और इसका असर नदी के जल में साफ देखा जा सकता है।

 गंगा के कायाकल्प ने हरिद्वार में सन्तों को प्रेरित किया है - जिनमें से कई ने अभियान चलाये  हैं और आमरण अनशन किये है - यह दावा करने के लिए कि वे सब आरम्भ से ही ऐसी क्रियाविधि की माँग कर रहे थे।

 गंगा को पुनर्जीवित करने के लिए सरकार क्यों भारी धनराशि बर्बाद कर रही है? जबकि हमें बस नदी को एकाकी छोड़ देना चाहिये। यह सब गंगा में अदूरदर्शितावश जलविद्युत संयंत्रों की स्थापना, खनन और औद्योगिक कचरे को नदियों में दफन कर देने जैसी मानवीय गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाकर ही किया जा सकता है।

 गंगा आज इस बात का उदाहरण है कि कैसे 'विकास की  अन्धी दौड़' को रोकना चाहिए।

 यहाँ मुख्य सीख यह है कि हमें प्रकृति के साथ मिलकर चलना चाहिए। जल कब तक शुद्ध रह सकेगा?  चिंता का विषय यह है कि एक बार लॉकडाउन हटा लेने के बाद, परिस्थितियाँ पुनः वैसी ही हो जायेंगी जैसी पहले थीं।


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Sunday, April 19, 2020

'लॉकडाउन का उज्जवल पक्ष- प्रकृति का प्रतिरक्षा तन्त्र हुआ दक्ष'

'लॉकडाउन का उज्जवल पक्ष- प्रकृति का प्रतिरक्षा तंत्र हुआ दक्ष'


प्रचलित कहावत है कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, ठीक उसी प्रकार जीवन में हर घटना के भी दो पक्ष होते हैं- सकारात्मक तथा नकारात्मक। किसी भी घटनाक्रम के प्रति अपनी राय कायम करना पूर्णतः हमारे दृष्टिकोण पर निर्भर है। चाहें तो हम निराशावाद से ग्रस्त होकर जीवन के विविध पड़ावों से कुंठित हो अवगुणों का छिद्रान्वेषण करते रहें या फिर आशावाद से पुलकित हो उन उज्जवल गुणों पर मंथन कर तथा प्रतिकूल परिस्थितियों के आविर्भाव का मूल कारण खोजकर उससे उत्पन्न दुष्प्रभावों से स्थाई सबक लेते हुये कल्याणकारी ऊर्जा को आत्मसात करें तथा विनाशकारी ऊर्जा का विसर्जन कर प्रगति के पथ पर अग्रसर रहें।



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वर्तमान विकराल परिदृश्य जहाँ मानव सभ्यता के परिप्रेक्ष्य में अघोषित अभिशाप सा प्रतीत होता है तो वहीं प्रकृति के लिये यह किसी अलौकिक वरदान से कम नहीं। आधुनिक काल के महाकाय पुरोधा, विद्वान तथा वित्तीय प्रावधान जिस पतित पावन पर्यावरणीय संकल्प को साकार करने में अक्षम रहे, उस दुष्कर स्वप्न को एक अदृश्य अतिसूक्ष्म विषाणु के भय की सर्वव्यापकता से प्रेरित लॉकडाउन ने फलीभूत कर दिया है।

गंगा-यमुना सरीखी पौराणिक पूज्य सरितायें जो चिरकाल से भारत के एक विशाल क्षेत्र की जीवनधारा बन मानव सभ्यता को पोषित करती रही हैं, उन्हीं जीवनदायनी-मोक्षदायिनी सरिताओं को स्वार्थान्ध मानव ने विवेकशून्यता की पराकाष्ठा का प्रदर्शन कर दयनीय स्थिति में पहुँचा दिया जिसकी प्राकृति स्फूर्त क्षतिपूर्ति आज लॉकडाउन के सौजन्य से हो रही है। चन्द सप्ताह पूर्व गंगाजल आचमन तो दूर, अधिकांश क्षेत्रों में स्नान योग्य भी उचित नहीं जान पड़ता था। वही गंगाजल आज हरिद्वार परिक्षेत्र में पूर्णतः आचमन योग्य हो चुका है, वहीं अन्य क्षेत्रों में विगातकाल के सापेक्ष उत्तम स्थिति में है। 
पथभ्रष्ट मानव सभ्यता द्वारा प्रदत्त असीम प्रताड़ना सहते-सहते जो यमुना घोर उदासीनता वश मृतप्रायः सी हो चुकी थी आज उसका जल दर्पण की भाँति झिलमिला रहा है। 
ऐसी ही सुखद स्थिति देश की अन्य प्रमुख जलराशियों की भी है जो कि एक नयनाभिराम अनुभूति है।

वायुमण्डल भी स्वशोधन उपरान्त स्वच्छ नीलवर्ण आकाश, शुद्धतम प्राणवायु, रात्रिकालीन दुर्लभ तारामण्डल व ग्रह-नक्षत्रों के निर्विघ्न दर्शन सरीखे अनमोल उपहार हम पर उदार भाव से न्योछावर कर रहा है।
प्रकृति प्रेमी तो यहाँ तक दावा कर रहे हैं कि 200-250 किमी दूर अवस्थित विशाल पर्वतमाला के दर्शन भी अब सुलभ हो चुके हैं।
दिल्ली, आगरा तथा अन्य भारतीय महानगर जो कभी विश्व के शीर्ष प्रदूषित नगरों में सम्मिलित थे, उनका वायु गुणवत्ता सूचकांक 50 के स्तर से भी निम्न पायदान पर पहुँच चुका है जिसे उत्कृष्ट श्रेणी में माना जाता है।
जो पशु-पक्षी अपने स्वाभाविक आश्रयों के अभाव में लुप्तप्राय से हो गये थे, उनके भी स्वच्छन्द विचरण व मनोरम कलरव के वृतान्त मानवीय गतिविधियों तथा चहलकदमी के स्थगन स्वरूप दृष्टिगोचर होने लगे हैं।

हम वर्ष भर में मात्र एक दिन पृथ्वी दिवस तो एक दिन पर्यावरण दिवस मनाकर आत्म मुग्ध हो अपने परम कर्त्तव्यों से इतिश्री कर लेते हैं जबकि समय का चक्र हमसे नित्य के आचार व्यवहार एवम् व्यावहारिक जीवन में अक्षुण नैसर्गिक मूल्यों व दायित्वों को आत्मसात करने की प्रबल अपेक्षा कर रहा है।

यद्यपि आर्थिक दृष्टिकोण से संसार की विशालतम अर्थव्यवस्थायें धराशायी होने की कगार पर हैं तथापि प्राकृतिक रूप में जो अनुलाभ हम पा रहे हैं उसे सँजोकर हम उक्त क्षति की प्रतिपूर्ति का प्रयास तो कर ही सकते हैं। हालाँकि कुछ विद्वान दोनों को एक-दूसरे का स्थानापन्न भले ही न मानें किन्तु दोनों ही निर्विवाद रूप से एक-दूसरे के प्रतिपूरक आदिकाल से ही रहे हैं क्योंकि अर्थव्यवस्था की जीवंतता हेतु मूल पदार्थ प्राकृतिक संसाधनों से ही प्राप्त होते हैं।
परस्पर सामंजस्य के विलोपन से 'सर्वसुखाय, सर्वहिताय' रूपी अवधारणा कदापि फलीभूत नहीं हो सकती।

काश! कि यह सम्पूर्ण सुखद प्राकृतिक परिवर्तन सदा-सदा के लिये स्थाई हो जाये जो कि तभी सम्भव है जब हम अभिमुख आपत्तिकाल को साक्षी मानते हुये अटल प्रण लें कि हम प्रकृति को पुनः कुपित होने का अवसर कदापि प्रदान नहीं करेंगे अपितु लॉकडाउन के प्रताप से उपहारस्वरूप प्राप्त सम्पदा को अक्षय रखते हुये सर्वसमावेशी विकास के मार्ग पर अग्रसर होंगे।।

#Lockdownpros #Advantagesoflockdown #Meritsoflockdown #Benefitsoflockdown #Brightersideoflockdown
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ENGLISH VERSION:


SUNDAY, APRIL 19, 2020


 'The brighter side of lockdown - Nature's immune system gained efficiency'


 The popular saying is that every coin has two aspects, in the same way every event in life also has two sides - positive and negative.  It is entirely up to our view to form our opinion about any event.  If we want to suffer from pessimism, be frustrated with various stages of life, keep on hairsplitting  the demerits or be swayed by optimism, by churning on those bright qualities and finding the root cause of the emergence of unfavorable conditions, taking a lasting lesson from the ill effects generated from it.  Imbibe the salutary energy and immerse destructive energy and continue on the path of progress.


 The present macabre scenario where in the context of human civilization seems like an undeclared curse, it is nothing less than a supernatural boon for nature.  The arduous dream of modern-day gigantic pioneers, scholars and financial provisions unable to embody the pious environmental resolve has been accomplished by the lockdown fueled by the ubiquitous fear of an invisible microbe.

Mythologically revered rivers like Ganga-Yamuna, that have been nurturing human civilization as a lifeline of a vast region of India since time immemorial, Those life-salvation sustaining rivers have reached a miserable condition by the self-styled human beings displaying the zenith of indiscretion, which is being compensated today by courtesy of lockdown.  A few weeks ago, not just Aachman/Gargling (Religious Hindu Rites) with Ganges water was a far away dream, even bathing in most areas was not considered appropriate.  The same Ganges water has become fully optimum to solemnise Aachman(Gargling) in Haridwar zone today, while in other areas it is in a good condition relatively to the earlier period.

 The Yamuna, which had become moribund under atrocious aloofness by continuously tolerating immense tortures inflicted on her by astray humans, is now sparkling like a mirror with adequate glaring water.

 A similar pleasant situation also exists in other major water bodies of the country, which is a panoramic experience.

 After it's spontaneous refinement, even the cleaner atmosphere is doling out priceless gifts like pure oxygen, sheer view of clean blue sky, nightly constellations, rare planets and galaxies to us.

Nature lovers are even claiming that view of the vast mountain ranges situated 200-250 km away has also become accessible.

 Delhi, Agra and other Indian metropolises that once were among the top polluted cities in the world, have an air quality index of less than 50, which is considered to be in the excellent category.

 The animals and birds, which had become endangered due to lack of their natural shelters, have also become visible in their free wanderings and picturesque tweet as a postponement of human activities and strolls.

We celebrate Earth Day and Environment Day respectively only once throughout the year and get enchanted whereas the need of the hour is to imbibe eternal natural values ​​and obligations in our day to day conduct and practical life.

 Although the largest economies of the world are on the verge of collapse from an economic point of view, we can try to compensate for that loss by conserving the perks we are getting in natural form.  Although some scholars do not consider the two to be replacements for each other, But both have been indisputably compensative  to each other since primeval times because the basic substances for the vibrancy of the economy are derived from natural resources.

 The concept of 'universal comfort & interest' cannot ever fructify due to the annihilation of mutual cohesion.

 I wish!  That this whole pleasant natural change will be permanent forever, which is possible only if we take the unfavorable circumstances as a witness and take a firm resolve that we will never offer the opportunity to enrage nature, but receive it as a gift from the majesty of lockdown  Keeping the wealth intact, will move forward on the path of inclusive growth.


 #Lockdownpros #Advantagesoflockdown #Meritsoflockdown #Benefitsoflockdown #Brightersideoflockdown


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