विगत काल पुनः दस्तक दे रहा है जिसके साथ मृदा निर्मित पात्रों के प्रति रुचि एवम् जिज्ञासा भी उभर रही है। पहले जहाँ प्रदर्शनियों में इन पात्रों के दर्शन एवम् क्रय अवसर सुलभ थे, वहीं अब इन्हें निर्दिष्ट विक्रय केन्द्रों अथवा ऑनलाइन विक्रय मंचों से क्रय किया जा सकता है।
वर्तमान जीवनशैली से ऊबकर मनुष्य पुनः प्राचीन विवेकशील प्रथा का अनुगमन कर रहा है, जहाँ खानपान की प्रवृत्तियाँ उत्तम थीं तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्यायें कम। हम प्रतिदिन प्रयासरत रहते हैं कि इस यांत्रिक जीवन में अपनी कुछ नियमित प्रवृत्तियों को परिष्कृत किया जा सके जिससे हमारा स्वास्थ्य स्थिर रहे। इन्हीं प्रयासों में से एक है मृदा पात्रों में भोजन निर्माण एवम् ग्रहण करना। हमारे देश में सहस्त्रों वर्षों से मृदा पात्रों का वर्चस्व रहा है, किन्तु दुर्भाग्यवश कालान्तर में यह नगण्य रह गया, तदोपरान्त विलुप्त ही हो गया। इनका स्थान काँसे, लौह, स्टील, एल्युमीनियम तथा नॉन-स्टिक पात्रों ने ग्रहण कर लिया किन्तु विगत कुछ समय से मृदा पात्र पुनः ख्याति अर्जित कर रहे हैं एवम् विपणि (बाजार) में इनकी माँग पुनर्जीवित हो चुकी है।
🏺लोकप्रियता का कारण🏺
माटी के उत्पादों की साफ-सफाई अत्यन्त सरल है जिसके लिये आपको किसी रासायनिक साबुन, पाउडर या लिक्विड की आवश्यकता नहीं। इन उत्पादों को मात्र गर्म पानी से धो सकते हैं। ग्रीष्म कालीन झुलसाती धूप में घड़े का प्राकृतिक शीतल जल न केवल प्यास बुझाता है अपितु आत्मा को भी तृप्त कर देता है। माटी के पात्रों से प्राप्त होने वाले अप्रत्याशित लाभों को विज्ञान भी मान्यता प्रदान कर चुका है कि कैसे इनके नियमित प्रयोग से अनेक विकारों से सुरक्षा सम्भव है। मृदा में कई गुणकारी खनिज तत्व जैसे जिंक, मैग्नीशियम, लौह आदि समाविष्ट होते हैं जो विभिन्न पात्रों के प्रयोग के दौरान हमारी काया में प्रवेशित हो पोषण में मुख्य भूमिका निभाते हैं।
🏺मृदा पात्रों में भोजन निर्माण से पौष्टिकता बरकरार रहती है, माटी में समाहित जिंक, मैग्नीशियम व लौह तत्व आदि भोजन की पौष्टिकता बढ़ा देते हैं जबकि धातु पात्रों में भोजन निर्माण से उसके रसायन शनैःशनैः भोजन की पौष्टिकता को समाप्त कर देते हैं।
🏺मृदा पात्रों में भोजन अधिक स्वादिष्ट बनता है। एक तो उसका मूल स्वाद विकृत नहीं होता, दूसरा माटी की सोंधी खुशबू भोजन का स्वाद और भी बढ़ा देती है।
🏺मृदा पात्रों में गर्म भोजन देर तक गर्म बना रहता है जबकि ठण्डा भोजन देर तक ठण्डा ही रहता है। माटी का तापक्रम भोजन के टॉपमान को भी कायम रखता है।
🏺स्टील, नॉन स्टिक, एल्युमीनियम के पात्रों में मौजूद रसायन भोजन में मिलकर उसे शीघ्र दूषित कर सकते हैं जबकि माटी के पात्रों में भोजन दीर्घ अवधि तक शुद्ध बना रहता है।
🏺माटी के पात्र पर्यावरण अनुकूल एवम् सुरक्षित हैं।
🏺माटी के पात्रों में भोजन निर्माण हेतु कम घी-तेल की आवश्यकता होती है। पात्र की अपनी आर्द्रता भोजन निर्माण में सहायक सिद्ध होती है।
🏺माटी के पात्रों में मन्द आँच पर भोजन निर्माण होता है, जिससे न केवल भोजन का स्वाद बढ़ता, अपितु वह समुचित ढंग से निर्मित होने के कारण स्वास्थ्य के दृष्टि से भी लाभकारी होता है।
विगत लगभग पाँच वर्षों में मृदा पात्रों की लोकप्रियता में आश्चर्यजनक उछाल आया है। इस लोकप्रियता ने मृदा पात्रों की माँग एवम् व्यवसायीकरण में भी वृद्धि की है। पहले कुम्हारों के करकमलों द्वारा निर्मित होने वाले मृदा के यह पात्र अब वृहद स्तर पर कारखानों में यंत्रों से भी बन रहे हैं। हस्तनिर्मित मृदा पात्रों को कुम्हार चाक पर रचते थे तत्पश्चात् उन्हें दीर्घ अवधि तक भट्टी में तपाया जाता था। भट्टी में तपाने की प्रक्रिया पात्रों को सुदृढ़ता प्रदान करती थी। अब कारखानों में पूर्वनिर्मित साँचों में मृदा मात्र बनाये जाते हैं और उनकी तापक्रिया भी यंत्रों द्वारा ही सम्पादित होती है। हस्तनिर्मित पात्रों की अपेक्षा यन्त्र निर्मित पात्र दिखने में कुछ अधिक आकर्षक हो सकते हैं, किन्तु दोनों ही प्रकार के पात्रों की फिनिशिंग उत्कृष्ट होती है। समय के साथ वर्धित माँग के कारण वृहद स्तर पर मृदा पात्रों के निर्माण का कार्य प्रारम्भ हुआ। पहले जहाँ समय-समय पर आयोजित मेलों व प्रदर्शनियों में इन पात्रों के अवलोकन एवम् क्रय का सुअवसर प्राप्त होता था, वहीं अब निर्दिष्ट विक्रय केन्द्रों से भी इन्हें क्रय किया जा सकता है। इनकी विस्तृत होती माँग ने ही पात्रों की विविधता को भी समृद्ध किया है। पहले जहाँ मात्र मृदा निर्मित हाँडी व मटके ही प्रचलित थे, वहीं अब ऐसा कोई पात्र नहीं जिसकी मृदा आधारित संरचना असम्भव हो। कटोरी, प्लेट, कड़ाही, तवा, चम्मच, गिलास, फ्राई पैन, जग, बोतल, कुकर और यहाँ तक कि मृदा के फ्रिजों का भी उत्पादन होने लगा है। दीपावली जैसे विशिष्ट अवसरों पर तो मृदा पात्रों के विविध स्वरूप देखे गये हैं। अब तो यह पात्र ऑनलाइन भी सरलतापूर्वक उपलब्ध हैं। ऑनलाइन मंचों पर तो यह बहुविध रंग-रूपों व आकर्षक कलेवर में मिल रहे हैं। टैराकोटा मृदा का ही एक रूप है और इसी नाम से इसका बहुधा ऑनलाइन विक्रय होता है। यदि मूल्यों की बात की जाये तो मृदा पात्र अपने उपयोग के सापेक्ष किफायती ही सिद्ध होते हैं, किन्तु हमारा यह समझना भी नादानी है कि माटी निर्मित होने के कारण इनका मोल भी माटी सदृश होगा क्योंकि ऐसा कदापि नहीं है। तीन हाँडी के सेट का मूल्य एक से डेढ़ हजार रुपये तक हो सकता है। हैंडल वाला तवा 200 से 300 रुपये तक का हो सकता है। ऑनलाइन आपको विभिन्न पात्रों के समेकित सेट भी मिल जायेंगे जिनमें दो बड़ी कटोरी, प्लेट, चम्मच, एक छोटी कटोरी व गिलास आदि होते हैं। ऐसे सेट का मूल्य 1100 से 1300 रुपये तक हो सकता है। बाजार में आपको मटका सम्भवतः 100-150 रुपये में मिल जाये, किन्तु टोंटी युक्त वॉटर पॉट क्रय करने में 1500 से 1800 रुपये तक व्यय करने पड़ सकते हैं। कुकर का मूल्य भी 1700 से 2000 रुपये तक होता है। इन दिनों विशेष लोकप्रियता बटोर रहा माटी का फ्रिज तीन से चार हजार रुपये तक के मूल्य में उपलब्ध है। वैसे इन पात्रों को अल्पमूल्य तो नहीं कहा जा सकता, किन्तु यहाँ यह तथ्य भी विचारणीय है कि हस्तनिर्मित वस्तुयें अथक परिश्रम का परिणाम होती हैं, अतैव मूल्यवान प्रतीत होती हैं। यद्यपि कारखानों में निर्मित पात्रों का मूल्य कुछ कम हो सकता है, तथापि वे हस्तनिर्मित उत्पादों से प्रतिस्पर्धा में उन्नीस ही सिद्ध होते हैं।
गैर-सरकारी संस्था 'माटी-सृजन' इस पारम्परिक कला को संजोने का सराहनीय कार्य कर रही है। यह संस्था अभिलाषी जनों को मृदा पात्र बनाना भी सिखाती है तथा समय-समय पर कार्यशाला का आयोजन कर इसके विषय में जागरूक भी करती है। संस्था की संस्थापक मीनाक्षी राजेन्द्र का कहना है गत कुछ वर्षों में माटी के पात्रों के प्रति जनमानस का झुकाव एक उत्कृष्ट परिवर्तन का द्योतक है। वह कहती हैं, "इस रुचि का कारण कुछ भी हो, किन्तु अपने स्वास्थ्य को लेकर यह सजगता सुखद है। धातु निर्मित पात्र हमें क्या-क्या हानि पहुँचाते हैं, यह कल्पनातीत है। मृदा पात्रों में भोजन निर्माण एवम् ग्रहण क्रिया हमें कई समस्याओं से दूर रखती है।" हस्तनिर्मित पात्रों व कारखाने में निर्मित पात्रों के मध्य अन्तर के विषय में वे कहती हैं, "सामान्यतः देखकर तो अन्तर करना कठिन है, किन्तु फैक्ट्री निर्मित उत्पाद प्रायः काफी भारी होते हैं, जबकि हस्तनिर्मित उत्पाद हल्के।"
जहाँ तक पात्रों के रख-रखाव का विषय है, तो मृदा पात्रों की गुणवत्ता, दृढ़ता या भंगुरता, इस तथ्य पर निर्भर करती है कि उन्हें कितने तापमान पर तैयार किया गया है। ऐसे पात्रों के निर्माण के समय तापमान अति महत्वपूर्ण कारक है। जब कुम्हार हस्तनिर्मित उत्पादों का निर्माण करते हैं तो वे तापमान का विशेष ध्यान रखते हैं, किन्तु कारखानों में अक्सर इस बात की अनदेखी कर दी जाती है जिसके फलस्वरूप पात्रों में दरार या टूटने जैसी शिकायतें उत्पन्न होती हैं।
🏺रखरखाव सम्बन्धी सावधानियाँँ🏺
🏺माटी के पात्रों का प्रयोग अधिक ताप के बजाय नियन्त्रित ताप पर ही अनुशंसित है।
🏺भंगुर होने के कारण इनके रखरखाव में अतिरिक्त सतर्कता अनिवार्य है।
🏺उचित स्वच्छता के अभाव में फफूँद ग्रस्त होने की आशंका रहती है जिसे धोने के लिये राख तथा नारियल की बाह्य छाल का प्रयोग सर्वथा उचित होता है।
🏺माटी के पात्रों को गर्म पानी से धोना आवश्यक होता है। चूँकि यह पात्र भोजन की तरलता को अवशोषित कर लेते हैं, अतः गर्म पानी द्वारा इनमें लगा तेल आदि निकल जाता है।
🏺यदि भलीभाँति न तपे हों तो माटी के पात्रों की भंगुरता का जोखिम बढ़ जाता है तथा गैस पर भोजन बनाते समय या जरा सा बलपूर्वक रखने-उठाने में टूट या चटक जाते हैं। अतः आवश्यक हो जाता है कि भट्टी में भलीभाँति तपे पात्रों का चयन ही बुद्धिमतापूर्वक किया जाये।
🏺मृदा पात्रों की बढ़ती माँग कहिये या जनमानस के मध्य इनकी लोकप्रियता, यह पात्र प्रायः सस्ते नहीं होते। एक-दो वर्षों पश्चात् इनमें दरारें पड़ जाना या रंग फीका पड़ना स्वाभाविक है जिस कारण एक-दो वर्ष के अन्तराल पर इन्हें बदलना ही तर्कसंगत है।।
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