🕉️हिन्दू धर्म में गोत्र प्रणाली से आशय🕉️
हिंदू धर्म में व्यक्ति की प्राचीन पहचान को स्पष्ट करने के लिए ऋषियों के नाम पर गोत्र बनाये गए...
विवाह में गोत्र प्रणाली का है विशेष अर्थ-
लड़का और लड़की के लिए जब विवाह की चर्चा आरंभ होती है, तो हिंदू परिवारों में सबसे पहले गोत्र के बारे में पता किया जाता है। गोत्र के जरिये प्राचीन वंश या कुल से व्यक्ति का नाता और मूल पहचान की जानकारी की जाती है। हिंदू समाज में यह परंपरा है कि शादी के वक्त लड़का और लड़की का गोत्र एक-दूसरे के साथ और मां के गोत्र के साथ नहीं मिलने चाहिए। साथ ही लड़के-लड़की का गोत्र नानी और दादी के गोत्र से भी नहीं मिलाया जाता है। क्योंकि शादी हेतु तीन पीढ़ियों का गोत्र अलग होना आवश्यक है।
ऋषियों के नाम पर बने हैं गोत्र-
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हिंदू धर्म में ऋषियों के नाम पर गोत्र बनाए गए हैं। वैसे तो ऋषियों की संख्या लाखों-करोड़ो होने के कारण गोत्र की संख्या भी लाखों-करोड़ो मानी जाती है, परंतु सामान्यतः आठ ऋषियों के नाम पर मूल आठ गोत्र माने जाते हैं, जिनके वंश के पुरुषों के नाम पर अन्य गोत्र बनाए गए। 'महाभारत' के शांतिपर्व (297/17-18) में मूल चार गोत्र बताए गए हैं।
संगोत्र में विवाह की अनुमति नहीं-
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पुराणों व स्मृति ग्रंथों में बताया गया है कि यदि कोई कन्या संगोत्र हो, किंतु सप्रवर न हो अथवा सप्रवर हो किंतु संगोत्र न हो, तो ऐसी कन्या के विवाह को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। माना जाता है कि एक ही गोत्र का होने के कारण लड़का-लड़की भाई बहन हो जाते हैं।
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