🚩माँ भगवती का चतुर्थ स्वरूप- देवी कूष्मांडा🚩
आज ईशत हास्य से ब्रह्मांड की रचना करने वाली देवी भगवती के चौथे स्वरूप माँ कुष्मांडा की पूजा-अर्चना होगी। इनकी कांति और आभा सूर्य के समान है। जब सृष्टि नहीं थी तब देवी के कूष्मांडा स्वरूप ने ही सृष्टि का विस्तार किया। माँ का यह स्वरूप अन्नपूर्णा का है। शाकंभरी रूप धर देवी ने शाक से धरती को पल्लवित किया और साक्षी बनकर असुरों का संहार किया। यह प्रकृति और पर्यावरण की अधिष्ठात्री हैं। कूष्मांडा देवी की आराधना के बिना जप और ध्यान संपूर्ण नहीं होते। नवरात्र के चौथे दिन शाक-सब्जी और अन्न का दान फलदायी है। माता के इस रूप में तृप्ति और तुष्टि दोनों हैं।
उपासना मंत्र-
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टि रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
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