कोरोना की उत्पत्ति- प्रयोगशाला या प्रकृति??
प्रयोगशाला से नहीं, प्रकृति से पनपा कोरोना वायरस
वैज्ञानिकों का दावा, एक व्यक्ति में प्रवेश उपरान्त शेष जनमानस में पहुँचा।
कोरोना वायरस (सार्स-सीओवी-2) की उतपत्ति किसी प्रयोगशाला में नहीं अपितु प्राकृतिक रूप से हुई। नेचर मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार वायरस के जीनोम सीक्वेंस का अध्ययन यही संकेत दे रहा है। अमेरिका के स्क्रिप्स शोध संस्थान सहित अन्य संस्थानों के वैज्ञानिकों ने शोध में बताया है कि ऐसा साक्ष्य नहीं मिलता जो यह पुष्टि कर सके कि वायरस का कृत्रिम उत्पादन हुआ है। रिपोर्ट में यह भी दावा है कि चीनी अधिकारियों ने इस महामारी को पहले से पहचान लिया था। कोविड-19 के प्रकरण तीव्रता से इसलिये बढ़ रहे हैं क्योंकि यह वायरस एक व्यक्ति की देह में प्रवेश उपरान्त अन्य व्यक्तियों में प्रसारित होता जा रहा है। वायरस स्पाइक प्रोटीन उत्पन्न करता है जिसे हुक जैसा उपयोग करके मानवीय कोशिकाओं को किसी कोल्डड्रिंक की केन की भाँति खोलकर सरलतापूर्वक उनमें प्रवेशित हो रहा है।
♻️प्राकृतिक चयन के सिद्धांत से विकसित हुये स्पाइक्स↩️
रिपोर्ट के अनुसार इन स्पाइक प्रोटीन को किसी प्रयोगशाला में जेनेटिक इंजीनियरिंग से विकसित करना असंभव है। यह विज्ञान के लोकप्रिय प्राकृतिक चयन के सिद्धांत के माध्यम से विकसित हुये हैं। यह अभी तक ज्ञात किसी भी वायरस की संरचना से भिन्न है।
♻️प्रथम मन्तव्य: जीव में पनपा, मानव में आया↩️
यह वायरस किसी जीव में प्राकृतिक चयन के जरिये विकसित हुआ तदोपरान्त मानव में आया। विगत वर्षों के कोरोना वायरस यथा- 'सार्स', 'सीवेट' व 'मर्स' ऊँट से प्रसारित हुये थे। वर्तमान वायरस को चमगादड़ से उतपत्ति का मन्तव्य है क्योंकि यह उनमें पाये जाने वायरस के सादृश्य है।
♻️द्वितीय मन्तव्य: यह मानव में ही विकसित हुआ↩️
ऐसा मानने का कारण है कि इसके सादृश्य वायरस पैंगोलिन जीव में पाया जाता है। मानव इन जीवों का भक्षण करता रहा है। उनसे वायरस मानव में घुसपैठ करता रहा। शनैःशनैः प्राकृतिक चयन सिद्धान्त के जरिये इसने स्पाइक प्रोटीन बनाना सीखा तथा मानव कोशिकाओं को भेदने की क्षमता हासिल की।
♻️अफवाहों को विराम, सिद्धान्त को मजबूती किन्तु गहन आत्म-मंथन की आवश्यकता↩️
शोध ने उन अफवाहों पर विराम लगाया है, जिनमें अटकलें लगाई गई थीं कि कोरोना वायरस एक देश की किसी प्रयोगशाला से लीक होकर जनमानस तक पहुँचा। वहीं एक देश द्वारा दूसरे देश पर यह वायरस प्रसारित करने के आरोप-प्रत्यारोपों का भी खण्डन होता है। वैज्ञानिकों ने महामारी के आरंभिक चरण में कहा था कि यह वायरस वन्यजीव (सम्भवतः चमगादड़ या पैंगोलिन) के भक्षण से एक चीनी नागरिक में पहुँचा और वहीं से अन्य मनुष्य भी संक्रमित होते चले गये।
🍂इस भीषण वैश्विक आपदा के भी विशेष निहितार्थ हैं जिन्हें आत्मसात करने हेतु गहन आत्मनिरीक्षण व मंथन तत्क्षण की अनिवार्यता है, कुपित प्रकृति की यह सुस्पष्ट चेतावनी है पथभ्रष्ट मनुष्य अपनी पाश्विक प्रवृत्तियों को तिलांजलि देते हुये अपने आप्राकृतिक कुकृत्यों से विमुख न हुआ तो परिणाम कितने वीभत्स होंगे यह तो भविष्य के गर्भ में ही है किंतु मानवजाति अपनी उर्वर कल्पनाशक्ति से उस अकथनीय विनाशलीला का अनुमान तो सहज रूप से लगा ही सकती है अतः प्रकृति की नैसर्गिक नियमावली का अतिक्रमण कर जनकल्याण एवम् मानवजाति की उत्तरजीविता की अपेक्षा करना ही बेमानी है।।🍂
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