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Friday, March 27, 2020

सामाजिक दूरी उल्लंघन के सम्भावित दुष्प्रभाव

शारीरिक दूरी उल्लंघन के सम्भावित दुष्प्रभाव


🔴सामाजिक दूरी नहीं रखी तो मई तक 13 लाख तक हो सकते हैं कोरोना के मामले।

🔴30,000 से 2,30,000 के मध्य रोगियों की संख्या हो सकती है अप्रैल के अंत तक।




देश में कोरोना वायरस के प्रकरण जिस द्रुतगति से बढ़ रहे हैं, उसके आधार पर मई तक यह आँकड़ा 10 से 13 लाख के मध्य पहुँच सकता है। यह अनुमान अमेरिकी वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा लगाया गया है। अध्ययन के अनुसार यदि सामाजिक दूरी जैसे उपायों को गम्भीरतापूर्वक नहीं लिया गया तो अप्रैल के अंत तक रोगियों की संख्या 30,000 से 2,30,000 के मध्य हो सकती है।
वैज्ञानिकों ने कहा कि अमेरिका और इटली की तुलना में महामारी से निपटने के लिये भारत अच्छा काम कर रहा है। इसका प्रसार रोकने के लिये सख्त प्रबन्ध एवम् उपाय किये जा रहे हैं। मिशिगन विश्विद्यालय में बायोस्टैटिस्टिक्स और महामारी विज्ञान के प्रो. भ्रामर मुखर्जी व जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के देबाश्री रे भी अध्ययन में सहभागी थे। उन्होंने कहा, यदि वायरस के मामले ऐसे ही बढ़ते रहे तो स्थिति पीड़ाजनक हो सकती है। मौजूदा अनुमान देश में आरम्भिक चरण के आँकड़ों के क्रम में है, जो कि कम परीक्षणों के कारण है।


🔳जटिल स्थिति➡️


◼️अधूरी तैयारी.....प्रति एक हजार पर 0.7 बिस्तर➡️

भारत में स्वास्थ्य तंत्र इस महामारी से लड़ने में अभी पूर्णतः सक्षम नहीं है। भारत में प्रति 1000 व्यक्तियों पर अस्पताल के बेड की संख्या मात्र 0.7 है। वहीं फ्रांस में यह 6.5, दक्षिण कोरिया में 11.5, चीन में 4.2, इटली में 3.4, ब्रिटेन में 2.9, अमेरिका में 2.8 और ईरान में 1.5 है।


◼️जाँच दर कम, कम मामले आ रहे सामने➡️

अध्ययन कोविड इण्डिया-19 स्टडी समूह के वैज्ञानिकों ने किया है। समूह यह पता लगा रहा था भारत में इस महामारी का खतरा कितना बड़ा है। समूह में सम्मिलित डाटा वैज्ञानिकों के अनुसार भारत में जाँच दर बहुत कम है। 18 मार्च को देश में कोरोना टेस्ट के लिये 11,500 सैंपल मिले। इससे समझा जा सकता है कि जाँच के लिये लोग सामने नहीं आ रहे हैं। भारत की तुलना में बहुत कम आबादी के दक्षिण कोरिया में 2 लाख 70 हजार व्यक्तियों का परीक्षण हो चुका है।


◼️अमेरिका-इटली में अकस्मात् बढ़े मामले➡️

अब तक कोविड-19 की वैक्सीन विकसित नहीं हुई है, न ही दवा बन सकी है। ऐसे में यदि कोरोना भारत में तृतीय चरण में पहुँचा तो परिणाम विध्वंसक होंगे। वैज्ञानिकों के अनुसार अमेरिका या इटली में भी कोविड-19 का प्रसार धीरे-धीरे ही हुआ, फिर अकस्मात् तीव्रता से मामले बढ़े।।



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Thursday, March 26, 2020

कब-कब और क्यों अवरुद्ध हुये ओलम्पिक?

कब-कब और क्यों स्थगित हुये ओलिम्पिक??


🏟️इतिहास में पहली बार टले ओलम्पिक।


🏟️अब टोक्यो-2020 ओलम्पिक का आयोजन अगले वर्ष ग्रीष्मकाल से पहले किया जायेगा।




🏟️124 वर्ष में पहली बार ऐसा हुआ जब आधुनिक ओलम्पिक खेलों को विलम्ब से कराने का निर्णय लिया गया।


🏟️पहले तीन बार निरस्त हो चुके हैं लेकिन कभी स्थगित नहीं हुये➡️


1916- बर्लिन में प्रथम विश्वयुद्ध के कारण रदद् किये गये थे।

1940- टोक्यो में द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण रदद् किये गये।

1944- लन्दन ओलम्पिक भी द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण नहीं             हो सके।

*1972- म्यूनिख ओलम्पिक में आतंकियों ने 11 इस्राइल                   एथलीटों और एक पुलिस अधिकारी की हत्या कर                 दी थी। तब 24 घण्टे के लिये खेल स्थगित हुये थे।


🏟️दो बार शीतकालीन ओलम्पिक हुये रदद्➡️

1940 में सैपोरा तथा 1944 में कोर्टिना डी एम्पेजो में होने वाले शीतकालीन ओलम्पिक खेलों को द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण रदद् किया गया था।


🏟️ अब टोक्यो ओलम्पिक 2020➡️

कोविड-19 महामारी के प्रकोप के चलते 24 जुलाई 2020 से 09 अगस्त 2020 के मध्य होने वाले टोक्यो ओलम्पिक को अगले वर्ष गर्मियों तक के लिये स्थगित कर दिया गया है। अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति (IOC) और मेजबान जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने एकमत से खेल महाकुम्भ को एक वर्ष के लिये टालने का निर्णय लिया।
अभी नई तिथियाँ तय नहीं की गई हैं। इन खेलों को टोक्यों 2020 के नाम से ही जाना जायेगा। पैरालम्पिक खेल भी अगले वर्ष ही हो सकेंगे। शान्तिकाल में पहली बार इन खेलों को स्थगित किया गया है।


🏟️विरोध करने वाले देश एवम् संगठन➡️

🔘कनाडा पहला देश था जिसने कहा था कि खेल जुलाई में हुये तो वह प्रतिभाग नहीं करेगा।
🔘ऑस्ट्रेलिया ने तो अपने खिलाड़ियों को अगले वर्ष को ही लक्षित कर तैयारियाँ करने के लिये कह दिया था।
🔘अमेरिका, ब्रिटेन, न्यूजीलैंड, ब्राजील, स्लोवानिया, सर्बिया, क्रोशिया की ओलम्पिक समितियों ने भी खेल स्थगित करने की माँग की थी।
🔘यूएस ट्रैक एण्ड फील्ड, तैराकी महासंघ, जिम्नास्टिक व फ्रान्स तैराकी महासंघ भी आयोजन के विरुद्ध थे।।


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Wednesday, March 25, 2020

मृदा पात्रों का प्रयोग, रखे काया निरोग

मृदा पात्रों का प्रयोग, रखे काया निरोग


विगत काल पुनः दस्तक दे रहा है जिसके साथ मृदा निर्मित पात्रों के प्रति रुचि एवम् जिज्ञासा भी उभर रही है। पहले जहाँ प्रदर्शनियों में इन पात्रों के दर्शन एवम् क्रय अवसर सुलभ थे, वहीं अब इन्हें निर्दिष्ट विक्रय केन्द्रों अथवा ऑनलाइन विक्रय मंचों से क्रय किया जा सकता है।





वर्तमान जीवनशैली से ऊबकर मनुष्य पुनः प्राचीन विवेकशील प्रथा का अनुगमन कर रहा है, जहाँ खानपान की प्रवृत्तियाँ उत्तम थीं तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्यायें कम। हम प्रतिदिन प्रयासरत रहते हैं कि इस यांत्रिक जीवन में अपनी कुछ नियमित प्रवृत्तियों को परिष्कृत किया जा सके जिससे हमारा स्वास्थ्य स्थिर रहे। इन्हीं प्रयासों में से एक है मृदा पात्रों में भोजन निर्माण एवम् ग्रहण करना। हमारे देश में सहस्त्रों वर्षों से मृदा पात्रों का वर्चस्व रहा है, किन्तु दुर्भाग्यवश कालान्तर में यह नगण्य रह गया, तदोपरान्त विलुप्त ही हो गया। इनका स्थान काँसे, लौह, स्टील, एल्युमीनियम तथा नॉन-स्टिक पात्रों ने ग्रहण कर लिया किन्तु विगत कुछ समय से मृदा पात्र पुनः ख्याति अर्जित कर रहे हैं एवम् विपणि (बाजार) में इनकी माँग पुनर्जीवित हो चुकी है।


🏺लोकप्रियता का कारण🏺

माटी के उत्पादों की साफ-सफाई अत्यन्त सरल है जिसके लिये आपको किसी रासायनिक साबुन, पाउडर या लिक्विड की आवश्यकता नहीं। इन उत्पादों को मात्र गर्म पानी से धो सकते हैं। ग्रीष्म कालीन झुलसाती धूप में घड़े का प्राकृतिक शीतल जल न केवल प्यास बुझाता है अपितु आत्मा को भी तृप्त कर देता है। माटी के पात्रों से प्राप्त होने वाले अप्रत्याशित लाभों को विज्ञान भी मान्यता प्रदान कर चुका है कि कैसे इनके नियमित प्रयोग से अनेक विकारों से सुरक्षा सम्भव है। मृदा में कई गुणकारी खनिज तत्व जैसे जिंक, मैग्नीशियम, लौह आदि समाविष्ट होते हैं जो विभिन्न पात्रों के प्रयोग के दौरान हमारी काया में प्रवेशित हो पोषण में मुख्य भूमिका निभाते हैं।
🏺मृदा पात्रों में भोजन निर्माण से पौष्टिकता बरकरार रहती है, माटी में समाहित जिंक, मैग्नीशियम व लौह तत्व आदि भोजन की पौष्टिकता बढ़ा देते हैं जबकि धातु पात्रों में भोजन निर्माण से उसके रसायन शनैःशनैः भोजन की पौष्टिकता को समाप्त कर देते हैं।
🏺मृदा पात्रों में भोजन अधिक स्वादिष्ट बनता है। एक तो उसका मूल स्वाद विकृत नहीं होता, दूसरा माटी की सोंधी खुशबू भोजन का स्वाद और भी बढ़ा देती है।
🏺मृदा पात्रों में गर्म भोजन देर तक गर्म बना रहता है जबकि ठण्डा भोजन देर तक ठण्डा ही रहता है। माटी का तापक्रम भोजन के टॉपमान को भी कायम रखता है।
🏺स्टील, नॉन स्टिक, एल्युमीनियम के पात्रों में मौजूद रसायन भोजन में मिलकर उसे शीघ्र दूषित कर सकते हैं जबकि माटी के पात्रों में भोजन दीर्घ अवधि तक शुद्ध बना रहता है।
🏺माटी के पात्र पर्यावरण अनुकूल एवम् सुरक्षित हैं।
🏺माटी के पात्रों में भोजन निर्माण हेतु कम घी-तेल की आवश्यकता होती है। पात्र की अपनी आर्द्रता भोजन निर्माण में सहायक सिद्ध होती है।
🏺माटी के पात्रों में मन्द आँच पर भोजन निर्माण होता है, जिससे न केवल भोजन का स्वाद बढ़ता, अपितु वह समुचित ढंग से निर्मित होने के कारण स्वास्थ्य के दृष्टि से भी लाभकारी होता है।

विगत लगभग पाँच वर्षों में मृदा पात्रों की लोकप्रियता में आश्चर्यजनक उछाल आया है। इस लोकप्रियता ने मृदा पात्रों की माँग एवम् व्यवसायीकरण में भी वृद्धि की है। पहले कुम्हारों के करकमलों द्वारा निर्मित होने वाले मृदा के यह पात्र अब वृहद स्तर पर कारखानों में यंत्रों से भी बन रहे हैं। हस्तनिर्मित मृदा पात्रों को कुम्हार चाक पर रचते थे तत्पश्चात् उन्हें दीर्घ अवधि तक भट्टी में तपाया जाता था। भट्टी में तपाने की प्रक्रिया पात्रों को सुदृढ़ता प्रदान करती थी। अब कारखानों में पूर्वनिर्मित साँचों में मृदा मात्र बनाये जाते हैं और उनकी तापक्रिया भी यंत्रों द्वारा ही सम्पादित होती है। हस्तनिर्मित पात्रों की अपेक्षा यन्त्र निर्मित पात्र दिखने में कुछ अधिक आकर्षक हो सकते हैं, किन्तु दोनों ही प्रकार के पात्रों की फिनिशिंग उत्कृष्ट होती है। समय के साथ वर्धित माँग के कारण वृहद स्तर पर मृदा पात्रों के निर्माण का कार्य प्रारम्भ हुआ। पहले जहाँ समय-समय पर आयोजित मेलों व प्रदर्शनियों में इन पात्रों के अवलोकन एवम् क्रय का सुअवसर प्राप्त होता था, वहीं अब निर्दिष्ट विक्रय केन्द्रों से भी इन्हें क्रय किया जा सकता है। इनकी विस्तृत होती माँग ने ही पात्रों की विविधता को भी समृद्ध किया है। पहले जहाँ मात्र मृदा निर्मित हाँडी व मटके ही प्रचलित थे, वहीं अब ऐसा कोई पात्र नहीं जिसकी मृदा आधारित संरचना असम्भव हो। कटोरी, प्लेट, कड़ाही, तवा, चम्मच, गिलास, फ्राई पैन, जग, बोतल, कुकर और यहाँ तक कि मृदा के फ्रिजों का भी उत्पादन होने लगा है। दीपावली जैसे विशिष्ट अवसरों पर तो मृदा पात्रों के विविध स्वरूप देखे गये हैं। अब तो यह पात्र ऑनलाइन भी सरलतापूर्वक उपलब्ध हैं। ऑनलाइन मंचों पर तो यह बहुविध रंग-रूपों व आकर्षक कलेवर में मिल रहे हैं। टैराकोटा मृदा का ही एक रूप है और इसी नाम से इसका बहुधा ऑनलाइन विक्रय होता है। यदि मूल्यों की बात की जाये तो मृदा पात्र अपने उपयोग के सापेक्ष किफायती ही सिद्ध होते हैं, किन्तु हमारा यह समझना भी नादानी है कि माटी निर्मित होने के कारण इनका मोल भी माटी सदृश होगा क्योंकि ऐसा कदापि नहीं है। तीन हाँडी के सेट का मूल्य एक से डेढ़ हजार रुपये तक हो सकता है। हैंडल वाला तवा 200 से 300 रुपये तक का हो सकता है। ऑनलाइन आपको विभिन्न पात्रों के समेकित सेट भी मिल जायेंगे जिनमें दो बड़ी कटोरी, प्लेट, चम्मच, एक छोटी कटोरी व गिलास आदि होते हैं। ऐसे सेट का मूल्य 1100 से 1300 रुपये तक हो सकता है। बाजार में आपको मटका सम्भवतः 100-150 रुपये में मिल जाये, किन्तु टोंटी युक्त वॉटर पॉट क्रय करने में 1500 से 1800 रुपये तक व्यय करने पड़ सकते हैं। कुकर का मूल्य भी 1700 से 2000 रुपये तक होता है। इन दिनों विशेष लोकप्रियता बटोर रहा माटी का फ्रिज तीन से चार हजार रुपये तक के मूल्य में उपलब्ध है। वैसे इन पात्रों को अल्पमूल्य तो नहीं कहा जा सकता, किन्तु यहाँ यह तथ्य भी विचारणीय है कि हस्तनिर्मित वस्तुयें अथक परिश्रम का परिणाम होती हैं, अतैव मूल्यवान प्रतीत होती हैं। यद्यपि कारखानों में निर्मित पात्रों का मूल्य कुछ कम हो सकता है, तथापि वे हस्तनिर्मित उत्पादों से प्रतिस्पर्धा में उन्नीस ही सिद्ध होते हैं।
गैर-सरकारी संस्था 'माटी-सृजन' इस पारम्परिक कला को संजोने का सराहनीय कार्य कर रही है। यह संस्था अभिलाषी जनों को मृदा पात्र बनाना भी सिखाती है तथा समय-समय पर कार्यशाला का आयोजन कर इसके विषय में जागरूक भी करती है। संस्था की संस्थापक मीनाक्षी राजेन्द्र का कहना है गत कुछ वर्षों में माटी के पात्रों के प्रति जनमानस का झुकाव एक उत्कृष्ट परिवर्तन का द्योतक है। वह कहती हैं, "इस रुचि का कारण कुछ भी हो, किन्तु अपने स्वास्थ्य को लेकर यह सजगता सुखद है। धातु निर्मित पात्र हमें क्या-क्या हानि पहुँचाते हैं, यह कल्पनातीत है। मृदा पात्रों में भोजन निर्माण एवम् ग्रहण क्रिया हमें कई समस्याओं से दूर रखती है।" हस्तनिर्मित पात्रों व कारखाने में निर्मित पात्रों के मध्य अन्तर के विषय में वे कहती हैं, "सामान्यतः देखकर तो अन्तर करना कठिन है, किन्तु फैक्ट्री निर्मित उत्पाद प्रायः काफी भारी होते हैं, जबकि हस्तनिर्मित उत्पाद हल्के।"
जहाँ तक पात्रों के रख-रखाव का विषय है, तो मृदा पात्रों की गुणवत्ता, दृढ़ता या भंगुरता, इस तथ्य पर निर्भर करती है कि उन्हें कितने तापमान पर तैयार किया गया है। ऐसे पात्रों के निर्माण के समय तापमान अति महत्वपूर्ण कारक है। जब कुम्हार हस्तनिर्मित उत्पादों का निर्माण करते हैं तो वे तापमान का विशेष ध्यान रखते हैं, किन्तु कारखानों में अक्सर इस बात की अनदेखी कर दी जाती है जिसके फलस्वरूप पात्रों में दरार या टूटने जैसी शिकायतें उत्पन्न होती हैं।


🏺रखरखाव सम्बन्धी सावधानियाँँ🏺

🏺माटी के पात्रों का प्रयोग अधिक ताप के बजाय नियन्त्रित ताप पर ही अनुशंसित है।
🏺भंगुर होने के कारण इनके रखरखाव में अतिरिक्त सतर्कता अनिवार्य है।
🏺उचित स्वच्छता के अभाव में फफूँद ग्रस्त होने की आशंका रहती है जिसे धोने के लिये राख तथा नारियल की बाह्य छाल का प्रयोग सर्वथा उचित होता है।
🏺माटी के पात्रों को गर्म पानी से धोना आवश्यक होता है। चूँकि यह पात्र भोजन की तरलता को अवशोषित कर लेते हैं, अतः गर्म पानी द्वारा इनमें लगा तेल आदि निकल जाता है।
🏺यदि भलीभाँति न तपे हों तो माटी के पात्रों की भंगुरता का जोखिम बढ़ जाता है तथा गैस पर भोजन बनाते समय या जरा सा बलपूर्वक रखने-उठाने में टूट या चटक जाते हैं। अतः आवश्यक हो जाता है कि भट्टी में भलीभाँति तपे पात्रों का चयन ही बुद्धिमतापूर्वक किया जाये।
🏺मृदा पात्रों की बढ़ती माँग कहिये या जनमानस के मध्य इनकी लोकप्रियता, यह पात्र प्रायः सस्ते नहीं होते। एक-दो वर्षों पश्चात् इनमें दरारें पड़ जाना या रंग फीका पड़ना स्वाभाविक है जिस कारण एक-दो वर्ष के अन्तराल पर इन्हें बदलना ही तर्कसंगत है।।



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Tuesday, March 24, 2020

क्लोरोक्विन 'बनाम' कोरोना

क्लोरोक्वीन 'बनाम' कोरोना


हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन को नेशनल टास्क फोर्स का अनुमोदन प्राप्त हो चुका है किन्तु ध्यान देने योग्य बिन्दु यह है कि अधिकृत चिकित्सीय सुझाव के अभाव में इसका प्रयोग अवांछनीय है।




कोरोना से बचाव हेतु हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन दवा का प्रयोग कुछ प्रतिबन्धों सहित अनुशंसित किया गया है। इण्डियन कॉउन्सिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) द्वारा गठित 'नेशनल टास्क फोर्स फ़ॉर कोविड-19' ने सोमवार को इसकी घोषणा की।
टास्क फोर्स के अनुसार, यह दवा विशेषकर संक्रमित व संदिग्धों के उपचार में लिप्त चिकित्सकों एवम् अन्य स्वास्थ्यकर्मियों को दी जा सकती है। इसके अतिरिक्त पीड़ित के सम्पर्क में आ चुके व्यक्तियों को भी यह दवा दी जा सकती है। टास्क फोर्स को यह अनुमति ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इण्डिया से मिली है। आईसीएमआर ने यह भी स्पष्ट किया है बिना चिकित्सीय परामर्श के दवा का प्रयोग नहीं किया जा सकेगा।

⚠️चेतावनी- 15 वर्ष से कम आयु वालों के उपचार में नहीं होगी प्रयोग⚠️

15 वर्ष से कम आयु के बालक-बालिकाओं/अन्य को यह दवा नहीं दी जा सकती है। इसके अतिरिक्त जिन्हें रेटिनोपैथी तथा अन्य स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्यायें हैं उनके लिये भी यह दवा वर्जित है। दवा पंजीकृत चिकित्सक द्वारा जारी लिखित परामर्श के आधार पर ही प्रदान की जायेगी। संक्रमण के संदेह पर गाइडलाइन के आधार पर परीक्षण व उपचार कराने की अनुशंसा की गई है।

💊खुराक की मात्रा💊

🔘स्वास्थ्यकर्मियों हेतु:

आईसीएमआर के अनुसार संक्रमित व्यक्ति के उपचार में लिप्त स्टाफ को प्रथम दिवस 400 एमजी की खुराक दो बार लेनी है। तदोपरान्त आगामी सात सप्ताह तक प्रत्येक सप्ताह 400 एमजी की मात्र एक खुराक भोजन के साथ लेनी है।

🔘संक्रमित के सम्पर्क में आये व्यक्तियों हेतु:

संक्रमित व्यक्ति के परिजनों या उनके सम्पर्क में आये व्यक्तियों को प्रथम दिवस दो खुराक, तदोपरान्त तीन सप्ताह तक प्रत्येक सप्ताह 400 एमजी की मात्र एक खुराक भोजन के साथ लेनी है।।


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वनीला

वनीला


वनीला मूल रूप से अमेरिकी महाद्वीप की उपज है। यह दक्षिण पूर्वी मैक्सिको, ग्वाटेमाला तथा मध्य अमेरिका में पाया जाता है। वेस्टइंडीज में भी इसकी खेती की जाती है। वनीला ऑर्किड परिवार का सदस्य है। इसके पुष्प सुगन्धित होते हैं, जिनसे कैप्सूल के आकार के फल निकलते हैं। वनीला का सर्वाधिक उपयोग आइसक्रीम निर्माण में किया जाता है। इसके अतिरिक्त केक, शीतल पेय (कोल्ड ड्रिंक), इत्र (पर्फ्यूम) व अन्य सौन्दर्य प्रसाधनों में इसका उपयोग होता है। अखिल विश्व में जितनी आइसक्रीम का उत्पादन होता है, उसमें 40 प्रतिशत वनीला स्वादयुक्त (फ्लेवर्ड) होती हैं। भारत में यह दक्षिणी राज्यों में उगाया जाता है।




💮अपने स्वाद एवम् मनमोहक सुगन्ध के लिये वनीला जगतप्रसिद्ध है। इसका स्वाद हर आयुवर्ग के व्यक्ति को भाता है। आइसक्रीम और चॉकलेट के अतिरिक्त कई अन्य मिष्ठानों में इसका उपयोग किया जाता है।

💮वनीला में वनैलीन नामक रसायन पाया जाता है, जो देह में कोलेस्ट्रॉल को सन्तुलित करता है। इसका सेवन हृदय सम्बन्धी समस्याओं को कम करने में सहायक है। इसमें जीवाणु रोधी (एन्टी-बैक्टीरियल) गुण भी होते हैं, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

💮यह एन्टी-ऑक्सीडेंट गुणों से भी भरपूर है। इसका नियमित उपभोग कैंसर जैसे रोगों को क्षीण करने में सहायक है। इसमें समाविष्ट रसायन यकृत (लीवर) की समस्याओं एवम् जोड़ों की पीड़ा में भी कारगर है।।


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बाँस की बोतल में समाहित स्वास्थ्य के रहस्य

बाँस की बोतल में समाहित सेहत के रहस्य


जैविक पाक कला (ऑर्गेनिक कुकिंग) की बढ़ती लोकप्रियता ने बाँस से बने बर्तनों के बाज़ार को भी जीवंत कर दिया है। मृदा निर्मित पात्रों के अतिरिक्त बाँस से बने बर्तन आजकल काफी प्रचलित हो रहे हैं। बाँस की टोकरी तो हम सदैव से प्रचलन में देखते आये हैं, किन्तु अब बाँस से निर्मित बोतल, प्लेट, कटोरी, ट्रे, चम्मच, सर्विंग स्पून, गिलास आदि भी अनेक रूपों में देखने को मिल रहे हैं।





बाँस की बोतल इन दिनों काफी लोकप्रियता अर्जित कर रही है। बाँस में पोटेशियम, कॉपर, विटामिन बी-2 व 6, प्रोटीन, आयरन आदि तत्व पाये जाते हैं। इन्हीं गुणकारी तत्वों के कारण बाँस की बोतल में जल ग्रहण करने का सुझाव दिया जाता है। इससे अस्थियाँ सुदृढ़ होती हैं, माइग्रेन में आराम मिलता है, केशों व त्वचा को लाभ होता है तथा सिरदर्द व तनाव में आराम मिलता है। इसके अतिरिक्त उदर सम्बन्धी कई समस्याओं में आराम मिलता है। बाँस के बोतल में नियमित जल सेवन से परिवर्तनशील जलवायु में ज्वर आदि की समस्या से निदान मिलता है। वाष्प निर्मित खाद्य पदार्थों हेतु बाँस निर्मित पात्रों का सर्वाधिक उपयोग किया जाता है। यद्यपि मूल्यवान बाँस एवम् हस्तनिर्मित होने के कारण इनसे निर्मित वस्तुयें भी काफी महँगी होती हैं तथापि इसके स्वास्थ्य सम्बन्धी लाभों पर विचार किया जाये तो यह मूल्य अधिक प्रतीत नहीं होते।।



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Monday, March 23, 2020

भारतीय नववर्ष- गौरवशाली परम्परा का प्रतीक

भारतीय नववर्ष- गौरवशाली परम्परा का प्रतीक


25 मार्च 2020(बुध.) को नव विक्रम संवत का आरम्भ होगा। पुराणों तथा शास्त्रों के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही सृष्टि की रचना का श्रीगणेश हुआ था। इस तिथि को 'प्रवरा तिथि' भी कहकर संबोधित किया गया है।





भारत में अनुमोदित संवत, विक्रम संवत है। राष्ट्रीय संवत का सूत्रपात विक्रम संवत के उपरांत हुआ। राष्ट्रीय संवत का गठन सौर वर्ष की गणना के अनुरूप हुआ, अन्यथा प्रथागत रूप से इसमें एवम् विक्रम संवत में कोई विशेष अन्तर नहीं है। राष्ट्रीय संवत के नाम से प्रचलित शक संवत को 1957 में भारत सरकार ने देश के राष्ट्रीय पंचांग के रूप में स्वीकृति प्रदान की थी। पारम्परिक कालगणना का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है तथा पुराणों एवम् शास्त्रों के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सृष्टि की रचना आरम्भ हुई। इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि जिस दिन इस दिशा में पहल हुई, वही संसार का प्रथम दिवस था। सृष्टि रचना का प्रथम दिवस ही वर्ष प्रतिपदा कहलायेगा। वृक्ष, लता एवम् पुष्पों से आच्छादित जब प्रकृति का आगमन हुआ होगा, तो आह्लाद के उन दिनों को स्वाभाविक ही मधुमास की उपाधि से विभूषित किया गया होगा। प्रेम जलधि से संसार अभिभूत हो गया होगा, तो प्रकृति श्रृंगार कर उठी होगी और जनमानस उल्लसित हो झूम उठा होगा। तदोपरान्त गणना अपरिहार्य हुई और दिन, सप्ताह, पक्ष, सम्वत्सर के साथ कालबोध भी गहन होता गया। कहावत है कि इतिहास का बोध एवम् स्मृति भी प्रखर हुये, तो सम्वत्सर की अवधारणा फलीभूत होने लगी।
ऐतिहासिक उल्लेख अनुसार इसका नाम उज्जयिनी के सम्राट विक्रमादित्य के नाम पर अस्तित्व में आया। पश्चिम एवम् उत्तर भारत की सीमाओं से शक और हूण आदि बाह्य आक्रांताओं ने भारत के कई प्रांतों पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया था। सिंध से सौराष्ट्र, गुजरात और महाराष्ट्र में विस्तार करते हुये दक्षिणी गुजरात होते हुये शकों ने उज्जयिनी पर आक्रमण किया।शकों ने सम्पूर्ण उज्जयिनी का पूर्णतः विध्वंस कर दिया। जब इनके उत्पीड़न से प्रजा त्राहिमाम कर उठी, तो मालवा के शासक विक्रमादित्य के नेतृत्व में राजशक्तियाँ ने एकजुटता के साथ आक्रांताओं को खदेड़ दिया। राजा विक्रमादित्य के शौर्य व युद्ध कौशल पर अनेक प्रशस्ति लेख और शिलालेख लिखे गये कि कैसे ईसा पूर्व 57 में शकों को सम्राट विक्रमादित्य ने पराजित किया। विक्रमादित्य की जयगाथा का उल्लेख अरबी कवि जरहाम किनतोई ने 'सायर-उल-ओकुल' में किया है। 
सम्राट पृथ्वीराज के समय तक सभी भारतीय शासक विक्रमादित्य के पदचिन्हों पर शासन व्यवस्था संचालित करते रहे। कालांतर में यह सर्वमान्य नहीं हो सकी, क्योंकि एक तो नये शासक और उनकी अपनी रीति-नीति, दूसरे ज्योतिषियों द्वारा सम्पादित अभिनव प्रयोग। सूर्य सिद्धान्त के अनुसार पर्वों, सूर्य ग्रहण, चन्द्र ग्रहण का गणित इसी सम्वत्सर से प्रकट हुआ, जिसमें एक दिन का भी अन्तर नहीं होता। भारतीय परम्परा के अनुसार, नव सम्वत्सर पर कलश स्थापित कर नौ दिन का व्रत संकल्प धारण कर शक्ति एवम् पराक्रम की अधिष्ठात्री देवी की आराधना की जाती है। साधक इन दिनों तामसिक भोजन एवम् मादक पेय पदार्थों का परित्याग भी कर देते हैं।
ब्रह्म पुराण के अनुसार, ब्रह्मा जी ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही ब्रह्माण्ड का सृजन किया था। इसी तिथि को 'प्रवरा तिथि' भी कहा गया है। मान्यता है कि 'प्रवरा तिथि' को धार्मिक, सामाजिक, व्यावसायिक तथा राजनीतिक कार्य बिना मुहूर्त देखे भी आरम्भ किये जा सकते हैं। 'प्रवरा तिथि' की मान्यता कुछ मुहूर्तों के रूप में आज भी प्रचलन में है, यथा- वर्ष प्रतिपदा, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अक्षय तृतीया अर्थात् वैशाख शुक्ल तृतीया और विजया दशमी अर्थात् आश्विन शुक्ल दशमी।

🛡️विशिष्ट आधुनिक-कालीन सन्दर्भ🛡️

विक्रम संवत के दो हजार वर्ष व्यतीत होना इतिहास की प्रमुख घटना थी। इस दो हजार वर्ष की दीर्घ यात्रा में भी भारत के शौर्य एवम् प्रतिभा ने जो प्रतिमान स्थापित किये, वे काफी हद तक समय के अनुरूप हैं। यह कम गर्व का विषय नहीं कि विक्रम संवत संसार के समस्त संवतों से अधिक प्राचीन है। वस्तुतः विक्रम, कालिदास और उज्जयिनी गर्व के विषय हैं। स्वर्गीय पं. सूर्य नारायण व्यास ने एक मासिक पत्र 'विक्रम' प्रारम्भ किया। कालिदास समारोह आरम्भ होने से पूर्व उन्होंने विक्रम के लिये कुछ संकल्प लिये थे जो थे- विक्रम के नाम पर ऐसे विश्वविद्यालय की स्थापना जो साहित्य, शिक्षा और संस्कृति की त्रिवेणी हो। इस योजना में महाराजा जीवाजीराव सिंधिया का योगदान रहा। वीर सावरकर और के.एम. मुंशी ने इस योजना का प्रारूप विस्तृत रूप से प्रकाशित किया और सहयोग जुटाया। रवीन्द्रनाथ टैगोर और निराला ने भी 'विक्रम' पर कवितायें रचीं। हिन्दू महासभा के तत्कालीन अध्यक्ष के समर्थन-सहयोग से नवचेतना का प्रसार हुआ। ठीक उसी समय जिन्ना ने उत्सव का विरोध किया। सरकार सचेत हो गयी। उसे विद्रोह का आभास हुआ, क्योंकि एक साथ 114 देशी महाराजा एकत्रित हो रहे थे। हिन्दू-मुस्लिम भेदभाव के लिये कोई स्थान नहीं था, किन्तु जिन्ना के कारण विकार उत्पन्न हो गया। पंडित व्यास ने भोपाल के नवाब को समारोह आयोजन हेतु पत्राचार किया। प्रायः उसी समय निर्माता-निर्देशक विजय भट्ट ने 'विक्रमादित्य' चलचित्र का निर्माण किया जिसके सम्वाद, पटकथा और गीत-लेखन का कार्य भी उन्होंने स्वयं ही किया। चलचित्र में मुख्य भूमिका पृथ्वीराज कपूर ने निभाई। बाद के दिनों पृथ्वीराज कपूर ने 'कालिदास समारोह' में स्वयं नाट्य प्रस्तुतियाँ भी दीं।



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Sunday, March 22, 2020

🚫प्रजा निषेधाज्ञा/ जनता कर्फ्यू🚫

🚫प्रजा निषेधाज्ञा/ जनता कर्फ्यू🚫


आईसीएमआर के औचक परीक्षण से ज्ञात होता है कि हमारे देश में कोविड-19 सामुदायिक संचरण के चरण में नहीं पहुँचा है, किन्तु यह जिस तीव्रता से प्रसारित हो रहा है, वह यह समझने के लिये पर्याप्त है कि हम किस असाधारण चुनौती से जूझ रहे हैं।





कोरोना वायरस (कोविड-19) का संक्रमण जिस तीव्रता से विस्तारित हो रहा है, वह यह समझने के लिये पर्याप्त हैं कि हम किस अभूतपूर्व चुनौती से जूझ रहे हैं। वर्तमान परिदृश्य में अखिल विश्व में इस संक्रमण से दिवंगत होने वाले व्यक्तियों का आँकड़ा दस हज़ार के स्तर को लाँघ चुका है जबकि इटली 4000 से अधिक दिवंगतों के आँकड़ों के साथ चीन में मृतकों की संख्या को पीछे छोड़ते हुये शीर्ष पर जा पहुँचा है तथा कुल संक्रमितों की संख्या दो लाख से काफी आगे बढ़ चुकी है। वहीं पंजाब में एक संक्रमित वृद्धजन की मृत्यु के साथ ही कोरोना वायरस यानी कोविड-19 के संक्रमण से भारत में अब तक चार निधन हो चुके हैं व इससे प्रभावित होने वालों की संख्या 300+ हो चुकी है। भारतीय चिकित्सा अनुसन्धान परिषद (आईसीएमआर) ने निमोनिया एवम् सीने में संक्रमण से पीड़ित व्यक्तियों के परीक्षण के आधार पर पुष्टि की है कि भारत में संक्रमण सामुदायिक संचरण अर्थात् तृतीय चरण में नहीं पहुँचा है। वस्तुतः चीन के बाद कोविड-19 से सर्वाधिक प्रभावित यूरोप व अमेरिका में संक्रमण के प्रारंभिक प्रकरण उजागर होने के तृतीय व चतुर्थ सप्ताह में पीड़ितों की संख्या में तीव्र वृद्धि दर्ज की गई। भारत में कोरोना वायरस से संक्रमण का प्रथम प्रकरण जनवरी के अंतिम सप्ताह में केरल से सार्वजनिक हुआ था, उस लिहाज से हमारे यहाँ इसका संक्रमण काफी हद तक नियन्त्रित रहा। डब्ल्यूएचओ का सुझाव है कि इससे कारगर तरीके से निपटने के लिये अधिकाधिक परीक्षण कराना अनिवार्य है। भारत के अब तक के प्रयासों को डब्ल्यूएचओ के प्रतिनिधि डॉ. हेनेक बेकेडैम ने भी प्रभावी बताया, परन्तु उन्होंने भी अधिकाधिक परीक्षण कराये जाने की बात की। संक्रमण के स्वरूप के आधार पर हमारे देश के लिये आगामी दो से तीन सप्ताह अत्यंत महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। फ्रांस व इटली से लेकर अमेरिका तक में संक्रमण को रोकने के लिये पूर्ण या आंशिक तालाबन्दी कर दी गयी है। हमारे देश के लगभग समस्त राज्यों तक इसका संक्रमण विस्तारित हो चुका है, अतैव आगामी चंद हफ्ते बेहद अहम हैं। इस संघर्ष में जमीनी स्तर पर जिस प्रकार पूरे देश में पुलिस-प्रशासन तथा स्वास्थ्य कर्मी डटे हुये हैं, उनके साहस व ज़ज़्बे को नमन करना चाहिये। निस्संदेह, कोरोना के संक्रमण से बचाव हेतु 'सामाजिक फ़ासले' आवश्यक हैं, किन्तु एक दूसरे से प्रत्यक्ष सम्पर्क न साधते हुये भी यह जंग सामूहिकता के बल से जीती जा सकती है। इसीलिये इस समय अत्यंत सतर्क व्यवहार के साथ ही स्वास्थ्य एवम् नागरिक प्रशासन से जुड़े शासकीय अभिकरणों के साथ तालमेल कायम करने की भी आवश्यकता है।

📢प्रधानमंत्री महोदय का आह्वान📢

प्रधानमंत्री महोदय ने कोरोना महामारी को गम्भीर संकट करार देते हुये कहा है कि संकल्प एवम् संयम से हम इसे नियंत्रित कर सकते हैं। गुरुवार रात्रि 08:00 बजे राष्ट्र को सम्बोधित करते हुये प्रधानमंत्री महोदय ने 22 मार्च 2020 (रविवार) को देशवासियों से 'जनता कर्फ्यू' क्रियान्वित करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिये यह कर्फ्यू महामारी से जंग जीतने के संकल्प का प्रतीक बनेगा। उन्होंने कहा, दुनिया ने इससे पहले कभी इतने भारी संकट का सामना नहीं किया।
प्रधानमंत्री महोदय ने कहा, रविवार प्रातः 07:00 बजे से रात्रि 09:00 बजे तक जनता कर्फ्यू के अंतर्गत आवश्यक सेवाओं में नियोजित कर्मचारियों को छोड़कर शेष नागरिक घरों पर ही रहें। सायंकाल 05:00 बजे अपने घरों के द्वार पर खड़े होकर ताली या थाली बजाकर कोरोना रोगियों की सेवा में निशिदिन जुटे सेवा सेनानी डॉक्टरों एवम् अन्य कर्मवीरों के प्रति आभार व्यक्त करें। उन्होंने कहा, खाद्य पदार्थों एवम् आवश्यक वस्तुओं की कमी नहीं है, इनकी जमाखोरी न करें। साथ ही आग्रह किया, वृद्धजन कुछ सप्ताह घर से न निकलें।

👊✊संकल्प एवम् संयम से विजय निश्चित✊👊

◼️अत्यावश्यक न हो, तो घर से बाहर न निकलें। कारोबार सम्बंधी कार्य घर से ही करें।
◼️आवश्यक न हो तो अस्पताल पर दबाव न बनायें, रूटीन चेकअप के बजाय परिचित डॉक्टर से फोन पर परामर्श लें व ऑपरेशन की तिथि आगे बढ़ायें।
◼️मध्य, निम्न मध्य वर्ग तथा निर्धनों को आर्थिक हितों को गहरी क्षति पहुँची है। अतैव सेवायोजक या कम्पनियाँ कर्मचारियों का वेतन न काटें।
◼️ऐसी वैश्विक महामारी में एक ही मन्त्र कारगर है- हम स्वस्थ तो जग स्वस्थ। इस रोग की कोई दवा न होने से हमारा स्वयं का स्वस्थ रहना आवश्यक है। रोग से बचाव एवम् स्वयं के स्वास्थ्य के लिये संयम आवश्यक है। संयम का तरीका है भीड़भाड़ से बचना, घर से निकलने से बचना। सामाजिक दूरी इस रोग से बचने के लिये नितांत आवश्यक है।
◼️हमारा संकल्प और संयम इस महामारी से लड़ने में वृहद भूमिका निभायेगा। यदि आपको लगता है कि आप ठीक हैं, आपको कुछ नहीं होगा, आप बाज़ार घूमते रहेंगे, सड़कों पर जाते रहेंगे और कोरोना से बचे रहेंगे, तो यह सोच उचित नहीं है। ऐसा करके आप अपने व अपने परिवार से अन्याय करेंगे। इसलिये कुछ हफ्ते नितांत आवश्यक होने पर ही बाहर निकलें। जितना सम्भव हो बिजनेस और ऑफिस सम्बन्धी कार्य घर से ही करें। सरकारी कर्मियों, स्वास्थ्यकर्मियों, जन-प्रतिनिधियों, मीडियाकर्मियों के अतिरिक्त शेष नागरिक स्वयं को पृथक कर लें। वृद्धजन कुछ हफ्ते घर से न निकलें।
◼️130 करोड़ जनसंख्या वाले विकास के लिये प्रयत्नशील देश के लिये कोरोना का बढ़ता संकट सामान्य बात नहीं है। बड़े-बड़े, विकसित देशों में महामारी का व्यापक प्रभाव दिख रहा है। इसलिये, इससे मोर्चा लेने के लिये दो प्रमुख बातों की आवश्यकता है- संकल्प और संयम। हमें संकल्प करना होगा कि जागरूक नागरिक के नाते कर्तव्यपालन करेंगे, केंद्र व राज्य सरकारों के दिशा-निर्देश मानेंगे। स्वयं संक्रमित होने से बचेंगे और दूसरों को भी बचायेंगे।


📌निहितार्थ📌

साधारणतः प्राकृतिक संकट कुछ राष्ट्रों या राज्यों तक ही सीमित रहता है, किन्तु इस संकट ने सम्पूर्ण मानवजाति को संकटग्रस्त कर दिया है। प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध में भी इतने देश प्रभावित नहीं हुये, जितने कोरोना से हैं। विगत दो माह में देश के 130 करोड़ नागरिकों ने वैश्विक महामारी का डटकर मुकाबला किया, सावधानियाँ बरतीं। कुछ नागरिकों को लग रहा है कि हम संकट से बचे हैं तो सब ठीक है किंतु यह विचारधारा उचित नहीं है। प्रत्येक भारतवासी का सजग एवम् सतर्क रहना आवश्यक है। अभी तक विज्ञान कोरोना से उपचार के उपाय नहीं खोज सका है और न ही इसकी वैक्सीन विकसित हो सकी है। जिन देशों में इसका प्रभाव अधिक है, वहाँ अध्ययन में एक और बात सामने आई है। इन देशों में शुरुआती कुछ दिनों के पश्चात् अकस्मात रूप से संक्रमितों की संख्या बढ़ी है। कुछ देशों ने संदिग्धों को एकांत में रखकर स्थिति को सम्भाला है।
कोरोना वायरस निर्जीव वस्तुओं पर 12 से 18 घण्टे तक जीवित रह सकता है। अर्थात् यदि कोरोना संक्रमित व्यक्ति ने किसी वस्तु को छुआ तो उस पर उसका वायरस 24 घण्टे बाद निश्चित रूप से स्वतः ही नष्ट हो जायेगा। इसके अतिरिक्त संक्रमित व्यक्ति जब दीर्घ अवधि तक किसी के सम्पर्क में नहीं आयेगा तो वायरस का प्रसार 95% तक घट जायेगा। अतः इस चक्रीय कड़ी को तोड़ने हेतु इस प्रकार का अभियान प्रतिबद्धता, दृढ़ संकल्प, संयम, सामूहिक सहयोग एवम् नैतिक आर्दशों को समाविष्ट करते हुये अवश्यंभावी है।।


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Friday, March 20, 2020

कोरोना की उत्पत्ति- प्रयोगशाला या प्रकृति??

कोरोना की उत्पत्ति- प्रयोगशाला या प्रकृति??


प्रयोगशाला से नहीं, प्रकृति से पनपा कोरोना वायरस


वैज्ञानिकों का दावा, एक व्यक्ति में प्रवेश उपरान्त शेष जनमानस में पहुँचा।





कोरोना वायरस (सार्स-सीओवी-2) की उतपत्ति किसी प्रयोगशाला में नहीं अपितु प्राकृतिक रूप से हुई। नेचर मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार वायरस के जीनोम सीक्वेंस का अध्ययन यही संकेत दे रहा है। अमेरिका के स्क्रिप्स शोध संस्थान सहित अन्य संस्थानों के वैज्ञानिकों ने शोध में बताया है कि ऐसा साक्ष्य नहीं मिलता जो यह पुष्टि कर सके कि वायरस का कृत्रिम उत्पादन हुआ है। रिपोर्ट में यह भी दावा है कि चीनी अधिकारियों ने इस महामारी को पहले से पहचान लिया था। कोविड-19 के प्रकरण तीव्रता से इसलिये बढ़ रहे हैं क्योंकि यह वायरस एक व्यक्ति की देह में प्रवेश उपरान्त अन्य व्यक्तियों में प्रसारित होता जा रहा है। वायरस स्पाइक प्रोटीन उत्पन्न करता है जिसे हुक जैसा उपयोग करके मानवीय कोशिकाओं को किसी कोल्डड्रिंक की केन की भाँति खोलकर सरलतापूर्वक उनमें प्रवेशित हो रहा है।

♻️प्राकृतिक चयन के सिद्धांत से विकसित हुये स्पाइक्स↩️

रिपोर्ट के अनुसार इन स्पाइक प्रोटीन को किसी प्रयोगशाला में जेनेटिक इंजीनियरिंग से विकसित करना असंभव है। यह विज्ञान के लोकप्रिय प्राकृतिक चयन के सिद्धांत के माध्यम से विकसित हुये हैं। यह अभी तक ज्ञात किसी भी वायरस की संरचना से भिन्न है।

♻️प्रथम मन्तव्य: जीव में पनपा, मानव में आया↩️

यह वायरस किसी जीव में प्राकृतिक चयन के जरिये विकसित हुआ तदोपरान्त मानव में आया। विगत वर्षों के कोरोना वायरस यथा- 'सार्स', 'सीवेट' व 'मर्स' ऊँट से प्रसारित हुये थे। वर्तमान वायरस को चमगादड़ से उतपत्ति का मन्तव्य है क्योंकि यह उनमें पाये जाने वायरस के सादृश्य है।

♻️द्वितीय मन्तव्य: यह मानव में ही विकसित हुआ↩️

ऐसा मानने का कारण है कि इसके सादृश्य वायरस पैंगोलिन जीव में पाया जाता है। मानव इन जीवों का भक्षण करता रहा है। उनसे वायरस मानव में घुसपैठ करता रहा। शनैःशनैः प्राकृतिक चयन सिद्धान्त के जरिये इसने स्पाइक प्रोटीन बनाना सीखा तथा मानव कोशिकाओं को भेदने की क्षमता हासिल की।

♻️अफवाहों को विराम, सिद्धान्त को मजबूती किन्तु गहन आत्म-मंथन की आवश्यकता↩️

शोध ने उन अफवाहों पर विराम लगाया है, जिनमें अटकलें लगाई गई थीं कि कोरोना वायरस एक देश की किसी प्रयोगशाला से लीक होकर जनमानस तक पहुँचा। वहीं एक देश द्वारा दूसरे देश पर यह वायरस प्रसारित करने के आरोप-प्रत्यारोपों का भी खण्डन होता है। वैज्ञानिकों ने महामारी के आरंभिक चरण में कहा था कि यह वायरस वन्यजीव (सम्भवतः चमगादड़ या पैंगोलिन) के भक्षण से एक चीनी नागरिक में पहुँचा और वहीं से अन्य मनुष्य भी संक्रमित होते चले गये।

🍂इस भीषण वैश्विक आपदा के भी विशेष निहितार्थ हैं जिन्हें आत्मसात करने हेतु गहन आत्मनिरीक्षण व मंथन तत्क्षण की अनिवार्यता है, कुपित प्रकृति की यह सुस्पष्ट चेतावनी है पथभ्रष्ट मनुष्य अपनी पाश्विक प्रवृत्तियों को तिलांजलि देते हुये अपने आप्राकृतिक कुकृत्यों से विमुख न हुआ तो परिणाम कितने वीभत्स होंगे यह तो भविष्य के गर्भ में ही है किंतु मानवजाति अपनी उर्वर कल्पनाशक्ति से उस अकथनीय विनाशलीला का अनुमान तो सहज रूप से लगा ही सकती है अतः प्रकृति की नैसर्गिक नियमावली का अतिक्रमण कर जनकल्याण एवम् मानवजाति की उत्तरजीविता की अपेक्षा करना ही बेमानी है।।🍂


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कोरोना रोकथाम में कितनी कारगर सिद्ध होंगी एचआईवी रोधी औषधियाँ??

कोरोना संक्रमितों को एचआईवी रोधी औषधियाँ देने की अनुशंसा

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जारी किये संशोधित दिशा-निर्देश, प्रकरण-दर-प्रकरण होगा अनुप्रयोग




केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना वायरस से संक्रमित रोगियों के उपचार हेतु एचआईवी रोधी औषधियाँ 'लोपिनेवीर व रीटोनेवीर' देने की अनुशंसा की है। रोगी की स्थिति को गम्भीरता को देखते हुये प्रकरण दर प्रकरण इन औषधियों का अनुप्रयोग किया जायेगा। यह औषधियाँ जयपुर के सवाई मानसिंह चिकित्सालय में भर्ती इतालवी दम्पति को प्रथम बार दी गयी।
मंत्रालय ने मंगलवार को 'कोरोना वायरस चिकित्सीय प्रबन्धन' पर संशोधित दिशानिर्देश जारी किये।
इनमें मधुमेह रोगियों, किडनी रोगियों, फेफड़े की विकृतियों से ग्रस्त 60 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों को लोपिनेवीर और रीटोनेवीर देने का सुझाव दिया गया है।
विचारणीय है कि ये रोगी उच्च जोखिम वाले समूह में आते हैं। इसके अलावा, ऐसे रोगी जिनकी देह के किसी भाग में प्राणवायु की अल्पता, न्यून रक्तदाब, क्रिटीनीन की मात्रा 50 प्रतिशत से बढ़ने या अंगों के अक्रियाशील हो जाने जैसे लक्षण हों, तो उन्हें भी इसे देने की अनुशंसा की गई है।

🚫वुहान के संक्रमितों पर नहीं हुआ एचआईवी रोधी दवा का असर⚠️

चीन में 199 संक्रमित रोगियों पर अध्ययन के पश्चात् आयी रिपोर्ट में दावा

भारतीय डॉक्टरों ने भी एचआईवी रोधी दवा पर जताया कम भरोसा


एक ओर जहाँ जयपुर के डॉक्टरों ने दावा किया है कि लोपिनेवीर/रीटोनेवीर के साथ मलेरिया और स्वाइन फ्लू की दवा के मिश्रण के जरिये इटली के दो नागरिक स्वस्थ हुये हैं वहीं दूसरी ओर चीन के जिस वुहान से कोरोना दुनिया भर में कहर बनकर टूटा है, वहाँ के डॉक्टरों ने एचआईवी रोधी दवा के निष्प्रभावी होने की पुष्टि की है।चीन के डॉक्टरों की रिसर्च में एचआईवी रोधी दवाओं को कोरोना के उपचार में कारगर नहीं माना गया है। उनका दावा है कि वयस्क रोगियों पर इस दवा की प्रभावशीलता परिलक्षित नहीं हुई। 'द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन' में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार अभी तक कोई दावा प्रभावी सिद्ध नहीं हुआ है।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान परिषद (आईसीएमआर) के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने कहा, अभी भारत किसी निष्कर्ष की स्थिति में नहीं है। जिन्हें गम्भीर रोग हैं, उनके लिये वायरस घातक सिद्ध हो सकता है। जयपुर के एसएमएस अस्पताल में भर्ती दो रोगियों को एचआईवी, स्वाइन फ्लू और मलेरिया की मिश्रित दवा देने की अनुमति दी गयी थी और दोनों पीड़ित ठीक भी हुये। भारत के पास कोरोना और इसके उपचार को लेकर ठोस दवा नहीं है। वहीं दिल्ली एम्स के मेडिसिन विभाग के वरिष्ठ डॉक्टर ने कहा, 2003 में कोरोना की ही भाँति सार्स (एसएआरएस) वायरस ने कई देशों को चपेट में लिया था। 

👉इन रोगियों पर हुआ अध्ययन↩️

वुहान जिन यिन तान अस्पताल में 3 फरवरी से 199 रोगियों पर एचआईवी रोधी दवाओं का अध्ययन शुरू हुआ। इनमें से 120 पुरुष और 79 महिला रोगी थीं जिनकी औसत आयु 58 वर्ष थी। 199 में से 23 को मधुमेह, 13 को हृदयरोग और छह को कैंसर था। वहीं, 182 को बुखार, 37 को श्वास लेने में दिक्कत और दो को रक्तचाप की शिकायत थी।

👉सबसे अधिक रोगी हुये सफदरजंग में ठीक↩️

देश में कोरोना का सबसे बड़ा नोडल केंद्र दिल्ली का सफदरगंज अस्पताल है। यहाँ के निदेशक डॉ. बलविंदर सिंह ने कहा कि यहाँ से आठ रोगी ठीक होकर घर भी जा चुके हैं।लक्षणों के आधार पर उपचार होता है। एन्टीवायरल का प्रयोग भी कर रहे हैं जिसमें पैरासिटामोल भी है। अभी तक एचआईवी, स्वाइन फ्लू और मलेरिया रोधी दवाओं का प्रयोग नहीं हुआ है।

👉ऐसे शुरू हुआ अध्ययन↩️

करीब 20 से अधिक डॉक्टरों ने 14 दिन तक 99 और 100 रोगियों के दो समूहों में एकांतवास में रखा गया। उनमें से एक (99) समूह को लोपिनेवीर 400 एमजी और रीटोनेवीर 100 एमजी दिन में दो बार दी गयी। पहले समूह में भर्ती 99 में से पाँच रोगियों को खुराक नहीं दी जा सकी क्योंकि भर्ती होने 24 घण्टे के भीतर ही तीन की मृत्यु हो गई। अन्य दो रोगियों को खुराक देने हेतु स्थितियाँ प्रतिकूल थीं। अतः 94 रोगियों का ही उपचार परीक्षण हो सका।

👉28 दिन में पाँच बार लिये गये सैंपल↩️

प्रशिक्षित नर्सों के जरिये प्रतिदिन इनकी निगरानी की गई। खुराक देने से पहले व सैंपल लेने के बाद 5वें, 10वें, 14वें, 21वें और 28वें दिन तक सैंपल लिये गये। इन सैम्पल्स की जाँच चीन की ही टेडी क्लीनिकल रिसर्च लैबोरेट्री में जाँचा गया।

👉ये निकले परिणाम↩️

सामने आया कि गम्भीर रोगों से ग्रस्त रोगियों पर लोपिनेवीर और रीटोनेवीर दवा का प्रभाव नहीं होता। इन दवाओं के प्रयोग से रोगनिवृत्ति में न तो तीव्रता आयी और न ही गम्भीर रोगियों में मृत्यु की आशंका की कम हुई। ज्वर भी कम नहीं हुआ। अंत में जिन रोगियों को ये दवायें दी गईं, 28 दिन बाद उन में से 40 प्रतिशत को ज्वर की शिकायत थी।

👉अमेरिका ने कोरोना के उपचार हेतु मलेरिया रोधी दवा को दी स्वीकृति↩️

अमेरिका ने मलेरिया व गठिया में प्रयुक्त होने वाली दवा क्लोरोक्विन को कोरोना वायरस के उपचार हेतु गुरुवार को स्वीकृति दे दी। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने बताया कि कोरोना वायरस के उपचार के लिये मलेरिया रोधी दवा को स्वीकृति दी गयी है। हम शीघ्र-अतिशीघ्र इसे पीड़ितों को डॉक्टरों के सुझाव पर उपलब्ध करायेंगे। हालाँकि अमेरिका के खाद्य एवम् औषधि प्रशासन (एफडीए) आयुक्त स्टीफन एच ने बाद में ऐसे संकेत दिये कि उक्त दवा को औपचारिक मंजूरी नहीं दी गयी है, इसके अनुप्रयोग को इसलिये अनुमति दी गयी ताकि प्रशासन अधिकाधिक डाटा एकत्र कर सके।।

🍃विश्वस्तर पर गतिमान मिलेजुले प्रयासों, प्रतिक्रियाओं एवम् परिणामों के मध्य हमें जागरूक नागरिकों के नाते आधिकारिक व प्रामाणिक दिशा-निर्देशों का पालन करते हुये उन सभी कर्मवीरों का सहृदय आभार व्यक्त करते हुये उनके भगीरथी प्रयासों में आस्था व्यक्त करते हुये अपेक्षा कायम रखनी चाहिये कि पुनः जनहित एवम् विश्वकल्याण हेतु मानवता के परमहंस ध्वजवाहक बन वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा को पुनर्स्थापित करेंगे।।🍃


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Monday, March 2, 2020

जबूतीकाबा

जबूतीकाबा फल


यह असामान्य और दुर्लभ फल ब्राज़ील के कई भागों में पाया जाता है और कुछ हद तक अंगूर जैसा दिखता है। इसी वजह से इसे 'ब्राज़ीलियन अंगूर' भी कहते हैं। यह पेड़ की छाल पर उगता है, न कि शिखाओं पर। इसके गुच्छे सूंड की तरह दिखते हैं। इसकी बाह्य त्वचा कठोर होती है और इसका व्यास लगभग एक इंच होता है। छिलके के नीचे का सफेद भाग बहुत मीठा एवम् सुगन्धित होता है। खाने के अतिरिक्त जबूतीकाबा का उपयोग जैम, जेली और मिठाइयों के साथ-साथ मदिरा निर्माण में होता है। इसके सेवन से अस्थमा और एसिडिटी के लक्षणों को कम करने में मदद मिलती है।




🍇जबूतीकाबा एन्टी ऑक्सीडेंट गुणों का सबसे अच्छा और पुराना स्रोत है। इसकी बैंगनी त्वचा में एंथोसायनिन, टैनिन और पॉलीफेनॉल जैसे पदार्थ पाये जाते हैं, जिनका उचित मात्रा में सेवन शरीर के लिये बेहद फायदेमंद होता है।

🍇यह कैलोरी और कार्बोहाइड्रेट से भरपूर है। इसमें विटामिन सी,  विटामिन ई और फोलिक एसिड खूब पाये जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिये बहुत लाभदायक हैं। फाइबर की अच्छी मात्रा होने के कारण इसके खाने के घण्टों बाद भी पेट भरा अनुभव होता है।

🍇जबूतीकाबा के पौधे की छाल में पेक्टिन नामक घुलनशील फाइबर मिलता है। इस पीसकर पीने से वजन कम करने में मदद मिलती है। इसका नियमित सेवन करने से त्वचा चमकदार बनती है तथा झुर्रियों से छुटकारा मिलता है।।


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