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Sunday, February 2, 2020

मेलबर्न की नई मलिका-सोफ़िया

सोफ़िया बनीं मेलबर्न की नई मलिका


मुगुरुजा को हराकर जीत करियर का पहला ग्रैंड स्लैम





अमेरिका की 21 वर्षीय सोफ़िया केनिन मेलबर्न की नई मलिका बन गयीं। पहली बार किसी ग्रैंड स्लैम का फाइनल खेलने वाली दुनिया की 15वें नम्बर की खिलाड़ी सोफ़िया ने दो बार की ग्रैंड स्लैम चैंपियन 26 वर्षीय गर्बाइने मुगुरुजा को 4-6, 6-2, 6-2 से पराजित कर ऑस्ट्रेलियन ओपन का खिताब जीता। सोफ़िया ने पहला सेट गंवाने के बाद वापसी करते हुये 2 घण्टे तीन मिनट में मुकाबला अपने नाम किया। वह सेरेना विलियम्स (2002) के बाद ग्रैंड स्लैम जीतने वाली अमेरिका की सबसे युवा खिलाड़ी हैं। तीसरी बार यहाँ खेल रहीं सोफ़िया 2018 में पहले और 2019 में दूसरे दौर में बाहर हो गई थीं।

🏆12 वर्षों पश्चात सबसे युवा विजेता: सोफ़िया विगत 12 वर्षों में ऑस्ट्रेलियन ओपन जीतने वाली सबसे युवा खिलाड़ी हैं। 2008 में रूस की शारापोवा ने 20 वर्ष की आयु में यह उपलब्धि हासिल की थी। सोफ़िया यह ट्रॉफी जीतने वाली 18वीं अमेरिकी हैं।

🏆पहुँचेंगी सातवीं रैंकिंग पर: सोफ़िया डब्ल्यूटीए रैंकिंग में पहली बार शीर्ष दस में शुमार हो जायेंगी। वे आठ स्थान की छलाँग लगाकर 15वें से करियर की सर्वश्रेष्ठ रैंकिंग सातवें स्थान पर पहुँच जायेंगी।।

👉टैक्सी ड्राइवर से ग्रैंडस्लैम विजेता कोच⤵️

पिता एलेक्स के संघर्ष को बिटिया सोफ़िया ने पहुँचाया मुकाम तक


ऑस्ट्रेलियन ओपन में महिला वर्ग की चैंपियन बनीं 21 साल की सोफ़िया केनिन की सफलता में टैक्सी ड्राइवर पिता एलेक्स के संघर्ष का बड़ा योगदान है।
पाँच साल की उम्र में जब सोफ़िया को वह टेनिस अकादमी में ले गये थे तब उनकी टेनिस की जानकारी लगभग शून्य थी लेकिन धीरे-धीरे अकादमी के लोगों को देखकर खेल की बारीकियां समझीं और सोफ़िया की कोचिंग शुरू कर दी। अब तो वह ग्रैंडस्लैम चैंपियन के कोच हो गये हैं।

👍चैंपियन फादर्स क्लब में शामिल: एलेक्स खास फादर्स क्लब में शामिल हो गये हैं जिन्होंने चैंपियन दिये हैं। इनमें वीनस और सेरेना के पिता रिचर्ड विलियम्स, आंद्रे अगासी के पिता माइक और मारिया शारापोवा के पिता यूरी शामिल हैं।

👍रात को टैक्सी, सुबह अंग्रेजी की कक्षा: एलेक्स 1987 में जेब में चंद डॉलर लेकर तत्कालीन सोवियत संघ से पत्नी लीना के साथ अमेरिका आ गये थे। शुरू में अंग्रेजी कम आती थी लेकिन कड़ी मेहनत की। रात को टैक्सी चलाई और सुबह अंग्रेजी व कंप्यूटर सीखा।

👍ताने भी सहे: सोफ़िया के कथनानुसार, वह अन्य बच्चों के मुकाबले ज्यादा लम्बी नहीं थीं। लोग कहते थे आप मज़ाक कर रहे हो यह लड़की टेनिस खेलेगी!!?? लेकिन उनके पिता ने किसी की परवाह किये बिना लक्ष्य साधना जारी रखी।।


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Saturday, February 1, 2020

संसद का संयुक्त सत्र


संसद भवन

हमारे संविधान के तहत हमारी संसद में दो सदनों लोकसभा और राज्यसभा की व्यवस्था है। संविधान के अनुच्छेद 108 के तहत राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक आहूत कर सकता है। ऐसे सत्र की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करते हैं। उनकी अनुपस्थिति में यह जिम्मेदारी लोकसभा उपाध्यक्ष को दी जाती है और उनकी भी अनुपस्थिति में राज्यसभा के उपसभापति अध्यक्षता करते हैं। आमतौर पर संयुक्त सत्र की नौबत तब आती है, जब किसी विधयेक को एक सदन ने पारित कर दिया हो और दूसरे सदन ने उसे अस्वीकार कर दिया हो, या विधेयक में किये जाने वाले संशोधनों के बारे में दोनों सदनों में अंतिम रूप से असहमति हो या दूसरे सदन को विधयेक प्राप्त होने की तारीख से उसके द्वारा विधयेक पारित किये बिना छह मास से अधिक बीत गये हों। हालाँकि मनी बिल या धन विधेयक के मामले में यह प्रावधान लागू नहीं होता। मनी बिल को सिर्फ लोकसभा की मंजूरी की जरूरत होती है, राज्यसभा लोकसभा को अपनी सिफारिशें भेज सकती है, लेकिन वह उन्हें मानने को बाध्य नहीं है। संविधान संशोधन विधयेक के लिये भी संयुक्त सत्र का प्रावधान नहीं है। भारतीय संसद ने अब तक सिर्फ तीन विधयेक ही संयुक्त सत्र में पारित किये हैं। यह हैं, दहेज रोक अधिनियम, 1961, बैंकिंग सेवा आयोग अधिनियम, 1977 और पोटा (आतंकवाद निरोधक अधिनियम) 2002। इसके अलावा 30 जुलाई, 2017 को बुलाये गये संसद के दोनों सत्रों के संयुक्त अधिवेशन में मध्य रात्रि को राष्ट्रपति ने जीएसटी (वस्तु एवम् सेवाकर) को लागू करने की घोषणा की थी।।


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Sunday, January 26, 2020

🇮🇳एकता, समानता और गरिमा का गणतन्त्र🇮🇳

🇮🇳एकता, समानता और गरिमा का गणतंत्र🇮🇳


भारत में 19वीं शताब्दी के राजनीतिक विमर्श में राजनीतिक मुद्दों के बजाय सामाजिक मुद्दों पर जोर था। वर्ष 1927 से ही देश में भारत की स्वतंत्रता के बारे में गहन विचार-विमर्श होने लगा था। भविष्य में भारत को एक स्वतंत्र देश के रूप में देखने वाले बाल गंगाधर तिलक थे, जिन्होंने कहा था, ‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।’ वह भारतीय समाज की अनेक गड़बड़ियों और विरोधाभासों से अवगत थे, इसके बावजूद उन्होंने देश की आजादी को पहला लक्ष्य माना और कहा कि सामाजिक बुराइयों को दूर करने का काम आजादी के बाद भी हो सकता है।

वर्ष 1927 तक कांग्रेस नेतृत्व में अंग्रेजों से औपनिवेशिक स्वराज्य (डोमिनियन स्टेटस) की मांग पर आम सहमति थी। यानी वे चाहते थे कि आंतरिक मामलों में भारतीयों को स्वशासन का अधिकार दिया जाए, जैसा कि ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका को प्राप्त था।

वर्ष 1928 में कोलकाता में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में सुभाष चंद्र बोस ने स्वशासन के मुद्दे पर कांग्रेस नेतृत्व में व्याप्त सर्वसम्मति पर सवाल उठाते हुए देश की स्वतंत्रता पर जोर दिया। सुभाष चंद्र बोस और जवाहरलाल नेहरू जैसे युवा नेताओं ने औपनिवेशिक स्वराज्य को साम्राज्यवाद की निशानी मानते हुए खारिज कर दिया। नेहरू ने 1927 में यूरोप और तत्कालीन सोवियत संघ के व्यापक दौरे के बाद औपनिवेशिक शोषण के बारे में स्पष्टता से अपने विचार रखे थे। ब्रुसेल्स में उन्होंने उपनिवेश-विरोधी एक बैठक में भाग लिया, जिसमें लैटिन अमेरिका, एशिया और अफ्रीका से प्रतिनिधि आए थे। सोवियत संघ ने उन्हें बेहद प्रभावित किया, जहां असमानता का नामोनिशान नहीं था। गांधी जी इस बदलाव को गौर से देख रहे थे।

उन्होंने नई पीढ़ी में वाम रुझानों और खासकर महाराष्ट्र में (गुजरात तब बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा था) वस्त्रोद्योग के कामगारों के बीच कम्युनिस्ट पार्टी के बढ़ते असर को देखा। नई विचारधाराओं को कांग्रेस में समाहित करने के लिए गांधी जी ने नेहरू को नया अध्यक्ष मनोनीत किया। उसी दौरान साइमन कमीशन (1927) का कांग्रेस, मुस्लिम लीग तथा उदारवादियों-सब ने विरोध किया, क्योंकि उसमें एक भी भारतीय प्रतिनिधि नहीं था और न ही इसमें भारत को औपनिवेशिक स्वराज्य देने का वादा था। दिलचस्प यह है कि नेहरू रिपोर्ट (1928) में भी पूर्ण स्वतंत्रता के बजाय औपनिवेशिक स्वराज्य की मांग की गई थी। महात्मा की रणनीति काम आई।

लेकिन भगत सिंह और उनके साथियों की नायकोचित वीरता से देश में एक अप्रत्याशित मोड़ आया। 31 दिसंबर, 1929-1 जनवरी, 1930 को लाहौर में नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य का फैसला किया।  यह प्रस्ताव गांधी जी द्वारा तैयार और पारित किया गया। इसमें बताया गया था कि ब्रिटिश राज ने भारत को आर्थिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से कितना नुकसान पहुंचाया है। पूर्ण स्वतंत्रता के लक्ष्य के साथ पहली बार 26 जनवरी को मनाया गया गणतंत्र दिवस बेहद सफल रहा था।


सरकार की खुफिया रिपोर्ट में बताया गया था कि इसमें बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया। पंजाब में इसके प्रति सबसे अधिक उत्साह था। अमृतसर से गांधी जी के एक मित्र ने उन्हें पत्र लिखा था कि ग्रामीण इलाकों में स्वतंत्रता दिवस के प्रति जो उत्साह दिखा, वह अभूतपूर्व था। लाहौर से एक दूसरे कांग्रेसी ने भी यही लिखा। इस सफलता से गांधी जी को महसूस हुआ कि अंग्रेजों के खिलाफ नए नागरिक अवज्ञा आंदोलन की जरूरत है। और इस तरह 1930 में उन्होंने नमक सत्याग्रह की शुरुआत की। लेकिन पांच मार्च, 1931 को वायसराय इरविन और गांधी जी के बीच समझौता हुआ, जिसके बाद महात्मा ने नागरिक अवज्ञा आंदोलन को मुल्तवी कर दिया।

चूंकि अगले गोलमेज सम्मेलन में भारत की आगामी सांविधानिक स्थिति के बारे में फैसला लिया जाना था, इसलिए कांग्रेस की उसमें मौजूदगी सुनिश्चित की गई। लेकिन वहां भारत के औपनिवेशिक स्वराज्य पर भी बात नहीं हुई, जो कांग्रेस के लिए असहज करने वाली स्थिति थी। कांग्रेस में इस पर गहरी निराशा छा गई। 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट में भी भारत को औपनिवेशिक स्वराज्य देने का कोई वादा नहीं किया गया। ग्रेट ब्रिटेन में तब कंजर्वेटिव पार्टी की सरकार थी और उसने लेबर पार्टी और उसके उदार सांसदों द्वारा भारत को औपनिवेशिक स्वराज्य देने के वादे को खारिज कर दिया।

मार्च, 1939 में कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी को चिट्ठी में लिखा, ‘पूर्ण स्वराज्य के मुद्दे पर दबाव डालने का समय आ गया है।’ बोस का मानना था कि वैश्विक संकट ने भारत के लिए अनुकूल परिस्थिति पैदा कर दी है, जिसमें पूर्ण स्वतंत्रता हासिल करने के लिए ब्रिटेन को सीधे-सीधे निशाना बनाया जा सकता है। लेकिन महात्मा गांधी ने बोस का वह प्रस्ताव खारिज कर दिया, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि यह ‘अहिंसक जन आंदोलन’ शुरू करने का सही समय नहीं है।

1940 की गर्मियों में वायसराय ने घोषणा की कि द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद भारत को स्वशासन पर आधारित औपनिवेशिक स्वराज्य दे दिया जाएगा, पर गांधी जी ने वायसराय का यह प्रस्ताव खारिज कर दिया। वह चाहते थे कि युद्ध के बाद ब्रिटेन भारत की पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा करे। भारत छोड़ो आंदोलन गांधीजी के उसी आंदोलन का मिला-जुला रूप था, जिसकी शुरुआत उन्होंने 1929 में की थी।

लेकिन तब से अब तक 26 जनवरी को पूर्ण स्वराज के रूप में मनाकर स्वतंत्रता की उम्मीद को जिलाए रखा गया था। ऐसे में, यह स्वाभाविक ही था कि भारतीय संविधान को 26 जनवरी, 1950 को लागू किया जाता, क्योंकि गणतंत्र के बिना, जिसमें एकता, गरिमा और समानता की भावना हो, स्वतंत्रता अधूरी होती।




साभार:अमर उजाला, 26 जनवरी 2020(रवि.)


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Sunday, January 19, 2020

चिरौंजी/चारोली

चिरौंजी को चारोली नाम से भी जाना जाता है। यह पयाल नामक वृक्ष की उपज है। भारत में यह उड़ीसा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश व छोटा नागपुर के पठारी क्षेत्रों में विशेष रूप से उत्पन्न होती है। मिष्ठानों में इसका प्रयोग अधिक होता है। सौन्दर्य प्रसाधनों में भी इसका इस्तेमाल होता है। चिरौंजी में कई ऐसे पोषक तत्व होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिये अत्यंत लाभदायक हैं। इसमें प्रचुर मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है। यह विटामिन सी तथा बी का भी बढ़िया स्रोत है। यह वात, पित्त व ज्वर में भी शमनकारी सिद्ध होता है।




👉दैहिक दुर्बलता में चिरौंजी का सेवन अत्यन्त लाभकारी है। सर्दी-ज़ुकाम में भी इसका सेवन लाभदायक है। इसे दुग्ध के साथ पकाकर सेवन करने से ज़ुकाम में आराम मिलता हैं। वहीं दूसरी ओर यह देह को शीतलता भी प्रदान करती है।

👉चिरौंजी सौंदर्य-वर्द्धक औषध के रूप में भी इस्तेमाल होती है। इसके प्रयोग से चेहरे पर चमक आती है और कील-मुँहासे खत्म हो जाते हैं। इसे पीसकर लगाने से चेहरे के दाग-धब्बों से भी छुटकारा मिल जाता है।

👉चिरौंजी में प्रोटीन की उच्च मात्रा होने के साथ ही कम कैलोरी भी होती है। इसमें प्रचुर मात्रा में फाइबर भी होता है। इसे खाने से भूख नहीं लगती। इस गुण के कारण यह वजन घटाने में भी सहायक है।।




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जीसैट-30

🚀🛰️भारत के सबसे शक्तिशाली संचार उपग्रह जीसैट-30 का शुक्रवार, 17 जनवरी 2020 को तड़के फ्रेंच गुयाना से सफलतापूर्वक प्रक्षेपण हुआ। इसे तड़के 02 बजकर 35 मिनट पर कौरू प्रक्षेपण केन्द्र से एरियन रॉकेट से छोड़ा गया।


🚀🛰️2020 में इसरो का प्रथम सफल मिशन।


🚀🛰️3357 किलोग्राम भारी है जीसैट-30...


🚀🛰️ये है मिशन: डीटीएच, एटीएम, स्टॉक एक्सचेंज, टेलीविजन अपलिंकिंग तथा ई-गवर्नेंस हेतु वीसैट की कनेक्टिविटी उपलब्ध कराना।




🚀🛰️देश का सबसे शक्तिशाली उपग्रह.....


🚀🛰️सुदृढ़ होगी संचार व्यवस्था, बढ़ेगी इंटरनेट रफ्तार


जीसैट-30 की सफल लॉन्चिंग के साथ इसरो के खाते में एक और उपलब्धि जुड़ गई। देश का सबसे ताकतवर यह उपग्रह अंतरिक्ष में इनसेट-4ए का स्थान लेगा। सफल प्रक्षेपण से देश की संचार व्यवस्था मजबूत होगी तथा मोबाइल नेटवर्क का विस्तार होगा। इसरो के अनुसार कर्नाटक के हासन स्थित उसके मास्टर कंट्रोल फैसिलिटी ने प्रक्षेपण के बाद नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया है। प्राथमिक जाँच में उपग्रह के सभी हिस्से भलीभाँति कार्य कर रहे हैं।

🚀🛰️डीटीएच सेवाओं, ई-गवर्नेंस सुविधा में सुधार


इसरो के चेयरमैन डॉ. के सिवान के अनुसार जीसैट-30 में ऐसी व्यवस्था है कि यह लचीला आवृत्ति खण्ड व कवरेज उपलब्ध करा सकेगा। यह केयू बैंड के जरिये भारत एवम् सी बैंड के जरिये खाड़ी देश, ऑस्ट्रेलिया और कई एशियाई देशों में संचार सेवायें प्रदान करेगा। सिवान अग्रिम कथनानुसार  जीसैट-30 डीटीएच, एटीएम, स्टॉक एक्सचेंज, टेलीविजन अपलिंकिंग व ई-गवर्नेंस हेतु वीसैट की कनेक्टिविटी उपलब्ध करायेगा।

🚀🛰️अंतरिक्ष में इनसेट-4ए का स्थान लेगा.....


👉आगामी दिनों में उपग्रह को भूमध्य रेखा से 36 हजार किलोमीटर की ऊँचाई पर स्थित भू-स्थैतिक कक्षा में स्थानांतरित किया जायेगा।
👉कक्षा उठाने के अंतिम चरण में दो सौर सारणियों व एन्टीना रिफ्लेक्टर को इसमें तैनात किया जायेगा। फिर परीक्षणों के पश्चात यह कार्य करना शुरू करेगा।
👉विशेष बात यह है कि इसमें 12सी और 12 केयू बैंड के ट्रांसपोंडर लगे हैं। इसरो के अनुसार यह उपग्रह अंतरिक्ष में इनसेट-4ए का स्थान लेगा।

🚀🛰️भारत के 24 उपग्रह लॉन्च कर चुका है एरियन स्पेस-


जीसैट-30 एरियन स्पेस द्वारा लॉन्च किया गया इसरो का 24 वां उपग्रह है। इसकी शुरुआत 1981 में हुई थी जब एरियन एल03 के जरिये एप्पल प्रायोगिक उपग्रह छोड़ा गया था। शुक्रवार को जीसैट-30 के साथ ही यूटेलसैट कनेक्ट को भी प्रक्षेपित किया गया।।

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Friday, January 17, 2020

बादाम तेल के लाभ

बादाम खाने भी लाभ हैं तो बादाम तेल के प्रयोग के भी अनेक लाभ है।





❇️बादाम तेल का प्रयोग हम सेहत के लिये भी कर सकते हैं और खूबसूरती के लिये भी। बादाम की तरह इसका तेल भी पोषक तत्वों और खनिजों से युक्त होता है। बादाम तेल का सेवन एक ओर जहाँ हृदय की सेहत के लिये उत्तम है, वहीं मस्तिष्क स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभकारी माना गया है। बादाम देह की रोग प्रतिरोधी प्रणाली यानी इम्यून सिस्टम को बूस्ट करता है।

❇️केशों को बनाये मजबूत-

बादाम के तेल में वे पोषक तत्व पाये जाते हैं, जो हमारे बालों के लिये लाभकारी हैं। बादाम तेल के नियमित प्रयोग से बाल मजबूत व कांतिमय बन सकते हैं। लम्बे केशों की चाह रखने वालों को इसके प्रयोग से अपेक्षित मजबूती मिलेगी। यह स्कैल्प से सम्बंधित समस्याओं में भी लाभकारी हो सकता है।
बाल झड़ने की समस्या का सामना कर रहे व्यक्ति के लिये भी बादाम तेल सहायक है। नरिशिंग एजेन्ट के रूप में भी यह बालों का पोषण करता है।

❇️त्वचा को बनाता है आकर्षक-

त्वचा को सुंदर और आकर्षक बनाने के लिये बादाम के तेल उपयुक्त माना जाता है। बादाम तेल के उपयोग से त्वचा मखमली व कोमल बन सकती है। यह चेहरे के दाग और झुर्रियों को भी दूर करने में सहायक होता है। यह त्वचा का रूखापन, सूजन और जलन जैसी समस्याओं को कम करने में भी सहायक है। यदि फ़टे होंठों की समस्या में लिप बाम के स्थान पर बादाम तेल प्रयुक्त किया जाये तो होंठों में कोमलता के साथ-साथ नैसर्गिक चमक भी आ जाती है। बादाम का तेल नेत्रों के नीचे पड़े काले घेरों को भी कम करने में प्रभावी है।

❇️और भी अनेकों लाभ-

👉अक्सर शिशुओं की देह पर रैशेज़ हो जाते हैं। बादाम तेल की हल्की मालिश से इन बॉडी रैशेज़ को ठीक करने में मदद मिल सकती है।
👉बच्चों को बादाम तेल हल्के गर्म या गुनगुने दुग्ध में डालकर पिलाने से शारीरिक बल के साथ-साथ मस्तिष्क भी स्वस्थ रहता है।
👉बादाम तेल में विटामिन-डी भी पाया जाता है अतः अस्थि पीड़ा से जूझ रहे व्यक्ति बादाम तेल से नियमित मालिश कर सकते हैं।
👉बादाम तेल का प्रयोग बतौर स्क्रब भी किया जा सकता है जिसके लिये एक चम्मच चीनी में बादाम तेल मिलाकर उपयोग किया जा सकता है।
👉यदि माँसपेशियों में दर्द की शिकायत हो, तो बादाम तेल की मालिश से दर्द में आंशिक राहत मिलेगी।
👉शरद ऋतु में देह पर बादाम तेल की मालिश करने से आराम मिलता है क्योंकि यह शरीर को गर्म रखने में सहायक होता है।
👉प्रकाशित शोध के अनुसार बादाम तेल का सेवन कोलेस्ट्रॉल का स्तर सन्तुलित रखने में लाभकारी हो सकता है। यह पाचनशक्ति बढ़ाने में भी उपयोगी माना जाता है।।




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Monday, January 13, 2020

शेफाली वर्मा का दुर्गम सफर

फ़टे ग्लव्ज़-टूटे बैट से टीम इण्डिया का सफर करने वाली 15 वर्षीय शेफाली को सर्वश्रेष्ठ नवोदित सम्मान🏆




मात्र 15 वर्ष की आयु में अर्धशतक जड़ सचिन तेंदुलकर का रिकॉर्ड ध्वस्त करना और अब टी-20 विश्व कप में चयन के साथ बीसीसीआई का सर्वश्रेष्ठ अन्तर्राष्ट्रीय नवोदित खिलाड़ी का सम्मान अर्जित करना। रोहतक की शेफाली वर्मा की दो माह में यह उड़ान किसी स्वप्निल परीकथा से कम नहीं है, किन्तु इसके पृष्ठ में संघर्ष की एक कहानी है।
तीन वर्ष पूर्व का वृतान्त है, शेफाली के पिता की जेब में मात्र ₹ 280/- थे। ग्लव्ज़ जीर्ण-शीर्ण हो चुके थे और बैट क्षत-विक्षत हो चुका था। शेफाली के पास बैट पर तार चढ़वाकर तथा ग्लव्ज़ को छुपाकर खेलने के सिवाय कोई उपाय नहीं था, परन्तु पिता से शियाकत नहीं की। विश्वासघात के कारण धरातल पर आ चुके पिता ने उधार लेकर पुत्री को नये ग्लव्ज़ व बैट दिलाया।


भाई के स्थान पर खेल.....बनीं प्लेयर ऑफ द मैच

पिता संजीव ने अवगत कराया कि शेफाली साढ़े दस वर्ष की थीं। पुत्र साहिल को पानीपत में अंडर-12 टूर्नामेंट खेलने जाना था, पर वह बीमार पड़ गया। वह शेफाली को ले गये और उसे टूर्नामेंट में अवतरित करा दिया। वहाँ उसने लड़कों के मैच में प्लेयर ऑफ द मैच का अवॉर्ड प्राप्त किया। संजीव स्वयं भी क्रिकेटर रहे हैं, किन्तु उनका स्वप्न पुत्री ने पूर्ण किया।

प्रणाम ऐसी पुत्री के जुनून और संघर्ष को तथा ऐसे पिता के त्याग एवम् समर्पण को👏


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